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एक और बड़े अमेरिकी बैंक का पतन: वित्तीय पूंजीवाद का यह संकट तात्कालिक नहीं बुनियादी है!

स्टॉक एक्सचेंज खुलने से पहले की मार्केट ट्रेडिंग में फर्स्ट रिपब्लिक बैंक के शेयर 43.3 फ़ीसदी गिर गए। इस प्रकार इसके शेयर्स के दाम अब 97 फ़ीसदी गिर चुके हैं।
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फ़ोटो साभार: AP

मार्च में सिलिकन वैली व सिग्नेचर बैंक के दिवालिया होने के बाद, जैसी आशंका थी, दो महीने में ही एक और प्रमुख अमेरिकी बैंक, फर्स्ट रिपब्लिक, भी डूब गया। दिवालिया होने से पहले अंतिम बचाव के तौर पर नियामकों ने सबसे बड़े अमेरिकी बैंक जेपी मॉर्गन के साथ इसका विलय कर दिया है। इस विलय से जेपीएम को इसकी अधिकांश संपत्ति (173 बिलियन डॉलर के ऋण तथा 30 बिलियन डॉलर की प्रतिभूतियां) के अतिरिक्त, अधिकांश जमा राशि (92 बिलियन डॉलर) भी मिलेगी।

यह घोषणा 1 मई को नियामकों द्वारा की गई। सप्ताहांत में कैलिफोर्निया डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल प्रोटेक्शन एंड इनोवेशन ने कहा कि उसने फर्स्ट रिपब्लिक को ज़ब्त कर लिया है और फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (एफडीआईसी) इसके रिसीवर के रूप में काम करेगा। बाद में विलय का ऐलान किया गया। जेपी मॉर्गन के बयान के अनुसार इसके आठ राज्यों में स्थित 84 कार्यालय सोमवार से जेपी मॉर्गन चेस की शाखाओं के रूप में खुलेंगे।

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फर्स्ट रिपब्लिक बैंक पिछले हफ्ते इस खुलासे के बाद दबाव में आ गया था कि उसे पहली तिमाही में $100 बिलियन से अधिक की जमाराशि का नुकसान हुआ और वह नकदी की कमी का विकल्प तलाश रहा था। स्टॉक एक्सचेंज खुलने से पहले की मार्केट ट्रेडिंग में फर्स्ट रिपब्लिक बैंक के शेयर 43.3% गिर गए। इस प्रकार इसके शेयरों के दाम 97% गिर चुके हैं।

फर्स्ट रिपब्लिक बैंक के पतन ने बैंकिंग क्षेत्र में नए सिरे से तनाव पैदा कर दिया है, जो पहले ही मार्च में सिलिकन वैली और सिग्नेचर बैंक और उसके बाद यूरोपियन क्रेडिट सुइस के बंद होने से जूझ रहा था। स्विस बैंक क्रेडिट सुइस को भी दिवालिया होकर डूबने से बचाने हेतु स्विट्ज़रलैंड सरकार द्वारा कराए गए जबरिया सौदे में इसके प्रतिद्वंद्वी यूबीएस में विलय कर दिया गया था।

मार्च में डूबे सिलिकन वैली की तरह फर्स्ट रिपब्लिक भी आम ग्राहकों वाला नहीं, संपन्न अमीर ग्राहकों के लिए प्राइवेट (वेल्थ) बैंकिंग में माहिर रहा है। फर्स्ट रिपब्लिक के अध्यक्ष जिम हर्बर्ट ने 1985 में 10 से कम कर्मचारियों के साथ इसकी स्थापना की थी। बैंक ने भविष्यवाणी की थी कि यह जुलाई 2020 तक अमेरिका में 14वां सबसे बड़ा बैंक होगा। 2022 के अंत में इसमें 7,200 से अधिक लोग कार्यरत थे।

