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ख़बरों के आगे-पीछे: नीतीश का पैंतरा और नए मॉडल की भाजपा सरकारें

अपने साप्ताहिक कॉलम ख़बरों के आगे-पीछे में वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन चर्चा कर रहे हैं कि सांसदों के निलंबन से मोदी सरकार का और क्या-क्या फ़ायदे हुए साथ ही नीतीश के पैंतरे और कांग्रेस की दुविधा पर भी बात की।
Nitish and modi

सांसदों के निलंबन से सरकार को फ़ायदे ही फ़ायदे

संसद सत्र के दौरान विपक्षी सांसदों को निलंबित करना सरकार के लिए बड़े फायदे का सौदा रहता है। एक तात्कालिक फायदा तो यह होता है कि सरकार आसानी से सारे विधेयक पारित करा लेती है। लोकसभा में तो वैसे भी सरकार के पास बहुत बड़ा बहुमत है लेकिन राज्यसभा में उसकी संख्या बहुमत से कम है। सो, सासंद निलंबित हो जाते हैं तो बहस में समय बचता है और कोई संशोधन भी पेश नहीं करता है और न ही मत विभाजन की मांग होती है। विधेयक ध्वनिमत से दो मिनट में पारित हो जाता है।

ये सारे फायदे तो सबको दिखते हैं लेकिन कुछ और फायदे भी हैं, जो दिखते नहीं हैं। उनमें सबसे बड़ा फायदा यह है कि सरकार सवालों के जवाब देने से बच जाती है। शीतकालीन सत्र में संसद के दोनों सदनों के 146 सदस्य निलंबित किए गए। इन 146 सांसदों ने कुल 357 सवाल पूछे थे। सरकार को इन सवालों के जवाब नहीं देने पड़े क्योंकि सदस्यों को निलंबित करने के बाद स्पीकर और सभापति के पास यह अधिकार है कि वे उनके द्वारा पूछे गए सवालों को सूची से हटा दे। यह बहुत बड़ा फायदा है। विपक्षी सांसद ऐसे-ऐसे सवाल पूछते हैं, जिनका जवाब देने से सरकार की पोल खुलती है। कई बातों की सच्चाई सामने आती है। सांसद इस तरह के सवाल पूछते हैं कि देश पर कितना कर्ज बढ़ गया, अरबपतियों का कितना कर्ज माफ हो गया, कॉरपोरेट टैक्स घटाने से सरकार को कितना नुकसान हुआ, टुकड़े टुकड़े गैंग किसको कहते हैं आदि। इनके जवाब से पता चलता है कि सत्तारूढ़ दल की ओर से जो कुछ प्रचारित किया जाता है, असलियत बिल्कुल उससे अलग है। इसलिए अगर सवाल नहीं पूछे जाएं तो बहुत फायदा हो जाता है।

नए मॉडल की भाजपा सरकारें

तीन राज्यों में विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद भाजपा अभी तक एक भी राज्य में सरकार के गठन प्रक्रिया पूरी नहीं कर सकी है। चुनाव नतीजों के 25 दिन बीत जाने के बाद भी कहीं पूरी मंत्रिपरिषद का गठन नहीं हुआ है तो कहीं मंत्रियों की शपथ हो गई लेकिन उनके बीच विभागों का बंटवारा नहीं हुआ है। पहले तो भाजपा ने मुख्यमंत्री चुनने में ही 10 दिन का समय लगा दिया। उसके बाद तीनों मुख्यमंत्रियों की शपथ हुई और उनके साथ दो-दो उप मुख्यमंत्रियों ने शपथ ली तो बाकी मंत्रियों की नियुक्ति अटक गई। मुख्यमंत्रियों के शपथ लेने के एक हफ्ते से ज्यादा समय बाद छत्तीसगढ़ और फिर मध्य प्रदेश में मंत्रियों की नियुक्ति हुई। लेकिन मध्य प्रदेश में अभी तक विभागों का बंटवारा नहीं हुआ है। राजस्थान में भी मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्रियों की शपथ के 15 दिन बाद 30 दिसंबर को बाकी मंत्रियों शपथ ली। इससे पहले भी जब महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के साथ भाजपा ने सरकार बनाई तो एक महीने तक दो ही लोगों का मंत्रिमंडल काम करता रहा। बाद में भी चुनिंदा मंत्री बनाए गए। फिर एक साल के बाद जब एनसीपी का अजित पवार गुट शामिल हुआ तो उनके आठ लोगों को मंत्री बनाया गया लेकिन दस दिन तक विभागों का बंटवारा अटका रहा। पहले शपथ के तुरंत बाद ही विभागों का बंटवारा हो जाता था और मंत्री अपने विभागों में कामकाज संभाल लेते थे। लेकिन भाजपा ने अब नया मॉडल बनाया है, जिसमें हफ्तों- महीनों तक मंत्रिपरिषद का गठन नहीं होता है और विभाग नहीं बंटते हैं।

