स्पायवेअर अर्थात जासूसी सॉफ्टवेयर – जनतंत्र के ख़िलाफ़ नया हथियार!
यह साफ होता जा रहा है कि हुक्मरानों के लिए अपने आप को किन्हीं वक्रोक्तियों के सहारे या किसी अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र का हवाला देते हुए या अन्य कोई ऐसी बात छेड़ कर छिपना मुमकिन नहीं होगा। अब स्पायवेयर का मसला, जिसके चपेट में अलग अलग मुल्कों के पत्रकार, एक्टिविस्टस, राजनेता आते दिखे हैं, दुनिया भर में सूर्खियां बना है।
भारत– जो विश्वगुरू होने का दावा करता है– के हुक्मरानों की बेचैनी बढ़ाने वाला मसला यह भी है कि इस मसले पर कमसे कम विश्व मीडिया की निगाहों में अपने आप को सौदी अरब, हंगरी, कजाकस्तान, रवांडा आदि मुल्कों की कतार में पा रहा है जहां हुकमती ताकत का इस्तेमाल गलत कारणों के लिए किए जाने के आरोप अक्सर लगते हैं और जिनकी जांच भी नहीं होती।
आने वाले दिनों में, सप्ताहों में भारत की सरकार क्या कदम उठाती है, इसकी तरफ दुनिया की निगाह लगी रहेगी।
अब वैसे दिन बीत गए जब मुख्यधारा की मीडिया ने भी गोया चुप्पी का षड्यंत्र बना रखा था, जब भीमा कोरेगांव मामले में विस्फोटक किस्म का खुलासा हुआ था। फरवरी 2021– याद रहे इस मामले में देश के कई अग्रणी मानवाधिकार कार्यकर्ता, विद्वान, कवि आदि बेहद दमनकारी कानूनों के तहत सलाखों के पीछे हैं। तब पता चला था कि इस मामले में सबसे पहले गिरफ्तार रोना विल्सन के कम्प्यूटर में कथित तौर पर दोषी ठहराने वाले दस्तावेज अपलोड करने में स्पायवेयर का इस्तेमाल अर्थात जासूसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल हुआ था।
फरवरी माह में मैसेच्युएटस में बसी डिजिटल फारेंसिक फर्म एर्सेनल कन्सल्टिंग ने रोना विल्सन के डिजिटल उपकरणों की फोरेन्सिक इमेजेस के विश्लेषण से बताया था कि किस तरह साइबर हमलावर ने उसके कम्प्युटर तक अपनी पहुंच बना ली थी और इस आपरेशन को अंजाम दिया था, जो एक तरह से उनकी गिरफतारी का आधार बना था। बमुश्किल पांच माह के अंतराल के बाद जुलाई 2021 में इस मामले में गिरफतार एक अन्य अभियुक्त–जानेमाने मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील–सुरेंद्र गडलिंग के बारे में इसी किस्म की ख़बर छपी कि किस तरह उसी साइबर हमलावर ने उनके कंप्युटर में ऐसे ही आपत्तिजनक दस्तावेज अपलोड किए थे, जिनका उनके खिलाफ इस्तेमाल हो सकता था।
उस वक्त़ भी कोई हंगामा नहीं हुआ और इस खुलासे को भी भुला दिया गया।
यह हक़ीकत कि इस डिजिटल युग में कोई भी व्यक्ति अपने मोबाईल या पर्सनल कम्प्युटर के जरिए इस किस्म के स्पायवेअर हमले का शिकार हो सकता है जो उसकी निजी आज़ादी, सुरक्षा, निजता को ख़तरे मे डाल सकता है, किसी आपराधिक/आतंकी गतिविधि में उसे फंसाया जा सकता है। जिंदगी भर के लिए उस पर लांछन लगाया जा सकता है और जिसकी परिणति उसकी मौत में भी हो सकती है, इस संभावना के प्रगट होने के बावजूद इससे कोई गुस्सा नहीं पनपता दिखा था।
बमुश्किल दो साल पहले प्रख्यात सउदी अरब पत्रकार और सौदी अरब सरकार के आलोचक जमाल खशोगी की इस्तंबुल स्थित सौदी कान्सुलेट में ही हत्या की गयी थी, जिसमें भी स्पायवेयर का प्रयोग करने के आरोप लगे थे।
