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बिना जूतों के ट्रायल से इंटरनेशनल चैंपियनशिप में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए तैयार ट्राइबल गर्ल नयना

उत्तरी कर्नाटक के एक गांव से आने वाली 19 साल की नयना ने एशियन अंडर 20 चैंपियनशिप 2023 के लिए रिकॉर्ड टाइमिंग के साथ क्वालीफाई कर लिया है। गवली ट्राइब से आने वाली नयना संघर्षों से भरा सफर तय कर यहां तक पहुंची है।
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''देश का टैलेंट अभी भी मिट्टी में ही है'' ये बात नयना के कोच तैंजिन (Tenzin Zongpa ) ने उस वक़्त कही जब हमने उनसे नयना के अभी तक के सफर को एक वाक्य में समेट कर बयां करने के लिए कहा।

कोच तैंजिन ने ये बात इसलिए कही क्योंकि वे एक ऐसे NGO ( Bridges of Sports ) से जुड़े हैं जो देश के ट्राइबल एथलीट्स को तलाश कर उन्हें उनके सपनों को सच करने में मदद करता है। और ऐसी ही एक ट्राइबल गर्ल है 19 साल की नयना (Nayana Kokare) जो गवली कम्युनिटी/ ट्राइब से आती है।

नयना (Nayana Kokare) की कहानी किसी परीकथा से कम नहीं लगती, नयना खेलों के आसमान में वो उभरता हुआ सितारा है जो देश का नाम रौशन करने के लिए बेताब दिखती है।

नयना की कहानी एक शे'र की याद दिलाती है-

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है

बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा

बिना जूतों के ट्रायल देने वाली लड़की इंटरनेशनल चैंपियनशिप तक पहुंची

नयना उस वक़्त को याद करती है जब वे 15-16 साल की थी और इस उम्मीद में अपने गांव में चल रहे Bridges of Sports के स्काउटिंग प्रोग्राम (Scouting Program ) में पहुंची थी कि उन्हें भी सपने देखने और उन्हें सच करने का मौक़ा मिलेगा। इस स्काउटिंग प्रोग्राम में नयना ने एक के बाद एक चार ट्रायल पास किए। एक महीने में चार बार हुए इन ट्रायल में नयना जब भी दौड़ने पहुंची उसके पैरों में जूते नहीं होते थे। नंगे पैरों से भाग कर नयना ने अपनी उस प्रतिभा को पेश किया जो हमारे देश में बहुत से ट्राइबल बच्चों के पास है लेकिन उन्हें मौक़ा नहीं मिल पाता। एक सवाल के जवाब में नयना जवाब देती है कि ''वे दिन मैं कैसे भूल सकती हूं, उस वक़्त मेरे पास कुछ भी नहीं था।''

कौन है नयना ?

नयना (Nayana Kokare) भारत में Under 20 में सबसे तेज दौड़ने वाली एथलीट बन गई हैं। Bridges of Sports के दावे को माने तो कुछ मापदंडों (Parameters) को ध्यान में रखा जाए तो वे एशिया की टॉप फाइव (Top-5) तेज़ दौड़ने वालों में भी शामिल हो गई हैं। उत्तर कर्नाटक के जंगलों में बसे एक गांव से आने वाली 19 साल की नयना ने एशियन अंडर-20 चैंपियनशिप 2023 के लिए क्वालीफाई कर लिया है, और अब वे अपने पहले इंटरनेशनल टूर्नामेंट की तैयारी कर रही हैं जो साउथ कोरिया में होने वाला है। नयना ने अंडर-20 रेस के लिए भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए रिकॉर्ड टाइमिंग के साथ क्वालीफाई किया है।

नयना की क्वालीफाई रेस को देखकर उनके कोच भी हैरान रह गए। उन्होंने बताया कि, ''नयना हमारी उम्मीद से भी ज्यादा तेज़ दौड़ी, क्वालीफाई रेस में एक कट-ऑफ टाइम देते हैं जैसे इन्होंने टाइम दिया था 24.48 और नयना ने 24.28 में क्वालीफाई किया''।

सच होगा नयना का सपना?

अपने पहले इंटरनेशनल टूर्नामेंट के लिए क्वालीफाई करने के बाद नयना कैसा महसूस कर रही है। ये सवाल जब हमने उससे फोन पर पूछा तो एक गहरी सांस लेते हुए नयना ने कहा कि, ''ये मेरा सपना था कि एक दिन मैं इंडिया का प्रतिनिधित्व करूं और मुझे ये मौक़ा मिल रहा है तो मैं बहुत ख़ुश हूं, ये मेरे लिए इसलिए भी बहुत ज़रूरी है क्योंकि अगर मैं जीत जाती हूं तो लोग मुझे ही नहीं बल्कि जिस कम्युनिटी से मैं आती हूं उसके बारे में भी जान पाएंगे। अभी तो लगता है शायद लोगों को हमारे बारे में सही से नहीं पता है।''

