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अविवाहित बेटियों का भी गुज़ारा भत्ते पर अधिकार, इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फ़ैसला

घरेलू हिंसा का मतलब सिर्फ ससुराल से प्रताड़ित किया जाना नहीं है पिता के घर में भी प्रताड़ना घरेलू हिंसा ही है।
high court

"अविवाहित बेटियों को उनकी धार्मिक पहचान या उम्र की परवाह किए बिना अपने माता-पिता से घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार है।"

ये टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट की है जो बेटियों के ह़क़ से जुड़े एक हालिया फैसले के दौरान सामने आई। न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक अविवाहित बेटी, चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम, उसे गुजारा भत्ता प्राप्त करने का अधिकार है। फिर चाहे उसकी उम्र कुछ भी हो। अदालत ने अविवाहित बेटियों के पक्ष में महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए पहली पत्नी से जन्मीं तीन बेटियों को गुजारा भत्ता दिए जाने के निर्णय को चुनौती देने वाली एक पिता की ओर से दाखिल याचिका खारिज कर दिया।

बता दें कि इस मामले में बेटियों ने अपने ही पिता के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत शिकायत दर्ज करवाई थी। न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में बेटियों ने आरोप लगाया था कि मां की मौत के बाद पिता, साैतेली मां के साथ मिलकर इन सभी से मारपीट करता है। उनकी पढ़ाई भी रोक दी गई और अब उनका जीना तक मुहाल कर दिया है। इस पर न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने बेटियों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए पिता को निर्देशित किया कि वह तीनों बेटियों को तीन हजार रुपये प्रतिमाह भरण पोषण दे।

पूरा मामला क्या है?

न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद ट्रायल कोर्ट से होता हुआ ये मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष पहुंचा जहां ट्रायल कोर्ट पहले ही भरण-पोषण के अंतरिम आदेश को चुनौती दी गई। हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया कि बेटियां वयस्क और आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं। इसलिए वो भरण-पोषण या गुजारे भत्ते की हकदार नहीं हैं। आसान भाषा में पिता ने अपनी बेटियों को पैसे देने से इनकार करने की बात साफ तौर पर कही। पिता का कहना था कि बेटियां उसके साथ रह रही हैं तो वह उनका सारा खर्च वहन कर ही रहा है। याची ने अपनी आर्थिक तंगी और मुस्लिम विधि का भी हवाला देते हुए निचली अदालत द्वारा दिए गए फैसले को रद्द करने की मांग की थी।

हालांकि हाईकोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के फैसले की पुष्टि की और10जनवरी के अपने एक फैसले में याचिकाकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि बेटियां बालिग होने के कारण भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकतीं। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि घरेलू हिंसा अधिनियम का उद्देश्य महिलाओं को अधिक प्रभावी सुरक्षा प्रदान करना है। अदालत ने कहा कि भरण-पोषण प्राप्त करने का वास्तविक अधिकार अन्य कानूनों से भी मिल सकता है लेकिन इसे पाने के लिए त्वरित और छोटी प्रक्रियाएं घरेलू हिंसा अधिनियम-2005में दी गई हैं।

कोर्ट ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह अधिनियम ऐसी महिलाओं को त्वरित और प्रभावी न्याय प्रदान के उद्देश्य से लाया गया है जो घरेलू संबंधों में किसी भी प्रकार के शारीरिक, मानसिक, यौन या आर्थिक शोषण का शिकार हुई हो। इसलिए बेटियां गुजारे भत्ते की हकदार हैं।

अविवाहित बेटियों को पहले से मिले अधिकार लेकिन जागरूकता कम

इस जरूरी फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए वकील आर्शी जैन कहती हैं कि बहुत पहले से हमारे संविधान में अविवाहित बेटियों को ह़क़ मिला हुआ है। हालांकि इसके बारे में जागरूकता थोड़ी कम है लेकिन इसकी वैधता पर कोई सवाल नहीं है। घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 12 के तहत भरण-पोषण देने का ये मामला अदालत के सामने आया था। जिसके फैसले पर ज्यादा बहस की जरूरत ही नहीं थी क्योंकि यहां विवाहित या अविवाहित, हिंदू-मुसलमान या किसी अन्य के लिए कोई भेद नहीं है। ये कानून सब पर बराबर लागू होता है और इसलिए अलग-अलग अदालतों ने एक ही फैसला दिया है जो बेटियों के पक्ष में है।

गौरतलब है कि भरण-पोषण और गुजारे भत्ते को अक्सर विवाहित महिलाओं के परिपेक्ष्य में ही देखा जाता है। ज्यादात घरेलू हिंसा के मामले भी विवाहित महिलाओं द्वारा ही दायर किए जाते हैं। लेकिन घरेलू हिंसा का मतलब सिर्फ ससुराल से प्रताड़ित किया जाना नहीं है अपने पिता के घर में अगर किसी को परेशान किया जा रहा है तो भी वो इसकी शिकायत कर सकती है और इसे घरेलू हिंसा ही माना जाएगा। घरेलू हिंसा का साफ मतलब घर में होने वाली हिंसा से है फिर वो ससुराल हो या पिता का घर।

महिलाओं को संरक्षण देने के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम बना

ध्यान रहे कि घरेलू हिंसा से महिलाओं को संरक्षण देने के लिए 'घरेलू हिंसा अधिनियम2005' लाया गया जिसमें घरेलू हिंसा की परिभाषा को और विस्तृत किया गया है। इस कानून के तहत घरेलू हिंसा के दायरे में कई प्रकार की हिंसा और दुर्व्यवहार आते हैं। किसी भी घरेलू संबंध या नातेदारी में किसी प्रकार का व्यवहार, आचरण या बर्ताव जिससे आपके स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन या किसी अंग को कोई नुकसान पहुंचता है या मानसिक या शारीरिक हानि होती है तो ये घरेलू हिंसा है।

इस कानून के तहत गुजारे भत्ते का भी प्रावधान है। इसके तहत पत्नी, बच्चा या माता-पिता जैसे आश्रित तब मेंटेनेंस का दावा कर सकते हैं जब उनके पास आजीविका के अन्य साधन उपलब्ध नहीं हैं। इस कानून के अंतर्गत पीड़ित महिलाएं थाना, पुलिस चौकी, महिला आयोग, मानवाधिकार आयोग में शिकायत कर सकती हैं। इसके साथ ही कुछ हेल्पलाइन नंबर भी है। 1090, 112और वन स्टॉप सेंटर पर जा सकती हैं।

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