दलितों-बहुजनों की राजनीति में कांशीराम जैसे जननायकों की ज़रूरत
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने दलित वंचित वर्ग के लिए समता, समानता, न्याय तथा सामाजिक परिवर्तन के लिए राजनीति को 'मास्टर की' कहा था। कमोबेश यही बात मान्यवर कांशीराम कहते थे। वे अपने भाषणों में अक्सर कहा करते थे - '’जब तक हम राजनीति में सफल नहीं होंगे और हमारे हाथों में शक्ति नहीं होगी तब तक सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन संभव नहीं है। राजनीतिक शक्ति सफलता की कुंजी है।''
इसके लिए ही उन्होंने 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की। जिसके बिना पर मायावती चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं।
कांशीराम जी के मिशन और लक्ष्य स्पष्ट थे। उनका साफ मानना था कि सत्ता पाने के लिए जन आंदोलन की जरूरत होती है। जन आंदोलन को वोटों में परिवर्तित करना होता है। वोटों को सीटों में बदल कर सीटों को सत्ता में बदलना होता है। सत्ता के बल पर ही हम अपने समाज में परिवर्तन ला सकते हैं।
सामाजिक परिवर्तन के हिमायती
कांशीराम जी पूरी तरह सामाजिक परिवर्तन चाहते थे। वे चाहते थे कि समाज के दबे कुचले वर्ग जो बहुसंख्यक हैं, बहुजन हैं, उन्हें पूरी तरह मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार मिले। वे भारतीय समाज में समानता के हिमायती थे। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के सपनों के भारत को साकार करना चाहते थे। इसलिए बाबा साहेब के समर्थक तथा उनके अनुयायी नारा भी लगाते थे - ''बाबा तेरा स्वप्न अधूरा, कांशीराम करेंगे पूरा।'
वे लोगों को संबोधित करते हुए कहा करते थे - ''हम सामाजिक न्याय नहीं चाहते, हम सामाजिक परिवर्तन चाहते हैं। सामाजिक न्याय सत्ता में मौजूद व्यक्ति पर निर्भर करता है। मान लीजिए एक समय में सत्ता में कोई अच्छा नेता सत्ता में आता है और लोग सामाजिक न्याय प्राप्त करते हैं और खुश होते हैं। लेकिन जब एक बुरा नेता सत्ता में आता है तो वह फिर से अन्याय में बदल जाता है। इसलिए हम संपूर्ण सामाजिक परिवर्तन चाहते हैं।''
बहुजन समाज को स्वाभिमानी बनाने का संकल्प
मान्यवर कांशीराम दबे कुचले वंचित बहुजन वर्ग को स्वाभिमानी बनाना चाहते थे। इसलिए वे कहते थे - ''स्वाभिमानी लोग ही संघर्ष की परिभाषा समझते हैं। जिनका स्वाभिमान मरा है वे ही गुलाम हैं।...जिस कौम को मुफ्त में खाने की आदत होती है वह कभी क्रांति नहीं कर सकती। जो कौम क्रांति नहीं करेगी वह कभी शासक नहीं बन सकती। जो शासक नहीं होतीं उनकी बहन-बेटियां सुरक्षित नहीं होतीं। और वो न्याय भी प्राप्त नहीं कर सकतीं। इसलिए न्याय चाहिए तो शासक बनो।''
वोट हमारा राज तुम्हारा नहीं चलेगा
मान्यवर कांशीराम ने शोषित उत्पीडि़त समाज को जागरूक करने के लिए सरल भाषा में नारे गढ़ कर उन्हें जागरूक करने का प्रयास किया। उन्होंने लोगों को समझाया कि इस देश में 15 प्रतिशत सवर्ण 85 प्रतिशत बहुजनों पर राज कर रहे हैं। यानी वोट हम दे रहे हैं और हमारे वोट लेकर वे हमी पर शासन कर रहे हैं। जबकि हमें शासक होना चाहिए क्योंकि वोट प्रतिशत हमारा अधिक है। बहुमत हमारा है। क्योंकि हम बहुजन हैं। उन्होंने दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (डीएसफोर) का गठन किया और लोगों को समझाया कि ठाकुर, बनिया, बाभन छोड़, बाकी सब हैं डीएसफोर। इससे दलितों, वंचितों, हाशिए के लोगों में जागरूकता आई। उन्होंने कांशीराम का आभार प्रकट करते हुए कहा ''काशी तेरी नेक कमाई, तूने सोती कौम जगाई।'’
जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी
आज प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी और उनके सहयोगी दल देश में जाति जनगणना का मुद्दा उठा रहे हैं। कह रहे हैं कि जाति जनगणना होने के पश्चात् जिस जाति की जितनी संख्या हो उसे उसके अनुसार सत्ता में भागीदारी मिले। इस विचार को मान्यवर कांशीराम ने इसे पहले ही क्लीयर कर दिया था। उन्होंने कहा था कि जाति के अनुपात में सत्ता में हिस्सेदारी होनी चाहिए। वे कहते थे - ''जब तक जाति है, मैं अपने समुदाय के लाभ के लिए इसका उपयोग करूंगा। यदि आपको कोई समस्या है तो जाति व्यवस्था को समाप्त करें।''
