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आधार मामलाः अदालत में केंद्र सरकार के फ़र्ज़ी दावे की खुली पोल

'आधार' के तहत बचत का दावा करने के लिए 2015 के दस्तावेज़ को ग़लत तरीक़े से विश्व बैंक ने उद्धृत कियाI
आधार
Newsclick Image by Nitesh Kumar

आधार डाटा के दुरूपयोग को लेकर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और समाज सेवकों की चिंता बरक़रार है। मामला अदालत में है।30 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में पांचवें दिन की सुनवाई हुई। इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने अदालत को डाटा एकत्रीकरण की प्रक्रिया के बारे में बताया और कहा कि किस तरह आधार के तहत यह अनिवार्य है। केंद्र ने अदालत को हलफ़नामा सौंपा जिसमें कई दावे किए गए। सुनवाई के छठे दिन यानी 1 फरवरी को याचिकाकर्ता ने आरटीआई से मिली जानकारी के ज़रिए सरकार के हर एक दावे को बाक़ायदा ख़ारिज कर दिया।

क़ानूनी मामलों से संबंधित ख़बर प्रकाशित करने वाली वेबसाइट लाइव लॉ पर उपलब्ध लिखित प्रस्तुतियों के अनुसार आधार परियोजनाओं को न्यायसंगत बनाने के लिए इस मामले में उत्तरदाताओं के पास दो मुख्य कारण थें। पहला कारण यह बताया गया कि लाखों भारतीयों की कोई स्वीकार्य पहचान नहीं थी और आधार इसका निवारण करेगा। दूसरा कारण यह था कि डी-डुप्लीकेशन प्रोसेस कल्याण कार्यक्रमों में लीकेज को ख़त्म करने में भारी वित्तीय बचत सुनिश्चित करता है।

पहले तर्क का जवाब देते हुए याचिकाकर्ताओं के वकील ने वैध पहचान के बिना 'लाखों' लोगों के दावे को ख़ारिज करने के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़े प्रस्तुत किए। पहला मुद्दा यह था कि पहचान के लिए दस्तावेजों के बिना लोगों के लिए आधार प्राप्त करने के लिए वर्तमान में मौजूदा प्रणाली एक 'परिचयकर्ता प्रणाली' (introducer system)है। परिचयकर्ता प्रणाली उस व्यक्ति पर निर्भर करती है जो बिना पहचान दस्तावेजों के किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा 'परिचय' कराई जाती है जिनके पास ऐसे दस्तावेज़ हैं। परिचयकर्ता के बयान के आधार पर वे दस्तावेज प्राप्त करेंगे।

याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि परिचयकर्ता प्रणाली के ज़रिए ऐसे कई लोगों के नाम आधार परियोजना से जुड़े जो इस बात के प्रबल संकेतक है कि कितने लोग बिना दस्तावेज़ के जोड़े गए। यूआईडीएआई के निदेशक घनराज सिंह शेखावत द्वारा 2015 में हलफ़नामे के माध्यम से पुष्टि की गई कि परिचयकर्ता प्रणाली के ज़रिए 2,13,000 लोगों का नामांकन किया गया था। इस समय तक कुल नामांकन 80.46 करोड़ था। इसका मतलब यह हुआ कि इस तरह आवेदन करने वाले लोगों में क़रीब 0.03% परिचयकर्ता प्रणाली के माध्यम से सूची में शामिल किए गए। वर्ष 2016 में एक आरटीआई के जवाब में यूआईडीएआई ने कहा था कि परिचयकर्ता प्रणाली के माध्यम से 8,47,366 आधार संख्या जारी किया गया जिनमें से ऐसे लोग 0.08% थे जिन्होंने पंजीकरण कराया था। इस संबंध में याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि ऐसे लोगों का इतना कम प्रतिशत था जिनके पास दस्तावेज़ नहीं थे तो बड़ी संख्या में लोगों की गोपनीयता में दख़ल का आधार नहीं हो सकते हैं।

