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चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति, बर्ख़ास्तगी पर क़ानून क्या कहता है

गोयल का इस्तीफ़ा, 2022 में जल्दबाज़ी में ईसी के रूप में की गई उनकी नियुक्ति के जैसा ही आश्चर्यजनक है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने भी सवाल उठाया था।
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फोटो साभार : पीटीआई

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अरुण गोयल का इस्तीफा उतना ही आश्चर्यजनक है जितना 2022 में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के रूप में उनके इस्तीफे के कुछ घंटों बाद ही उनकी नियुक्ति के बारे में पैदा हुआ था। इसका कानूनी इतिहास क्या रहा है इस पर नज़र डालते हैं?

लोकसभा चुनाव से पहले, भारत के राष्ट्रपति ने चुनाव आयुक्त (ईसी) अरुण गोयल के इस्तीफ़े को स्वीकार कर लिया है। गोयल के इस्तीफे के बाद भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) में मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) राजीव कुमार अकेले बचे हैं और यह एक सदस्यीय आयोग बन कर रह गया है।

गोयल का इस्तीफा, 2022 में ईसी के रूप में जल्दबाजी में की गई उनकी नियुक्ति के समान ही आश्चर्यजनक है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने भी सवाल उठाया था।

एनडीटीवी के मुताबिक, गोयल और मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के बीच एक फाइल को लेकर मतभेद पैदा हो गया था।

भारत सरकार के पूर्व सचिव, गोयल को 19 नवंबर, 2022 को उनकी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के 24 घंटों के भीतर जल्दबाज़ी में ईसी नियुक्त कर दिया था, जबकि सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ नियुक्ति की प्रक्रिया निर्धारित करने के लिए एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो याचिका एक तटस्थ स्वतंत्र समिति द्वारा नियुक्ति की वकालत करती थी।  

गोयल का इस्तीफा 2022 में ईसी के रूप में जल्दबाजी में की गई उनकी नियुक्ति के समान ही आश्चर्यजनक है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने भी सवाल उठाया था।

दिलचस्प बात यह है कि गोयल द्वारा भरी जाने वाली रिक्ति 15 मई, 2022 को खाली हुई थी। गोयल को 31 दिसंबर, 2022 को भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत्त होना था, लेकिन उन्होंने 18 नवंबर, 2022 को व्यक्तिगत आधार पर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का अनुरोध किया था जिसे उसी दिन मंजूरी दे दी गई थी।

बाद में, सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने गोयल की नियुक्ति को रद्द करने की मांग करने वाली एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा दायर एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया था।

व्यवहार में, आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त शामिल होते हैं। गोयल के इस्तीफे से पहले भी, चुनाव आयुक्त का अन्य पद खाली पड़ा था क्योंकि पिछले महीने अनूप चंद्र पांडे सेवानिवृत्त हो गए थे।  

सीईसी और ईसी की नियुक्ति कैसे की जाती है?

संविधान के अनुच्छेद 324(2) के अनुसार, भारत के चुनाव आयोग में एक सीईसी और उतनी संख्या में अन्य ईसी शामिल होंगे, इस बारे में, भारत के राष्ट्रपति समय-समय पर तय कर सकते हैं और उनके माध्यम से एक सीईसी और अन्य ईसी की नियुक्ति होगी जिसे संसद द्वारा उस संबंध में बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के तहत नियुक्त किया जाएगा, और अंततः भारत के राष्ट्रपति द्वारा तय किया जाएगा।  

अभी तक, सीईसी और ईसी की नियुक्ति की प्रक्रिया को निर्धारित करने वाला कोई कानून मौजूद नहीं था, और इस प्रकार सीईसी और ईसी की नियुक्ति करना यूनियन कार्यकारिणी यानी भारत सरकार का एकमात्र विशेषाधिकार था।

मूल रूप से, आयोग में केवल एक सीईसी होता था। 16 अक्टूबर, 1989 को भारत के राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 324 के खंड 2 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ईसी की संख्या दो निर्धारित की थी।

