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अमेरिका की चीन नीति अंतिम मोड़ पर

पहले से मजबूत और अधिक दृढ़ चीन अमेरिका को पीछे धकेल रहा है और उसके प्रति ज़मीन पर लाल रेखाएं खींच रहा है।
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चीन-फ्रांस-जर्मनी जलवायु शिखर सम्मेलन, बीजिंग, 16 अप्रैल, 2021

अमेरिकी मीडिया की कहानी पर विश्वास किया जाए तो चीन के लिए राष्ट्रपति बाइडेन के जलवायु दूत जॉन केरी की चार दिवसीय यात्रा कुछ खास छाप नहीं छोड़ पाई है। शायद, राष्ट्रपति शी चिनफिंग वाशिंगटन में 22-23 अप्रैल को जलवायु परिवर्तन पर होने वाले विशेष शिखर सम्मेलन में भाग लें जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन आयोजित कर रहे हैं –इससे कुछ हद तक संबंधों में सुधार हो सकता है।

केरी और उनके नाममात्र के समकक्ष झी झेनहुआ के बीच शंघाई में हुई बातचीत के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि दोनों देशों को शिखर वार्ता का बेहद "तत्परता" से इंतज़ार हैं। चीनी नेतृत्व के साथ बीजिंग में केरी की एकमात्र बातचीत झी के बॉस के साथ एक वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से हुई, जो उप-प्रधानमंत्री और सीसीपी के पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति के सदस्य हैं।

विडंबना यह है कि हान हांगकांग मामलों के प्रभारी हैं,एक ऐसा मुद्दा जिस से बाइडेन प्रशासन को खीज़ है। केरी के शंघाई में आने के बावजूद भी, गृह सचिव एंटनी ब्लिंकन ने हांगकांग की "स्वतंत्रता और स्वायत्तता" पर "बीजिंग के हमले" की निंदा करते हुए कटु बयान जारी किया था।

बीजिंग ने हांगकांग में फाइव आइज़ के पदचिह्नों को उजागर किया है, जो अमेरिकी खुफिया को एक विचित्र स्थिति में पाता है। (ऑस्ट्रेलिया, यूके और कनाडा भी चीन के साथ टकराव में हैं।) गुरुवार को, चीनी खुफिया ने "कलर क्रांति" को चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा को सबसे बड़े खतरे के रूप में चिह्नित किया है। वास्तव में, हान ने पिछले महीने कहा था कि हांगकांग में बीजिंग का चुनावी सुधार कार्यक्रम इस बारे में नहीं हैं कि वहां की राजनीतिक प्रणाली लोकतांत्रिक थी या नहीं, बल्कि उनका कार्यक्रम तोड़फोड़ को रोकने का कार्यक्रम है।

हान ने कथित तौर पर हांगकांग में बदलाव/सुधार को "तोड़फोड़ के खिलाफ एक युद्ध" के रूप में वर्णित किया है, यह कहते हुए कि बीजिंग के पास राष्ट्रीय सुरक्षा और चीन की संप्रभुता की रक्षा करने के लिए "निर्णायक रूप से कार्यवाही" करने के अलावा कोई चारा नहीं है। कहा जाए तो, ब्लिंकेन ने अपने अंतरंग बयान से केरी की यात्रा को खराब कर दिया है जिस बयान ने जीवन के सीमांत पक्ष पर ध्यान आकर्षित कियाहै।

चाहे जो हो,केरी की यात्रा के संदर्भ में कुछ व्यापक निष्कर्ष निकालने की जरूरत है। इस यात्रा से तीन बात उभर कर आईं हैं। सबसे पहले, हालांकि केरी को बीजिंग में बहुत माना जाता है –वे वियतनाम युद्ध के खिलाफ कार्यकर्ता,राजनयिक और राजनेता रहे हैं जो चीन के साथ दोस्ती करने के लिए प्रतिबद्ध हैं - अमेरिका-चीन की प्रतिद्वंद्विता ने उनकी यात्रा पर एक काली छाया डाल दी है। बीजिंग इस बात को जानता है कि केरी कैबिनेट रैंक के ऐसे व्यक्ति हैं जो एक घुमक्कड़ कूटनीतिज्ञ हैं और बाइडेन की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सदस्य है। फिर भी, यात्रा कुछ खास नहीं रही।

खास बिंदु ये है, कि केरी की यात्रा पिछले महीने एंकरेज बैठक के बाद चीनी रुख में आए बदलाव की पृष्ठभूमि में हुई है। एक पहले से मजबूत और अधिक दृढ़ चीन अमेरिका को वापस धकेल रहा है, और उसके खिलाफ जमीन पर लाल रेखाएं खींच रहा हैं। आश्चर्यजनक बात ये है कि पिछले सप्ताह ताइवान के नजदीक बड़े पैमाने पर पीएलए ने सैनिक अभ्यास किया और खुले तौर पर "बलपूर्वक पुनर्मिलन-बल का अभ्यास" किया, जो अमेरिकाको चीन के खिलाफ उठाए जा रहे (यहां और वहाँ) उत्तेजक कदमों के खिलाफ "स्पष्ट चेतावनी" है।

