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अमेरिका ने क़ाबुल में किया परफ़ेक्ट मर्डर !

काबुल में 31 जुलाई को हुए हवाई हमले की नाटकीयता ने कम से कम बाइडेन की उस दयनीय तस्वीर से ध्यान हटा दिया है जिसमें बाइडेन एक कमजोर, अप्रभावी अमरीकी राष्ट्रपति दिखाई देते थे।
US Afghan
साल 2002 के आसपास किसी अज्ञात स्थान पर ओसामा बिन लादेन (दाएं) अपने शीर्ष डिप्टी अयमान अल-जवाहरी की बातों को सुनता हुआ। ये तस्वीर अल-जज़ीरा टीवी द्वारा ली गई थी।

अल क़ायदा के अमीर अयमान अल-जवाहिरी की हत्या के संबंध में अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन की 1 अगस्त की घोषणा के ग्यारह दिन बाद मास्को ने अपनी चुप्पी तोड़ी है। दस दिन पहले, रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा था कि मास्को को 31 जुलाई को जो हुआ उसके "विवरण" को हासिल करना अभी बाकी है।

कल विदेश मंत्रालय की प्रेस ब्रीफिंग के दौरान विषय पर फिर से विचार करते हुए, एक प्रश्न के उत्तर में, उप-प्रवक्ता इवान नेचायेव ने कहा कि: "हम 31 जुलाई को काबुल में हुए हमले की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं करते हैं जिसमें अल-क़ायदा के नेता ए॰जवाहिरी को ड्रोन हमले में मारने की पुष्टि की गई है।”

इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एक बहुत ही सावधानी वाले शब्दों में लिखा गया रूस का बयान है जो कि बाइडेन के बयान की विश्वसनीयता पर केंद्रित है। दरअसल, मीडिया से कोई सवाल लिए बिना व्हाइट हाउस से घोषणा करने के बाद से बाइडेन खुद ही बच निकले।

नेचायेव ने बताया कि "वाशिंगटन ने जनता को इस आतंकवादी के खात्मे का कोई सबूत नहीं दिया है।" और उन्होंने केवल मीडिया की उन रिपोर्टों पर ध्यान दिया जिसमें काबुल में अमेरीकियों ने अपार्टमेंट बिल्डिंग पर हमले की बात कही जो "हक्कानी कबीले" का था।

हालांकि, उत्सुकतावश नेचायेव ने प्रस्ताव दिया कि काबुल में अधिकारियों की आधिकारिक टिप्पणियों के आधार पर कुछ "शुरुआती निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं" अर्थात् "उन्हें ए॰ जवाहिरी के अफ़गान राजधानी में रहने की कोई जानकारी नहीं है।"

रूस ने पहले की तरह अफ़गानिस्तान पर काम करने वाली एक मजबूत खुफिया तंत्र से मिली वास्तविक जानकारी के बाद अपना बयान दिया है। ये तंत्र 1996-2001 तक तालिबान शासन के दौरान काम करती थी जब रूसी दूतावास और वाणिज्य दूतावास बंद हो गए थे।

दरअसल, शहर में तालिबान के अचानक आने के बाद पिछले साल 15 अगस्त को काबुल से अशरफ गनी के देश छोड़ने के जल्दबाजी वाली खबरों को साझा करने में रूसी स्रोत अन्य श्रोतों से काफी आगे थी। (ज़ाहिर है, गनी ने अपने करीबी उप-राष्ट्रपति और बड़े जासूस अमरुल्ला सालेह को भी अंधेरे में रखा था, कि वह अपनी पत्नी और तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हमदुल्ला मोहिब के साथ देश से भाग गए थे।)

इसलिए, यह एक उचित अनुमान हो सकता है कि नेचायेव ने शायद सुरक्षा विशेषज्ञों से मिली "जानकारी" के आधार पर बात की थी। इससे उनकी टिप्पणी बाइडेन की टिप्पणियों की प्रामाणिकता पर संदेह करती है जो वास्तव में आश्चर्यजनक है। यह कहना उतना ही ठीक होगा कि मास्को को परस्पर विरोधी रिपोर्टें मिली हैं! (दिलचस्प बात यह है कि तास ने कल एक विशेष रिपोर्ट में नेचायेव की टिप्पणी पर प्रकाश डाला था।)