उत्तरदाताओं के हलफ़नामे के दूसरे कारण के जवाब में याचिकाकर्ताओं ने लीकेज के तीन कारणों को सूचीबद्ध किया। इनमें लाभार्थी की अयोग्यता,वितरित राशि में धोखाधड़ी चाहे वह कमीशन के रूप में हो या नहीं और पहचान की धोखाधड़ी। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि आधार केवल तीसरे श्रेणी के लीकेज अर्थात पहचान की धोखाधड़ी में मदद कर सकता है। विश्व बैंक रिपोर्ट के दावे को उत्तरदाताओं द्वारा उद्धृत किया गया जिसे याचिकाकर्ताओं ने चुनौती दी। रिपोर्ट में ये दावा किया गया था कि आधार ने प्रतिवर्ष 11 बिलियन अमरीकी डॉलर सरकार का बचाया। हालांकि रिपोर्ट में 2015 के एक दस्तावेज़ का हवाला दिया गया था जिसमें कहा गया था कि उस समय पांच योजनाओं के तहत स्थानांतरण लगभग 70,000 करोड़ या 11.3 बिलियन अमरीकी डॉलर थे। लेखक ने इसमें कहीं नहीं आधार से होने वाली किसी तरह की बचत का उल्लेख किया था।

सरकार ने वर्ष 2014-15 में एमजीएनआरईजीएस में 3,000 करोड़ रुपए की बचत का दावा किया था। यूआईडीएआई के आंकड़ों से पता चला है कि वर्ष2014 में 67,637 जॉब कार्ड फ़र्ज़ी पाए गए। हालांकि ये सभी फ़र्ज़ी कार्ड एक ही राज्य त्रिपुरा में पाए गए। वर्ष 2015 में एक अतारांकित प्रश्न के उत्तर में लोकसभा में ग्रामीण विकास मंत्री ने कहा था कि 63,943 जॉब कार्ड डुप्लीकेट पाए गए और इसे रद्द कर दिया गया। अगर इसका हिसाब किया जाए तो 200 x 100 दिन x 63, 943 फ़र्ज़ी जॉब कार्ड की राशि होगी 127.89 करोड़ रूपए। बचत का एक हिस्सा जिसका सरकार ने दावा किया है।

एलपीजी सब्सिडी में बचत के मुद्दे पर सरकार ने वर्ष 2014-15 में 14,672 करोड़ रुपए की बचत का दावा किया, वहीं 2015-16 में 6,912 करोड़ और 2016-17 में 4,824 करोड़ रुपए की बचत का दावा किया था। 2015 में कैबिनेट सचिवालय की बैठक के विवरणों में शामिल 91 करोड़ रूपए बचत के दावे को याचिकाकर्ताओं ने चुनौती दी। वर्ष 2012 में नेशनल इनफॉर्मेटिक्स कमिशन के साथ तेल विपणन कंपनियों द्वारा डी-डुप्लीकेशन कार्य किया गया जिसका हवाला भी याचिकाकर्ताओं ने दिया। उन्होंने वर्ष 2016 के कैग की रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि पीएचएएल (डीबीटीएल) योजना के तहत डी-डुप्लेशन को केवल आधार के लिए ज़िम्मेदार नहीं माना जा सकता है।

पीडीएस प्रणाली में बचत के संबंध में सरकार ने दावा किया कि 2016-17 के दौरान आधार के ज़रिए डीबीटी के परिणाम स्वरूप 14,000 करोड़ रूपए बचाए गए। हालांकि वर्ष 2016 में एक अतारांकित प्रश्न के उत्तर में उपभोक्ता मामले तथा खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री ने लोकसभा में कहा था कि फ़र्ज़ी, धोखाधड़ी और डुप्लीकेट राशन कार्डों को ख़त्म करने के बाद पीडीएस के ज़रीए आवंटित निधियों के वितरण में कोई कमी नहीं हुई। इसलिए इस संबंध में बचत का सवाल ही नहीं होता है।

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