नीतीश की पैंतरेबाजी से कांग्रेस चिंतित

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक पैंतरेबाजी से सबसे ज्यादा चिंतित कांग्रेस है। यही वजह है कि राहुल गांधी ने नीतीश को फोन करके उनके मन की थाह लेने की कोशिश की थी। हालांकि तब उन्होंने राहुल से कहा था कि सब ठीक है। लेकिन बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के नेता इस बात से नाराज है कि जब नीतीश ने ही समूचे विपक्ष को एकजुट किया तो उनको अभी तक विपक्षी गठबंधन का संयोजक क्यों नहीं बनाया गया? नीतीश अपने को विपक्षी गठबंधन का स्वाभाविक नेता मान रहे थे, लेकिन गठबंधन की चार बैठक के बाद भी उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं मिली। उलटे पिछली बैठक में ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री पद के लिए मल्लिकार्जुन खरगे के नाम की घोषणा कर दी, जिसका अरविंद केजरीवाल ने समर्थन किया। उसके बाद से नीतीश भाजपा के प्रति खुल कर प्रेम दिखाने लगे। बताया जा रहा है कि चौथी बैठक में कांग्रेस की ओर से नीतीश को संयोजक बनाने का प्रस्ताव किया जाना था। लेकिन ममता ने उस दिन अपना दांव चल दिया। अब कांग्रेस को चिंता है कि अगर नीतीश को संयोजक बनाया और उसके बाद उन्होंने पाला बदल लिया तब तो विपक्षी गठबंधन पूरी तरह से पंक्चर हो जाएगा। कांग्रेस यह भी मानती है कि बिहार में भाजपा को टक्कर देने के लिए नीतीश का साथ होना बहुत जरूरी है। उनके बगैर बिहार में भाजपा से नहीं लड़ा जा सकेगा। इसीलिए कांग्रेस और दूसरे विपक्षी नेता नीतीश को लेकर दुविधा में हैं।

फिर सर्जिकल स्ट्राइक होने के आसार

जम्मू-कश्मीर में सेना के काफिले पर हुए आतंकवादी हमले के बाद एक बार फिर सर्जिकल स्ट्राइक की संभावना बढ़ गई है। हालांकि पिछले कुछ महीनों में लगातार मुठभेड़ हुई है और सेना के अधिकारी व जवान शहीद हुए हैं लेकिन पिछले हफ्ते गुरुवार को राजौरी में हुई मुठभेड़ उनसे अलग है। आतंकवादियों ने घात लगा कर सेना के काफिले पर हमला किया। हमले के तुरंत बाद सेना के जवानों ने मोर्चा संभाला लेकिन आमने-सामने की फायरिंग शुरू होने के साथ ही सेना के छह जवानों को गोली लग चुकी थी, जिनमें से तीन की तुरंत मौत हो गई और दो ने बाद में दम तोड़ा। इससे पहले भी एक मुठभेड़ में सेना और पुलिस के पांच जवान शहीद हुए थे। ताजा हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक की संभावना के कई संकेत मिले हैं। पहला संकेत जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व महानिदेशक एसपी वैद्य ने दिया। उन्होंने कहा कि इस सुनियोजित हमले को पाकिस्तान ने अंजाम दिया है। आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ को सीधे पाकिस्तान के साथ जोड़ना मामूली बात नहीं है। हालांकि लश्कर ए तैयबा से जुड़े एक संगठन ने हमले की जिम्मेदारी ली है लेकिन अब पाकिस्तान का नाम इससे जुड़ चुका है।

दूसरा संकेत यह है कि इस घटना से तीन दिन पहले सीमा सुरक्षा बल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सीमा के उस पार ढाई सौ से ज्यादा आतंकवादी भारत की सीमा में घुसपैठ करने के लिए बैठे हैं। गौरतलब है कि सर्दियों के मौसम में ही सीमा पार से सबसे ज्यादा घुसपैठ की कोशिश होती है। अगर उस पार 250 आतंकवादी बैठे हैं और सेना के पास खुफिया सूचना है तो कार्रवाई संभावना बनती ही है।

महाराष्ट्र में भाजपा अकेले लड़ने की तैयारी में!

लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा की जो रणनीतिक बैठक हुई है उसमें महाराष्ट्र को लेकर लंबी चर्चा हुई है। उत्तर प्रदेश के बाद भाजपा के लिए सबसे अहम राज्य महाराष्ट्र है, जहां लोकसभा की 48 सीटें हैं। पिछली बार भाजपा और शिव सेना गठबंधन को 41 सीटें मिली थीं। इस बार चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में एनडीए को 16 से 18 सीट मिलने का अनुमान जताया गया है। वह भी तब है, जब भाजपा के साथ शिव सेना और एनसीपी दोनों का एक-एक धड़ा जुड़ा हुआ है। बताया जा रहा है कि भाजपा को एकनाथ शिंदे और अजित पवार से ज्यादा वोट की उम्मीद नहीं है। इन दोनों के साथ सत्ता के लोभ में विधायक, सांसद तो आ गए हैं, लेकिन मतदाता उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ ही रह गया। इसलिए भाजपा लोकसभा का चुनाव अकेले लड़ने की योजना पर भी काम कर रही है। भाजपा को लग रहा है कि 22 सीटें इन दो पार्टियों को देने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि वे जीतने की स्थिति में नहीं हैं। इसकी बजाय अगर भाजपा अकेले 47 या 48 सीटें लड़ती है तो वह बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। उसके अकेले लड़ने पर प्रदेश में मुकाबला त्रिकोणात्मक होगा जो कि उसके लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि एकनाथ शिंदे शिव सेना के उद्धव ठाकरे गुट के वोट काटेंगे और अजित पवार अपने चाचा शरद पवार की पार्टी को नुकसान पहुंचाएंगे। पिछली बार भाजपा ने 23 सीटें जीती थीं। उसके सामने इतनी सीटें बचाने की बड़ी चुनौती है।

मोदी को चरण सिंह क्यों याद आए?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री और महान किसान नेता चौधरी चरण सिंह की जयंती के मौके पर उन्हें याद करते हुए ट्वीट किया तो कई लोगों ने ध्यान दिलाया कि प्रधानमंत्री ने मई में चौधरी साहब की पुण्यतिथि पर तो उनको श्रद्धांजलि नहीं दी थी। दरअसल यह मोदी का अपनी सुविधा के मुताबिक दिवंगत नेताओं को याद करने या भूल जाने का मामला है। अभी जाट बिरादरी को लेकर चल रहे विवाद के बीच चौधरी चऱण सिंह की जयंती आई तो मोदी ने भी उन्हें याद किया और दूसरी पार्टियों ने भी। गौरतलब है कि पिछले दिनों उप राष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने अपनी मिमिक्री किए जाने को जाट समाज के अपमान से जोड़ा और भाजपा ने पूरे देश में इसे मुद्दा बनाया। उसके बाद ओलंपिक पदक जीतने वाली साक्षी मलिक ने महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोपी भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह का विरोध करते हुए कुश्ती छोड़ने का ऐलान किया तो यह चर्चा शुरू हुई कि क्या इससे जाट समाज और स्त्री जाति का अपमान नहीं हो रहा है? साक्षी मलिक के साथ बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट भी मौजूद थे। भाजपा विरोधी पार्टियों ने इसे जाट समाज के अपमान का मुद्दा बनाया। इस विवाद के बीच ही चौधरी चरण सिंह की जयंती मनाई गई। सभी पार्टियों ने इस मौके का जाटों के साथ-साथ व्यापक किसान समाज तक पहुंच बनाने के लिए इस्तेमाल किया।

