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कटाक्ष: ये जासूसी-जासूसी क्या है?

फ्रांस वाले जांच करा रहे हैं, उसकी दुहाई तो कोई नहीं ही दे तो ही अच्छा है। वे तो रफाल की भी जांच करा रहे हैं। मोदी जी ने करायी क्या? फिर पेगासस जासूसी की ही जांच क्यों कराएंगे?
कटाक्ष: ये जासूसी-जासूसी क्या है?

विपक्ष वालो, अब तो शर्म करो! जासूसी-जासूसी की रट छोड़ो, सरकार के काम में तो हर वक्त टांग अड़ाते ही रहते हो, कम से कम संसद को तो अपना काम करने दो। अब तो बेचारी सरकार ने बाकायदा हिसाब लगाकर भी बता दिया है। विपक्ष वालों की जिद ने सिर्फ दो हफ्ते में देश का सौ करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान कर दिया है, जी हां पूरे 133 करोड़ रुपये का। 133 करोड़ में कितने शून्य होते हैं यह पूछकर हम किसी को खामखां शर्मिंदा क्यों करें! बस इतना समझ लीजिए योगी जी के एक साल के खबरिया टीवी चैनलों के विज्ञापन के बजट से भी सवाया नुकसान। और नुकसान क्यों नहीं होता, विपक्ष वाले संसद को तो चलने ही नहीं दे रहे हैं। बताइए, जिस लोकसभा को 54 घंटे चलना था, सिर्फ 7 घंटे चलकर खड़ी हो गयी, जबकि राज्यसभा को चलना था 53 घंटे, पर चली सिर्फ 11 घंटे। कुल मिलाकर 107 घंटे चलना था और संसद चली, सिर्फ 18 घंटे; पूरे 89 घंटे तो जहां की तहां रुकी ही रही। राम-राम, राष्ट्र का इतना नुकसान!

हम तो कहते हैं कि ये हड़ताल है, पूरी हड़ताल। अपनी हड़ताल से विपक्ष ने संसद का हाल पैसेंजर गाड़ी जैसा कर दिया, चली कम और रुकी ज्यादा। इस चाल से संसद कहीं पहुंचती भी, तो कैसे? हमें नहीं लगता है कि ‘नो वर्क, नो पे’ से भी काम चलने वाला है। मोदी जी को सांसद को आवश्यक सेवा कानून के दायरे में लाना चाहिए और सांसदों के भी हड़ताल करने पर बैन लगाना चाहिए। अगर अध्यादेश के जरिए, प्रतिरक्षा उत्पादन से दूर-दूर से भी जुडऩे वाली हरेक चीज में हड़ताल पर बैन लगाया जा सकता है, तो संसद में हड़ताल पर बैन क्यों नहीं लगाया जा सकता है? इसके लिए तो नया अध्यादेश लाने की भी जरूरत नहीं है। सरकार का इसका एलान करना ही काफी है कि प्रतिरक्षा उत्पादन वाला अध्यादेश संसद में हड़ताल पर भी लागू होता है। संसद में ही काम रुका रहेगा, तो देश की रक्षा का काम कैसे चलेगा!

बेशक, देश की रक्षा के काम के लिए संसद का चलना जरूरी है, लेकिन इसका मतलब यह हर्गिज नहीं है कि देश की रक्षा के मामलों पर संसद का चर्चा करना भी जरूरी है। विपक्ष जान-बूझकर मुद्दे को उलझाने की कोशिश कर रहा है। मुद्दा संसद के अपना काम करने का है, सुरक्षा जैसे संवेदनशील मामलों में घुसने का नहीं। अगर देश की रक्षा के मामलों पर भी संसद ही चर्चा करेगी, तो 130 करोड़ भारतीयों ने मोदी जी को क्या करने के लिए चुना है? देश की रक्षा करना, सौ टका सरकार का काम है। जितना जरूरी संसद का अपना काम करना है, उतना ही जरूरी है कि संसद, सरकार को अपना काम करने दे। भगवाई, इसीलिए तो विपक्ष को एंटीनेशनल कहते हैं। सीधे सरकार को अपना काम करने से रोकने की तो हिम्मत नहीं है, सो पट्ठा विपक्ष संसद को अपना काम तो नहीं ही करने दे रहा है उल्टे सरकार के काम में संसद की टांग अड़ाने की कोशिश कर रहा है, जिससे सरकार भी अपना काम नहीं कर सके। देखा नहीं कैसे पहले विपक्ष वाले लद्दाख-वद्दाख पर बहस की मांग के नाम पर संसद नहीं चलने दे रहे थे। अब पेगासस पर बहस के नाम पर तो संसद में पूरी हड़ताल ही किए बैठे हैं। उस पर तुर्रा यह है कि पेगासस की जासूसी भी राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है! कुछ भी!