टोरोन्टो विश्वविद्यालय में बनी सिटिजन लैब जैसी संस्थाओं में सर्विलांस तकनीक पर अनुसंधान का काम तेजी से आगे बढ़ाया और अपने रिसर्च में उन्होंने पाया था कि किस तरह दर्जनों पत्राकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ स्पावेयर का प्रयोग किया जा रहा है।
लेकिन जासूसी सॉफ्टवेयर के माध्यम से किसी को भी फंसा सकने की इस संभावना पर, इस अलग किस्म के साइबर हथियार के इस्तेमाल पर मौन बना रहा।
पेगासस प्रोजेक्ट के खुलासे के बाद अब उम्मीद की जा सकती है चीजें निश्चित ही वैसी नहीं बनी रहेंगी।
इस मामले में हो रह खुलासों के पीछे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसे सहयोग की कहानी है, जिसे लंबे समय तक याद रखा जाएगा।
दस मुल्कों के 17 मीडिया संस्थानों के 80 पत्रकारों की साझी कोशिशों के चलते ही यह सब उजागर हो पा रहा है जिन्होंने मोबाइल फोन पर हुए स्पायवेयर हमले की जांच के लिए उनकी फोरेंसिक जांच करने, उन तमाम लोगों से संपर्क करने जिनके फोन इस हमले के चपेट में आए हैं या लीक हुई डाटाबेस में शामिल पाए गए हैं, काफी मेहनत की है और इसके लिए जबरदस्त जोखिम उठाया है। उनके इस संगठित प्रयासों का समन्वय ‘फॉर्बिडन स्टोरीज’ नामक बिना लाभ के चलने वाली सामाजिक संस्था ने किया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार कार्यों के लिए मशहूर एमनेस्टी इंटरनेशनल ने उसके लिए तकनीकी सहयोग प्रदान किया।
इसके तहत विश्व के चौदह अग्रणी नेताओं के नाम भी लीक हुए डाटाबेस में उजागर हुए हैं, जिनमें एक राजा, तीन राष्टाध्यक्ष और तीन प्रधानमंत्रा अभी भी अपने पद पर हैं। हमें बताया गया है कि इस सूची में फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा, पाकिस्तान के प्रधानमंत्रा इमरान खान , यहां तक कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और उनके कई करीबियों के नाम भी शामिल हैं। जासूसी साफटवेयर के माध्यम से की जा रही कार्रवाइयों के संदर्भ में बात करते हुए खुद राहुल गांधी ने इस बात की ताईद की है और कहा है कि उनका साफ मानना है कि उनका महज नाम डाटाबेस में शामिल नहीं था - जिनमें ऐसे नाम दर्ज थे, जिनकी जासूसी की जा सकती थी - बल्कि उनकी स्नूपिंग लगातार चलती रही है।
गौरतलब है कि इस सूची में तिब्बती नेता दलाई लामा के कई करीबी सलाहकारों, नागा सोशालिस्ट कौन्सिल आफ नागालिम के कई नेताओं के नाम भी पाए गए है - जो खुद भारत सरकार के साथ अपनी मांगों को लेकर वार्ता में मुब्तिला हैं।
इस पूरे प्रसंग में जटिल कानूनी सवाल भी उपस्थित हुए है - जिसमें अहम सवाल नागरिकों की निगरानी करने के लिए सरकार द्वारा निजी संस्थानों का इस्तेमाल, एक तरह से सर्विलांस के काम की आउटसोर्सिंग का है। सभी जानते हैं कि सर्विलांस/निगरानी का अधिकार किसी संप्रभु राष्ट को बहुत अपवादात्मक स्थितियों में ही मिलता है। पेगासस स्पायवेयर के मामले में हो रहे खुलासे यही बता रहे हैं कि न केवल इन्हें किसी निजी संस्थानों का सौंपा गया बल्कि वह भी किसी विदेशी मुल्क से जुड़ा संस्थान था।
