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त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज़

2023 की शुरुआत में होने वाले चुनावों को लेकर दल-बदल करने वाले नेताओं और संभावित गठजोड़ को लेकर राजनीति पार्टियों ने अभियान तेज़ कर दिया है।
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फोटो साभार: पीटीआई

कोलकाता: उत्तर-पूर्वी राज्य त्रिपुरा जहां अब से क़रीब 10 सप्ताह बाद विधानसभा चुनाव होने हैं वहां राजनीतिक सरगर्मी तेज़ हो रही है।

अब ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की बारी थी जब वह कांग्रेस से दलबदल कर आए नेताओं को शामिल कर चर्चा में थी। पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष पीयूष कांति बिस्वास समेत कांग्रेस के छह नेताओं ने दल बदल लिया। टीएमसी ने पहले ही यह बता दिया है कि पूर्व सहायक सॉलिसिटर-जनरल और त्रिपुरा उच्च न्यायालय बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष बिस्वास पार्टी की राज्य इकाई के प्रमुख होंगे। बिस्वास सुबल भौमिक का स्थान लेंगे जिन्हें गत जून महीने में विधानसभा उपचुनाव में पार्टी की हार के बाद बर्ख़ास्त कर दिया गया था।

हाल के दिनों में 2018 में सत्ता में आई सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी इंडीजिनस पीपल्स फ्रंट ऑफ़ त्रिपुरा (आईपीएफटी) भी बिखर रही है ऐसे में तिपराहा इंडीजिनस प्रोग्रेसिव अलायंस (टिपरा मोथा) को फ़ायदा हो सकता है। टिपरा मोथा शाही परिवार के प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देब बर्मन के नेतृत्व वाला संगठन है। इनके उज्जयंत पैलेस का एक हिस्सा संगठन के मुख्यालय के रूप में कार्य करता है। आईपीएफटी और बीजेपी के चार आदिवासी विधायक टिपरा मोथा में चले गए।

राजनीतिक हलकों से न्यूज़क्लिक द्वारा की गई पूछताछ से पता चला है कि शाही परिवार के एक पूर्व-कांग्रेसी हैं जो आदिवासी युवाओं को विभिन्न बैठकों में त्रिपुरा और उससे बाहर यहां तक कि बांग्लादेश के जनजातीय क्षेत्रों को शामिल करते हुए 'ग्रेटर टिपरालैंड' के अपने विचारों को बढ़ाते हुए आकर्षित कर रहे हैं। साथ ही इसमें वह विभाजनकारी राजनीति के लिए भाजपा पर जमकर हमला बोल रहे हैं।

देब बर्मन की रणनीति से यह लगता है कि वह बीजेपी के साथ हाथ नहीं मिलाएंगे। व्यापक रूप से माना जाता है कि फरवरी 2023 के तीसरे सप्ताह में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों के लिए आईपीएफटी की जगह टिपरा मोथा को वह एक सहयोगी के रूप में चाहेगी।

बीजेपी के लिए यह मुख्यमंत्री माणिक साहा के लिए एक परीक्षा होगी जिन्होंने 'गतिशील' के साथ साथ सबसे ज़्यादा मुखर रहने वाले बिप्लब देब की जगह ले ली, जिसे बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा "मिड-कोर्स करेक्शन" के रूप में देखा गया था। अपनी पार्टी को दूसरा कार्यकाल दिलाने के लिए साहा का काम ख़त्म हो गया है।

जानकार सूत्रों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि पूर्वोत्तर के इस छोटे से राज्य में भाजपा-विरोधी लहर सामने आई है। मज़दूर वर्ग नाख़ुश है। आर के नगर के औद्योगिक क्षेत्र में 64 इकाइयों में से लगभग 50% बंद हो गई हैं। एकमात्र सार्वजनिक क्षेत्र त्रिपुरा जूट मिल में श्रमिकों की संख्या में लगातार गिरावट के साथ ठप होने के कगार पर पहुंच गई है। राज्य सरकार ने इसमें उत्पादन करने के लिए बहुत कम काम किया है।

सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन के त्रिपुरा सचिव शंकर दत्ता के अनुसार ईंट भट्ठों में कमी आई है। पूर्ववर्ती वाम मोर्चा की सरकार में इन भट्ठों की 376 इकाइयां काम कर रही थी जो कम होकर 100 पहुंच गई है। इसके निर्माण कार्य पर स्पष्ट प्रभाव पड़ रहा है। इसके कम होने का मतलब है कि कार्य दिवसों में नुक़सान होना है।

केंद्र की 100 दिवसीय ग्रामीण कार्य योजना मनरेगा के तहत काम की उपलब्धता भी वाम मोर्चा की सरकार में 90 दिनों के औसत से घटकर लगभग 25 दिन रह गई है। दत्ता ने कहा कि वाम मोर्चा द्वारा शुरू किए गए त्रिपुरा शहरी रोज़गार कार्यक्रम के तहत काम के अवसर भी कम हो गए हैं।

लेकिन भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव भट्टाचार्य अपनी पार्टी के पहले कार्यकाल में हुए इस आर्थिक गिरावट के आरोप को स्वीकार नहीं करते हैं। वे कहते हैं, किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल रहा है, चाय और रबर के बागान संचालन में सामान्य स्थिति बनाए रखने के लिए सरकार निगरानी कर रही है, मौजूदा सरकार द्वारा समाज कल्याण पेंशन राशि को 700 रुपये से बढ़ाकर 2,000 रुपये कर दिया गया है और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत 11 आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति की जा रही है।

राजनीतिक लड़ाई को लेकर भट्टाचार्जी न्यूज़क्लिक से कहते हैं, "हम वापस आएंगे, सिर्फ़ मुख्यमंत्री बदलने के कारण नेतृत्व की कोई कमी नहीं है। चुनावी लड़ाई को भावुक और भावनात्मक बनाने के लिए शाही परिवार टिपरा मोथा को एक मंच के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। वह काम नहीं करेगा। अगर आदिवासी वोट टिपरा मोथा की ओर चले गए हैं, तो यह सीपीआई-एम के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे के अव्यावहारिक तरीक़ों के कारण है, जिसने 25 वर्षों तक राज्य पर शासन किया।"

यह पूछे जाने पर कि क्या भाजपा शाही परिवार की क्षेत्रीय पार्टी को सहयोगी बनाने की कोशिश करेगी तो उन्होंने दावा किया कि उनकी पार्टी इसे अकेले करने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि चुनावी घोषणापत्र पर काम शुरू हो गया है।

सीपीआई-एम के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी ने कहा, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे के लिए, "चुनौती सत्ता हासिल करना है और अभी और मतदान की तारीख़ के बीच 75 दिनों की अवधि हमारे लिए महत्वपूर्ण है।"

उन्होंने कहा कि यह सच है कि टिपरा मोथा युवाओं को आकर्षित कर रहा है, लेकिन "यह भी सच है कि आदिवासियों के वरिष्ठ लोग क्षेत्रीय संगठन के प्रति मोहित नहीं हैं। हमारी आउटरीच को उन क्षेत्रों तक बढ़ाया जा रहा है जिन क्षेत्रों पर अब तक उचित ध्यान नहीं दिया गया था। ग़ैर-आदिवासी/अनुसूचित जाति की सीटों पर बेहतर प्रदर्शन सुनिश्चित करने और आदिवासियों को समझाने के लिए भी पहुंच तेज़ की जा रही है कि त्रिपुरा के समावेशी विकास के लिए राजनीतिक स्पष्टता और दिशा की कमी वाले मंच की तुलना में वाम उनके लिए एक बेहतर विकल्प क्यों है।"