वक्त की नब्ज समझने वाले सतर्क और तेज-तर्रार नेता
कांशीराम जी बहुत ही सतर्क नेता थे। कहावत में कहें तो उड़ती चिडि़या के पर गिनने में माहिर थे। वे वक्त की नब्ज पहचानते थे। उन्होंने अपनी पार्टी में सवर्णों को नहीं लिया। उनका साफ कहना था कि '’ऊंची जातियां हम से पूछती हैं कि हम उन्हें पार्टी में शामिल क्यों नहीं करते। लेकिन मैं उनसे कहता हूं कि आप अन्य सभी दलों का नेतृत्व कर रहे हैं। यदि आप हमारी पार्टी में शामिल होंगे तो आप बदलाव को रोकेंगे। आप यथास्थिति को बनाए रखने की कोशिश करेंगे। और हमेशा नेतृत्व संभालना चाहेंगे। यह सिस्टम को बदलने की प्रक्रिया को रोक देगा जो मैं नहीं चाहता।''
मान्यवर कांशीराम एक तेज-तर्रार बहुजन नेता थे। उन्होंने सत्ता हासिल करने के लिए दूसरे दलों और विचारधाराओं से जोड़-तोड़ करने से भी परहेज नहीं किया। वे जानते थे कि अगर दबे-कुचले वंचित वर्ग को ऊपर उठाना है, उन्हें सशक्त करना है तो राजनीति की शक्ति होना बहुत जरूरी है।
उन्होंने आर्थिक रूप से सक्षम वंचित वर्ग के लोगों जैसे दलितों, अल्पसंख्यकों से ''पे बैक टू द सोसाईटी'' का आह्वान किया। इसके लिए इस वर्ग के सरकारी कर्मचारियों को एकजुट कर बामसेफ की स्थापना की।
बाबा साहेब के सपनों को साकार करने के लिए प्रतिबद्ध रहे।
मनुवादी व्यवस्था द्वारा कमजोर पीडि़त शोषित वर्ग के अधिकारों और उनकी मानवीय गरिमा के लिए बाबा साहेब आजीवन संघर्ष करते रहे। उन्हीं के सपनों को पूरा करने के लिए मान्यवर कांशीराम आजीवन प्रतिबद्ध रहे।
बहुजन मीडिया की भी पहल की
बाबा साहेब की तरह कांशीराम भी अच्छी तरह जानते थे कि सवर्णों का मीडिया उनकी बात लोगों तक नहीं पहुंचाएगा।
जिस तरह बाबा साहेब ने अपनी बात जन-जन तक पहुंचाने के लिए 'मूकनायक', 'बहिष्कृत भारत', 'जनता' जैसे अखबार निकाले उसी तरह कांशीराम जी ने भी 'द ऑप्रेस्ड इंडियन’, 'बहुजन नायक’, 'बहुजन संगठक' जैसे अखबार निकाले। अपने संपादकीए और लेखों के माध्यम से लोगों को जागरूक करते रहे। 'चमचा युग' जैसी पुस्तक लिखी।
बहुजन जननायक बनने का सफर
मान्यवर कांशीराम जी का जन्म पंजाब के रोपड़ जिले में 15 मार्च 1934 को हुआ। पर उनकी कर्मस्थली उत्तर प्रदेश रही। हालांकि उन्होंने देश भर में लोगों को संबोधित किया। पुणे में भाषण दिए। देश भर में पैदल और साईकिल यात्राएं निकालीं। वे दलित राजनीति में अपनी आक्रामक छवि के लिए जाने जाते हैं। वे एक कर्मठ, जुझारू नेता के रूप में उभरे और अपने कार्यों से अपने संघर्षों से बहुजन जनजायक की छवि बनाई। 9 अक्टूबर 2006 को दिल्ली में उनका निधन हुआ। पर वे दलितों बहुजनों के जननायक के रूप में हमेशा याद किए जाते रहेंगे।
आज के दौर में दलित राजनीति पिछड़ गई है। बिखर गई है। कमजोर हुई है। दलित बहुजन नेताओं में सामाजिक उत्थान के लिए आम दलितों बहुजनों को सशक्त करने उन्हें अन्य वर्ग की बराबरी पर लाने की न इच्छा शक्ति दिखाई देती है और न वह एकजुटता और दमखम। आज के समय में दलित बहुजन नेता भी जनहित की बजाय स्वहित की राजनीति करने में लगे हैं। यही कारण है कि आज दलितों बहुजनों की राजनीति करने वाले नेता तो हैं, राजनीतिक दल भी हैं, पर बहुजनों के विकास के लिए उनमें नेतृत्व क्षमता नहीं है। ऐसे समय में कांशीराम जैसे जननायक की कमी महसूस होती है। क्या हमारे दलित बहुजन राजनेता बाबा साहेब और कांशीराम के सच्चे अनुयायी होकर दलित बहुजन समाज को सामाजिक आर्थिक बराबरी दिलाने, उन्हें उनके हक दिलाने, उनको शोषण से मुक्त कर मानवीय गरिमा के साथ, स्वाभिमान के साथ जीने के लिए, उन्हें सशक्त करने के लिए आगे आएंगे?
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।