गहलोत का महत्व बरकरार

राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से राहुल गांधी को कई शिकायतें हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया गया था लेकिन मुख्यमंत्री बने रहने के लिए वे अध्यक्ष नहीं बने। उनकी जगह नया नेता चुनने के लिए बतौर पर्यवेक्षक भेजे गए मल्लिकार्जुन खरगे और अजय माकन के साथ जैसा बरताव हुआ, जैसे विधायक दल की सामानांतर बैठक हुई और आलाकमान की ऑथोरिटी को चुनौती दी गई, उससे भी राहुल नाराज थे। सचिन पायलट के साथ विवाद की वजह से भी वे नाराज थे। चुनाव से पहले लग रहा था कि वे प्रचार के लिए भी नही जाएंगे। लेकिन ऐसा लग रहा है कि चुनाव नतीजों ने उनकी नाराजगी खत्म कर दी है। गहलोत ने जिस अंदाज मे पार्टी को चुनाव लड़ाया वह कमाल का था। प्रबंधन की तमाम कमियों के बावजूद गहलोत ने भाजपा को बराबरी की टक्कर दी। इसीलिए कांग्रेस को उम्मीद है कि लोकसभा चुनाव में गहलोत कांग्रेस को अच्छी खासी सीटें दिला सकते हैं। सो, उनकी भूमिका कम नहीं की गई है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नेतृत्व बदल दिया गया लेकिन राजस्थान में बदलाव नहीं हुआ है। उलटे सचिन पायलट को महासचिव बना कर राज्य की राजनीति से दूर छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया है। जाहिर है कि वे प्रदेश अध्यक्ष या विधायक दल के नेता नहीं बनेंगे। वहां अभी गहलोत के हिसाब से ही राजनीति होगी। इस बीच कांग्रेस ने पांच लोगों की नेशनल एलायंस कमेटी बनाई तो उसमें गहलोत को भी रखा। इस कमेटी की एक बैठक हो गई है और दूसरी बैठक से पहले गहलोत मुंबई गए, जहां उनकी मुलाकात मिलिंद देवड़ा से हुई। गौरतलब है कि मल्लिकार्जुन खरगे ने देवड़ा को पार्टी का संयुक्त कोषाध्यक्ष बनाया है। गहलोत का उनसे मुंबई जाकर मिलना बहुत अहम है। निश्चित रूप से संसाधनों के बंदोबस्त में भी गहलोत की भूमिका रहने वाली है।

बृजभूषण शरण का क्या करेगी भाजपा?

केंद्रीय खेल मंत्रालय ने भारतीय कुश्ती महासंघ को निलंबित कर दिया है। हालांकि उसे भंग नहीं किया गया है और न ही चुनाव निरस्त किया गया है। फिर भी यह बड़ा फैसला है। भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के बड़े बोल थे, जो उन्होंने अपने करीबी संजय सिंह के चुनाव जीतने पर बोले थे। उन्होने कहा था कि दबदबा था, दबदबा रहेगा। लेकिन जाट समुदाय की नाराजगी से बचने के लिए भाजपा ने दो दिन में दबदबा खत्म कर दिया। लेकिन अब सवाल है कि अगले साल के लोकसभा चुनाव मे भाजपा उनका क्या करेगी? क्या भाजपा फिर से कैसरगंज लोकसभा सीट पर बृजभूषण को टिकट देगी? भाजपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी को अब राजपूत और जाट दोनों में से किसी को नाराज नहीं करना है। इसी वजह से कुश्ती महासंघ को निलंबित कर दिया गया है ताकि जाट समाज संतुष्ट हो जाए। इसके अलावा बृजभूषण पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी, क्योंकि गोंडा और आसपास में पांच से छह लोकसभा की सीटें ऐसी हैं, जिन पर बृजभूषण शरण सिंह का खासा असर है। वैसे उत्तर प्रदेश में राजपूत वोट के लिए भाजपा को उनकी जरुरत नहीं है। राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ की वजह से राजपूत वोट भाजपा के साथ है। लेकिन बृजभूषण की जमीनी पकड़ इलाके में बहुत ज्यादा है और राजपूतों के अलावा दूसरी जातियों का भी समर्थन बृजभूषण के साथ है। हालांकि उनको फिर से टिकट देने में मुश्किल यह है कि महिला पहलवान उनके खिलाफ प्रचार मे पहुंच सकती हैं। पार्टी को इसका कुछ समाधान निकालना होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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