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कटाक्ष: एक अकेला, सब आभारी!

मेहमानों का स्वागत तो भव्य हुआ, पर शहर में कर्फ्यू जैसा लगाने के बाद। सब दबा-छुपा उघाडऩे और बारात का सारा मजा किरकिरा करने पर भी पट्ठों को संतोष नहीं हुआ, तो विश्व गुरु को ही ज्ञान और देने लगे।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

इन पत्रकारों की नस्ल वाकई कुत्तों वाली है। देसी हों तो और विदेशी हों तो, रहेंगे तो कुत्ते ही। मोदी जी बारह नहीं तो नौ साल से ज्यादा तो पूंछ नली में डालकर रखे ही हुए थे। पर सीधी हुई क्या? काटेंगे नहीं तब भी भौंकने से बाज नहीं आ रहे हैं। जैसे-तैसे कर के देश वालों का मुंंह बंद कराया, तो विदेश वाले लगे भौंकने। बताइए! जी-20 में आने वाले विदेशी बारातियों को इसकी याद दिलाने के लिए कि किस की बारात है, हवाई अड्डे से लेकर विवाहस्थल तक खंभे-खंभे पर मोदी जी की तस्वीर के पोस्टर-बैनर क्या लगा दिए, इन्हें इसमें भी दिक्कत हो गयी। देश में विपक्ष वाले विदेशियों को दिखाने वाली तस्वीरों में वैराइटी की मांग करें तो फिर भी बात समझ में आती है। यह दूसरी बात है कि देसी विपक्षियों के पास भी कोई ठोस और वास्तविक विकल्प है नहीं।

बताइए, कांग्रेस वाले अब भी इसी की शिकायत पर अटके हुए हैं कि गांधी जी की तस्वीर क्यों गायब कर दी? कहां तो मोदी जी भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के वादे पर, तीसरा मौका मांग रहे हैं और कहां अधनंगे, कई-कई दिन सिर्फ पानी पीकर फाकों पर गुजारते जैसे नजर आने वाले बुढ़ऊ की तस्वीर! कहां मोदी जी का ड्रेसिंग सेंस और कहां अधनंगे फकीर का अनड्रेसिंग सेंस! विपक्ष वालों को भी मोदी जी नहीं तो कम से कम देश की इज्जत का कुछ तो ख्याल करना चाहिए। गांधी जी का आदर अपनी जगह है, पर मोदी जी खंभे-खंभे पर ऐसी तस्वीर तो नहीं लगवा सकते थे, जो अपनी अर्धनग्नता से विदेशी मेहमानों को असहज कर जाए। फिर गांधी जी की भी तस्वीर है तो सही बाकी सब के साथ, इतिहास वाली प्रदर्शनी में।

खैर! हम विदेशी पत्रकारों के भौंकने की बात कर रहे थे। जब भारत के पत्रकार जी-20 सम्मेलन की व्यवस्थाओं की दिव्यता और भव्यता का बखान करने में व्यस्त थे, उनके विदेशी बिरादर हमारे देश के अंदरूनी मामलों में दखलंदाजी करने में लगे थे। हवाई अड्डे से सम्मेलन स्थल तक, खंभों पर लगी तस्वीरों की गिनती तक ही रुक जाते तो फिर भी गनीमत थी। बेशक, होती यह भी हमारे देश के अंदरूनी मामलों में ही दखलंदाजी। आखिर, हम भारत के प्रतिनिधि के तौर पर खंभे-खंभे पर किस की तस्वीर लगाएंगे, यह हम तय करेेंगे या विदेशी मेहमान? पत्रकार होने से क्या हुआ, विदेशी मेहमान हैं, तो मेहमानों की तरह रहें। न भूतो-न भविष्यत टाइप की मोदी जी की मेहमान नवाजी का लुत्फ लें और जितना बन पड़े मोदी जी की तारीफ-वारीफ कर के एहसान चुकाने की भी कोशिश करें। पर भाई लोग तो सीधे हमारे अंदरूनी मामलों में कूद पड़े हैं और कह रहे हैं कि ये तस्वीरें, विदेशियों को दिखाने के लिए उतनी नहीं हैं, जितनी खुद हिंदुस्तानियों को दिखाने के लिए हैं। यह तो मोदी जी के अगले चुनाव के प्रचार की शुरूआत है! कितना भारत द्वेष भरा है इन विदेशी पत्रकारों में भी। मोदी जी अगला चुनाव भी कराएंगे, इसकी खबर भी ऐसे दे रहे हैं, जैसे कोई बुरी खबर दे रहे हों और दम भरते हैं, डैमोक्रेसी की चिंता करने का।

पर बात तस्वीरों तक भी तो नहीं रुकी। मेहमान नवाजी का लुत्फ लेने के बजाए, भाई लोग तो घर के पिछवाड़े तक की खबर निकालने पर उतर आए। और लगे उस सब की खबर बनाने, जिसे हमारे अपने मीडिया ने खबर देने लायक नहीं समझा। कि मामूली लोगों के घर तरह-तरह के पर्दों के पीछे छुपा दिए। कि झुग्गी-झोंपडिय़ां उजाडक़र, शहर को चमकाने के लिए, गरीब शहर से ही खदेड़ दिए। कि रेहड़ी-पटरी वाले, छोटे दुकानदार, दिहाड़ी मजदूर, रिक्शा-विक्शा चलाने वाले, सब दृश्यता की सीमा से बाहर धकेल दिए। तीन दिन का लॉकडाउन लगाकर दिल्ली पब्लिक से खाली करा ली।

मेहमानों का स्वागत तो भव्य हुआ, पर शहर में कर्फ्यू जैसा लगाने के बाद। सब दबा-छुपा उघाडऩे और बारात का सारा मजा किरकिरा करने पर भी पट्ठों को संतोष नहीं हुआ, तो विश्व गुरु को ही ज्ञान और देने लगे। चीखती हुई हैडिंगेे लगा दीं- गरीबी, गरीबों को छुपाने से नहीं हटेगी; गरीबी तो मिटानी पड़ेगी! विश्व गुरु हम हैं और ज्ञान हमें ये चार-चार कौड़ी के पत्रकार दे रहे हैं! मोदी जी ने बिल्कुल सही किया, जो पहले ही अमरीकियों से कह दिया कि, पिछली बार जो व्हाइट हाउस में गलती हो गयी, फिर कभी नहीं होने दी जाएगी। जब मोदी जी, बाइडेन जी मिलेंगे, न विदेशी न देसी, किसी पत्रकार की एंट्री नहीं होगी। विश्व गुरु से कोई सवाल नहीं पूछेगा। हां! अगर बाइडेन को पत्रकारों के सवालों के जवाब देने की ज्यादा ही खुजली हो, तो अगले स्टॉप पर वियतनाम में जाकर देते रहें पत्रकारों के सवालों के जवाब। पर विश्व गुरु के सामने पत्रकारों को कोई मुंह नहीं लगाएगा, गोदी-सवारों को भी नहीं।

और क्यों न करें मोदी जी पत्रकारों का दुत्कार से सत्कार! गोदी-सवार होकर भी तो ये जी-20 की अध्यक्षता के लिए खास काम के साबित नहीं हो रहे हैं, फिर गोदी-विरोधियों से तो उम्मीद ही क्या की जा सकती थी। माना कि गोदी-सवारों ने बारातियों के लिए इंतजामात की चमक खूब दिखाई। सोने-चांदी के खाने वाले बर्तनों तक की चमक बार-बार दिखाई। चमक इतनी दिखाई, इतनी दिखाई की आंखें चौंधियां जाएं। पर जब गोदीविरोधियों और विदेशियों के भारतविरोधी नेटवर्क ने मिलकर, यह दिखाना शुरू कर दिया कि जी-20 के लिए दिल्ली किस-किस को हटाकर और क्या-क्या ढांपकर चमकायी है, तो गोदी-सवारों ने क्या किया? कुछ हाय कर के बैठ गए और जो लगे रहे वो भी बस और ज्यादा चमक-दमक दिखाने में ही लगे रहे। बताइए, ऐसे गोदी सवार भी विश्व गुरु के किस काम के। इनसे तो एक बार इतना तक नहीं याद दिलाया गया कि विश्व गुरु ने तो पहले ही बता दिया है कि उनकी अध्यक्षता ने, जी-20 सम्मेलन को, एक जन-आंदोलन बना दिया है। कान्फ्रेंस हॉलों से निकाल कर, घर-घर पहुंचा दिया है। गरीबों का ढांपना, छुपाना, हटाना, भगाना, उजाडऩा, सब उन्हें इस जी-20 आंदोलन का हिस्सा बनाने के लिए ही तो है। विश्व गुरु की अध्यक्षता में जी-20 जन-जन के बीच जा रहा है, उनके बीच अपनी जगह बना रहा है। जी-20 तो बस जन-जन को आंदोलित कर रहा है, उनकी जगह से जरा हिला-डुला रहा है, भारतविरोधी गैंग ही जबर्दस्ती तोड़-मरोडक़र इसे गरीबों को हटाना, छुपाना, भगाना बता रहा है। यह जी-20 को जन-आंदोलन बनाने की विश्व गुरु की सीख का अपमान है। रही बात भारत की पब्लिक की तो पब्लिक तो रंगारंग बारात दिखाने के लिए मोदी जी की आभारी है। बाकी सब तो खैर आभारी हैं ही। एक अकेला, सब आभारी! फिर खुद को पत्रकार मानने वालों को प्राब्लम क्या है!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)

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