चीनी विमानवाहक पोत लियाओनिंग जापान के ओकिनावा के पास मियाको जलडमरूमध्य से गुजरते हुए 4 अप्रैल, 2021 को प्रशांत मार्ग गया था।

दूसरा, जलवायु परिवर्तन पर ट्रान्साटलांटिक नेतृत्व को बाइडेन के हथियाने से फ्रांसीसी पहल को नुकसान हो सकता है। दरअसल, पेरिस समझौता हाल के दिनों में फ्रांस की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का प्रतीक बना था,जिसे राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपनी अवमानना से खारिज कर दिया था - और बाइडेन अब एलीसी पैलेस यानी फ्रांस के राष्ट्रपति के निवास से आँखें चुरा रहे हैं।

जैसा कि चीनी प्रवक्ता हू चुनयिंग ने व्यंग्य करते हुए शुक्रवार को ट्वीट किया, “यह वह अमेरिका है जिसने 2017 में पेरिस समझौते से बाहर निकलने की घोषणा की थी, उसने एनडीसी को लागू करना बंद कर दिया था, और समझौते के लक्ष्यों हासिल करने के वैश्विक प्रयासों को बाधित किया था। इसकी वापसी का मतलब शानदार वापसी नहीं है, बल्कि एक भगौड़े का कक्षा में वापस आना है”।

फ्रांसीसी राजनयिक जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन 21 वीं सदी में अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति का व्यापक विषय है और वाशिंगटन इसके साथ मूर्खता कर रहा है। केवल फ्रांस, जर्मनी और चीन का जलवायु परिवर्तन पर त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन का बेहतरीन विचार न जाने कहां से आया लेकिन तीनों देशों इसके लिए बहुत तत्पर थे। दरअसल, यह शिखर सम्मेलन शुक्रवार को –बाइडेन के सितारों भरे इवेंट से छह दिन पहले हुआ था। इस तरह का संकेत चौंकाने वाला है।

तीसरा, यह सब, हालांकि, प्रतीकवाद से बहुत आगे निकल जाने की बात है और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में कुछ दोषों की ओर ध्यान भी आकर्षित करता है जो दोष चीन के महाशक्ति बन कर उभरने से नाराज़ होकर पनपे हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए तो केरी की यात्रा उन अप्रत्याशित क्षणों में से एक बन गई, जिसका इंतज़ार विमान-वाहकों को बड़ी उत्सुकता से था,जब पश्चिमी दुनिया और एशिया-प्रशांत में अत्यधिक संवेदनशील रडार अधिष्ठापन अचानक छिपे हुए स्थानों को बताने लगे जो अभी तक बड़े पैमाने पर अटकलों के डोमेन में रहते थे।

यह प्रक्रिया 7 अप्रैल को बड़े ही सहज ढंग से शुरू हुई थी जब शी ने जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल से फोन पर बता की थी, ताकि ब्रसेल्स द्वारा अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के साथ हाथ मिलाने से चीन-यूरोपीय यूनियन के आपसी सहयोग में जो दरार दिखाई देने लगी थी, जिसके तहत झिंजियांग के चार अधिकारियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था - जिसके बाद बीजिंग ने यूरोप के 10 अधिकारियों और चार संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाकर इस हिमाक़त का जवाब दिया था, जिन्होंने "चीन की संप्रभुता और हितों को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया था और उसके खिलाफ झूठ का जाल फैलाया था",फोन के माध्यम से उस हिमाक़त को कम करने का यह एक कदम था।

सीधे शब्दों में कहें तो शी और मर्केल दोनों ने इस बात को महसूस किया कि यूरोपीयन यूनियन-चीन संबंध बाइडेन प्रशासन की आंख की किरकिरी बन गया है और इसे बुरी नजर से बचाने के लिए साझेदारी की एक फायरवॉल बनाने की जरूरत है। सिन्हुआ की रिपोर्ट में इस बात को कहा गया है कि मर्केल ने यूरोपीयन यूनियन के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि हमें "अपने विदेशी संबंधों में स्वतंत्रता को बनाए रखना होगा।" मर्केल ने यूरोपीयन यूनियन-चीन वार्ता और सहयोग को मजबूत करने में "एक सकारात्मक भूमिका निभाने" की पेशकश की, जो "न केवल दोनों पक्षों के हितों में, बल्कि दुनिया के लिए भी फायदेमंद है"।