बाद में, 16 अक्टूबर, 1989 को वी.एस. सेइगेल और एस.एस. धनोआ को ईसी नियुक्त किया गया। आजादी के बाद यह पहली बार था कि ईसी की नियुक्ति की गई, जिससे ईसीआई एक बहु-सदस्यीय आयोग बन गया था।

1 जनवरी, 1990 को, भारत के राष्ट्रपति ने दो अधिसूचनाएं जारी कीं - एक, तत्काल प्रभाव से, 7 अक्टूबर, 1989 की अधिसूचना को रद्द करते हुए, ईसी के दो पद सृजित करने वाली और दूसरी, 16 अक्टूबर, 1989 की अधिसूचना को तत्काल प्रभाव से रद्द करते हुए, जिसके द्वारा एस.एस. धनोआ और वी.एस. सीगेल की नियुक्ति की गई थी। 

अनुच्छेद 324(2) यह सब भारत के राष्ट्रपति पर छोड़ देता है कि वह समय-समय पर कितनी संख्या में ईसी निर्धारित और नियुक्त कर सकते हैं। पद सृजित करने की शक्ति की स्वतंत्रता है। इसी प्रकार उन्हें कम करने या समाप्त करने की शक्ति भी स्वतंत्रता प्राप्त है।

धनोआ ने एस.एस. धनोआ बनाम भारत संघ मामले में इन दोनों अधिसूचनाओं को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी लेकिन असफल साबित हुई। सुप्रीम कोर्ट ने धनाओ की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि पदों का सृजन और उन्मूलन भारत की कार्यपालिका और (वर्तमान मामले में) राष्ट्रपति का विशेषाधिकार था।

अदालत ने आगे कहा कि अनुच्छेद 324(2) भारत के राष्ट्रपति को यह शक्ति देता है कि वह इतनी संख्या में ईसी तय और नियुक्त करें, जितनी वह समय-समय पर निर्धारित कर सकते हैं। पद सृजित करने की शक्ति की स्वतंत्रता है। इसी प्रकार उन्हें कम करने या समाप्त करने की शक्ति भी स्वतंत्रता प्राप्त है।

संसद ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्त नामक एक अधिनियम (सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1991 पारित किया जिसमें सीईसी और ईसी की सेवा की शर्तों को विनियमित करने के लिए 1 अक्टूबर 1993 को प्रकाशित एक अध्यादेश के द्वारा 1991 अधिनियम में संशोधन किया गया।

1 अक्टूबर, 1993 को राष्ट्रपति ने फिर से एक अधिसूचना जारी कर अगले आदेश तक सीईसी के अलावा अन्य ईसी की संख्या दो तय कर दी। दो ईसी, एम.एस. गिल और जी.वी.जी. कृष्णमूर्ति को 1 अक्टूबर 1993 से नियुक्त किया गया था।

संशोधन और नियुक्तियों को टी.एन. शेषन और अन्य द्वारा चुनौती दी गई, जो उस वक़्त तत्कालीन सीईसी थे। सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने टी.एन. शेषन, भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त बनाम भारत संघ की चुनौती को खारिज कर दिया।

बेंच ने पाया कि बहुलता की अवधारणा अनुच्छेद 324, खंड (2) के सामने स्पष्ट रूप से बड़ी थी, जिसमें स्पष्ट रूप से एक बहु-सदस्यीय चुनाव आयोग की परिकल्पना की गई है जिसमें एक सीईसी और एक या अधिक ईसी शामिल होंगे। पीठ ने पूछा, यदि बहु-सदस्यीय चुनाव आयोग पर विचार नहीं किया गया था, तो सीईसी को इसके अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के लिए खंड (3) में प्रावधान करने की जरूरत कहां पड़ी थी।

इसलिए बेंच ने कहा कि, इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है कि ईसीआई एक बहु-सदस्यीय निकाय होना चाहिए। 

भारत में 1993 से बहु-सदस्यीय चुनाव आयोग कार्यरत हैं, जिनके पास बहुमत से निर्णय लेने की शक्ति है।

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

पिछले साल 2 मार्च को एक संविधान पीठ जिसमें जस्टिस के.एम. जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सी.टी. रविकुमार शामिल थे, ने माना था कि सीईसी और ईसी की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई), प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता की एक समिति की सिफारिश पर होनी चाहिए। 

मूल रूप से, आयोग में केवल एक सीईसी होता था। 16 अक्टूबर, 1989 को भारत के राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 324 के खंड 2 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ईसी की संख्या दो निर्धारित की थी।

बेंच का मानना था कि ईसीआई को कार्यपालिका के सभी प्रकार की अधीनता और हस्तक्षेप से दूर रहने का कठिन और अविश्वसनीय कार्य करना पड़ता था।

संसद ने अदालत के फैसले को रद्द कर दिया

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के महीनों बाद, संसद ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम, 2023 को लागू कर दिया। 

इस अधिनियम के ज़रिए सीजेआई को सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए बनने वाली चयन समिति से हटा दिया। नए कानून के तहत सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए बनने वाली चयन समिति अब कार्यकारिणी को दो-तिहाई मतदान बहुमत प्रदान करती है।

कानून में यह भी प्रावधान है कि एक सीईसी और अन्य ईसी को उन व्यक्तियों में से नियुक्त किया जाएगा जो भारत सरकार के सचिव के पद के बराबर वाले पद पर आसीन हैं या रह चुके हैं और जो प्रबंधन और आचरण के ज्ञान और अनुभव के साथ ईमानदार व्यक्ति हैं। 

नए कानून के तहत, कानून और न्याय मंत्री की अध्यक्षता वाली खोज समिति और जिसमें भारत सरकार के सचिव के पद से नीचे के दो अन्य सदस्य शामिल होंगे, नियुक्ति के लिए चयन समिति के विचार हेतु पांच व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करेगी जिसमें से सीईसी और अन्य ईसी नियुक्त होंगे।

इसके बाद, एक पैनल जिसमें प्रधानमंत्री शामिल होंगे; लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री होंगे, जो राष्ट्रपति द्वारा की जाने वाली नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश करेंगे।

अधिनियम में यह भी प्रावधान है कि सीईसी और ईसी अपने पद ग्रहण करने की तारीख से छह साल की अवधि के लिए या पैंसठ वर्ष की आयु पूरी होने तक, जो भी पहले हो, पद पर बने रहेंगे।

यह भी स्पष्ट करता है कि जब किसी ईसी को सीईसी के रूप में नियुक्त किया जाता है, तो उसका कार्यकाल कुल मिलाकर छह वर्ष से अधिक नहीं होगा। सीईसी और ईसी पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होंगे।

सीईसी और ईसी को हटाने के लिए अलग-अलग मानदंड

संविधान के अनुच्छेद 324(5) के तहत, एक सीईसी को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के समान और समान आधारों के अलावा, कार्यालय से नहीं हटाया जाएगा और सीईसी की सेवा की शर्तों में उसके नुकसान के लिए उनकी नियुक्ति के बाद बदलाव नहीं किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच का मानना था कि ईसीआई को कार्यपालिका की सभी प्रकार की अधीनता और हस्तक्षेप से अलग रहने का कठिन और अविश्वसनीय कार्य करना होगा।

हालांकि, जब ईसी को हटाने की बात आती है, तो संविधान यह प्रावधान करता है कि सीईसी की सिफारिश के अलावा उन्हें पद से नहीं हटाया जाएगा।

2023 के अधिनियम में संसद ने मार्च 2023 के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बावजूद इसे संहिताबद्ध किया था कि यह वांछनीय था कि ईसी को हटाने का आधार सीईसी के समान होगा, यानी सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के सामान होगा, भारत के संविधान के अनुच्छेद 324(5) के दूसरे प्रावधान के तहत "मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश" पर ही ऐसा किया जा सकेगा। 

(पारस नाथ सिंह भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड हैं।)

सौजन्य: द लीफ़लेट 

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