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ट्रांस क्वीन एला देव वर्मा की कहानी, समाज और दफ़्तरों में थर्ड जेंडर को लेकर सेंसटाइजेशन की कमी!

एला अपनी समस्याओं और सक्सेस जर्नी को सहानभूति से ज़्यादा आशा से देखती हैंं क्योंकि उन्हें लगता है कि यही तरीक़ा है जिससे समाज में उनके जैसे और लोगों को स्वीकार्यता और प्यार मिल सकेगा।
 Ella Dev Verma

ट्रांस क्वीन एला देव वर्मा आज एक सक्सेसफुल मॉडल, कंटेंट क्रिएटर और मोटिवेशनल स्पीकर हैं। हाल ही में उन्हें ब्यूटी कन्टेस्ट मिस ट्रांस क्वीन इंडिया 2023 में फर्स्ट रनरअप का ताज भी मिला है। वो दुनिया में भारत के नाम को रोशन करने का सपना भी रखती हैं, जिसे कुछ ही समय पहले कम्प्लेक्स डॉक्युमेंटेशन और ट्रांस सेंसटाइजेशन की कमी के चलते उन्होंने खो दिया। हालांकि एला अभी निराश नहीं हैं, उन्हें उम्मीद है कि जागरूकता से जल्द ही उनकी और उनके जैसे अनेकों ट्रांस लोगों की दिक्कतें खत्म हो सकती हैं। वो अपनी समस्याओं और सक्सेस जर्नी को सहानुभूति से ज्यादा आशा से देखती हैंं क्योंकि उन्हें लगता है कि यही तरीका है जिससे समाज में उनके जैसे और लोगों को स्वीकार्यता और प्यार मिल सकेगा।

एला देव वर्मा की कहानी देव से शुरू होती है, जो एक लड़का था और उसे लड़कियों वाले शौक और चीज़े पसंद थी। लड़का से लड़की बनने का सफर और इससे जुड़ी तमाम चुनौतियों को एला ने न्यूज़क्लिक से खास बातचीत में इतमिनान से बताया, साथ ही ट्रांस लोगों को लेकर परिवार, समाज और नीतियों की दिक्कतों का भी खुलकर जिक्र किया, जिस पर अभी काफी काम होना बाकी है।

एला बताती हैं कि बचपन से ही उन्हें लड़कियों के साथ खेलना, उठना-बैठना, उनके कपड़े-खिलौने सब आकर्षित करते थे। उन्हें इन सब चीज़ों के इर्द-गिर्द ज्यादा कंफर्टनेस महसूस होती थी। धीरे-धीरे उनके स्कूल जाने की शुरुआत हुई, फिर जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती गई उन्हें अपने शरीर के साथ कुछ अलग सा महसूस होने लगा। उनका दिल और दिमाग में एक उलझन सी चलने लगी। जिसके चलते कई बार उनका मज़ाक भी उड़ा, परिवार से डांट भी पड़ी और वो खुद को गिल्ट में रखने लगीं। फिर प्यूबर्टी की उम्र आई और उन्हें लगा बस अब मुझे और नहीं ऐसे रहना या ये सब कुछ सहना, सो उन्होंने इस बात को अपने परिवार के सामने रख दिया।

परिवार के लिए बहुत शॉकिंग था!

एला की मां उषा वर्मा बताती हैं कि ये उनके लिए बहुत शॉकिंग था क्योंकि उन्हें न तो इसके बारे में खास जानकारी थी और न ही वो इन सब के लिए तैयार। तो ऐसे में उन्होंने डर और तनाव झेला, एला को डांटने-समझाने की कोशिश की। जब बात नहीं बनी तो फिर उन्होंने अपने करीबी रिश्तेदारों से संपर्क किया और तब जाकर डॉक्टर तक पहुंचीं। डॉक्टर से लेकर साइकेट्रिस्ट तक कई चक्कर लगाने के बाद भी बहुत कुछ उनके समझ से परे था, इस दौरान उन्होंने दिन रात गूगल पर इससे जुड़ी पढ़ाई भी की जो कई तरीके की जानकारियां उन्हें देता था।

