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संयुक्त किसान मोर्चा ने किया आंदोलन के नए चरण का ऐलान, 31 जुलाई को पूरे देश में चक्का जाम

रविवार, 3 जुलाई को संयुक्त किसान मोर्चा की गाज़ियाबाद में हुई बैठक में कई अहम फ़ैसले लिए गए। बैठक में 15 राज्यों के 200 किसान प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। मोर्चे ने किसान नेता डॉ. आशीष मित्तल पर मुकदमे और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता तथा पत्रकार मोहम्मद जुबैर की गिरफ़्तारी का भी कड़ा विरोध किया।
Rakesh Tikait
फ़ोटो किसान नेता राकेश टिकैत के ट्विटर हैंडल से साभार

संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने अपने ऐतिहासिक आंदोलन की लंबित मांगों को लेकर 31 जुलाई को पूरे देश में चक्का जाम का एलान किया है। इसके पूर्व 18 जुलाई को संसद के मानसून सत्र की शुरुआत से शहीद उधम सिंह के शहादत दिवस 31 जुलाई तक देश भर में मोदी सरकार की वायदाखिलाफी के विरुद्ध सभाएं की जाएंगी।

ये फैसले 3 जुलाई को संयुक्त किसान मोर्चा की गाज़ियाबाद में हुई अहम बैठक में लिए गए। इस बैठक में 15 राज्यों के 200 किसान प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।

विनाशकारी अग्निपथ योजना के खिलाफ 7 से 14 अगस्त तक पूरे देश में " जय जवान, जय किसान " सम्मेलन आयोजित किये जायेंगे। आज़ादी की 75वीं जयंती पर 18, 19, 20 अगस्त को लखीमपुरखीरी में 75 घंटे के मोर्चे का आयोजन कर गृहराज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी की बर्खास्तगी की मांग बुलंद की जायेगी।

संयुक्त किसान मोर्चा ने इस बात पर गहरी निराशा का इजहार किया है कि, " 9 दिसम्बर 2021 को मोर्चा उठाते समय मोदी सरकार ने किसानों से जो वायदे किये थे, उनसे पूरी तरह मुकर गयी है। न तो उसने MSP पर कमेटी बनाई, न किसानों पर थोपे गए फ़र्ज़ी मुकदमे वापस लिये। सरकार बिजली बिल को फिर संसद में लाने की कोशिश कर रही है। किसानों की जो सबसे बड़ी मांग थी MSP को कानूनी गारंटी देने की , उस पर सरकार विचार को भी तैयार नहीं है। "

13 महीने चले ऐतिहासिक किसान आंदोलन की शानदार विरासत के अनुरूप किसान नेताओं ने अपनी लंबित मांगों के साथ ही, पूरे देश-समाज तथा युवाओं के लिए विनाशकारी अग्निपथ योजना तथा देश में लोकतन्त्र पर बढ़ते खतरनाक हमलों के विरुद्ध लड़ाई को भी अपनी बैठक का महत्वपूर्ण एजेंडा बनाया था।

बैठक में लिए गए एक प्रस्ताव में मानवाधिकार आंदोलन के कार्यकर्ताओं व लोकतान्त्रिक आंदोलनों पर बढ़ते राज्य दमन पर गहरी चिंता व्यक्त की गई तथा संयुक्त किसान मोर्चा के इलाहाबाद के किसान नेता डॉ. आशीष मित्तल को फर्जी मुकदमे में फँसाने और तीस्ता सीतलवाड़, तथा मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी का कड़ा विरोध किया गया।

बैठक में लिए गए एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में पंजाब चुनाव के समय संयुक्त मोर्चे से अलग हुए 16 किसान संगठनों को पुनः मोर्चे में शामिल किया गया। इस तरह विधानसभा चुनावों के समय हुए बिखराव से उबरते हुए संयुक्त किसान मोर्चा सांगठनिक consolidation की ओर बढ़ रहा है, यह बेहद सकारात्मक, स्वागतयोग्य development है। बैठक में SKM के दायरे को बढ़ाने और इसे किसान संगठनों के राष्ट्रीय मंच का स्वरूप देने का फैसला किया गया। इसके प्रस्तावित सांगठनिक ढांचे के लिए Guidelines जारी की गईं जिन्हें विस्तृत विचार विमर्श के बाद अगली बैठक में अंतिम रूप दिया जाएगा।

