कटाक्ष : गोडसे के सम्मान में गांधी जी का सत्याग्रह

गांधी जी ने तो अब की बार हद्द ही कर दी। मरण दिवस पर शाह साहब की दिल्ली पुलिस ने जरा सी नरमी क्या दिखाई, बुढ़ऊ ने अंगरेजों के टैम वाले अपने पुराने लटके-झटके दिखाने शुरू कर दिए। न प्रेस के जुटने की चर्चा की और न मीडिया को इकट्ठा करने का जतन किया। नेताओं, समर्थकों, किसी को कोई संदेश भी नहीं दिया। बस सुबह-सुबह राजघाट पर अपनी समाधि के चबूतरे पर पालथी मार कर बैठ गए। पास में गत्ते की एक तख्ती पर लिख कर लगा दिया--गोडसे अन्याय प्रतिकार उपवास--30 जनवरी 2025, मो0 क0 गांधी।
शासन-प्रशासन ने पहले तो नोटिस ही नहीं लिया। इतने लंबे-चौड़े राजघाट पर, इतनी छोटी, दुबली काया और वह भी चारों और की शांति के बीच पालथी मारकर बैठी हुई। एक नारा तक नहीं। पर तभी किसी अधिकारी को ध्यान आ गया कि गांधी तो अब भी राष्ट्रपिता हैं। राष्ट्र माने न माने, मैं राष्ट्रपिता। और राष्ट्रपिता का मरण दिवस। पुरानी चाल के चक्कर में अगर पीएम जी का समाधि पर जाकर फूल चढ़ाने का मन कर गया तो? फिर क्या था, अघट की आशंका से नीचे से ऊपर तक और ऊपर से नीचे तक, सारा सरकारी अमला कांपने लगा। क्या होगा अगर पीएम जी पहुंच जाएं और राष्ट्रपिता को सत्याग्रही मुद्रा में पाएं। गांधी जी के लिए तो खेल हो जाएगा, पर बेचारे पीएम क्या ऐसा सदमा झेल पाएंगे। राष्ट्रपिता का सत्याग्रह और वह भी ऐन पीएम के सामने।
नीचे से ऊपर की तरफ हरकारे दौड़े; क्या करें? राजघाट के लिए छोटे से बड़े तक, सारे अफसर दौड़े; इस आफत से कैसे बाहर आएं। छुट-पुट तौर पर मीडिया वाले भी दौड़े; कहीं किसी बड़ी खबर को कवर करने में पूरी तरह से चूक ही नहीं जाएं। पहुंचते-पहुंचते पुलिस के बिचले अफसरों की सूझ आयी, बुढ़ऊ को उठाकर राजघाट के ही किसी कोने में पधरा दिया जाए। वहां बहुत झाड़ हैं, बुढ़ऊ छिप जाएंगे और पीएम जी को दूर से बिल्कुल नजर नहीं जाएंगे। फिर भी जरूरत हुई तो कनात के पीछे ढांप देंगे। पीएम जी फिर कर निकल जाएं, फिर बुढ़ऊ कहीं भी बैठें और चाहे कुछ भी करते रहें। जंगल में मोर नाचा, कौन देखने वाला है! पर बिचले से जरा से ऊपर वाले बाबू ने हडक़ा दिया। दिमाग तो ठीक है। जैसे भी हैं, जब तक भी हैं, राष्ट्रपिता हैं। उन्हें छू भी नहीं सकते, उठाकर कहीं और रखने की बात तो मन में लाना भी मत। जरा सी ऊंच-नीच हुई तो हम सब नप जाएंगे। तुम तो इंतजाम देखो कि किसी तरह से भीड़ जमा नहीं होने पाए। और ज्यादा मीडिया-वीडिया भी नहीं जमा होने पाए। न हो तो सब को गेट से काफी पहले ही रोक दो। बिचले पुलिस अफसर ने अपनी खीझ दबाकर सुझाया, राजघाट पर पुरानी धारा-144 लगा देते हैं। चार के बाद, पांचवें बंदे को घुसने ही नहीं देंगे।
सत्याग्रही गांधी के सामने अफसरों की भीड़ जमा हो गयी। मीडिया वाले पीछे धकिया दिए गए और ओहदे के हिसाब से बाकी अफसर आगे पीछे हो गए। सीनियर सेक्रेटरी के दर्जे के एक अधिकारी ने गला खंखार कर, बात शुरू की। आप राष्ट्रपिता हैं। आज तो आपका ही दिन है। राष्ट्र आपका कितना सम्मान करता है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि एक आप ही हैं, जिसके लिए राष्ट्र ने दो-दो दिन एलॉट कर रखे हैं। जन्म का दिन भी और मरण का दिन भी। खुद पीएम चलकर श्रद्धांजलि अर्पित करने आप की समाधि पर आते हैं। आपको सत्याग्रह का सहारा लेना पड़े, यह तो हमारे लिए शर्म से डूब मरने की बात है। जरूर कहीं कुछ मिस-कम्युनिकेशन हुआ है, वर्ना आपको सत्याग्रह में उपवास करने की तो क्या, अपनी मांग बताने की भी जरूरत नहीं होनी चाहिए थी। आपकी इच्छा तो बिना कहे खुद ब खुद पूरी हो जानी चाहिए थी। इसमें चूक हुई, उसके लिए हमें खेद है। खैर! आप तो बस इतना बताएं कि करना क्या है?