हालांकि, नेचायेव ने बिना सबूत के हत्या के इस अजीब मामले को धता बताते हुए कुछ बहुत ही प्रासंगिक सवाल उठाए हैं। उन्होंने टिप्पणी की कि "अमेरिकी वायु सेना की ऐसी आक्रामक कार्रवाई, जिसने अफ़गानिस्तान के संप्रभु क्षेत्र पर आक्रमण किया, कई गंभीर प्रश्न खड़े करती है।" नेचायेव ने दो प्रश्न किए: प्रश्न ये थे कि "काबुल पर हवाई हमले के लिए हवाई क्षेत्र किसने दिया? इस तरह की कार्रवाइयों के दौरान बड़ी संख्या में नागरिक हताहत होने के मामले में कौन जिम्मेदार होगा?”

वे वाकई बड़े सवाल हैं। अफ़गानिस्तान की सीमा छह देशों- ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, चीन और पाकिस्तान मिलती है। यह बात तय है कि ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान और चीन अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उल्लंघन में अमेरीकियों की हत्यारी मुहिम में शामिल नहीं होंगे। जबकि ताजिकिस्तान का हवाई क्षेत्र रूसी नियंत्रण में है। जो पाकिस्तान को एकमात्र संदिग्ध अपराधी के रूप में छोड़ देता है।

शायद, बाइडेन प्रशासन इस डर से "सबूत" देने से इनकार कर रहा है क्योंकि यह रावलपिंडी को ऐसे वक़्त में एक कठिन स्थिति में रख सकता है जब मौजूदा सेना प्रमुख वाशिंगटन के लिए एक उपयोगी रणनीतिक व्यक्ति है? इसका कोई आसान जवाब नहीं हैं। हम केवल इतना जानते हैं कि वर्तमान सेना प्रमुख जनरल बाजवा पाकिस्तान-अमेरिका संबंधों में सभी प्रमुख मुद्दों और सबसे छोटे मुद्दों पर एक व्यावहारिक भूमिका निभाने के लिए जाने जाते हैं।

यहां तक कि बाजवा ने अमेरिकी उप-विदेश मंत्री वेंडी शेरमेन से भी संपर्क किया, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान के लिए वित्तीय बेल-आउट की लंबित किश्त जारी करने के लिए आईएमएफ के साथ हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया है।

गौरतलब है कि नेचायेव ने "उसकी (अमेरिका की) भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को छिपाने के लिए एक वास्तविक खतरे का इस्तेमाल करने के प्रयास" की ओर इशारा किया है। उन्होंने अंत में कहा: "वाशिंगटन, इस घटना को देखते हुए, अंतरराष्ट्रीय कानून और अन्य देशों की राष्ट्रीय संप्रभुता की परवाह किए बिना, अपनी विदेश नीति के लाभ के अनुरूप सख्ती से लागू करना पसंद करता है।"

यहां "विदेश नीति के क्या लाभ" हो सकते हैं? इस प्रश्न को देखने के तीन तरीके हैं। सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण, बाइडेन ने एक निर्णायक नेता के रूप में अपनी छवि को तबाह कर दिया है, खासकर तब जब कई मौकों पर सार्वजनिक तौर पर उनके बेतुके व्यवहार को हाल ही में अमेरिका और विदेशों में व्यापक रूप से देखा गया। दरअसल, बाइडेन की 1 अगस्त की टिप्पणी खूंखार अल-क़ायदा का सिर कलम करने का श्रेय लेने वाली घोषणा आत्म-प्रशंसा से भरी हुई थी। उन्होंने खुद को "तुरंत कार्यवाई" वाले राष्ट्रपति के रूप में पेश किया।

