Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

महामारी के दौरान बुज़ुर्गों से बदसलूकी के मामले बढ़े

कोविड-19 की रिपोर्टें वरिष्ठ जनों में मुख्यत: संक्रमण और उनकी मृत्यु दर पर ही केंद्रित हैं। 
महामारी के दौरान बुज़ुर्गों से बदसलूकी के मामले बढ़े

कोविड-19 की रिपोर्टों में समाज के बड़े-बुजुर्गों में महामारी के संक्रमण और इसके चलते होने वाली उनकी मृत्यु की दरों पर गौर किया गया है। हालांकि महामारी ने वरिष्ठ जनों की आबादी पर सर्वाधिक विनाशकारी असर डाला है, उनके इस गलत विश्वास को बढ़ावा दिया है कि उनकी खराब दशा का कोई उपचार नहीं है, इसी विषय पर प्रस्तुत है दिव्या श्री का आलेख। 

कोविड-19 महामारी से सबसे ज्यादा बुजुर्ग पीड़ित हुए हैं

विस्तारित तालाबंदी ने देश-समाज के बड़े-बुजुर्गों की सेहत पर बुरा असर डाला है। इस दौरान डॉक्टर्स तक उनकी पहुंच आसान न होने से उनके स्वास्थ्य की नियमित होने वाली जांच में खलल पडी है। इसके अलावा, उनमें चिंता, भूख की कमी, शारीरिक एवं सामाजिक जीवन में क्रियाशीलता की कमी, अनिद्रा और अन्य कारकों ने भी उनकी सेहत पर बड़ा खराब असर डाला है। 

बड़ी संख्या में बुजुर्गों को अपने परिवार के सदस्यों की तरफ से ही शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार देखने को मिला है। बुजुर्गों का अनादर करना, उनसे गाली-गलौज करना, उनके साथ मारपीट करना, उन्हें परिवार में अलग-थलग कर देना, उनकी उपेक्षा करना, उनके इलाज में कोताही करना, उनके संचित धन पर कब्जा कर लेना और बलात उनसे काम कराना—ये सामान्य दुर्व्यवहार हैं। 

बुजुर्गों के अधिकार के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन हेल्पएज इंडिया (HelpAge India) द्वारा देश के छह प्रमुख नगरों में कराए गए सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि इस साल (2021 में) 62 फीसदी प्रतिभागियों ने अपने प्रति खराब व्यवहार की शिकायतें की हैं और ओल्ड एज होम में रहने वाले लगभग 36 फीसदी बुजुर्गो ने माना है कि समाज में उनके प्रति दुर्व्यवहार एक चलन के रूप में मौजूद है। एजवेल इंडिया द्वारा कराए गए एक अध्ययन में पाया कि सर्वे में शामिल 58 फीसदी बुजुर्ग अपने परिवार द्वारा ही प्रताड़ित किए गए थे। 

वरिष्ठ हेल्पलाइन (नम्बर 1090) पर, जिसे बेंगलुरु पुलिस एवं नाइटिंग्लस मेडिकल ट्रस्ट द्वारा संचालित किया जाता है, अप्रैल 2020 से मई 2021 तक 2,087 फोन कॉल्स मिले थे, जिनमें 43 फीसदी कॉल्स दुर्व्यवहार, प्रताड़ना और शोषण की शिकायतों को लेकर किए गए थे।

हेल्पएज इंडिया के सर्वें में यह खुलासा हुआ है कि महामारी के दौरान बुजुर्गों से खराब व्यवहार के मामले में 71.8 फीसदी की वृद्धि हुई है। 

हेल्पएज इंडिया के सीईओ रोहित प्रसाद ने कहा : “रिपोर्ट की सबसे ह्रदयविदारक बात यह है कि कोविड-19 से संक्रमित होने वाले वर्गों में बुजुर्गों को जबकि सबसे अधिक अरक्षित और संदिग्ध माना गया है, पर सारा ध्यान उनके शारीरिक स्वास्थ्य पर ही दिया गया है। महामारी के दौरान उनके मानसिक एवं अन्य स्वास्थ्यों की देखभाल तथा चिकित्सा के पक्षों पर बहुत ही कम ध्यान दिया गया है। इस रिपोर्ट ने बुजुर्गों में भय, चिंता और अकेलेपन तथा दूसरों पर बढ़ती आश्रितता के कारण उनके प्रति किए जाने वाले दुर्व्यवहार की भयावहता को सामने लाया है, जिन्हें वे रोजाना के स्तर पर झेलते रहे हैं...उन्हें महामारी के दौरान अपने प्रियजनों का विछोह भी सहन करना पड़ा है और अनेक स्तरों पर जद्दोजहद करनी पड़ रही है।”

रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि-पहले की तुलना में आज-देश में बुजुर्गों की देखभाल की एक सुदृढ़ और उत्तरदायी प्रणाली बनाए जाने की तत्काल आवश्यकता है। प्रसाद कहते हैं,“कोविड-19 का पहले कोई दृष्टांत नहीं था, जिससे कि हम उससे निबटने के लिए अपने को तैयार रख पाते। लेकिन अब हम इसकी तैयारी कर सकते हैं।” इसके मद्देनजर, बुजुर्गों की देखभाल को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, उन पर ध्यान दिया जाना चाहिए और इसके लिए संसाधन जुटाए जाने चाहिए। प्रसाद ने कहा कि जैसा कि परिवार की देखभाल करने वाले दरपेश चुनौतियों के बावजूद अच्छा काम करते हैं, सरकार एवं समुदाय, तथा निजी क्षेत्र को अवश्य ही इन देखभाल करनेवालों के समर्थन में उनके साथ मिलकर काम करना चाहिए। बुजुर्ग के प्रति मित्रवत-नीतियां एवं कार्यक्रम बनाए जाने चाहिए।

बेंगलुरु में, 74 एवं 64 वर्षीय एक बुजुर्ग दंपति के साथ गाली-गलौज की गई, जब उन्होंने नींद में खलल पड़ने के लिए अपने पड़ोसी को शोर-शराबा करने से रोका। इससे भयभीत दंपति को कई रातें जाग कर काटनी पड़ी थीं। 

इसी तरह, पंजाब में एक स्तब्धकारी मामला उजागर हुआ, जहां 80 वर्षीया महिन्दर कौर को राजनीतिक बेटे एवं सिविल सर्वेंट बेटी द्वारा त्यागे जाने के बाद गड्ढे से निकाला गया था, जिनके सिर में कीड़े लग गए थे।

भिवानी में, 55 वर्षीया पार्वती देवी अपने बेटे द्वारा मारे-पीटे जाने के बाद जान देने के इरादे से कुंए में कूद गई थीं। 

महामारी से पहले भी बेहतर नहीं थे हालात 

भारत में, महामारी के प्रकोप के पहले भी बड़े-बुजुर्ग लगातार पीड़ित होते रहे हैं, अब उनकी बढ़ती उम्र में कोरोना ने उनमें मानसिक आघात को बढ़ा दिया है।

हेल्पएज इंडिया द्वारा 2018 में कराए गए एक अन्य सर्वेक्षण में शामिल 5,014 प्रतिभागियों में से, 25 फीसदी बुजुर्ग किसी न रूप में प्रताड़ित किए जाते रहे हैं जबकि 82 फीसदी बुजुर्ग ऐसी घटनाओं को या तो अपने “घर-परिवार के मामले को गोपनीय बनाए रखने” के लिए जाहिर नहीं किया या वे यह नहीं जानते थे कि इन “मामलों से कैसे निबटा जाए”। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) प्रतिवर्ष 15 जून को ‘विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस’ मनाता है, उसने बुजुर्गों से दुर्व्यवहार को परिभाषित किया है। इसके मुताबिक बुजुर्गों से एक बार या या बार-बार किए जाने वाले बुरे सलूक और उस पर उचित कार्रवाई की कमी दुर्व्यवहार है। यह किसी भी रिश्ते के भीतर होता है, जहां परस्पर विश्वास की उम्मीद होती है और जो किसी बड़े-बुजुर्ग के लिए नुकसान या परेशानी का कारण बनती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पूरे विश्व में प्रति छह बुजुर्गों में से एक बुजुर्ग दुर्व्यवहार के शिकार होते हैं। 

दुर्व्यवहार ने दिया आघात 

हेल्पएज इंडिया के 2021 के सर्वे में यह खुलासा हुआ कि कोरोना महामारी के दौरान बुजुर्ग-पिता से बुरा सलूक करने वाले बेटे ही अव्वल (43.8 फीसदी) थे और उनकी बहुएं (27.8) दूसरे नम्बर पर थीं। आश्चर्यजनक रूप से 14.2 फीसदी प्रतिभागी बुजुर्ग पिताओं ने अपनी बेटियों से ही स्वयं के प्रताड़ित होने की शिकायतें कीं। प्रतिभागियों में 60 फीसदी बुजुर्ग भावनात्मक एवं वित्तीय दुर्व्यवहारों को झेलने एवं 58.6 फीसदी ने अपने साथ मारपीट किए जाने की शिकायतें कीं। 

