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पश्चिम के ख़िलाफ़ यूक्रेन का बदला

यूरोज़ोन के (जर्मनी, फ़्रांस और इटली) तीन प्रमुख शक्ति केंद्र हैं और ब्रिटेन गहरे संकट के दौर में प्रवेश कर रहे हैं।
Russia
रूसी ड्यूमा ने अक्टूबर 3, 2022 को चार यूक्रेनी इलाकों को रूसी फेडरेशन में शामिल करने की पुष्टि कर दी है।

यूक्रेन के चार इलाकों (जिसमें डोनेट्स्क और लुगांस्क पीपुल्स रिपब्लिक, साथ में खेरसॉन और ज़ापोरोज़े शामिल है) के विलय की रूसी ड्यूमा द्वारा पुष्टि करने और इसके लिए संबंधित कानूनों को बनाने और अपनाने से हालात में एक नई गतिशीलता आई है और ज़मीन पर ताकतों के भीतर नया संतुलन बनाने में समय लगेगा।

इस बीच, बाहरी वातावरण भी अभूतपूर्व रूप से बदल रहा है। नॉर्ड स्ट्रीम गैस पाइपलाइनों के साथ की गई तोड़फोड़ के बाद यूरोप में गहराता ऊर्जा संकट एक गंभीर विरोधाभास बन गया है।

इसलिए हालात जटिल हैं और रूस इस पृष्ठभूमि के खिलाफ यूक्रेन के आसपास खार्कोव क्षेत्र दक्षिणी काला सागर इलाके में बड़े पैमाने पर रूसी सेना की तैनाती कर रहा है, और सेना के लंबे काफिले कथित तौर पर रूस से क्रीमिया की ओर बढ़ रहे हैं।

सोमवार को रूसी फेडरेशन में चार इलाकों को मिलाने के लिए ड्यूमा के सर्वसम्मत समर्थन की उम्मीद की जा रही थी, और इससे संबंधित कानून को मंगलवार को फेडरेशन काउंसिल (संसद का ऊपरी सदन) ने विधिवत पुष्टि कर दी है, और राष्ट्रपति पुतिन ने उस कानून पर हस्ताक्षर भी कर दिए हैं। अब उपरोक्त यूक्रेनी इलाके रूस का हिस्सा बन गए हैं।

ड्यूमा ने नए इलाकों की सीमाओं को लेकर लाए गए सरकार के प्रस्तावों को मंजूरी दे दी है। प्रासंगिक संधियाँ यह रेखांकित करती हैं कि किसी विदेशी देश के इलाके से सटी सीमाएँ रूस की नई राज्य सीमा होंगी। सीधे शब्दों में कहें तो उन क्षेत्रों में सोवियत काल की पुरानी सीमाओं को बहाल किया जा रहा है।

नई सीमाओं को तय करने के अपने ही सुरक्षा निहितार्थ हैं। डोनबास में, ऐसे विशाल क्षेत्र हैं जो अभी भी यूक्रेनी सेना के नियंत्रण में हैं।

डोनेट्स्क गणराज्य के लिमन शहर पर केवल तीन दिन पहले ही यूक्रेनी सेना ने कब्जा कर लिया था। खेरसॉन में यूक्रेन की घुसपैठ जारी है। भारी लड़ाई की खबर है। जाहिर है, मास्को के सामने बहुत काम है जिसे उसे पूरा करना है।

ज़ापोरोज़े इलाका (जो आज़ोव सागर के किनारे एक महत्वपूर्ण तटवर्ती इलाका भी है और जिसे रूसी लोग ऐतिहासिक रूप से "नोवोरोसिया" कहते हैं), एक और प्राथमिकता है जिसकी राजधानी ओब्लास्ट अभी तक रूसी नियंत्रण में नहीं आई है।

इन उभरते हालत में, यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने औपचारिक रूप से यूक्रेन की नाटो सदस्यता के लिए एक त्वरित आधार पर आवेदन किया है, लेकिन कुछ घंटों के भीतर, नाटो गठबंधन ने यह समझाते हुए इस पर ठंडा पानी डाल दिया कि किसी भी निर्णय को लेने के लिए सभी 30 सदस्य देशों के समर्थन की जरूरत होगी, संकेत यह है कि, वास्तव में, यूक्रेन में नाटो का कोई सीधा हस्तक्षेप नहीं होगा।