नयना के कोच से हुई बातचीत में पता चला कि नयना के परिवार के लोग कभी महाराष्ट्र से आकर उत्तर कर्नाटक में बस गए थे। ये लोग जंगलों में रहते हैं और इनका कल्चर और भाषा आज भी मराठी ही है। जिस वक़्त नयना को Bridges of Sports ( NGO) के स्काउटिंग प्रोग्राम (Scouting Program) में सेलेक्ट कर हॉस्टल में आने को कहा गया था तो उसके लिए ही नहीं बल्कि उसके परिवार के लिए भी ये एक मुश्किल फैसला था, उस वक़्त नयना 15-16 साल की थी, परिवार के लिए बेटी को इस तरह घर से बाहर भेजना बहुत मुश्किल क़दम था लेकिन Bridges of Sports के समझाने पर उन्होंने किसी तरह बेटी को भेज दिया। उस वक़्त नयना को अगर शहर के बाहर या विदेश किसी कैम्प के लिए जाना पड़ता तो परिवार से इजाजत लेना एक मुश्किल काम होता था। लेकिन तब और आज के हालात में कितना बदलाव आ गया है ये नयना ख़ुद बताती हैं, ''एशियन अंडर-20 चैंपियनशिप 2023 के लिए क्वालीफाई करने के बाद जब मैं अपने परिवार से मिलने गई तो सब बहुत ख़ुश थे लेकिन सब कह रहे थे कि अभी क्यों घर आई? बस एक दिन रहकर वापस चली जाओ और प्रैक्टिस पर फोकस करो और चैंपियनशिप के बाद ही घर लौटना।''

''नयना के परिवार की सोच अब बदल गई''

नयना के साथ उनके कोच तैंजिन (Tenzin Zongpa ) भी उनके गांव गए थे और उन्होंने भी बताया कि, ''हम उसके गांव गए थे। उसका परिवार बहुत ख़ुश था। पहले उसका परिवार कहता था कि मेरी बच्ची कहां रहेगी, कैसे रहेगी, लेकिन अब वे बोलते हैं कि अभी मत भेजो, इसे प्रैक्टिस पर फोकस करने दो, तो ये एक बड़ा बदलाव ही है कि कैसे हमने शुरुआत की थी और अब कैसे सबकुछ बदल गया।''

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''यहां तक पहुंचना बहुत मुश्किल था''

लेकिन जब हमने नयना से उनके यहां तक पहुंचने के सफर के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि ''ये मेरे लिए बहुत मुश्किल था, मैं एक छोटे से गांव से आती हूं, आम बच्चों और ट्राइबल बच्चों और ख़ासकर लड़कियों के लिए यहां तक पहुंचना बहुत ही मुश्किल है, लेकिन मुझे लगता है कि मैं इस मौक़े का बहुत ही अच्छे से इस्तेमाल करूं, आज जब मैं अपने गांव जाती हूं तो बहुत से लोग आते हैं ये पूछने के लिए कि क्या हमारी बेटियों को भी ऐसा मौक़ा मिल सकता है?

वहीं नयना के कोच तैंजिन (Tenzin Zongpa) बताते हैं कि, ''नयना की प्रतिभा उसे नेचर से मिला तोहफा है। नयना को कैंपस में लाना बहुत मुश्किल सफर था क्योंकि उसके पिता बहुत ही पारंपरिक रिवाजों को मानने वाले हैं। उन्होंने पहले तो नयना को भेजने से साफ़ इनकार कर दिया था। वे लड़कियों के घर से दूर जाकर इस तरह से तैयारी करने के सख़्त ख़िलाफ़ थे लेकिन समय के साथ उन्होंने बेटी की प्रतिभा को समझा और उसे आगे की ट्रेनिंग के लिए भेज दिया।

कोच बताते हैं कि क़रीब 100 परिवारों वाले नयना के गांव से महज़ चार या पांच लड़कियां ही हैं जो 12वीं से आगे की पढ़ाई कर पाईं, नयना के घर में ख़ुद ऐसे हालात थे कि बड़ी बेटी को उस वक़्त स्कूल छोड़ना पड़ा। जब उसका भाई स्कूल जाने लगा और जब नयना ने स्कूल जाना शुरू किया तो उसके भाइयों को स्कूल छोड़ना पड़ा।

''ट्राइबल बच्चों का संघर्ष उनके काम आता है''

लेकिन नयना की वजह से न सिर्फ उनके परिवार की सोच बदल गई है बल्कि उनके गांव के लोगों की भी राय बदल रही है। वहीं कोच तैंजिन का मानना है कि ''कोई किसी भी बैकग्राउंड या फिर नेचर का हो लेकिन अगर उसमें प्रतिभा है और उसे सही माहौल, कोचिंग मिले तो वे बेहतर करेगा। हालांकि ट्राइबल बच्चों की एक चीज़ ये अच्छी लगती है कि उन्होंने संघर्ष देखा होता है, वे मेहनती होते हैं और अपना सौ फीसदी देते हैं। इसलिए दूसरे बच्चों के मुकाबले उन्हें तैयार करना थोड़ा आसान होता है।'' वे आगे कहते हैं कि नयना अगर अच्छा करेगी तो बड़े बदलाव आएंगे। उस जैसे परिवार के बच्चों के बारे में सोचा जाएगा कि अगर वो (नयना) कर सकती है तो हमारे बच्चे भी कर सकते हैं, ये लोगों को प्रभावित करेगा।''

NGO के साथ अपना सफर शुरू करने वाली नयना 10वीं में यहां (NGO के हॉस्टल में) आई थी लेकिन इस साल उसने 12वीं पास कर बीकॉम में एडमिशन ले लिया है और अभी वे बैंगलुरू में कोरिया में होने वाली एशियन अंडर-20 चैंपियनशिप की तैयारी में जुटी है और रात दिन पसीना बहा कर देश का नाम रौशन करने का सपना देख रही है।

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