दरअसल, स्वामीनाथन आयोग की संस्तुति के अनुरूप C2+ फॉर्मूले के आधार पर MSP सुनिश्चित करने और उसकी कानूनी गारंटी का सवाल किसान आंदोलन की सर्व प्रमुख मांग थी, उसे 3 कृषि कानूनों को लाकर मोदी सरकार ने पीछे धकेल दिया था। 3 कृषि कानून वापस करने के लिए मोदी सरकार को बाध्य करने के बाद किसानों ने अपना आंदोलन वापस तभी किया जब सरकार ने MSP पर कमेटी बनाने का लिखित वायदा किया।

लेकिन अब 7 महीने होने को आ रहे हैं, पर सरकार कान में तेल डालकर पड़ी हुई है। वह लगातार उस पर बहानेबाजी और टालमटोल कर रही है। हाल ही में कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने फिर वही पुराना बहाना दुहरा दिया कि किसान संगठन कमेटी के लिये नाम नहीं दे रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि संयुक्त किसान मोर्चा पहले दिन से मांग कर रहा है कि कमेटी के terms of refrence बताए जाएं, उसका composition बताया जाए। यह सब स्पष्ट किये बिना कमेटी की भूमिका अस्पष्ट है और उसकी उपयोगिता संदिग्ध।सच तो यह है कि कमेटी एक झुनझुना है जिसके नाम पर सरकार MSP की कानूनी गारंटी की मांग को अनन्त काल तक लटकाना चाहती है। ऐसी कमेटी में किसानों के शामिल होने का क्या औचित्य है ?

अभी सरकार द्वारा रेकॉर्ड खरीद का रोज प्रोपेगंडा हो रहा है, दावा किया जा रहा है कि सरकार ने MSP बढ़ा दिया, लेकिन किसान नेताओं ने ठोस आंकड़ों के साथ, पहले की MSP दरों और महंगाई वृद्धि से तुलना करके दिखा दिया कि दरअसल MSP में कोई वास्तविक वृद्धि नहीं हुई है, बल्कि वह पहले से भी कम हो गयी है।

किसानों में अग्निपथ योजना को लेकर भी भारी नाराजगी है। SKM बैठक के प्रस्ताव में कहा गया है कि यह योजना राष्ट्रविरोधी और युवा-विरोधी होने के साथ साथ किसान विरोधी है। संयुक्त किसान मोर्चा इसके खिलाफ बेरोजगार नौजवानों, किसानों तथा पूर्व सैनिकों को लामबंद करेगा।

वैसे तो अग्निपथ योजना के खिलाफ युवाओं में नाराजगी सभी जगह है, लेकिन इस आंदोलन का मुख्य क्षेत्र एक बार फिर किसान आंदोलन के केंद्रित इलाके-हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, पश्चिमी यूपी-बन रहे हैं, इनके साथ ही इस बार बिहार और UP के अन्य हिस्सों में भी आंदोलन की धमक है।

दरअसल इन्हीं इलाकों से ऐतिहासिक तौर पर सबसे ज्यादा जवान सेना में भर्ती होते रहे हैं। इसके मूल में उन इलाकों की विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक स्थिति है, जहाँ रोजगार के अन्य वैकल्पिक अवसरों के अभाव में किसानों के बेटे बड़े पैमाने पर सेना में जाते रहे हैं। इन इलाकों का सेना-भर्ती का कोटा सबसे ज़्यादा होता है।

कृषि पर बढ़ते दबाव और किसानी के संकट के दौर में जवान बेटों की सेना की नौकरी से होने वाली आमदनी किसानों का बड़ा सहारा थी। अब वह भी छिन गयी। किसान इसे अपने आंदोलन के लिए मोदी सरकार के दंड के रूप में देख रहे हैं।