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दो महीने से भी कम समय में अमेरिकी बैंकों के संकट ने नियामक फेडरल रिज़र्व को बाज़ारों को स्थिर करने हेतु दोबारा आपातकालीन कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया है। क्रिप्टो-केंद्रित सिल्वरगेट के स्वैच्छिक समापन के बाद ये बैंकिंग विफलताएं सामने आईं हैं। फेडरल रिज़र्व व बाइडेन प्रशासन द्वारा इस संकट से निपटने की कोशिश के क्रम में जेपी मॉर्गन पीएनसी फाइनेंशियल सर्विसेज ग्रुप और सिटीजन्स फाइनेंशियल ग्रुप सहित कई इच्छुक खरीदारों में से एक था। रविवार को इन समूहों ने अमेरिकी नियामकों द्वारा संचालित नीलामी में बोलियां जमा कीं थीं।

वित्तीय बाज़ारों की स्थिरता के सामूहिक हित के साथ ही इन वित्तीय संस्थानों द्वारा इस बैंक को खरीदने के लिए इच्छुक होने का मुख्य कारण इस सौदे में शामिल मीठी गोली अर्थात इसके घाटे की ज़िम्मेदारी सार्वजनिक एफडीआईसी द्वारा संभाल लेना भी है। शुरुआती अनुमान के मुताबिक एफडीआईसी को 13 अरब डॉलर बोझ झेलना होगा। अंतिम लागत एफडीआईसी रिसीवरशिप की समाप्ति पर निर्धारित होगी। इस तरह निजी वित्तीय पूंजी को होने वाला घाटा सामाजिक बन जाएगा, जबकि लाभकारी संपत्ति एक बड़े निजी वित्तीय पूंजी संस्थान के मालिकाने में चली जाएंगी।

जेपी मॉर्गन के सीईओ जेमी डाइमन ने कहा, "हमारी सरकार ने हमें और अन्य लोगों को कदम बढ़ाने के लिए आमंत्रित किया, और हमने ऐसा किया।" वाह, सामाजिक ज़िम्मेदारी का कितना बड़ा बोध है ना? मीठी गोली मिल रही हो तो कौन न देशभक्त हो जाएगा! डाइमन कहते हैं, "हमारी वित्तीय ताकत, क्षमताओं और व्यापार मॉडल ने हमें डिपॉजिट इंश्योरेंस फंड की लागत को कम करने के तरीके से लेनदेन को निष्पादित करने के लिए बोली लगाने की क्षमता दी।" पर सच सामने आ ही गया जब जेपी मॉर्गन ने बताया कि सौदे के बाद लगभग 2.6 अरब डॉलर का एकमुश्त करपश्चात लाभ की उम्मीद है, जो अगले 18 महीनों में करपश्चात पुनर्गठन लागत के अनुमानित 2 बिलियन डॉलर से अधिक है।

अमेरिकी बैंकिंग प्रणाली में बढ़ते संकट की वजह क्या है? बताया जा रहा है कि बढ़ती महंगाई पर नियंत्रण के लिए फेडरल रिज़र्व द्वारा ब्याज दरें बढ़ाए जाने से इन बैंकों द्वारा जिन बांड्स में निवेश किया गया था उनकी कीमतें गिर जाने से हुए भारी नुकसान से ये दिवालिया हो गए। इसके लिए प्रबंधकों के जोखिम प्रबंधन की खामियों को ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है। तात्कालिक तौर पर यह सही भी है। लेकिन क्या यह ही असली वजह है? सामान्य स्तर के बैंक प्रबंधक भी महंगाई बढ़ने, ब्याज दरों में वृद्धि, बांड्स के दाम गिरने की बात जानते हैं। लगभग सारा निवेश बांड्स में करना भी जोखिम प्रबंधन के विपरीत है। लेकिन इन बैंकों ने ऐसा क्यों किया? और नियामक, ऑडिटर, विश्लेषक, ग्राहक (ये ग्राहक खुद वित्तीय पूंजीपति हैं), आदि ने इस पर ऐतराज़ क्यों नहीं किया? वजह है कि यह कुछ व्यक्तियों की चूक नहीं, बल्कि व्यवस्थागत संकट का नतीजा है जिसका कोई विकल्प इनके पास नहीं था।