पेगासस की जासूसी का भला राष्ट्रीय सुरक्षा से क्या लेना-देना है? अव्वल तो ऐसी कोई जासूसी-वासूसी हुई ही नहीं है। सब मोदी जी के विरोधियों की गढ़ी हुई कहानी है। इस कहानी को गढऩे में विदेशियों के शामिल होने से क्या मोदी जी कहानी को सच्चा मान लेंगे? हर्गिज नहीं। उल्टे इससे तो यही साबित होता है कि यह इंटरनेशनल षडयंत्र का मामला है। मोदी जी के राज को बदनाम करने का षडयंत्र। फिर भी मान लो किसी ने किसी की कोई जासूसी की भी हो, तो ऐसी कोई जासूसी सरकार की जानकारी में नहीं आयी है। और जब जासूसी सरकार की जानकारी में ही नहीं है, तो विपक्ष उस पर सरकार से जवाब की मांग पर, संसद को क्यों रोक रहा है? असल में विपक्ष खुद कन्फ्यूज्ड है। एक तरफ कह रहा है कि यह जासूसी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। दूसरी तरफ इसके इशारे कर रहा है कि सरकार, जासूसी करा रही है। सरकार के जासूसी कराने में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा कहां से आ गया? उल्टे सरकार अगर जासूसी नहीं कराएगी तब तो हो चुकी राष्ट्र की सुरक्षा? रही नागरिकों की जासूसी की बात तो सोचने की बात है कि सरकार अपने देश के नागरिकों की जासूसी नहीं कराएगी, तो क्या विदेश जाकर वहां के नागरिकों की जासूसी कराएगी? और जहां तक संसद में चर्चा का सवाल है, राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों के लिए गोपनीयता जरूरी है। ऐसे मामले संसद जैसी चौपालों में, सैकड़ों लोगों के बीच तय नहीं हुआ करते। वैसे कहीं राष्ट्रीय सुरक्षा का शोर इसलिए तो नहीं मचाया जा रहा कि यह जासूसी, इस्राइली कंपनी के रास्ते से होती है! लेकिन, इसमें भी राष्ट्रीय सुरक्षा को कमजोर करने वाली क्या बात हो गयी! इतने सालों की तपस्या के बाद भगवाइयों को एक सच्चा दिल का मीत मिला है। दिल के मीत पर शक नहीं किया जाता। जो भारत से करता हो प्यार, इस्राइल पर भरोसा करने से कैसे करेगा इंकार!

और अगर सरकार से पूछे बिना कोई और जासूसी कर रहा है, तो उसमें राष्ट्रीय सुरक्षा कहां से आ गयी? जासूसी करने वाला कर रहा है, किसी की जासूसी हो रही है, इसमें राष्ट्र कहां से आ गया? और फ्रांस वाले जांच करा रहे हैं, उसकी दुहाई तो कोई नहीं ही दे तो ही अच्छा है। वे तो रफाल की भी जांच करा रहे हैं। मोदी जी ने करायी क्या? फिर पेगासस जासूसी की ही जांच क्यों कराएंगे? यह कोई पुराने भारत की सरकार नहीं है, जो गोरों को फॉलो करने के चक्कर में पड़ी रहेगी। ये न्यू इंडिया की मोदी जी की सरकार है, जो गोरों को अन-फोलो करने में यकीन करती है। चाहे सेकुलरिज्म हो, डेमोक्रेसी हो या नागरिकों की आजादी हो, अब इंडिया गोरों को फोलो करने से आजाद है। आजादी का पचहत्तरवां साल लगने वाला है, मोदी जी मुश्किल से हासिल की अपनी इस असली आजादी को कम करेंगे या और मुकम्मल बनाएंगे। गोरे तो नागरिकों की आजादी पर ही अटके हुए हैं, मोदी जी सरकार को मुकम्मल आजादी दिलाएंगे, नागरिकों से भी और विपक्ष से भी। और इतने बड़े कॉज के लिए के हम क्या इत्ती सी कुर्बानी पर भी हुज्जत करेंगे? सिर्फ अंगरेजों से आजादी के लिए भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद वगैरह फांसी चढ़ गए थे, हम क्या अंगरेजी संस्कृति से असली आजादी के लिए फोन में पेगासस को बैठवाकर, जरा सी निजी आजादी की कुर्बानी देने से भी पीछे हट जाएंगे? हर्गिज नहीं। फिर ये जासूसी-जासूसी क्या है?  

(इस व्यंग्य आलेख के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक हैं।)

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