हालांकि, सोमवार को ज़ेलेंस्की के साथ राष्ट्रपति बाइडेन की फोन पर हुई बातचीत के बारे में व्हाइट हाउस ने बयान में वाशिंगटन द्वारा नए 625 मिलियन डॉलर सुरक्षा सहायता पैकेज का उल्लेख किया जिसमें अतिरिक्त हथियार और उपकरण शामिल हैं, जिसमें हिमरस (HIMARS), आर्टिलरी सिस्टम और गोला-बारूद और बख्तरबंद वाहन शामिल हैं। बाइडेन ने "यूक्रेन का समर्थन जारी रखने का संकल्प लिया क्योंकि जब तक उक्रेन रूसी आक्रमण से खुद को  बचाता सकता है तब तक यह समर्थन जारी रहेगा।"

बाद में, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि "हाल के घटनाक्रम ... केवल हमारे संकल्प को मजबूत करते हैं।" उन्होंने कहा, "हम जो क्षमताएं यूक्रेन को दे रहे हैं, उन्हें युद्ध के मैदान में सबसे अधिक अंतर लाने और समय सही होने पर बातचीत की मेज पर यूक्रेन के हाथ को मजबूत करने के लिए सावधानीपूर्वक कैलिब्रेट किया गया है।"

रूसी सैन्य कमान को शायद विशेष सैन्य अभियानों के मापदंडों को रीसेट करना होगा क्योंकि इसकी सेना अब देश की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करेगी। यह क्या रूप लेता है, यह देखा जाना बाकी है। अब तक, वास्तविक रूसी तैनाती 100,000 से कम सैनिकों की रही है।

निश्चित रूप से, पिछले सैन्य अनुभव वाले 300,000 सैनिकों को शामिल करने से रूस को लाभ मिलेगा और यह पूरे के पूरे सैन्य संतुलन को प्रभावित करेगा। रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु ने कहा है कि अन्य 70,000 सैनिकों ने भी स्वेच्छा से काम किया है, जिससे अतिरिक्त बलों की कुल संख्या लगभग 370,000 हो जाएगी।

अब, तैनाती में यह बहुत बड़ी वृद्धि है। इसलिए, यह बात पूरी तरह से मानने वाली है कि यूक्रेनी सेनाओं को "पीसने" का पुराना पैटर्न बदल सकता है और इसका उद्देश्य युद्ध को निर्णायक रूप से समाप्त करना होगा।

यूक्रेन के बाहर (जर्मनी में) एक कमांड सेंटर स्थापित करने के अमेरिका के फैसले से लगता है कि कीव और अन्य जगहों पर रूस वायुशक्ति के ज़रिए बहुत बड़े हमले करेगा और रूसी हमलों में इजाफा होगा। 

अब पीछे हटने की कोई गुंजाइश नहीं है और वह मोड आ रहा है जहां रूस कीव में शासन परिवर्तन पर जोर देगा क्योंकि अब कोई विकल्प नहीं है और पूरी तरह से नए यूक्रेनी नेतृत्व के लिए मार्ग प्रशस्त करने की कोशिश करेगा ताकि एंग्लो-अमेरिकन पकड़ को हिला सके  और इसे समाप्त कर बातचीत का रास्ता निकल सके।  

यूरोप का ध्यान दो अंकों की मुद्रास्फीति और मंदी के साथ आर्थिक संकट की ओर अधिक से बढ़ रहा है। बढ़ता सार्वजनिक असंतोष पहले से ही कई यूरोपीय देशों में विरोध में बदल रहा है। यह संकट तब ओर भी गहराएगा जब सर्दी शुरू होगी।

जाहिर है, लोकप्रिय मूड में बदलाव यूरोपीय सरकारों को अपने घरेलू मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने पर मजबूर कर सकता है। रूस के साथ खुलेआम युद्ध का सबसे प्रबल समर्थक ब्रिटेन है, लेकिन प्रधानमंत्री लिज़ ट्रस अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है और कंजरवेटिवस ने शासन करने के अपने जनादेश को खो दिया है।

जर्मनी में, बुंडेस्टैग में सेंटर-राइट क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन/क्रिश्चियन सोशल यूनियन विपक्षी ब्लॉक ने सरकार से यूक्रेन को जर्मन युद्धक टैंकों और पैदल सेना से लड़ने वाले वाहनों के निर्यात की "तुरंत" अनुमति देने के एक प्रस्ताव को रोक दिया है। पोलिटिको ने रिपोर्ट किया है कि "बुंडेस्टाग में हथियारों के वितरण पर एक वोट से सरकारी एकता में घातक दरारें पैदा होने का जोखिम है और यहां तक कि संसद में (चांसलर ओलाफ) स्कोल्ज़ की हार भी हो सकती थी।"