दरअसल पूंजीवाद में मुनाफे का एकमात्र स्रोत औद्योगिक गतिविधि (फ़ार्मिंग, खनन, मैनुफकचरिंग, सेवा, आदि) है। पूंजीपति उजरती मजदूरों की श्रम शक्ति खरीदकर माल उत्पादन में अधिशेष मूल्य या सरप्लस वैल्यू प्राप्त करते हैं। श्रमिकों को चुकाई मज़दूरी और श्रम द्वारा उत्पादित माल में जोड़े गए मूल्य का अंतर अर्थात अधिशेष ही सभी पूंजीपतियों के मुनाफे का एकमात्र स्रोत है। औद्योगिक पूंजीपतियों को यह मुनाफा ऋण देने वाले वित्तीय व व्यापारिक पूंजीपतियों के साथ बांटना होता है क्योंकि उनके बगैर पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली का चलना नामुमकिन है।

लेकिन पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के अति-उत्पादन के लगभग चिरस्थाई वैश्विक संकट संचित विशाल वित्तीय पूंजी के बड़े भाग को औद्योगिक पूंजी निवेश के अवसर से वंचित कर दिया है। ये वित्तीय पूंजीपति ‘लाभ’ या 'रिटर्न' हेतु पूंजी को शेअर, बांड्स, डेरिवेटिव्ज, रियल स्टेट, क्रिप्टो व पोंज़ी स्कीमों की सट्टेबाज़ी में लगा रहे हैं। इनसे वास्तविक मुनाफा नहीं मिलता क्योंकि इनमें उजरती श्रम के प्रयोग से माल उत्पादन नहीं होने से सरप्लस वैल्यू पैदा नहीं होती। ये सट्टेबाज़ी उद्योग से प्राप्त सरप्लस वैल्यू में अधिकाधिक हिस्सा हस्तगत करने के लिए वित्तीय पूंजीपतियों के बीच रस्साकसी है। औद्योगिक गतिविधियों में प्राप्त मुनाफे की एक निश्चित सीमा है। अतः इस रस्साकसी में समय-समय पर कुछ वित्तीय पूंजीपतियों का डूबते रहना तय है।

सिलिकन वैली से फर्स्ट रिपब्लिक तक के संकट की मूल वजह यही है। पूंजी के अति संकेंद्रण व मोनोपॉली के दौर में औद्योगिक पूंजी निवेश का आकार इतना विशाल है कि चंद बड़े बैंकों का उस पर एकाधिकार है। छोटे-मध्यम औद्योगिक पूंजीपति छोटे बैंकों की आय के स्रोत थे। वे एकाधिकार पूंजी के सामने टिक नहीं रहे हैं। अतः तुलनात्मक रूप से छोटे बैंकों को बांड्स से क्रिप्टो जैसी पोंज़ी स्कीमों के ज़रिए ऊंचे रिटर्न का लोभ देकर ग्राहक जुटाने पड़ रहे हैं। डूबे बैंकों के पास ऐसे ही ग्राहक थे। लेकिन अमीर ग्राहक रिटर्न कम होने का ख़तरा देखते ही तुरंत भागने की फिराक में भी होते हैं। इंटरनेट युग में ऐसा करना संभव भी है। आज ‘बैंक रन’ के लिए बैंक या एटीएम के सामने लाइन नहीं लगानी पड़ती, कम्पूटर पर कुछ क्लिक से पैसा इधर से उधर किया जा सकता है। सिलिकन वैली बैंक ऐसे ही डूबा था जब एक ही दिन में उसके ग्राहकों ने 50 अरब डॉलर से भी अधिक जमाराशि निकालने की कोशिश की थी। इतनी नकदी जुटाना बैंक के लिए नामुमकिन था। अतः वह दिवालिया हो गया अर्थात ग्राहकों को भुगतान नहीं कर पाया।

उस वक्त फेडरल रिज़र्व ने प्रणालीगत महत्वपूर्ण बड़े बैंकों के लिए मौजूदा 5 लाख डॉलर बीमा के बजाय लगभग पूरी जमाराशि पर गारंटी दी। इसने छोटे क्षेत्रीय बैंकों के लिए ख़तरा पैदा कर दिया और फर्स्ट रिपब्लिक जैसे बैंकों के ग्राहकों ने जमाराशि निकाल बड़े बैंकों में ले जानी शुरू कर दी। 100 अरब डॉलर निकल जाने के बाद इसका बचना असंभव हो गया। 11 अमेरिकी बैंकों ने 16 मार्च को 30 अरब डॉलर की जमाराशि देकर फर्स्ट रिपब्लिक को बचाने की कोशिश की। जेपी मॉर्गन, बैंक ऑफ अमेरिका, सिटीग्रुप और वेल्स फारगो प्रत्येक ने 5 बिलियन तथा गोल्डमैन सैक्स, मॉर्गन स्टेनली और अन्य बैंकों ने छोटी राशि दी थी। फर्स्ट रिपब्लिक ने फेडरल होम लोन बैंक बोर्ड और फेडरल रिज़र्व की लिक्विडिटी लाइन का भी दोहन किया। किंतु बैंक की पहली तिमाही रिपोर्ट और अप्रैल में संपत्ति बेच बचाव का आयोजन करने के प्रयास की खबर ने चिंता की नई लहर को जन्म दिया। बैंक ने घोषणा की कि वह अपने कर्मचारियों के 25% कम कर देगा, बकाया ऋणों की राशि कम करेगा, और महत्वहीन गतिविधियों में कटौती करेगा। पर यह नाकाफ़ी निकला। मार्च 2022 में $170 के ऊपर रहा इसका शेअर अप्रैल के अंत तक $5 से नीचे आ गया। अंततः इसका अंत सुनिश्चित हो गया।

क्या विलय द्वारा इसके बचाव से बैंकिंग संकट हल होगा? वेल्स फार्गो के विश्लेषकों ने सौदे की घोषणा से पहले एक नोट में कहा कि इससे चिंता कम हो सकती है और इसके हल से एसवीबी के बाद सात सप्ताह का यह संकट समाप्त हो जाना चाहिए। उसके अनुसार मिड-कैप बैंक के नतीजों ने दिखाया है कि जमाराशि की चिंताएं मुट्ठी भर बैंकों की और पूरी बैंकिंग प्रणाली से अलग-थलग हैं। लेकिन यह सुखद भ्रम ही है।

जेपी मॉर्गन कई वर्षों से अधिग्रहण की होड़ में रहा है। कुल मिलाकर $5 बिलियन से अधिक के सौदों में यह 30 से अधिक कंपनियों का अधिग्रहण कर चुका है। अतः हाल के वर्षों में, अमेरिकी नियामक बड़े बैंक सौदों को मंजूरी देने में हिचकिचाते रहे हैं। बाइडेन प्रशासन ने भी प्रतिस्पर्धा विरोधी स्थितियों पर नकेल कसने का इरादा जताया है। लेकिन इस खरीद से देश के सबसे बड़े बैंक जेपी मॉर्गन का आकार और भी अधिक बढ़ गया है, जबकि पहले ही अमेरिकी बैंकिंग बाज़ार का 16% से अधिक इसके पास है। अमेरिकी नियामक 10% से अधिक बाज़ार हिस्सा वाले बैंकों को नए बैंक खरीदने से रोकने की कोशिश करते रहे हैं जिससे संकेंद्रण की गति किसी तरह कम हो। उनकी नज़र में इतना अधिक संकेंद्रण अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम है क्योंकि इतने बड़े बैंक में कोई भी संकट पूरी अर्थव्यवस्था को ले डूबेगा। मगर इस संकट की स्थिति को इमरजेंसी मानते हुए इस नियम में ढील देनी पड़ी है। इससे तुलनात्मक रूप से छोटा संकट तो टल गया है, मगर इसने और भी बड़े संकट के लिए ज़मीन तैयार कर दी है।

(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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