साइकेट्रिस्ट के लगभग कई काउंसलिंग के बाद 14 साल की उम्र में एला को जेंडर डिस्फोरिया यानी बायोलॉजिकल सेक्स और जेंडर आइडेंटिटी का मिक्स मैच होना बताया। साथ ही उनके पेरेंट्स की काउंसलिंग भी की। हालांकि इन सब के बावजूद एला को कोई खास मदद नहीं मिली क्योंकि उनके लड़का से लड़की बनने के ट्रांसफॉरमेशन में कानूनन बालिग यानी 18 साल का होना जरूरी था। इस बीच घर-परिवार और समाज के कई अच्छे-बुरे पहलुओं से एला का सामना हुआ। एला डरी, सहमी और अपने आप में गुम रहने लगीं और इस तरह उनकी 12वीं तक की स्कूली शिक्षा भी अप एंड डाउन में गुजर गई।

एला के पिता के मुताबिक एला बचपन से ही बहुत टैलेंटेड थी। उन्हें पेंटिंग, सिंगिंग-डांसिंग के साथ ही स्पीच देने का भी बहुत शौक था। उन्होंने अपनी स्कूल के दौरान कई अवार्ड्स और ट्रॉफियां भी अपने नाम की हैं। बावजूद इसके उनके लिए इस सच को शुरुआत में अपनाना बहुत मुश्किल था। उनके कदम तो पीछे भी हटे लेकिन उनकी पत्नी ने इस लड़ाई को फ्रंट पर आकर लड़ने की ठानी और उन्हें भी हिम्मत दी। जिसके बाद एला का लॉकडाउन में हार्मोन ट्रीटमेंट शुरू हुआ और उनके लिए ये खुशियां भी ले आया।

लॉकडाउन को याद करते हुए एला बताती हैं कि वो पहले अपने इलाज के लिए ऑस्ट्रेलिया अपनी मासी के पास जाने वाली थी, लेकिन लॉकडाउन में आवाजाही के साथ ही उनके परिवार की आमदनी पर भी ब्रेक लग गया क्योंकि उनका हॉस्पिटैलिटी का बिजनेस है, जो उस समय अपने सबसे बुरे दौर में था। एला जब 18 की हो गईं तो उन्हें मेडिकेशन से पहले फिर से साइकेट्रिस्ट से कंसल्ट करने को कहा गया। और तब जाकर एला का ट्रीटमेंट यहीं देश में शुरु हुआ और ये एक लंबा प्रोसेस रहा। इस दौरान उन्हें मेल हार्मोन को सप्रेस करने और फीमेल हार्मोन को इंट्रोड्यूस करने के लिए दवाइयां दी गईं। जो उनके लिए इमोशनली और फिजिकली दोनों तरह से चैलेंजिंग रहा, लेकिन यहां एला को परिवार का साथ मिला और उनकी जिंदगी फिर से थोड़ी नार्मेलसी की ओर बढ़ने लगी।

खुद को समझना शुरू किया!

एला का परिवार अभी भी पूरी तरीके से डर से बाहर नहीं था। उन्हें दवाइयों के साइड इफेक्ट के साथ ही समाज के बायकॉट की भी चिंता थी। हालांकि उन्होंने इसे बहुत हद तक एला से दूर रखा और उनमें आत्मविश्वास भरने की कोशिश की। एला ने लॉकडाउन के दौरान ही सोशल मीडिया पर लोगों से कॉन्टेक्ट करने की शुरुआत की। यहां उनका मकसद लोगों में ट्रांस लोगों को लेकर एक जागरूकता फैलाना और अपनी जिंदगी को और बेहतर ढंग से समझना था। इंस्टाग्राम पर जैसे-जैसे एला के फॉलोअर्स बढ़े, उनका हौसला भी बढ़ा और वो लोगों के बीच पॉपुलर होने लगीं।

