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‘तीन नए आपराधिक क़ानूनों से न्यायालय पर बोझ बढ़ेगा’

वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने नए केंद्रीय क़ानून मंत्री को पत्र लिखकर 1 जुलाई से उक्त क़ानूनों के प्रभावी होने से पहले व्यापक चर्चा कराने का आह्वान किया है।
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तीन नए आपराधिक कानून, भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (आपराधिक कानून), को भारतीय दंड संहिता, 1860; भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में बदलकर, इन्हे 1 जुलाई, 2024 को लागू कर दिया जाएगा।

पिछले वर्ष, जब से ये विधेयक संसद में प्रस्तुत किए गए हैं, तब से विभिन्न वर्गों, विशेषकर लीगल समुदाय के भीतर इनकी आलोचना की जा रही है, क्योंकि इनके प्रावधान भारत जैसे संवैधानिक गणराज्य में आपराधिक न्याय प्रणाली की मूल भावना के विरुद्ध हैं।

अब सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता और प्रख्यात न्यायविद इंदिरा जयसिंह ने नवनियुक्त केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को पत्र लिखकर तीनों कानूनों के क्रियान्वयन पर चिंता जताई है।

मंत्री को उनकी नियुक्ति के लिए बधाई देते हुए, जयसिंह ने अपने पत्र में कहा है कि आपराधिक कानूनों में सभी मौजूदा प्रावधानों को पुनः शब्दांकित और पुनः प्रारूपित किया गया है, जो अब मूल कानूनों में निहित अर्थ से पूरी तरह से भिन्न अर्थ देते हैं।

मौजूदा कानून एक सदी से भी ज़्यादा समय से अस्तित्व में हैं और उनकी विषय-वस्तु कई उच्च न्यायालयों और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के हाथों न्यायिक व्याख्या का विषय रही है। पिछली मोदी सरकार ने, आपराधिक न्याय प्रणाली में व्यापक और बड़े बदलाव के पीछे कानूनों की औपनिवेशिक उत्पत्ति को कारण बताया था।

पत्र में जयसिंह ने कहा है कि, यदि तीनों आपराधिक कानूनों को लागू भी कर दिया जाए तो मौजूदा कानून संभवतः अगले 20 वर्षों या उससे अधिक समय तक जारी रहेंगे, जब तक कि उनके तहत लंबित मामलों का निपटारा नहीं हो जाता है।


वे कहती हैं कि: "वास्तव में, निकट भविष्य में हमारे पास दो समानांतर आपराधिक न्याय प्रणालियां होंगी, जिनकी अवधि 20-30 वर्ष तक हो सकती है।"

यह भारत में किसी भी मामले की औसत जीवन अवधि मानी जाती है।

जीवन और स्वतंत्रता

जयसिंह के पत्र के अनुसार, आपराधिक कानून विशेष रूप से जीवन और स्वतंत्रता तथा किसी व्यक्ति को विभिन्न तरीकों से पहुंचाई जा सकने वाली आपराधिक क्षति से संबंधित होते हैं।

ये कानून नागरिकों की स्वतंत्रता से भी संबंधित हैं, विशेष रूप से अभिव्यक्ति की आज़ादी, इकट्ठा होने का अधिकार, प्रदर्शन का अधिकार तथा अन्य नागरिक अधिकार, जिनके बारे में जयसिंह का कहना है कि इन्हें आपराधिक कानूनों के तहत कानून और व्यवस्था के प्रावधानों के तहत आपराधिक बनाया जा सकता है।

लंबित मामलों पर आपराधिक कानूनों का प्रभाव

इसके अलावा, जयसिंह ने अपने पत्र में कहा है कि आपराधिक कानूनों का लंबित मामलों पर असर पड़ सकता है। अब तक सरकार ने लंबित मामलों पर नए कानूनों के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए कोई अध्ययन नहीं किया है।

जयसिंह ने राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड से लंबित मामलों के आंकड़ों का हवाला दिया है, जो उनके अनुसार, अत्यधिक बोझ से दबी न्यायपालिका की गंभीर तस्वीर पेश करता है।

एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में इंदिरा जयसिंह ने लिखा है कि नए आपराधिक कानूनों से आपराधिक मुकदमेबाजी में 30 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना है, जो मौजूदा लंबित मामलों पर अतिरिक्त बोझ होगा। पत्र में आगे लिखा है कि अगर तीनों कानून लागू हो गए तो न्यायिक प्रणाली असहनीय हो जाएगी।


बुनियादी ढांचे की कमी

जयसिंह ने अपने पत्र में मौजूदा न्यायिक प्रणाली के बुनियादी ढांचे को बेहतर या उपयुक्त बनाने के लिए किए गए प्रयासों की कमी पर भी चिंता जताई है।

उन्होंने कहा कि आपराधिक कानूनों के पूर्वव्यापी आवेदन के "कष्टप्रद" संवैधानिक मुद्दों से निपटने और न्याय तक त्वरित पहुंच पर इसके प्रभाव के बारे में सभी स्तरों पर न्यायालयों को प्रशिक्षित करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए हैं।

जबकि बीएनएस जैसे मूल आपराधिक कानूनों को पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं किया जा सकता है, बीएनएसएस के प्रावधान प्रक्रियात्मक हैं और उन्हें पूर्वव्यापी रूप से लागू किया जा सकता है। हालांकि, यह लंबित मामलों में एक मुद्दा पैदा करेगा क्योंकि यह सवाल उठता रहेगा कि किसी विशेष मामले में कौन सा कानून लागू होगा।

जयसिंह ने अनुरोध किया है कि आपराधिक कानूनों के क्रियान्वयन को तब तक स्थगित रखा जाए जब तक कि सभी स्तरों पर न्यायपालिका, जांच एजेंसियां, केंद्र और राज्य स्तर पर सरकार और नागरिकों को इसके क्रियान्वयन पर बहस और चर्चा करने का अवसर न मिल जाए।

उन्होंने पत्र के अंत में लिखा कि: "हम भारत के लोगों को विश्वास है कि आप हमारी चिंताओं को समझेंगे और उनका शीघ्र समाधान करेंगे, ताकि 1 जुलाई, 2024 को हमारे ऊपर लटकी हुई तलवार राष्ट्र पर न गिरे।"

पत्र पढ़ने के लिए यहां क्लिक  करें।

गुरसिमरन कौर बख्शी द लीफलेट में स्टाफ राइटर हैं।

ाभार: द लीफ़लेट

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