हेल्पएज इंडिया के मिशन के प्रमुख इमित्याज अहमद कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान वरिष्ठ सहायता लाइन पर 1,000 शिकायतें मिलने की बात कहते हैं। इनमें बुजुर्गो ने अपने प्रति गाली-गलौज, हिंसा एवं विवाद किए जाने की शिकायतें की, जो पहली लहर के बनिस्बत 18 फीसदी अधिक हैं। अहमद कहते हैं,“हेल्प लाइन को दूसरी लहर के दौरान कुल 20,000 फोन कॉल्स आए, जो पहली लहर की तुलना में 36 फीसदी ज्यादा हैं।... इसमें सलाह-मशविरे के लिए किए जाने वाले कॉल्स में 111 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और 54 फीसदी कॉल्स धन की सहायता देने के लिए की गई। कोविड-19 एक प्राथमिक दुर्व्यवहार का कारक हो गया है, जो बुजुर्गों को सबसे खराब तरीके से पीड़ित कर रहा है।”

एक मनोवैज्ञानिक विद्या श्री कहती हैं,“बुजुर्ग आबादी की 18 फीसदी दुर्व्यवहार के मामले में सलाह लेने से हिचकती है।” उन्होंने उदाहरण दिया जहां उनके एक मरीज का सोचना था, “वह अपने बच्चों के बारे में शिकायत कर रहे थे और इस बारे में खुलना नहीं चाहते थे।”.

तालाबंदी ने परिवारों को मनोवैज्ञानिक, वित्तीय एवं शारीरिक तौर पर कगार पर धकेल दिया है।विद्या कहती हैं,“महामारी के दौरान मैंने जिन बुजुर्गों एवं युवाओं को परामर्श दिया है, उन्हें पैसे के मामले में दूसरों पर अपनी निर्भरता के चलते ही दुर्व्यवहार का शिकार होना पड़ा है।” 

दुर्व्यवहार की जड़ में है संपत्ति विवाद

हेल्पएज इंडिया ने 2015 के अपने सर्वें में पाया कि 53 प्रतिभागियों को उनकी “संपत्ति एवं विरासत को लेकर उत्पन्न विवादों” के चलते प्रताड़ित किया गया है। वह स्थिति नहीं बदली है। बेंगुलुरु के कनकपुरा में अरियके ओल्ड एज होम के संस्थापक मलिकार्जुन कहते हैं,“जहां कहीं भी संपत्ति या बैंक बैलेंस का मामला जुड़ा है, बच्चे अपने माता-पिता के प्रति तभी तक सभ्य बने रहते हैं, जब तक कि उनकी इच्छा होती है। बाद में वे अपने माता-पिता को निकाल बाहर करते हैं।”

अरियके में रहने वाले 78 वर्षीय जय नारायण कहते हैं, “जैसे ही मैंने अपनी संपत्ति बेटे के नांम की, उसके तुरंत बाद ही उसने मुझे घर से निकाल दिया। तब से मैं बुजुर्ग की देखभाल करने वाले इस केंद्र में रह रहा हूं। सबसे ज्यादा दिल दहला देने वाली बात है कि मेरे बेटे ने उसके बाद मुझे एक भी फोन नहीं किया है।”

मौत की वजह खराब सलूक 

नाइटेंगिल्स मेडिकल ट्रस्ट के साथ काम करने वाले एक पुलिस अधिकारी का अनुमान है कि इस महामारी के दौरान 24,000 से भी ज्यादा बुजुर्ग लोग शरीर-बल न रहने के कारण प्रताड़ना और दुर्व्यवहार के शिकार हुए हैं। 

एल्डर हेल्पलाइन में काम करने वाले एक वरिष्ठ कॉउंसिलर (परामर्शदाता) ने कहा कि उन्होंने 30 से अधिक ऐसे मामले देखे हैं, जिनमें गंभीर रूप से हमले में बुजुर्गों की जानें गई हैं।

