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उत्तराखंड: अपने ही घर-दुकान जाने के लिए प्राइवेट कंपनी की परमिशन?

आरोप है कि जॉर्ज एवरेस्ट को जाने वाले रास्ते पर एक निजी कंपनी का क़ब्ज़ा हो गया है और वह जॉर्ज एवरेस्ट के स्थानीय निवासियों और व्यापारियों से भी आने-जाने का शुल्क वसूलने लगी है।
George Everest

(जॉर्ज एवरेस्ट में की गई तार-बाड़ से स्थानीय लोगों को हो रही मुश्किल)

उत्तराखंड के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक मसूरी के ठीक ऊपर जॉर्ज एवरेस्ट क्षेत्र में ज़़मीन की ऐसी जंग शुरू हो गई है जिसके बाद इस पहाड़ी राज्य का संभवतः सबसे बड़ा सवाल यही है कि विकास आख़िर किसके लिए और किस कीमत पर?

दरअसल आरोप है कि जॉर्ज एवरेस्ट को जाने वाले रास्ते पर एक निजी कंपनी का क़ब्ज़ा हो गया है और वह जॉर्ज एवरेस्ट के स्थानीय निवासियों, व्यापारियों से भी आने-जाने का शुल्क वसूलने लगी है। बुधवार को उत्तराखंड क्रांति दल और स्थानीय लोगों के हंगामे के बाद फ़िलहाल कंपनी वहां रहने, व्यापार, काम करने वालों को 'सशर्त अनुमति' देने को तैयार तो हो गई है लेकिन स्थानीय लोगों का यही सवाल है कि क्या सार्वजनिक रास्ते पर एक निजी कंपनी का अधिकार रहेगा और क्या उसकी अनुमति के बिना अब लोग वहां कदम भी न रख सकेंगे?

जॉर्ज एवरेस्ट

सर जॉर्ज एवरेस्ट ब्रिटिश सर्वेयर एवं जियोग्राफर थे जिन्होंने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी की सही ऊंचाई और लोकेशन का पता लगाया था और बाद में उन्हीं के नाम पर इस चोटी को माउंट एवरेस्ट कहा जाने लगा। जॉर्ज एवरेस्ट ने ही ब्रिटिश शासनकाल में बतौर लेफ्टिनेंट कर्नल रॉयल ग्रेट टिग्नोमेंट्रिकल सर्वे आफ इंडिया की नींव रखी थी जो आज देश की मुख्य मानचित्रण और सर्वेक्षण एजेंसी है - भारतीय सर्वेक्षण विभाग या सर्वे आफ इंडिया।

जॉर्ज एवरेस्ट ने अपने जीवन का एक लंबा हिस्सा पहाड़ों की रानी कहे जाने वाले मसूरी में बिताया था। यहीं हाथीपांव के पार्क एस्टेट क्षेत्र में उन्होंने 1832 में टिग्नोमेंट्रिकल सर्वे आफ इंडिया की स्थापना की थी। यहां उनका घर और प्रयोगशाला थे जिसे अब सर जॉर्ज एवरेस्ट हाउस एंड लेबोरेटरी या पार्क हाउस नाम से जाना जाता है।

172 एकड़ में फैले इस इलाके का उत्तराखंड सरकार ने 2019 में जीर्णोद्धार करना शुरू किया था, एशियन डेवलप बैंक के सहयोग से इसकी लागत 23.71 करोड़ रुपये बताई जाती है। यही वह क्षेत्र है जिसके जीर्णोद्धार के बाद उसके रख-रखाव और विकास के लिए उसे निजी हाथों में सौंप दिया गया। लेकिन यहां तक पहुंचने वाले रास्ते को लेकर फ़िलहाल विवाद खड़ा हो गया है.

रास्ते का झगड़ा...

जॉर्ज एवरेस्ट के घर और लेबोरेटरी तक, जहां अब एक संग्रहालय भी बना दिया गया है, पहुंचने वाले रास्ते की शुरुआत पर पर्यटन विभाग ने साल 2019 में तब एक बैरियर लगाया था, जब इसका जीर्णोद्धार शुरू किया था। अब इस पर्यटन स्थल को पीपीपी मोड पर मैसर्स रजस एयरोस्पोर्ट्स एंड एडवेंचर्स प्राइवेट लिमटेड को 30 (15+15) साल के लिए दे दिया गया है, जो इसकी मरम्मत, देख-रेख करने और शुल्क वसूलने का अधिकारी है।

आरोप है कि पिछले कुछ दिनों से रजस के कर्मचारियों ने यहां आने वाले लोगों से शुल्क वसूलना शुरू कर दिया। इसका विरोध हुआ। स्थानीय लोगों और व्यापारियों का कहना है कि यह आम रास्ता है और इस पर किसी का क़ब्ज़ा नहीं हो सकता।

लेकिन कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि पर्यटन विभाग ने जॉर्ज एवरेस्ट संग्रहालय के साथ यह रास्ता भी लीज़ पर दिया है। चूंकि उन्होंने इसके लिए पैसे चुकाए हैं, इसलिए वह यहां शुल्क वसूलने के अधिकारी हैं।

बीते रविवार को मसूरी व्यापार मंडल ने स्थानीय लोगों के साथ इस बैरियर पर प्रदर्शन किया और उसके बाद प्रदेश के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज से मिलकर एक मांगपत्र सौंपा।

इसके बाद बुधवार को उत्तराखंड क्रांति का एक प्रतिनिधिमंडल भी पहुंचा और उन्होंने जबरन बैरियर खुलवाकर एक स्थानीय निवासी की गोल्फ़ कार्ट को उस रास्ते पर चलवाया। इसके बाद स्थानीय एसडीएम की मौजूदगी में एक बैठक हुई जिसमें स्थानीय निवासियों, कंपनी के अधिकारियों, पर्यटन विभाग और यूकेडी नेताओं ने हिस्सा लिया। इस बैठक में जॉर्ज एवरेस्ट क्षेत्र में रहने वाले और काम करने वालों को आने-जाने की अनुमति देने पर रजस कंपनी तैयार हो गई।

लोगों ने मसूरी के निवासियों को भी आने-जाने की अनुमति मांगी जिस पर बाद में विचार करने का आश्वासन दिया गया। लेकिन क्या इसके साथ ही यह मामला सुलझ गया... विभिन्न पक्ष के लोगों से बात करके तो लगता है- अभी नहीं।

रास्ता किसका है?

मोहित शाह उस शाह परिवार से हैं जो कभी इस ज़मीन का मालिक हुआ करता था जिस पर झगड़ा हो रहा है। वह बताते हैं कि साल 1848 में उनके परिवार ने 945 एकड़ ज़मीन अंग्रेज़ों से ख़रीदी थी। वह इस परिवार की चौथी पीढ़ी हैं। धीरे-धीरे और टुकड़ों-टुकड़ों में यह ज़़मीन बेची जाती रही लेकिन यह रास्ता कभी नहीं बेचा गया और न ही इसका शाह परिवार ने कभी मुआवज़ा लिया।

मोहित कहते हैं कि शुरू से तय था कि यह सड़क आम सड़क की तरह इस्तेमाल होगी और जब भी ज़़मीन का कोई टुकड़ा बेचा गया तो उसकी रजिस्ट्री में भी इस बात को दर्ज किया गया है।

अभय शर्मा जॉर्ज एवरेस्ट क्षेत्र में एक कॉफ़ी हाउस चलाते हैं। उन्हें और उनके कर्मचारियों को भी बैरियर के पार आने के लिए निर्धारित शुल्क देने को कहा गया था। हालांकि बाद में रजस कंपनी इस बात पर तैयार हो गई कि वह अभय और उनके कर्मचारियों को नि:शुल्क आने देगी और इसके लिए अभय शर्मा को अपने कर्मचारियों के आई-कार्ड बनवाने होंगे और कंपनी के पास रजिस्ट्रेशन करवाना होगा।

अभय इसके लिए तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि रास्ता उनका है, रजस कंपनी वाले तो किराएदार हैं...वह उनसे इजाज़़त क्यों लें? और कब तक, किस-किस चीज़ के लिए इजाज़त मांगेगे।

अभय ने अपनी ज़मीन की रजिस्ट्री भी न्यूज़क्लिक से शेयर की जिसमें साफ़ लिखा हुआ है कि यह पार्क हाउस रोड हमेशा आम सड़क के रूप में इस्तेमाल होगी और कभी-भी इसका भू-उपयोग बदला नहीं जा सकता।

लेकिन रजस का कहना है कि उन्हें बैरियर तक की ज़मीन पर अधिकार मिला है। रजस एयरोस्पोर्ट्स एंड एडवेंचर्स के जीएम केशव कुमार ने न्यूज़क्लिक से कहा कि उन्हें पर्यटन विभाग ने बैरियर तक की ज़मीन के रख-रखाव, विकास और शुल्क वसूलने का अधिकार दिया है।

यह पूछने पर कि क्या वह स्थानीय लोगों की ज़मीन की रजिस्ट्री की तरह इस अनुबंध का कोई दस्तावेज़ शेयर कर सकते हैं, केशव कहते हैं कि यह अभी उनके पास नहीं है लेकिन उन्होंने इसे देखा है और उनकी बात पर यकीन किया जाना चाहिए।

पर्यटन विभाग के लिए मामला बड़ा नहीं

अब चूंकि दोनों पक्ष आमने-सामने खड़े हैं और परस्पर विरोधी दावे कर रहे हैं इसलिए गेंद पर्यटन विभाग के पाले में आ जाती है। पर्यटन विभाग के अनुसार यह इतना बड़ा मामला नहीं है जितना बनाया जा रहा है।

ज़िला पर्यटन अधिकारी सुशील नौटियाल कहते हैं कि यह जान-बूझकर बात का बतंगड़ बनाने वाली बात है। एक कैफे चलाने वाले (अभय शर्मा) और जॉर्ज एवरेस्ट क्षेत्र में रहने वाले दो-एक परिवारों के रास्ते की बात थी तो बुधवार को हुई बैठक में कंपनी उन्हें रास्ता देने पर सहमत हो गई है, बस मामला यह है कि उनकी पहचान होनी चाहिए।

नौटियाल दावा करते हैं कि ज़मीन का कोई विवाद नहीं है, सारी नाप-जोख है और सरकार की ज़मीन है। जहां तक मसूरी के निवासियों को बेरोक-टोक आने-जाने की बात है, उस पर कुछ सोच-विचार के बाद बात की जाएगी।

हालांकि उन्होंने हमारे इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि क्या ज़मीन की रजिस्ट्री में दिए गए अधिकार अब बेमानी हो गए हैं और क्या पर्यटन विभाग ने रजस को बैरियर तक का अधिकार दे दिया है जबकि जॉर्ज एवरेस्ट संग्रहालय उससे एक-डेढ़ किलोमीटर ऊपर है?

हमने ज़िला पर्यटन अधिकारी को इन सवालों को लेकर मैसेज भेजा है क्योंकि फ़ोन पर उनसे बात नहीं हो पाई, जब भी उनका जवाब मिलेगा हम उसे भी शामिल करेंगे।

क्रोनी कैपिटिलिज़्म?

इस मामले में प्रशासन की भूमिका पर कई तरह से सवाल उठाए जा रहे है। बुधवार को एसडीएम की अध्यक्षता में हुई बैठक में शामिल एक स्थानीय निवासी ने न्यूज़क्लिक के लिए कहा कि "हमने ज़मीन के सौ साल पुराने काग़ज़ उनके सामने रख दिए लेकिन कंपनी अपने दावों के पक्ष में कोई दस्तावेज़ पेश नहीं कर पाई। इस पर जब भी कार्रवाई करने की बात कही जा रही थी तो अधिकारी बार-बार कोर्ट जाने को कह रहे थे।"