आने वाले दिनों में किसानों के सक्रिय समर्थन से अग्निपथ योजना के ख़िलाफ़ जवानों का आंदोलन बेरोजगारी के खिलाफ एक व्यापक जनान्दोलन का रूप ले सकता है। मोदी सरकार के लिए इसके गम्भीर राजनीतिक निहितार्थ होंगे क्योंकि यही युवा हैं, जिनकी 2014 और 2019 में दो बार उनके राज्यारोहण में निर्णायक भूमिका थी। सबसे बड़ी बात यह कि इनमें मोदी के सबसे trusted सामाजिक आधार के युवा भी शामिल है। जाहिर है उनकी नाराजगी 2024 में संघ-भाजपा को भारी पड़ सकती है।

इसीलिये कुछ विश्लेषकों का मानना है कि चुनावों के पूर्व मोदी अग्निपथ योजना पर उसी तरह जरूरी निवारक कदम उठा सकते हैं जैसे विधानसभा चुनावों के पूर्व उन्होंने कृषि कानूनों पर उठाया था। सम्भवतः इसी रणनीति के तहत कतिपय सैन्य अधिकारियों के माध्यम से इसे पायलट प्रोजेक्ट बताया गया है।

किसान इस बात को लेकर भी बेहद नाराज हैं कि उनके आंदोलन के सोशल मीडिया प्रचार के जो दो सबसे लोकप्रिय अकाउंट थे, KisanEktaMorcha और Tractor2twitr, वे दोनों ट्विटर एकाउंट हाल ही में बंद कर दिए गए हैं। संयुक्त किसान मोर्चा का आरोप है कि यह मोदी सरकार ने ट्विटर पर दबाब डालकर करवाया है।

दरअसल, सरकार ने गोदी मीडिया के माध्यम से जब किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए युद्धस्तर पर अभियान छेड़ा था, तब किसान युवाओं और बुद्धिजीवियों ने इन सोशल मीडिया एकाउंट्स की मदद से उसका मुकाबला किया, सरकारी झूठ का भंडाफोड़ किया, अपने सन्देश को देश के कोने कोने तक पहुंचाया। आंदोलन की सफलता में इसका योगदान अप्रतिम है।

अब जब एक बार फिर किसानों के बीच MSP समेत अपनी अन्य लंबित मांगों एवं अग्निपथ योजना को लेकर हलचल तेज हुई है और आंदोलन के पुनः खड़ा होने की सुगबुगाहट है, तब उनकी अभिव्यक्ति और प्रचार के इस मंच को बंद करवा दिया गया है।

आज मोदी सरकार के विरुद्ध किसानों की बढ़ती नाराजगी के कारण देश के विभिन्न इलाकों में किसान-आंदोलन की सक्रियता बढ़ती जा रही है।

संयुक्त किसान मोर्चा के प्रमुख घटक किसान महासभा ने 23 सितंबर को बिहार के विक्रमगंज में किसान महापंचायत आयोजित करने का एलान किया है जिसमें 50 हजार किसानों के भाग लेने का आयोजकों का दावा है। उम्मीद है इसमें संयुक्त मोर्चा के अन्य राष्ट्रीय नेता भी भाग लेंगे। बिहार, पूर्वी उत्तरप्रदेश और झारखंड के उन इलाकों के किसानों को राष्ट्रीय स्तर पर किसान आंदोलन से जोड़ने में यह महापंचायत मददगार होगी जहां दिल्ली बॉर्डर पर चले आंदोलन की हलचल तुलनात्मक रूप से बहुत प्रभावी नहीं थी।

किसान-आंदोलन के दूसरे चरण की घोषणा पूरे देश के लिए बेहद सुकूनदेह खबर है। इधर श्रमिक विरोधी लेबर कोड भी लागू हो गए हैं, जिसके ख़िलाफ़ मजदूर संगठन खड़े हैं। अग्निपथ योजना तथा बेरोजगारी के खिलाफ नौजवान लामबंद हो रहे हैं।

किसान-जवान और मेहनतकशों की जुझारू एकता तथा नागरिक समाज का प्रतिरोध ही आज अंतिम सांसे गिन रहे हमारे लोकतन्त्र की सबसे बड़ी उम्मीद है जो इसे नयी प्राणवायु से भरेगा।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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