जर्मन सरकार को पूर्वी यूरोपीय सहयोगियों के बढ़ते दबाव का भी सामना करना पड़ रहा है। वाशिंगटन में विदेश नीति पत्रिका ने पिछले सप्ताह लिखा था, "पूर्वी यूरोप में बर्लिन के नाटो सहयोगियों की नज़र में, विशेष रूप से रूस, जर्मनी की सीमा से लगे देशों, यूरोप के आर्थिक और राजनीतिक शक्ति केंद्र, लगभग कुछ नहीं कर रहे हैं। और इसमें जितनी देर होगी, उतना ही पूर्व में उन सहयोगियों के साथ एक दीर्घकालिक राजनयिक दरार का जोखिम बढ़ेगा।”

इस विषम स्थिति में, नॉर्ड स्ट्रीम गैस पाइपलाइन के साथ हुई तोड़फोड़ यूरोप में ऊर्जा संकट में बदल जाती है और यूरोपीय देशों को "गैर-औद्योगिकीकरण" का खतरा सता सकता है। जर्मनी के लिए, विशेष रूप से, देश का आर्थिक मॉडल पाइपलाइनों के माध्यम से आपूर्ति की जाने वाली सस्ती कीमतों पर रूस से प्रचुर मात्रा में गैस की आपूर्ति की उपलब्धता पर आधारित है। स्पष्ट रूप से, नॉर्ड स्ट्रीम की तोड़फोड़ के बड़े मायने हैं।

यूरोप को जलवायु लक्ष्यों को तबाह किए बिना अल्प और मध्यम अवधि में ऊर्जा सुरक्षा की जरूरत है। इसका मतलब है भू-राजनीतिक संवेदनशीलता बढ़ी है। सोमवार को, रूसी ऊर्जा दिग्गज गज़प्रोम ने यूरोपीय गैस ग्राहकों को प्रस्ताव दिया कि क्षतिग्रस्त नॉर्ड स्ट्रीम नेटवर्क का हिस्सा अभी भी ईंधन पहुंचा सकता है - लेकिन यह केवल नवनिर्मित नॉर्ड स्ट्रीम 2 के माध्यम से होगा। 

अपने टेलीग्राम अकाउंट में गज़प्रोम ने एक बयान में कहा है कि नॉर्ड स्ट्रीम 2 की तीन पाइप लाइनों में से एक अप्रभावित है जिससे गैस की दिग्गज कंपनी पर नुकसान और संभावित लीक की जांच करने का दबाव कम हो गया है। नॉर्ड स्ट्रीम 2 में प्रति वर्ष 55 बिलियन क्यूबिक मीटर की शिपमेंट की क्षमता है, जिसका अर्थ है कि इसकी लाइन बी बाल्टिक सागर के पार जर्मनी को प्रति वर्ष 27.5 बिलियन क्यूबिक मीटर तक गैस पहुंचा सकती है। हालांकि, नॉर्ड स्ट्रीम 2 को यूरोपीयन यूनियन की मंजूरी की जरूरत है, जो कि ब्रुसेल्स और मॉस्को के बीच तनाव को देखते हुए समस्याग्रस्त है।

बर्लिन में सत्ता के गलियारों में अटलांटिकवादियों का उदय और ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के नौकरशाहों के साथ गठजोड़ ने अब तक वाशिंगटन के लिए शानदार काम किया है। लेकिन पैरों के नीचे की जमीन खिसक रही है, जैसा कि इटली की राजनीति में आए नाटकीय मोड़ से पता चलता है। फ्रांस में, राष्ट्रपति मैक्रोन स्थिर हैं, लेकिन कोई भी कानून बनाने के लिए संसदीय बहुमत की कमी है, और वह बढ़ते संकटों से थका सा लगता है। इसका मतलब यह है कि यूरोजोन के तीन पावर सेंटर (जर्मनी, फ्रांस और इटली) और ब्रिटेन गहरे संकट के दौर में प्रवेश कर रहे हैं। यूक्रेन में रूस से लड़ने की उनकी क्षमता या रुचि का स्तर गंभीर रूप से सीमित होता जा रहा है।

कीव में 2014 के तख्तापलट और रूस के साथ पश्चिम के रिश्ते के टूटने से, यूरोप में एक नया भू-राजनीतिक परिदृश्य तैयार हो रहा है। यूरोपीय राजनीतिक समुदाय शिखर सम्मेलन जो आज प्राग कैसल में शुरू हुआ, उसने इस बात को उजागर करने का काम किया कि यह एक भयानक पल है - यूरोपीय एकीकरण का अंतिम हुर्रा। यह 2014 में यूक्रेन में यूरोप द्वारा तख्तापलट का यूरोप के खिलाफ यूक्रेन का बदला होना चाहिए, जिसने तख्तापलट कर इसे रूस के साथ बाँधने वाली गर्भनाल को काट दिया था।

एम.के. भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज़्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

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