वह कहते हैं कि "जब तक कोर्ट से फ़ैसला आएगाा तब तक तो यहां कुछ नहीं बचेगा। ये लोग (प्रशासन और कंपनी) यही चाहते हैं।"

उत्तराखंड में ही पर्यटन और एडवेंचर स्पोर्ट्स के क्षेत्र में काम करने वाले एक स्थानीय उद्यमी ने कहा कि "रजस को यह कॉन्ट्रेक्ट देने में भी 'खेल' हुआ है और इसके लिए एक बार टेंडर कैंसिल कर दूसरी बार निकाला गया था।" यह उद्यमी नाम नहीं बताना चाहते क्योंकि वह पर्यटन के क्षेत्र में काम कर रहे हैं और नहीं चाहते कि सवाल उठाकर वह विभाग के निशाने पर आ जाएं।

नाम न छापने की शर्त पर वह कहते हैं कि "कोविड से पहले पर्यटन विभाग ने एक टेंडर निकाला था जिसमें यह प्रस्ताव मांगे गए थे कि जॉर्ज एवरेस्ट में पर्यटन गतिविधियां बढ़ाने के लिए क्या-क्या किया जा सकता है? इसके बाद बहुत से लोगों की तरह उन्होंने भी इसमें अपना प्रस्ताव दिया था। लेकिन यह टेंडर निरस्त कर दिया गया और फिर जो टेंडर निकाला गया उसमें शर्तें ऐसी थीं, जैसे कि हैलिकॉप्टर होना चाहिए, जिसे सिर्फ़ रजस पूरा कर रही थी। सिर्फ़ इतना नहीं दूसरा टेंडर कब निकला यह किसी को पता भी नहीं चला। यह काम इतना गुप-चुप हुआ कि जब टेंडर अलॉट हो गया, पता भी तब चला।"

अभय शर्मा भी सवाल पूछते हैं कि "क्या सारा का सारा क्षेत्र, 172 एकड़, एक कंपनी को दे देना सही था? सिर्फ़ गढ़वाल में ही एडवेंचर स्पोर्ट्स के क्षेत्र में काम करने वाली छोटी-बड़ी 500 कंपनियां (फ़र्म्स) हैं, क्या उन्हें मौका नहीं दिया जा सकता था?”

"तो यहां ऐसा क्यों नहीं हो सकता था कि एक ही कंपनी को सब-कुछ सौंपने के बजाय कई को मौका दिया जाता। एक हैली सेवा चलाती, एक एडवेंचर गेम्स करवाती, एक ट्रैकिंग, एक फ़ूड वैन लगाती, एक कैरावैन लगाती और भी बहुत कुछ किया जा सकता था।"

"स्थानीय दुकानदार अपने ही घरों में कैद"

गुरुवार शाम को यूकेडी के युवा नेता मोहित डिमरी ने अपने फ़ेसबुक अकाउंट से एक वीडियो पोस्ट किया है। न्यूज़क्लिक इस वीडियो की सत्यता की पुष्टि बिलकुल नहीं करता। मोहित डिमरी दावा करते हैं कि यह वीडियो गुरुवार का है और जॉर्ज एवरेस्ट में परेशान स्थानीय दुकानदारों का है।

इसमें तार-बाड़ के बाहर एक बुजुर्ग कहते नज़र आ रहे हैं, "पांच लोगों का परिवार है और 25 तारीख से एक चाय भी नहीं बिकी है...कैसे गुज़ारा होगा... इससे अच्छा तो हमें मार देते।"

यह वीडियो पोस्ट करते हुए मोहित डिमरी लिखते हैं, "राज्य हमारा और हमारे ही लोगों को कैद किया जा रहा है। एक कंपनी द्वारा जॉर्ज एवरेस्ट मसूरी में स्थानीय लोगों की दुकानें तारबाड़ लगाकर ढक दी गई हैं।"

आख़िर में, तमाम स्थानीय लोगों का एक ही सवाल है, वो ये कि विकास के नाम पर ये क्या हो रहा है?

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