इस इस्राइल की एक कंपनी एनएसओ, विवादों के घेरे में है, जो स्पायवेयर के काम में दुनिया भर में सक्रिय है और जिसके इस्राइल की सरकार के साथ करीबी संबंध बताये जाते हैं उसके परिणामों का अभी पूरा आकलन भी नहीं हो सका है।
सोचने की बात है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कहलानेवाले मुल्क में उसके नागरिकों की सर्विलांस काम किसी विदेशी कंपनी के तहत हो - जैसे कि प्रमाण पेश किए जा रहे हैं - और खुद भारत की संसद भी इससे अनभिज्ञ हो, तो यह भारत के जनतंत्रा की गुणवत्ता, यहां के नागरिकों की निजी आज़ादी के बारे में क्या किन निष्कर्षों तक पहुंचाता है।
इस्राइल की एनएसओ और वहां की सरकार के बीच नजदीकियां किसी से छिपी नहीं हैं। इस्राइल के प्रतिष्ठित अख़बार ‘हारेत्ज’ की रिपोर्ट इस बात को उजागर करती है कि किस तरह रफता रफता ‘इस्राइल साइबर उद्योगों के संरक्षक के तौर पर और स्पायवेयर की खपत को दुनिया भी में आगे बढ़ाने में मुब्तिला देख गया हैं।’ आरोप तो यह भी लगते रहे हैं कि इस्राइल के पूर्व प्रधानमंत्त्री बीबी नेतनयाहू जहां-जहां भी पहुंचते रहे हैं, उनके सरकारी दौरों पर एनएसओ उनके साथ रहा है, जिससे सरकारों के साथ इन जासूसी सॉफ्टवेयर की मार्केंटिग अधिक सुगम तरीके से होती रही है।
यह अलग बात है कि प्रचंड अंतरराष्टीय दबावों के तहत खुद इस्त्राएल सरकार ने इन आरोपों की जांच के लिए आयोग का गठन किया है कि क्या एनएसओ द्वारा बेचे गए पेगासस स्पायवेयर का प्रयोग उसके ग्राहकों ने पत्राकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने के लिए किया गया हि और वह यह भी देखेगा कि क्या ऐसे स्पायवेयर के निर्यात का काम क्या अधिक सख्त करना चाहिए।
वैसे इस जांच से अधिक कुछ निकलने वाला नहीं है क्योंकि खुद एनएसओ यह भी कह रहा है कि उसके चलते ही दुनिया भर के करोड़ों लोग चैन की नींद सो पा रहे हैं।
और एक महत्वपूर्ण बात यह है कि खुद एनएसओ ने अपने पेगासस सॉफ्टवेयर को इस कदर स्मार्ट बनाया है कि अब दुनिया भर का कोई भी स्मार्टफोन उसके चपेट में आ सकता है, भले ही उसका वाहक स्पायवेयर के मामलें में बहुत सतर्क हो। पहले होता यह था कि जिस फोन में वह इस जासूसी साफटवेयर डालना चाहता है, उसके वाहक को कोई लिंक या कोई मेसेज क्लिक करना होता था, अब उसकी भी जरूरत नहीं रह गयी है। वह बिना आप के कुछ किए आप के फोन में पहुंच सकता है।
जांच महज औपचारिक बन कर रह जाएगी, यह इस बात से भी प्रमाणित होता है कि स्पायवेयर - जिसे खुद इस्राइली सरकार हथियार मानती है और इसी की वजह से ऐसा स्पायवेयर बेचने के लिए संबंधित देश के प्रधानमंत्रा/राष्टपति/ग्रहमंत्रा आदि की सहमति अनिवार्य मानी जाती है - के निर्माण में इस्त्राएल में तमाम कंपनियां लगी हैं, जो दुनिया को खतरनाक डिजिटल हथियारों के बेचने में मुब्तिला हैं।
एक क्षेपक के तौर पर यह भी बताना मौजूं होगा कि दुनिया भर में कमसे 500 निजी कंपनियां हैं जो ऐसे स्पायवेयर के निर्माण में लगी हैं ,जिन्हें वह दमनकारी हुकूमतों को बेचती हैं जिसके जरिए यह सरकारें अपने ही नागरिकों का उत्पीड़न करती है।