दूसरा, अमेरिका ने 31 जुलाई के इस कृत्य के ज़रिए पहले की एक मिसाल कायम की है– जो अफ़गानिस्तान पर कार्रवाई करने के उसके विशेषाधिकार को दर्शाता है। सीधे शब्दों में कहें तो, विरोधियों से पार पा लिया गया है और अमेरिकी सेना अफ़गानिस्तान से "वापस" हो गई है, अब वाशिंगटन का दावा करता है कि अल-क़ायदा अफ़गानिस्तान में बहुत सक्रिय है।

बेशक, यह तालिबान के लिए एक अपमानजनक झटका है जिसका दो दशक लंबा "प्रतिरोध" अफ़गानिस्तान की संप्रभुता को फिर से हासिल करने के लिए था। इसके अलावा, निकट भविष्य में किसी भी यूएस-तालिबान समझौते का दरवाजा पूरी तरह से बंद हो गया है, अब वाशिंगटन को तालिबान-अल क़ायदा के गठजोड़ पर आरोप लगाने के लिए इससे आगे देखने की जरूरत नहीं है।

तार्किक रूप से, अमेरिका तालिबान के खिलाफ पंजशीरियों के सशस्त्र विद्रोह को समर्थन देने के लिए ब्रिटेन (और फ्रांस) के साथ हाथ मिलाने को भी सही ठहरा सकता है। तालिबान को पाकिस्तानी सेना और बाइडेन प्रशासन की ओर से एक ऐसे समय में एक ऐसे खतरनाक हमले का सामना करना पड़ रहा है, जब इसके सबसे अच्छे समर्थक इमरान खान को भी इस्लामाबाद में उनकी नागरिक सरकार को तथाकथित "शक्तियों" ने व्यवस्थित रूप से बदनाम किया था।"

बेशक, अफ़गानिस्तान को उथल-पुथल में रखना वर्तमान समय में अमेरिका और नाटो के हित में है, ख़ासकर जब रूस, जोकि मध्य एशिया का सुरक्षा प्रदाता है, यूक्रेन युद्ध में व्यस्त है और चीन ताइवान के रियूनिफिकेशन पर विचार कर रहा है।

तीसरा: बाइडेन ने ऐसे समय में हमला किया जब हाउस स्पीकर नैन्सी पॉलिसी के ताइपेई में लैंड करने में केवल 24 घंटे बचे थे। इस कल्पना को हवा दी गई कि वाशिंगटन ने इस आशय का प्रचार किया कि प्रशासन का राष्ट्रपति पर कोई नियंत्रण नहीं है, और विडंबना यह है कि इसने बाइडेन को एक कमांडर-इन-चीफ के रूप में खराब स्थिति में डाल दिया था, जो दिशा बदलने के लिए एक सैन्य विमान का आदेश भी नहीं दे सकता था।

यह कहना पर्याप्त होगा कि, काबुल में 31 जुलाई के हवाई हमले ने कम से कम उस दयनीय तस्वीर से ध्यान हटा दिया, जिसने बाइडेन को एक कमजोर, अप्रभावी राष्ट्रपति के रूप में प्रदर्शित किया था।

कुल मिलाकर, यह वास्तव में यह "एक परफेक्ट मर्डर" बन जाता है, जो एक हत्या पर बनाने वाली माइकल डगलस-ग्वेनेथ पाल्ट्रो अपराध थ्रिलर की अगली कड़ी बनने के योग्य है, जिसने अपराधियों का पता लगाने के कोई भी सुराग नहीं छोड़ा था। वैसे, 1998 की इस मनोरंजक फिल्म के मूल की ब्लू-रे डिस्क रिलीज में दो वैकल्पिक अंत भी थे। जिसमें दर्शक यह चुनने के लिए स्वतंत्र थे कि कौन सा संस्करण अधिक अनुकूल था।

एमके भद्रकुमार पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। इस लेख में व्यक्त विचार निजी है।

अंग्रेजी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

US Commits a Perfect Murder in Kabul

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