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तिरछी नज़र : रफ़ाल आला रे आला, इतिहास लिखा डाला रे डाला

जब इतिहास पुरुष देश सम्हालते हैं तो हर रोज नया इतिहास न बने, न लिखा जाये, यह नामुमकिन है। अब रफ़ाल जहाज़ देश ने खरीदा है तो यह ऐतिहासिक ही है। इससे पहले भी मिग खरीदे गए, सुखोई खरीदे गए, मिराज भी खरीदे गए पर वह ऐतिहासिक नहीं था क्योंकि वे रफ़ाल नहीं थे।
रफ़ाल आला रे आला

बीती 29 जुलाई को देश में पाँच रफ़ाल लड़ाकू विमानों की डिलीवरी हो गई। 27 जुलाई को फ्रांस से चले ये हवाई जहाज़, आठ हजार किलोमीटर की लम्बी दूरी तय कर, दो दिन बाद भारत में अम्बाला हवाई अड्डे पर उतर गए। यह दिन इतिहास में लिख लिया गया है। यह दिन ऐतिहासिक है। इस दिन, 29 जुलाई से पहले हमारे पास एक भी रफ़ाल हवाई जहाज़ नहीं था और इस दिन, 29 जुलाई के बाद हमारे पास रफ़ाल हवाई जहाज़ है नहीं, हैं। एक नहीं, पाँच।

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यह काल ही इतिहास बनाने का काल है। इस काल में जितने ऐतिहासिक कार्य हुए हैं, किसी भी काल में इतने कम समय में नहीं हुए हैं। पहला इतिहास तो 26 मई 2014 को ही लिखा गया। उसके बाद लगातार इतिहास लिखा भी जा रहा है और बनाया भी जा रहा है। हर दूसरे हफ्ते कोई न कोई इतिहास लिख दिया जाता है। यह बात अलग है कि इतिहास बनता है और अगले ही दिन लोग उसे भूल जाते हैं। फिर नया इतिहास बनाना पड़ता है।

जब इतिहास पुरुष देश सम्हालते हैं तो हर रोज नया इतिहास न बने, न लिखा जाये, यह नामुमकिन है। अब रफ़ाल जहाज़ देश ने खरीदा है तो यह ऐतिहासिक ही है। इससे पहले भी मिग खरीदे गए, सुखोई खरीदे गए, मिराज भी खरीदे गए पर वह ऐतिहासिक नहीं था क्योंकि वे रफ़ाल नहीं थे। शायद ही कोई बता सके कि देश में पहला मिग, पहला सुखोई या फिर पहला मिराज किस दिन आया था। वह दिन ऐतिहासिक नहीं था इसीलिए याद नहीं है। 

याद तो यह भी नहीं है कि एचएएल में बना नैट हवाई जहाज़ किस दिन भारतीय वायुसेना को सौंपा गया था। वह भारत में बना जहाज़ था। उसी एचएएल में बना था जिसे आज की सरकार नकार चुकी है। वही नैट हवाई जहाज़, जिसने 1965 के युद्ध में अमेरिकी सैबरजेट के पसीने छुड़ा दिये थे। वह दिन जिस दिन नैट हवाई जहाज़ भारतीय वायुसेना को सोंपा गया था, ऐतिहासिक नहीं था। उसकी तारीख किसी को याद नहीं है।

लेकिन रफ़ाल का भारत आना इसलिए ऐतिहासिक है क्योंकि रफ़ाल के भारत में आने से पाकिस्तान घबराया हुआ है, हलकान है। उसकी बौखलाहट भारत के टीवी एंकरों ने साफ देखी है। वह भारत से आँख नहीं मिला पा रहा है। चीन अलग से परेशान है। रफ़ाल के भारत आने से चीन को शुगर की बीमारी हो गई है। उसकी बल्ड टैस्ट की रिपोर्ट भी टीवी पर सार्वजनिक कर दी गई है। उसके पास भी रफ़ाल का जवाब नहीं है। रफ़ाल के आने से शी का चीन मोदी के भारत के सामने कहीं भी टिक नहीं पा रहा है। घुटने टेक देगा। इसीलिए रफ़ाल का भारत की सरजमीं पर आना ऐतिहासिक है।

लेकिन 29 जुलाई हमेशा याद रखेंगे। यह दिन हर वर्ष मनाया जायेगा। यह ऐतिहासिक जो है। ऐसा नहीं है कि भारतीय वायुसेना को पहली बार कोई लड़ाकू हवाई जहाज़ मिले हैं। यह दिन याद रखा जायेगा इसलिए कि शायद पहली बार इस सरकार ने कुछ खरीददारी की है। जब बेचने की आदतों वाला कोई खरीददारी करे तो याद रखने की बात तो बनती ही है। जब घर के बरतन भांडे बेच फ्रिज खरीदा जाये तो वह फ्रिज भी याद रहता है और उसको खरीदने की तारीख भी।

लेकिन इतिहास लिखवाने वाली सरकार को जब तक जल्दी जल्दी इतिहास न लिखा जाये, संतोष नहीं है। माना तो यह भी जा रहा है कि इतिहास लिखने के चक्कर में चीजें दोबारा भी की जा रही हैं। आने वाले सप्ताह में, पाँच अगस्त को फिर एक ऐतिहासिक चीज होने जा रही है। एक भूमि, जिसका पूजन पहले भी हो चुका है, उसका पूजन दोबारा किया जा रहा है। वैसे भी पूजा ही तो है, जितनी बार कर लो, अच्छा है। मौका मिला तो तीसरी बार भी कर ली जायेगी। पूजा भी हो जाये और वोट भी मिल जायें तो और भी अच्छा है। और यहाँ तो इतिहास भी लिखा जा रहा है।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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