गांधी जी ओठों की कोर से मुस्कुराए। सत्याग्रही की मांग एकदम सरल है। गोडसे जी के साथ अन्याय अब बंद होना चाहिए। बहुत हुआ, अब और नहीं। बस यही प्रार्थना है कि गोडसे जी को उनका समुचित सम्मान मिले। जीते जी न सही, मरणोपरांत ही सही, कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से गोडसे जी को पूरा मान मिले। भारत रत्न न सही, कम से कम पद्म विभूषण का मान मिले। बस इतनी ही मांग है।
वरिष्ठ सचिव जी चकरा गए। ये गोडसे के सम्मान का क्या चक्कर है? बेशक, गांधी जी के लिए कुछ भी असंभव नहीं था। और यह दिखाने के लिए तो कि उन्हें गोडसे जैसे अपने विरोधी की भी कितनी चिंता है, वह कुछ भी करेंगे, किसी भी हद तक चले जाएंगे। पर ये गोडसे का मामला इस समय आया तो आया कहां से?
वरिष्ठ सचिव जी कहने लगे कि बड़े लोगों की बड़ी बातें। आप इतने महान हैं कि आप की बात हम साधारण लोगों को तो उलटबांसी जैसी लगती है। गोडसे ने आपको तीन गोलियां मारीं--धायं, धायं, धायं! आपके प्राण लेने के लिए, आपके प्रति कृतज्ञ राष्ट्र ने गोडसे को फांसी भी दे दी। पर अपको गोडसे के सम्मान की चिंता है। आप उसके साथ हो रहे अन्याय का निराकरण चाहते हैं। आप हैं ही इतने महान। पर सरकार इसमें क्या कर सकती है, सिवाय पब्लिक के बीच गोडसे का जो सम्मान इस राज में तेजी से बढ़ रहा है, उसकी तरफ से आंखें मूंदे रखने के?
गांधी जी रुक-रुक कर बोले--मांग तो मैंने बता दी, गोडसे को कम से कम पद्म विभूषण। रही बात अन्याय की तो, एक आंख भी खोलकर देखेंगे तो साफ दिखाई दे जाएगा। साध्वी ऋतंभरा को पद्म भूषण और गोडसे का सवा-सौ डेढ़ सौ नामों में जिक्र तक नहीं; यह सरासर अन्याय नहीं तो और क्या है? मस्जिद को शहीद करने के लिए पद्म भूषण, तो राष्ट्रपिता को शहीद करने के लिए पद्म विभूषण तो बनता ही है। बस, वही दिला दीजिए। बस सत्याग्रह खत्म।
सचिव जी घबरा कर बोले, पर सर इस बार के पद्म पुरस्कारों की सूची तो निकल गयी। वैसे भी सारे हिंदुत्ववादी तो एक साथ नहीं भर सकते। आपका आग्रह है तो अगली बार जरूर गोडसे जी को एकोमोडेट करने का प्रयास किया जाएगा। गांधी जी बोले, फिर ठीक है, मेरा सत्याग्रह भी तब तक जारी रहेगा। अब आप लोग जाएं, मेरा प्रार्थना का समय हो रहा है।
इसी बीच सचिव जी के पास संदेश आ गया, पीएम जी नहीं आ रहे हैं। पूरी सरकार ने राहत की सांस ली। पर बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी। गांधी जी भी जिद्दी हैं, गोडसे को साध्वी ऋतंभरा से बड़ा पुरस्कार दिला कर रहेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)
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