मर्केल ने एक बार फिर यूरोपीयन यूनियन-चीन संबंधों को कमजोर करने के वाशिंगटन के प्रयासों को विफल करने के लिए कदम उठा लिए है। ठीक 9 दिन बाद, जर्मनी ने दबाव देकर फ्रेंच-जर्मन-चीनी शिखर सम्मेलन कल्पना की थी। यह कहते हुए कि, शी, मर्केल और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन भी इस बात के प्रति सचेत थे कि वे यूरोप और चीन के बीच साझेदारी को महामारी के दौर में नई जरूरतों को पूरा करने के लिए साथ आ रहे हैं ताकि राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को ऊपर रखा जा सके - और यह सब, ज़ाहिर है, कि अमरिका प्रशासन की चीन के खिलाफ रणनीति की पृष्ठभूमि में हुआ है।

16 अप्रैल को त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन से लेकर विश्व-राजनीतिकी पूरी कुलबुलाहट पर - चीन-यूरोप संबंध "रणनीतिक ऊंचाई", महामारी विरोधी सहयोग, "वैक्सीन राष्ट्रवाद", अफ्रीका के लिए ऋण की राहत, बहुपक्षवाद और खासे मुद्दों पर चर्चा हुई, इसके अलावा मुक्त व्यापार, और "प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दे" और इसी तरह, "उच्च स्तर पर बाज़ार को खोलने और निष्पक्ष, न्यायपूर्ण और गैर-भेदभावपूर्ण व्यापारिक वातावरण के निर्माण के साथ चीन मेंविदेशी निवेश वाले उद्यमों को लगाने जिनमें फ्रांसीसी और जर्मन कंपनियां शामिल हैंपर भी चर्चा हुई।"

शिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक मर्केल ने कहा है कि यूरोप चीन के साथ "नीतिगत संपर्क और गठजोड़ को मजबूत करने" के लिए तैयार है, इस बात को नोट करते हुए कि चीन की अर्थव्यवस्था ने सबसे पहले वापसी की और गति पकड़ी है,जो "दुनिया के लिए एक अच्छी खबर" है। उन्होंने जोर देकर यह बात भी कही कि जर्मनी "अवसरों को महत्व देता है" जिन्हे जर्मनी-चीन और यूरोप-चीन का सहयोग पेश करता है, और इसलिए जर्मनी-यूरोप "चीन के साथ पारस्परिक रूप से लाभप्रद आर्थिक और व्यापार सहयोग को बढ़ाना चाहता है, जिसमें डिजिटल अर्थव्यवस्था और नेटवर्क सुरक्षा जैसे मुद्दों पर संपर्क को मजबूत करके, और सभी देशों के उद्यमों को समान मानना और व्यापार की बाधाओं को दूर करना हैं”। मर्केल ने इस बात का भी उल्लेख किया कि यूरोपीयन यूनियन-चीन निवेश समझौता जल्द ही लागू होगा।

यहां यह कहना काफी होगा की फ्रांस-जर्मन-चीनी शिखर सम्मेलन ने बड़े जोर-शोर से और स्पष्ट रूप से इस बात की घोषणा कर दी है कि यूरोप का चीन के प्रति एक अलग एजेंडा रहेगा जिसमें बाइडेन और उनकी टीम को समर्थन देना होगा। अर्थात्, स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो अपने विदेशी संबंधों में, यूरोप महामारी के बाद के आर्थिक सुधार या तरक्की/रिकवरी को प्रमुखता देगा जिसमें चीन का सहयोग अनिवार्य है।

संक्षेप में कहा जाए तो, त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन के आयोजन से पता चलता है कि चीन पर नियंत्रण के उद्देश्य से बाइडेन प्रशासन की इंडो-पैसिफिक अवधारणा को दो प्रमुख यूरोपीय राजधानियों - बर्लिन और पेरिस से समर्थन नहीं मिल पाया है। अमेरिका की गलत नीति से पता चलता हैं कि अमेरिकी की रणनीति अंतिम मोड़ पर पहुंच गई है।

जब वाशिंगटन के दो करीबी सहयोगी, जो यूरोपीयन यूनियन के भीतर मजबूत ताक़त हैं और वे बीजिंग के प्रति अपना स्वतंत्र रास्ता अपनाने को तैयार हैं, तो ये दोनों देश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा संदेश दे रहे है कि अमेरिका का ट्रान्साटलांटिक नेतृत्व, जिसेकी बाइडेन प्रशासन हथियाना चाहता है और अपनी चीन नीति को प्रमुख बनाना चाहता है, अब वह नीति कहीं टिक नहीं पा रही है। सिर्फ और सिर्फ अब ब्लिंकेन की तीखी बयानबाजी या प्रतिक्रिया ही है जो बाइडेन प्रेसीडेंसी के सौ दिनों के शासन के बाद चीन की नीति के रूप में नज़र आती है।

 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें


US’s China Policy at Inflection Point

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