एला कहती हैं कि कई बार लोग उनकी तारीफ करते थे लेकिन उन्हें यकीन ही नहीं होता था क्योंकि उन्हें उनके पास्ट में सिर्फ मजाक ही बनाया गया था। वो अभी भी उस ट्रॉमा से बाहर नहीं निकल पाईं थी। फिर एला के पास ब्रांड प्रोमोशन और मॉडलिंग के ऑफर आए, तब उन्होंने इसे करने और खुद को पूरी तरह उम्मीद से देखना शुरू किया। एला आज तक कॉलेज नहीं गईं, वो महज 19 साल की हैं लेकिन वो कई कॉलेजों में बतौर स्पीकर या चीफ गेस्ट अपनी स्पीच दे चुकी हैं।

हालांकि यहीं एला की चुनौतियां खत्म नहीं हुईं, उन्हें अपने ही स्कूल से 10वीं और 12वीं के डॉक्यूमेंट्स पर नाम और जेंडर चेंज करवाने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा। सीबीएसई और स्कूल के कई चक्कर लगाते हुए एला को इस क्षेत्र में सेंसटाइजेशन और जागरूकता की असली कमी महसूस हुई। आधार और पैन समेत अन्य सभी पहचान पत्रों को भी बदलवाना उनके लिए टेढ़ी खीर थी। वो इस ऑफिस से उस ऑफिस और कई लोगों के बीच खुद को असहाय महसूस करती थी। अभी भी उनका पासपोर्ट का काम लटका पड़ा है, जिसने उनसे उनकी जिंदगी का एक बड़ा अवसर छीन लिया।

कानून और प्रावधान बहुत हैं लेकिन लोग सेंसटाइज नहीं हैं !

एला कहती हैं, “हमारे पास कानून और प्रावधान बहुत हैं इन सब चीज़ों को लेकर, लेकिन कमी इसके इंप्लीमेंटेशन की है। दफ्तर में बैठे लोगों को पता ही नहीं है कि ये काम कैसे होता है। इसका प्रोसेस कैसा है। जिन्हें पता है वो भी अपने ऊपर कोई बर्डेन नहीं लेना चाहते। क्योंकि उन्हें लगता है कि जेंडर चेंज करवाना बहुत बड़ा इशू है। लोग 10 सवालों के साथ ही आपको सही से ट्रीट तक नहीं करते, क्योंकि वो ट्रांस लोगों को एक अलग नजरिए से देखते हैं।"

उषा वर्मा एक मां होने के नाते सभी लोगों और खासकर माताओं से ये अपील करती हैं कि अपने बच्चे को वैसे ही अपनाएं जैसा वो हैं, क्योंकि खुल के जीने का अधिकार सभी को है और इन बच्चों के पास भी बहुत सपने हैं। वो एला का उदाहरण देते हुए कहती हैं कि उनकी बच्ची उनके लिए गर्व है और ऐसे सभी बच्चे समाज में सिर उठाकर जीने के हकदार हैं, बस जरूरत है हमारी शिक्षा और समाज में इन्हें शामिल करने की, जागरूक करने की।

एला ट्रांस कम्युनिटी को संदेश देते हुए कहती हैं कि सबसे पहले आपको ही खुद को अपनाना है, फिर समाज भी आपको अपनाएगा। आप अलग हैं या आपके पास कोई अधिकार नहीं है कुछ करने का ये सोच ही गलत है, इससे निकलने, पढ़ने और आगे बढ़ने की जरूरत है। कोई मेडिकल ट्रीटमेंट या सर्जरी आपको ठीक नहीं कर सकती, जब तक आप खुद अपने आपको, अपने विचारों को सही करना नहीं चाहेंगे।

समाज में ट्रांस लोगों को लेकर लोगों की सोच पर एला कहती हैं कि हमें सिर्फ भीख मांगने वाले, लोगों के घर गाने-बजाने वाला या सेक्स वर्कर न समझा जाए, ,क्योंकि ये हमारी चॉइस नहीं होती क्योंकि समाज बाकी के रास्ते बंद कर देता है, इसलिए हमें इस पर चलना पड़ता है, लेकिन ये हमारी कमजोरी या पहचान नहीं है, हम बहुत कुछ कर सकते हैं। बस लोगों को हमें मौका देने की जरूरत है, प्यार से अपनाने की जरूरत है।

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