यह जानना भी दिलचस्प है कि आज की तारीख तक भारत सरकार ने न ही इस बात की पुष्टि की है या इस बात को खारिज किया है कि उसने पेगासस साफटवेयर खरीदा है, जबकि उपलब्ध संकेत इस मामले में साफ बताते हैं।
ध्यान रहे कि एनएसओ ने हमेशा ही इस बात को रेखांकित किया है कि वह इस सॉफ्टवेयर को सरकारों को ही बेचती है, जो ‘अपराध और आतंकवाद’ से लड़ रहे हैं। बिना संबंधित राष्ट के प्रमुखों की अनुमति मिले उस साफटवेयर का इस्तेमाल उस देश में नहीं हो सकता।
दूसरी अहम बात कि चूंकि पेगासस को खुद साइबर हथियार माना जाता है, इसलिए उसके निर्यात के लिए भी इस्त्राएली रक्षा मंत्रालय की अनुमति जरूरी होती है।
तीसरे, क्या यह महज संयोग हो सकता है कि भारत में पेगासस साफटवेयर की गतिविधियां यहां के स्मार्टफोन पर पहली दफा 2017 में नज़र आती है, उसी कालखंड में जब प्रधानमंत्रा मोदी ने इस्राइल को भेंट दी। दरअसल प्रधानमंत्रा मोदी की यही यात्रा विदेशी मीडिया के निगाह में है क्योंकि कहा जाता है कि खुद इस्राइली प्रधानमंत्री ने इस सॉफ्टवेयर के बेचने के काम को फैसिलिटेट किया।
स्मार्टफोन में जासूसी साफटवेयर डालने आदि का मुददा इन दिनों इतना सूर्खियों में है, जिसकी अनुगूंज कई मुल्कों में सुनाई दे रही है। इनमें से कइयों ने अपने यहां जांच के भी आदेश दिए हैं। इस्राइल या मेक्सिको ही नहीं, फ्रांस के राष्टपति मेक्रां ने भी बहुस्तरीय जांच के आदेश दिए हैं, जब यह ख़बर आयी कि लीक हुए डाटाबेस में खुद मैक्रों के तथा उनके करीबी मंत्रियों, सहयोगियों के नंबर शामिल हैं। इस पृष्ठभूमि में यह कहना हास्यास्पद हो जाता है कि भारत के खिलाफ यह कोई अंतराष्टीय साजिश है, तथा देश को बदनाम करने की कोशिश है।
निश्चित ही भारत के लिए भी इस मामले में यही रास्ता उपलब्ध है कि वह इस मामले में उच्च स्तरीय जांच का आदेश दे।
मान लें कि सरकार ने पेगासस स्पायवेयर नहीं खरीदा है तो फिर उसके लिए यह अधिक जरूरी हो जाता है कि वह उस अंतरराष्ट्रीय साजिश का भंडाफोड़ करे जिसके तहत भारत के नागरिकों की जासूसी कोई विदेशी ताकत कर रही है। क्या भारत सरकार का यह सरोकार नहीं बनता है कि वह अपने देश के नागरिकों–जिनमें कई अग्रणी पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता, राजनेता हैं–की इस जासूसी को लेकर चिंतित हो।
वैसे यह सोचना मासूमियत की पराकाष्ठा होगी कि भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पर यौन प्रताडना के आरोप लगाने वाली महिला क्लर्क और उसके आत्मीय जनों एवं रिश्तेदारों– जिनकी संख्या ग्यारह थी–की सक्रियताओं को जानने में अचानक किसी मोरोक्को, किसी रूस या अमेरिका की दिलचस्पी होगी।
यह भी सोचना अजीब लग सकता है कि झारखंड में सुरक्षा बलों के कथित दमन का खुलासा करने वाले, आदिवासियों पर हो रहे अत्याचारों को जुबां देने वाले स्थानीय पत्राकार रूपेश कुमार सिंह, उनकी पत्नी/पार्टनर तथा उसकी बहन के फोन में किसी विदेशी मुल्क की अचानक रूचि जाग्रत हो उठेगी, जिनके नाम भी पेगासस प्रोजेक्ट में पाए गए हैं। अपनी निजता का उल्लंघन करने तथा उनकी व्यक्तिगत आज़ादी को खतरे में डालने के मनमानेपन के खिलाफ पत्राकार ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का निर्णय लिया है।