चौधरी ने स्वीकार किया कि हालांकि भाजपा सरकार से बड़ी संख्या में लोगों मोहभंग हो रहा है, फिर भी उनमें से कई लोग डर के मारे उस पार्टी से जुड़े हुए हैं क्योंकि भाजपा कार्यकर्ताओं ने उन्हें चेतावनी दी थी कि पार्टी उनकी वफ़ादारी को गंभीरता से लेगी। माकपा नेता ने कहा, "हम उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें डर की मनोविकृति से क्यों उबरना चाहिए। कुछ लोग हाल ही में हमारी पार्टी में शामिल हुए हैं।"

चौधरी के आकलन के अनुसार, टीएमसी इन चुनावों में कोई कारक नहीं होगी क्योंकि “ममता की पार्टी हमेशा दलबदलुओं पर निर्भर रहती है और यह पहले से ही उसी खेल में है। सभी 60 सीटों के लिए दलबदलुओं को ढूंढना अपने आप में एक चुनौती है। टीएमसी के पास कोई आधार नहीं है।”

सीपीआई-एम की किसान शाखा के प्रमुख पबित्रा कर ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्हें उम्मीद है कि पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार के नेतृत्व में वाम मोर्चा अपनी कमज़ोरियों से निपटने और मज़बूत लड़ाई लड़ने में सक्षम होगा। उन्होंने कहा कि, "हम अपने अग्रणी संगठनों को सक्रिय करने में काफ़ी हद तक सफल रहे हैं और अब किसानों और मज़़दूरी करने वालों के बीच अपने समर्थन के आधार को बेहतर बनाने के लिए रणनीति तैयार कर रहे हैं, जो भाजपा सरकार में पीड़ित हैं।"

स्टेट कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) के सचिव जुधिष्ठिर दास ने त्रिपुरा ट्राइबल एरियाज ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (टीटीएएडीसी) के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में देब बर्मन की पकड़ को स्वीकार किया, जिसमें राज्य के 60 विधानसभा क्षेत्रों में से 20 सीट शामिल हैं। आईपीएफ़टी युवाओं के इसमें शामिल होने के साथ टिपरा मोथा में काफ़ी वृद्धि हुई है।

दास ने न्यूज़क्लिक से कहा, "अपने समर्थन के आधार को बनाए रखने के लिए बीजेपी की मज़बूत रणनीति हमारे लिए चिंता का विषय है क्योंकि यह मतदाताओं को हमारे पक्ष में वापस लाने के हमारे प्रयासों को रोक कर रहा है।" उन्होंने कहा कि वाम मोर्चा, कांग्रेस और टिपरा मोथा के बीच समझौता हो सकता है।

त्रिपुरा कांग्रेस के प्रमुख बिरजीत सिन्हा ने कहा, "हम दृढ़ संकल्प हैं कि हम भाजपा को सत्ता में वापस आने से रोकेंगे। यह पूछे जाने पर कि क्या इसका मतलब यह है कि कांग्रेस भाजपा-विरोधी ताक़तों के बीच समझौता को लेकर आश्वस्त है, तो सिन्हा ने न्यूज़क्लिक से कहा, "प्रेस को यह बताने का समय नहीं है कि हम अनौपचारिक रूप से क्या कर रहे हैं। लेकिन हम बीजेपी को फिर से त्रिपुरा में सरकार बनाने नहीं देंगे।”

[दिलचस्प बात यह है कि भाकपा-माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य की पहल पर 7 दिसंबर को अगरतला में लोकतंत्र के लिए प्रतिबद्ध भाजपा-विरोधी दलों और संवैधानिक रूप से बनाई गई संस्थाओं के लोकतांत्रिक कामकाज की बहाली के लिए एक बैठक की गई थी। भाजपा-विरोधी मंच तैयार करने का यह पहला औपचारिक प्रयास था]।

लेखक कोलकाता स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।

मूल रुप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

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