पीएमएवाई-यू ब्लूप्रिंट से परे की कहानी: भारत के भूमिहीन ग़रीबों के सामने चुनौतियां
जेलरवाला बाग स्लम, अशोक विहार, दिल्ली
दिल्ली के जेलरवाला बाग झुग्गी झोपड़ी में पीएमएवाई-यू के एक लाभार्थी ने कहा कि, "अगर गरीबों को सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए अपनी जेब से पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं, तो इसका मतलब सरकार अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में विफल हो रही है।"
2015 में शुरू की गई प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (पीएमएवाई-यू) का उद्देश्य भारत की शहरी आबादी को किफायती आवास उपलब्ध कराना है। इस योजना का उद्देश्य योजना के लिए योग्य परिवारों को जरूरी सुविधाओं के साथ सभी मौसम के अनुकूल पक्के घर उपलब्ध कराना है।
पीएमएवाई-यू को चार उप-योजनाओं के ज़रिए लागू किया जाता है: जिसमें इन-सीटू स्लम पुनर्विकास (आईएसएसआर), क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम (सीएलएसएस), साझेदारी में किफायती आवास (एएचपी), और लाभार्थी-नेतृत्व वाले निर्माण (बीएलसी) शामिल है।
केंद्रीय बजट 2024 में, सरकार ने प्रमुख प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के लिए 10 लाख करोड़ के निवेश की घोषणा की है। इस योजना के तहत अगले पांच वर्षों में 2.2 लाख करोड़ की केंद्रीय सहायता शामिल है, जो किफायती आवास के लिए सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है। 2022 तक पीएमएवाई के तहत सभी परियोजनाओं के लिए, सरकार द्वारा घोषित निवेश 8.31 लाख करोड़ का था। हालांकि, इस निवेश ने एक महत्वपूर्ण पहलू को रेखांकित किया: समग्र निवेश की तुलना में केंद्र सरकार का हिस्सा अपेक्षाकृत मामूली रहा है।
2022-23 की संसदीय रिपोर्ट पीएमएवाई के वित्तपोषण तंत्र के बारे में निम्न जानकारी देती है:
- कुल निवेश: 8.31 लाख करोड़ रुपए, उसमें केंद्र सरकार का हिस्सा: 2.03 लाख करोड़ रुपए (यानि 24.4 फीसदी), राज्य सरकार का हिस्सा: 1.33 लाख करोड़ (16 फीसदी), लाभार्थी का हिस्सा: 4.95 लाख करोड़ (59.6 फीसदी) है।
इस विश्लेषण से पता चलता है कि केंद्र सरकार का योगदान कुल 8.31 लाख करोड़ रुपये यानि कुल निवेश का केवल 24 फीसदी हिस्सा था, जो इस योजना को राज्य सरकारों के योगदान और लाभार्थियों की जेब से ख़र्च पर निर्भर बनाता है।
अगले पांच सालो में 10 लाख करोड़ रुपए के निवेश की नई घोषणा के साथ, 2.2 लाख करोड़ की केंद्रीय सहायता से पता चलता है कि केंद्र सरकार का हिस्सा थोड़ा बढ़ सकता है, लेकिन लाभार्थियों की तुलना में वह भी कम रहेगा। यह एक नियमित रणनीति की तरफ इशारा करता है जहां वित्तपोषण की जिम्मेदारी का बड़ा हिस्सा राज्य सरकारों और बड़े पैमाने पर उसका बोझ लाभार्थियों द्वारा वहन किया जाता है।
इस बोझ को दर्शाते हुए, जेलरवाला बाग जेजे कॉलोनी के एक अन्य निवासी ओकाराम प्रजापति ने इस लेखक को बताया कि: "हम फ्लैट के लिए पैसे का इंतजाम करने की जद्दोजहद से वाकिफ हैं। हमें खुले बाजार, परिवार के सदस्यों और नियोक्ताओं से ऊंची ब्याज दरों पर उधार लेना पड़ा है।"
आवास की कमी को दूर करना
जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार, झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले परिवारों की कुल संख्या 139.20 लाख है, जिसमें प्रवासी आबादी 44.66 लाख है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए आवास की आवश्यकता कुल मिलाकर 183.86 लाख है। 2011 के बाद से जनगणना न होने के कारण, इस बात की पूरी संभावना है कि यह संख्या काफी बढ़ गई होगी।
2024 के अंत तक सभी स्वीकृत घरों को पूरा करने की सरकार की प्रतिबद्धता के बावजूद, स्वीकृत घरों की संख्या में थोड़ी कमी आई है। हालांकि, निर्माण के लिए तैयार और पूरे हो चुके घरों की संख्या में काफी प्रगति हुई है, जो मौजूदा आवास लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में एक मजबूत कदम का संकेत है।
यह डेटा 2011 की जनगणना में पहचानी गई पर्याप्त आवास जरूरतों को पूरा करने के लिए पीएमएवाई योजना के तहत चल रहे प्रयासों और प्रगति को दर्शाता है। हालांकि, महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, 183.86 लाख परिवारों की कुल आवास मांग को पूरा करने के लिए अभी भी काफी अंतर है।
भूमिहीन गरीबों के लिए मकान
दिल्ली के अशोक विहार स्थित जेलरवाला बाग झुग्गी बस्ती के निवासी।
पीएमएवाई की अधिकांश परियोजनाओं को लाभार्थी-नेतृत्व निर्माण (बीएलसी) योजना के तहत मंजूरी दी गई है, जो कुल का 60 फीसदी हिस्सा है। राज्यों को बीएलसी योजना के तहत लोगों को छोटे शहरों में घर उपलब्ध कराना अधिक सुविधाजनक लगता है, क्योंकि उनके पास पहले से ही जमीन है।
इसके विपरीत, भूमिहीन गरीबों की सहायता के उद्देश्य से बनाई गई योजनाएं, जैसे कि इन-सीटू स्लम पुनर्विकास (आईएसएसआर) और भागीदारी में किफायती आवास (एएचपी), कुल परियोजनाओं का क्रमशः केवल 3 फीसदी और 17 फीसदी हिस्सा है।
उच्च मांग के बावजूद, आईएसएसआर को आवास की ज़रूरतों को पूरा करने में संघर्ष करना पड़ा है। मार्च 2022 तक, आईएसएसआर के तहत 14.35 लाख घरों की मांग के मुकाबले सिर्फ़ 4.33 लाख घरों को मंज़ूरी दी गई थी। 20 नवंबर, 2023 तक यह संख्या और भी कम होकर 2.96 लाख स्वीकृत घरों पर आ गई थी। आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने एएचपी और आईएसएसआर दोनों परियोजनाओं के लिए कई चुनौतियों का हवाला दिया है, जिसमें नगरपालिका सीमा के भीतर ज़मीन की कमी, विभिन्न वैधानिक मंज़ूरियों की ज़रूरत और टेंडरिंग, री-टेंडरिंग, पुनर्विकास के लिए झुग्गियों को साफ़ करना और पारगमन आवास की व्यवस्था जैसी लंबी प्रक्रियाएं शामिल हैं। इसके अलावा, झुग्गीवासियों की स्थानांतरण के लिए अनिच्छा आईएसएसआर योजना के लिए एक बड़ी चुनौती है।
केस स्टडी: जेलरवाला बाग झुग्गी पुनर्विकास
दिल्ली के अशोक विहार स्थित जेलरवाला बाग झुग्गी बस्ती के निवासी
दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने 2012 में जेलरवाला बाग झुग्गी बस्ती के पुनर्विकास की घोषणा की थी, जिसे बाद में आईएसएसआर योजना के तहत विस्तारित किया गया था, जिसका प्रारंभिक पूरा होने का लक्ष्य 2021 था। लगभग 12 साल बाद, डीडीए ने झुग्गीवासियों को 1,396 फ्लैट आवंटित किए। “हमें जून 2023 में फ्लैट के लिए हमारे योगदान के रूप में 1,76,400 रुपए का भुगतान करने के लिए कहा गया था।
उन्होंने कहा कि हमें मार्च 2024 तक फ्लैट मिल जाएगा, लेकिन अभी भी हमें पूरा होने की कोई तारीख नहीं पता है।”
340 वर्ग फीट में फैले प्रत्येक फ्लैट में एक बेडरूम, लिविंग रूम, किचन, अलग शौचालय और बाथरूम और एक बालकनी शामिल है। पूरे प्रोजेक्ट का आवासीय क्षेत्र लगभग 67,000 वर्ग मीटर में फैला हुआ है, जिसमें अतिरिक्त 1,000 वर्ग मीटर सामुदायिक सुविधाओं और 337 वाहनों की पार्किंग के लिए निर्धारित है। हालांकि, साइट पर मौजूद एक मजदूर के अनुसार, अभी भी बहुत काम किया जाना बाकी है। उनके मुताबिक, "हम अभी भी पानी की पाइपलाइनों पर काम कर रहे हैं। इसे पूरा होने में कम से कम एक साल और लगेगा।"
पुनर्वास भवन, जेलरवाला बाग झुग्गी बस्ती के बगल में, अशोक विहार, दिल्ली।
झुग्गी के निवासियों के अनुसार, पुनर्वास के लिए योग्य झुग्गी निवासियों का निर्धारण करने के लिए डीडीए ने 2015 में जेलरवाला बाग में और फिर 2021 में एक सर्वेक्षण किया था। कागजी कार्रवाई में विसंगतियों के कारण लगभग 600 परिवारों को अपात्र माना गया। निवासियों ने डीडीए अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष मामला आगे बढ़ाया और कुछ को हाल ही में अदालती आदेश मिले हैं।
सुमित कश्यप, निवासी, जेलरवाला बाग, अशोक विहार, दिल्ली।
जेलरवाला बाग के 30 वर्षीय दिहाड़ी मजदूर सुमित कश्यप को 6 मई, 2024 को एक अदालती आदेश मिला, जिसमें कहा गया कि वह आईएसएसआर के तहत फ्लैट के लिए अयोग्य है। आदेश में कहा गया कि 2015 से पहले का मतदाता पहचान पत्र न होना या 2012, 2013, 2014 और 2015 की मतदाता सूचियों में उसका नाम न होना, दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) की 2015 की नीति के तहत उसके अयोग्य होने का कारण है।
उन्होंने कहा, "मेरे पास पॉलिसी में बताए गए सभी अन्य दस्तावेज हैं। मैंने उन्हें 2011 का अपना आधार कार्ड, 2012 की अपनी बैंक पासबुक और 2014 का अपना राशन कार्ड दिया। फिर भी, मुझे अस्वीकार कर दिया गया।"
दिल्ली के अशोक विहार स्थित जेलरवाला बाग झुग्गी बस्ती में पुनर्वास के लिए आईडी कार्ड वाले निवासी।
डीडीए के आदेश में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि राशन कार्ड और बैंक पासबुक को डीयूएसआईबी नीति में पहचान के प्रमाण के रूप में गलती से स्वीकार कर लिया गया था, और मतदाता पहचान पत्र या मतदाता सूची में शामिल होने की आवश्यकता पर जोर दिया गया था। कश्यप ने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा, "इस देश में कोई भी दस्तावेज बनवाना आसान नहीं है। मैंने 2017 से पहले अपना वोटर आईडी कार्ड बनवाने की बहुत कोशिश की, लेकिन इसे लगातार खारिज कर दिया गया। आखिरकार मुझे 2017 में मिला। मैं अपनी दैनिक मजदूरी पर निर्भर हूं - क्या आपको लगता है कि मेरे लिए हर समय सरकारी कागजी कार्रवाई के लिए इधर-उधर भागना संभव है?"
दिल्ली के अशोक विहार स्थित जेलरवाला बाग झुग्गी बस्ती में पुनर्वास के लिए पहचान पत्र वाले निवासी
फरवरी 2023 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को केवल इसलिए पुनर्वास से वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि उनका नाम मतदाता सूची में नहीं है। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने कहा कि, "इन नीतियों का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिए पुनर्वास और घर सुनिश्चित करना है और इसकी व्याख्या संकीर्ण रूप से नहीं बल्कि व्यापक और लाभकारी रूप से की जानी चाहिए।"
कश्यप की तरह कई निवासी जेलरवाला बाग में वर्तमान आईएसएसआर परियोजना में डीडीए के खिलाफ इन मुद्दों पर लड़ कर रहे हैं।
कश्यप ने आरोप लगाया कि, "हम थक चुके हैं। डीडीए ने हमसे हर कदम पर पैसे मांगे, फॉर्म भरने से लेकर दस्तावेज जमा करने तक पैसे देने पड़े। वे हर स्पेलिंग की गलती के लिए 300 रुपये की रिश्वत लेते हैं। अब हमारे पास कोई निवारण तंत्र नहीं बचा है। हमें एक सुनवाई का समय दिया गया और अब मैं कानूनी तौर पर बेघर हूं।" यह पीएमएवाई-यू में जेलरवाला बाग में झुग्गीवासियों के चल रहे संघर्ष को उजागर करता है, जो नौकरशाही की लालफीताशाही में फंस गए हैं और पुनर्विकास और पुनर्वास के वादों के बावजूद अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं।
साझेदारी में किफायती आवास
झांसी, उत्तर प्रदेश में निर्माणाधीन एएचपी भवन।
पीएमएवाय के तहत दूसरी योजना जिसका लक्ष्य भूमिहीन गरीबों को लाभ पहुंचाना है, वह है भागीदारी में किफायती आवास (AHP)। पीएमएवाय-यू के तहत भागीदारी में किफायती आवास (AHP) योजना आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लाभार्थियों को सबसे अधिक औसत वित्तीय सहायता प्रदान करती है। हालांकि, जबकि प्रत्येक योजना के लिए केंद्रीय सहायता तय है, राज्य सहायता में काफी भिन्नता है, जिससे यह लाभार्थी को मिलने वाली कुल सरकारी सहायता निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण कारक बन जाता है।
एएचपी योजना के तहत निर्मित ईडब्ल्यूएस घरों के लिए, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने इन घरों की बिक्री कीमत पर रुपये प्रति वर्ग मीटर कार्पेट क्षेत्र में ऊपरी सीमा तय की है ताकि इच्छित लाभार्थियों के लिए वहनीयता सुनिश्चित की जा सके। उदाहरण के लिए, चेन्नई में, प्रत्येक आवास इकाई के लिए, केंद्र सरकार ने 1.5 रुपए दिए, जबकि राज्य सरकार ने 7 लाख रुपए का योगदान दिया। औसत लाभार्थी योगदान 1 लाख रुपए से 6.5 लाख रुपए तक था।
झांसी, उत्तर प्रदेश में निर्माणाधीन एएचपी भवन।
पर्याप्त वित्तीय सहायता के बावजूद, एएचपी योजना अच्छी तरह से आगे नहीं बढ़ पाई है। 2022-23 तक, स्वीकृत 20,94,030 घरों में से केवल 6,70,869 (32 फीसदी) ही पूरे हो पाए हैं। इसके अलावा 4,66,548 घर अभी भी नहीं बने हैं, जो स्वीकृत घरों का 20 फीसदी है। 6.93 लाख पूर्ण हो चुके घरों में से 5.14 लाख (लगभग 74.2 फीसदी) अभी भी डिलीवरी एजेंसियों के पास हैं, और केवल 1.78 लाख घर लाभार्थियों को सौंपे गए हैं।
जब मंत्रालय से राज्यवार ब्यौरा मांगा गया कि ये घर कार्यान्वयन एजेंसियों के पास क्यों हैं और लाभार्थियों को क्यों नहीं सौंपे गए हैं, तो उसने संसदीय समिति को बताया कि ये घर खाली पड़े हैं क्योंकि परियोजनाएँ पूरी तरह से पूरी नहीं हुई हैं। इन घरों को देना पूरी परियोजना के पूरा होने पर निर्भर करता है, जिसमें पानी, सीवरेज, बिजली और अन्य सामाजिक सुविधाओं की उपलब्धता के साथ-साथ शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) द्वारा पूर्णता का प्रमाण पत्र जारी करना शामिल है।
झांसी, उत्तर प्रदेश में निर्माणाधीन एएचपी भवन
एएचपी/आईएसएसआर योजनाओं के तहत घरों के निर्माण का समय आम तौर पर 24 से 36 महीने तक होता है, जो लाभार्थी-नेतृत्व निर्माण (बीएलसी) योजना के लिए आवश्यक 12 से 18 महीनों से दोगुना है। यह विस्तारित समय-सीमा एएचपी योजना के सामने आने वाली चुनौतियों में और भी इजाफा करती है जो अभी तक लाभार्थी आवंटन के पहलू तक ही पहुंच पाई है और अभी भी अपने शुरुआती चरण में ही अटकी हुई है।
पीएमएवाई-यू योजना, अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्यों और पर्याप्त वित्तीय सहायता के बावजूद, क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रही है। जबकि बीएलसी योजना ने राज्यों के लिए अपनी सुविधा के कारण उल्लेखनीय प्रगति देखी है, आईएसएसआर और एएचपी योजनाएं भूमि की कमी, नौकरशाही देरी और लाभार्थी पात्रता में विसंगतियों से जूझ रही हैं।
जेलरवाला बाग का मामला उन नौकरशाही बाधाओं और लंबी समयसीमाओं को उजागर करता है, जो इन परियोजनाओं को आवंटन चरण में परेशान करती हैं, जिससे कई इच्छित लाभार्थी अनिश्चितता और निराशा की स्थिति में रह जाते हैं।
शुभांगी डेरहगवेन दिल्ली स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
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