राजनेताओं, राजनीतिक पार्टियां, पत्राकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और सरोकारों से लैस आम नागरिकों द्वारा संम्मिलित रूप से यही मांग बुलंद की जा रही है कि सरकार इस मामले में जांच बिठा दे।
प्रेस क्लब आफ इंडिया द्वारा इस मामले में दिया गया बयान तमाम लोगां के सरोकारों को आवाज़ देता दिखता है, जिसमें उसने इस बात को रेखांकित किया है कि ‘‘इस मुल्क के इतिहास में पहली दफा जनतंत्र के सभी खंभों– न्यायपालिका, सांसद, मीडिया और मंत्रियों की जासूसी की गयी है, जो अभूतपूर्व है और उसकी जबरदस्त भर्त्सना की जानी चाहिए।” बयान यह भी बताता है कि किस तरह एक ‘विदेशी एजेंसी को– जिसे मुल्क के राष्ट्रीय हित के साथ कोई सरोकार नहीं है–उसे नागरिकों की जासूसी के लिए तैनात किया गया।’’
सरकार के सामने तरह-तरह के प्रस्ताव रखे गए हैं
यह प्रस्ताव है कि सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में स्पेशल इन्वेस्टिगेटिंग टीम का गठन हो, जो इस मामले में जांच को अंजाम दे।
जांच के लिए संयुक्त संसदीय जांच कमेटी बनाने की भी बात हो रही है
वैसे इनफर्मेशन टेक्नोलॉजी की स्टैंडिंग कमेटी– जिसकी अध्यक्षता कांग्रसी सांसद शशि थरूर कर रहे हैं – के मुताबिक इस मामले में प्रारंभिक कदम के तौर पर उनकी कमेटी की तरफ से इलैक्ट्रॉनिक्स और इंर्फोमेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय और गृह मंत्रालय तथा टेलीकम्युनिकेशन्स विभाग के प्रतिनिधियों को 28 जुलाई को बुलाया गया है ताकि डाटा सुरक्षा और निजता पर बात हो। जनाब थरूर के मुताबिक संयुक्त संसदीय समिति की आवश्यकता नहीं है क्योंकि स्टैंडिग कमेटी और संयुक्त संसदीय समिति के नियम एक जैसे ही होते हैं।
यह भी मुमकिन है कि स्थिति की गंभीरता को देखते हुए खुद आला अदालत इस मामले को खुद ही अपने स्तर पर उठाए । भारत के नागरिकों के निजता के अधिकारों के उल्लंघन और उनके जीवन को असुरक्षित करने वाले इस स्पायवेयर की बात को गंभीर मानते हुए वह सरकार को भी नोटिस जारी कर दे।
समूची दक्षिण एशिया में यह देखने में आ रहा है कि जनतंत्र का क्षरण हो रहा है। विगत सात साल निश्चित ही दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कहलाने वाले मुल्क के लिए अधिकाधिक क्षरण के साल रहे हैं। यह बात बार-बार उठ रही है कि किस तरह वह चुनावी जनतंत्रा में न्यूनीक्रत हो रहा है। पेगासस प्रोजेक्ट और उससे जुड़े खुलासे इस बात का संकेत देते हैं कि सत्ताधारी जमाते जनतंत्रा के मार्ग पर भारत के इस रफता-रफता पतन को रोक नहीं रही हैं, बल्कि उसे प्रेरित कर रही है।
अब यह बात इतिहास के गर्भ में छिपी है कि वे सभी लोग, समूह, राजनीतिक दल, जो भारत में लोकतंत्रा के इस क्षरण से चिंतित हैं, वह किस तरह अपनी आवाज़ों को संम्मिलित करते है तथा इस क्षरण को रोकने के लिए पुरजोर मेहनत का संकल्प लेते हैं।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार निजी हैं।
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