ऐसे ही एक मामला 2005 में सामने आया था, जिसमें एक हीरा व्यापारी बालकृष्ण दलाल के पिता ने मुंबई के केम्प्स कॉर्नर में आठ मंजिली से कूद कर जान दे थी। उन्होंने अपने पीछे छोड़े गए एक नोट में अपने बेटे और उनकी पत्नी पर प्रताड़ित करने एवं दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाया था। 

वजूद बचाने के लिए जद्दोजहद करते ओल्ड एज होम 

महामारी ने ओल्ड एज होम पर भी प्रतिकूल असर डाला है। महामारी के पहले अरियक में रोज ही आंगतुकों की आमददरफ्त बनी रहती थी। अच्छे व नेक नागरिक बुजुर्गों से मिलने यहां आते और उनसे बातचीत करते थे। दुर्भाग्य से, महामारी के कारण आंगुतकों का यह दौरा, उनसे मिलने वाले अनुदान एवं वस्तुओं की निशुल्क आपूर्ति पूरी तरह ठप पड़ गई है। 

मलिकार्जुन कहते हैं, “हमें कोष की कमी हो गई है और कर्ज पर निर्भर होना पड़ा है। इसके पहले, हमने सैकड़ों बुजुर्गों को आश्रय दिया था, लेकिन अभी उन्हें अन्य धर्मार्थ संस्थाओं में रखना पड़ा है। अब हमने केवल 10 लोगों को ही अपने केंद्र में रख सके हैं।”

हेल्पएज इंडिया के 2021 के सर्वें के मुताबिक ओल्ड एज होम में रहने वाले 34.1 फीसदी बुजुर्ग मानते हैं कि महामारी के दौरान उनके परिवार का व्यवहार उनके प्रति बदल गया है। अरियके में रहने वाली 79 वर्षीया लक्ष्मी कहती हैं, “मैं तो इस समुदाय का हिस्सा बन गई थीं। पर यहां के अधिकतर लोगों के कहीं चले जाने से मैं फिर अपने को अकेली महसूस करने लगी हूं। मुझे अपने बेटे की बहुत याद आती है। कोई तो पास होना चाहिए जिससे मैं बातचीत करूं।”

बेंगलुरु में, बीईएमएल लेआउट के समीप स्थित आनंद सेवा सदन अनेक वरिष्ठ नागरिकों का निवास है। यहां भी स्थितियां भिन्न नहीं हैं। सेवा सदन के संस्थापक मंजुनाथ राव कहते हैं, “यहां रहने वाले कई अभिभावकों की नौकरियां छूट गई हैं और वे यहां के अपने खर्चे के भुगतान में लाचार हो गए हैं। नतीजतन, इस संस्था को चलाना बहुत कठिन हो गया है।” 

भुगतान पर आधारित बुजुर्गों की देखभाल संस्था वृक्ष दीप की संचालिका शुबा कहती हैं, लॉकडाउन में यातायात की कमी से स्टाफ नहीं आए। “हमें इमरजेंसी में मरीजों को अस्पताल पहुंचाने में बहुत मशक्त करनी पड़ी थी। हमारे पास के एक बेहद छोटा-सा क्रिटिकल केयर यूनिट है, जिसे बाहरी डॉक्टर की मदद से चलाते हैं। लेकिन महामारी के दौरान बुजुर्गो की रोजाना जांच का व्यय हमें वहन करना पड़ा था। इसके अलावा, यहां रहने वाले बुजुर्गों को अपने गार्जियनों से न मिल सकने के कारण मानसिक स्वास्थ्य की चिंताएं करनी पड़ी थी।” 

वरिष्ठ नागरिक को मौलिक अधिकारों से वंचित किया गया या वे इनसे अनजान हैं 

केंद्र सरकार द्वारा माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल एवं कल्याण अधिनियम, 2007 पारित किया गया था, इसका मकसद बुजुर्ग आबादी की उनके परिवार की देखभाल पर जोर देने के जरिए उनका पर्याप्त देखभाल और कल्याण सुनिश्चित करना था। यह अधिनियम बुजुर्गों, खास कर उनके लिए जिन्हें भोजन, घर, वस्त्र या मेडिकल चिकित्सा सुविधाएं मयस्सर नहीं होती हैं उनकी शिकायतों का निवारण करने के लिए राज्यों को प्रत्येक जिले के अनुमंडल (सब-डिविजन) में एक प्राधिकरण के गठन का निर्देश देता है।

यह कानून खुद से कमाई न कर सकने या भरण-पोषण न कर सकने वाले उपेक्षित माता-पिता एवं बुजुर्ग व्यक्तियों को प्राधिकरण तक पहुंच बनाता है। अपराध दंड संहिता, 1973 की धारा 125 (1) (डी) के अंतर्गत ऐसा प्रावधान है कि ऐसे माता-पिता जो खुद से नहीं उपार्जित नहीं कर पाते, अपने बच्चों पर अपने भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं। 

इस कानून का 2019 में विस्तार किया गया था और अब इसके तहत राज्य सरकारों को बुजुर्ग आबादी की देखभाल सुनिश्चित करने के लिए एक मेटिनेंस अफसर नियुक्त करना लाजिमी है। मेटिनेंस की परिभाषा में माता-पिता की सुरक्षा मुहैया करने के अलावा भोजन, कपड़ा, घर और स्वास्थ्य देखभाल की जिम्मेदारी शामिल की गई है।

यह अधिनियम राज्यों को निर्देश देता है कि वे एक हेल्पलाइन नम्बर निर्धारित करें, जहां वरिष्ठ नागरिकों अपनी समस्याओं के बारे में प्रशासन को अवगत करा सकें। एजवेल संस्था की एक रिपोर्ट में पाया गया है कि कुल 5,000 बुजुर्ग उत्तरदाताओं में से 2,176 लोगों ने दावा किया कि वे अपने कानूनी अधिकारों से अनजान हैं। 

2010 में, 11वीं पंचवर्षीय योजना के तहत 60 साल से ऊपर के लोगों को सस्ती एवं सुलभ गुणात्मक स्वास्थ्य सेवाएं मुहैय्या कराने के लिए बुजुर्गों की स्वास्थ्य-देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीएचसीई) बनाया गया। इन सेवाओं में बुजुर्गों की अच्छी सेहत को बढ़ावा देने वाली, बीमारी से रोकथाम संबंधित सेवाएं, नैदानिक सेवाएं देना एवं  वृद्धावस्थाजनित समस्याओं का चिकित्सीय प्रबंधन करना, पुनर्वास सेवाएं उपलब्ध कराना एवं घर-परिवार आधारित देखभाल सुविधाएं देना शामिल हैं। 

महालेखाकार एवं महानियंत्रक के अनुसार, तमिलनाडु से यह अपेक्षा की गई थी कि वह वृद्धावस्थाजनित समस्याओं के निदान के लिए पांच जिलों में एनपीएचसीई की इकाइयां स्थापित करे,  लेकिन सरकार ऐसा करने में विफल हो गई। सरकारी रिकॉर्ड से मुताबिक असम, मध्य प्रदेश, और राजस्थान भी केंद्र द्वारा 2010 और 2015 में आवंटित कोष का उपयोग करने में विफल रह गए। 

क्या आप बुजुर्गों के प्रति होने वाले दुर्व्यवहार को देखते हैं?

आप उनकी ऐसे मदद कर सकते हैं: 

लिखित शिकायत के जरिए पुलिस को इससे अवगत कराएं। अगर कोई एडमिसेबल मामला हो, यानी बुजुर्ग पर हमला होने या उनके घायल होने की स्थिति में प्राथमिकी दर्ज कराएं और सरकारी अस्पताल से उनके घायल होने का प्रमाणपत्र लें। 

दुर्व्यवहार की शिकायत दर्ज करने के लिए नगरों बनी हेल्पलाइन तक पहुंचें और समन्वयकों से मदद लें। 

वरिष्ठ अधिवक्ता शिव कुमार के अनुसार, “अगर एक वरिष्ठ नागरिक अपने परिवार के किसी सदस्य से होने वाले दुर्व्यवहार की शिकायत करते हैं तो पुलिसकर्मी प्राथमिकी दर्ज नहीं करते, लेकिन अनौपचारिक छानबीन करते हैं। वे आरोपित को बुलाते हैं और अच्छे माहौल में मामले को सुलझाने का प्रयास करते हैं। कानूनी प्रक्रिया तब शुरू होती है, जब पुलिस को प्रथमदृष्टया मामला लगता है।”

(दिव्या श्री सिम्बोसिस इंस्टिट्यूट ऑफ मीडिया एवं कम्युनिकेशन, पुणे में पढ़ती हैं और लीफ्लेट में इंटर्न हैं। व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)

सौजन्य: दि लीफ्लेट 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Abuse of Senior Citizens Worsened During Pandemic

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest