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ट्रिप्स छूट पर बाइडेन का फ़ैसला सियासी स्वांग है

भारत इस पर उम्मीद नहीं बांध सकता है क्योंकि अमेरिकी बयान टाल-मटोल वाला है।
बाइडेन
फ़ोटो: साभार: रॉयटर

विदेश मंत्रालय (MEA) ने 5 मई के अमेरिकी सरकार के उस बयान का स्वागत किया है, जिसमें टीआरआईपीएस (व्यापार से जुड़े बौद्धिक संपदा अधिकार) पर समझौते के मानदंडों में छूट का समर्थन करते हुए विकासशील देशों के लिए टीकों और दवाओं की त्वरित और सुगम पहुंच को सुनिश्चित करने का ऐलान किया गया है। दिल्ली को "उम्मीद है कि सर्वसम्मति पर आधारित इस नज़रिये वाली इस छूट को डब्ल्यूटीओ में जल्दी से मंज़ूरी मिल सकती है।" सवाल है कि क्या इस उम्मीद की कोई ठोस बुनियाद है?

असल में यह अमेरिकी बयान बहुत ही सोच-समझकर और सावधानी के साथ टाल-मटोल वाला बयान है। इसमें इतना ही कहा गया है, "हम इसे पूरा करने के लिए विश्व व्यापार संगठन (WTO) के ज़रूरी मूल दस्तावेज़ पर आधारित बातचीत में सक्रिय रूप से भाग लेंगे। उन वार्ताओं में संस्था की सर्वसम्मति-आधारित प्रकृति और शामिल मुद्दों की जटिलता को देखते हुए थोड़ा समय लगेगा।”  

बाइडेन प्रशासन का लगातार ज़ोर "अमेरिका के लोगों के लिए अपनी वैक्सीन की आपूर्ति" पर है। यह अमेरिका फ़र्स्ट वाली रणनीति है। राष्ट्रपति बाइडेन की योजना है कि 4 जुलाई तक कम से कम 70% बालिग़ों का आंशिक रूप से टीकाकरण हो जाये, ताकि सामूहिक प्रतिरक्षा(Herd Immunity) विकसित हो सके और जिससे कि नये संक्रमण के स्तर में गिरावट लाने में मदद मिल सके।

टीआरआईपीएस (व्यापार से जुड़े बौद्धिक संपदा अधिकार) को लेकर इस छूट पर बाइडेन के इस फ़ैसले को महज़ एक राजनीतिक फ़ैसले के तौर पर देखा जा सकता है। सूत्रों के हवाले से रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है, "बुधवार का यह फ़ैसला वाशिंगटन को (अमेरिकी) वामपंथियों और विकासशील देशों की मांगों के प्रति ज़िम्मेदार होने की छवि पेश कर रहा है, जबकि डब्ल्यूटीओ की वार्ता का इस्तेमाल करते हुए इस छूट के दायरे को कम किया जा रहा है। चूंकि वार्ता में समय लगेगा, इसलिए ज़्यादा पारंपरिक उपायों के ज़रिये वैक्सीन की आपूर्ति को बढ़ावा देकर इस फ़ैसले में समय लगाया जा रहा है।”

असल में बाइडेन प्रशासन एक ही समय में एक ही साथ कई चीज़ें कर रहा है। एक तरफ़ अमेरिकी राजनीति में प्रगतिशील वामपंथियों, जिनमें डेमोक्रेटिक पार्टी के सीनेटर बर्नी सैंडर्स और रिप्रजेंटेटिव एलेक्जेंड्रिया ओकासियो-कोर्टेज़ शामिल हैं, उन्होंने कोविड टीकों के लिए TRIPS छूट की मांग की हैं; इसी तरह, डब्ल्यूएचओ और यूएन के समर्थन पाने वाले विकासशील देश भी इस छूट की मांग कर रहे हैं; अमेरिका का एक प्रमुख इंडो-पैसिफ़िक सहयोगी, भारत दिसंबर में इस ट्रिप्स छूट को लेकर प्रस्ताव रखने की पहल करने वाला देश था; इसके अलावा, सैद्धांतिक तौर पर बाइडेन प्रशासन "बहुपक्षीयवाद" को लेकर प्रतिबद्ध दिखता है।

दूसरी ओर तक़रीबन आधी सदी का अपना राजनीतिक जीवन काफ़ी हद तक अमेरिकी कांग्रेस में बीताने वाले बाइडेन अमेरिकी राजनीति में दवा कंपनियों के ज़बरदस्त दबदबे से अच्छी तरह वाकिफ़ हैं। जॉन्स हॉपकिंस सेंटर फ़ॉर हेल्थ सिक्योरिटी में एक वरिष्ठ विद्वान के रूप में उस लॉबी के नज़रिए से एक शख़्स का कहना है कि यह पेटेंट छूट "उन दवा कंपनियों के अधिकार का स्वामित्व से बेदखल करना है, जिनके नये-नये प्रयोगों और वित्तीय निवेशों ने कोविड-19 के विकास को सबसे पहले संभव कर दिखाया", ऐसे में अगर ये दवा कंपनियां कुछ ऐसा-वैसा करती हैं, जो इसमें कोई हैरत की बात नहीं होगी।

अमेरिकी दवा उद्योग और कांग्रेस रिपब्लिकन पहले से ही बाइडेन की विस्फ़ोटक घोषणा को लेकर यह कहते हुए आक्रामक हो चले हैं कि इस क़दम से अमेरिका में हो रहे नये-नये प्रयोगों की पहल के प्रोत्साहन कमज़ोर पड़ेंगे। इसके अलावा, इस पेटेंट छूट को लेकर तर्क यह भी दिया रहा है कि वैक्सीन निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है और ऐसा नहीं है कि सब कुछ एक झटके में हो जाता है।

अमेरिकी सीनेट स्वास्थ्य समिति के शीर्ष रिपब्लिकन सिनेटर, रिचर्ड बर्र ने बाइडेन के इस फ़ैसले की निंदा करते हुए कहा है, “बौद्धिक संपदा संरक्षण ही वह वजह है कि आज हमारे पास ये जीवन रक्षक उत्पाद हैं; इन सुरक्षा को छीनने से यह सुनिश्चित हो जायेगा कि हमारे पास वे टीके या उपचार नहीं होंगे, जिनकी हमें अगली महामारी के आने पर ज़रूरत होगी।” रिपब्लिकन स्टडी कमेटी के अध्यक्ष, जिम बैंक्स द्वारा समर्थित रिपब्लिकन सीनेटर, रिचर्ड बर्र इस क़दम को रोकने के लिए क़ानून का प्रस्ताव रखते हैं।

स्पष्ट रूप से, विश्व मंच पर एक अच्छे दरियादिल इंसान के तौर पर अपनी छवि चमकाने के लिए दवा उद्योग पर समय और ऊर्जा ख़र्च करने के बजाय बाइडेन अपने घरेलू सुधार के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए कांग्रेस के ज़रिये ज़रूरी क़ानून बनाये जाने पर अपनी राजनीतिक पूंजी ख़र्च करना चाहेंगे।

क़यास लगाया जा रहा है कि विश्व व्यापार संगठन में "मूल दस्तावेज़-आधारित वार्ता" पर बाइडेन का जो भरोसा और निर्भरता है, वह अपने अंजाम तक पहुंचे बिना सालों नहीं, तो कम से कम महीनों गुज़ार देगा। इस छूट को लेकर किया जा रहा अमेरिकी समर्थन के पीछे की रणनीति वैश्विक उत्पादन को तेज़ी से बढ़ावा देकर प्रौद्योगिकी साझा करने और संयुक्त उद्यमों का विस्तार करने जैसे कम कठोर उपायों से मदद पहुंचाते हुए दवा कंपनियों को समझाने की एक रणनीति है। अब तक कोविड-19 के टीके मुख्य रूप से उन अमीर देशों में वितरित किये गये हैं, जिन्होंने उन टीकों को विकसित किया है, जबकि भारत जैसे ग़रीब देशों में यह महामारी तेज़ी से फैल रही है और आख़िरकार असली लक्ष्य तो इस वैक्सीन के वितरण का विस्तार करना है।

बाइडेन अच्छी तरह जानते हैं कि अमेरिका के यूरोपीय सहयोगियों की तरफ़ से भी इस ट्रिप्स छूट का भारी विरोध होगा। ब्रिटिश प्रेस ने बताया है कि ब्रिटेन हाल के महीनों में डब्ल्यूटीओ में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, नॉर्वे, सिंगापुर के साथ-साथ यूरोपीय संघ और अमेरिका की तरह बंद दरवाज़े में बातचीत कर रहा है और इन सबकी तरफ़ से इस विचार का विरोध किया जा रहा है।

विदेश मंत्रालय का दावा है कि "इस प्रस्ताव को 120 से ज़्यादा देशों का समर्थन मिला है", जबकि इसके उलट पश्चिमी रिपोर्टों में 80 का आंकड़ा बताया जा रहा है। विश्व व्यापार संगठन में 164 सदस्य हैं और किसी भी तरह की छूट की मंज़ूरी से पहले सभी देशों का इस पर सहमत होना ज़रूरी है। ऐसे में इस छूट को लेकर मुश्किल दिखायी देती है। दिलचस्प बात है कि जर्मनी बाइडेन के इस प्रस्ताव को ज़ोरदार तरीक़े से खारिज करने के लिए पहले से ही तैयार बैठा है।

इसके लिए बहुत ही कम समय इसलिए रह गया है क्योंकि इस बात की एक प्रबल संभावना है कि निकट भविष्य में बहुत सशक्त प्रतिरक्षा से बचकर निकल जाने वाले कुछ सुपर स्प्रेडर वैरिएंट भी सामने आये। फ़्रेड हचिंसन कैंसर रिसर्च सेंटर के एक संक्रामक रोग विशेषज्ञ, जोश शिफ़र के मुताबिक़, “आगे क्या होने वाला है, इसका अनुमान लगा पाना नामुमकिन है। मुझे इस बात की संभावना दिखती  है कि हमारा सामना आने वाले दिनों में एक ऐसे वैरिएंट से हो सकता है, जो पहले से भी कहीं ज़्यादा बदतर हालात पैदा कर दे और संक्रमितों की संख्या कहीं अधिक हो, कुछ-कुछ वैसा ही हो जाये, जैसा कि इस समय लैटिन अमेरिका या भारत में हो रहा है।"

यह कहना मुफ़ीद होगा कि तीव्र टीकाकरण बेहद अहम है। आंशिक सुरक्षा के साथ भारत उच्च स्तर की सामूहिक प्रतिरक्षा हासिल कर सकता है। बेहद संक्रामक B.1.1.7 के प्रसार के बावजूद आंशिक सामूहिक प्रतिरक्षा पहले से ही अमेरिका में नये संक्रमण के स्तर को कम करने का कारण बन रही है। ब्रिटेन का अनुभव भी ऐसा ही रहा है। जानकारों की राय है कि आंशिक रूप से सामूहिक प्रतिरक्षा वाले इलाक़े को छोड़कर अमेरिका और ब्रिटेन के कई इलाक़े शायद नये वेरिएंट के साथ भारत की तरह ही दिखें। 

मॉर्डना के सीईओ, स्टीफ़न बैंसेल ने चेतावनी दी है कि आने वाले महीनों में और भी ज़्यादा कोविड-19 के वेरिएंट सामने आयेंगे। यही कहा जा सकता है कि इस समय भारत को बस अपनी कोविड-19 के टीकाकरण की संख्या में तेज़ी लाने पर ध्यान देना चाहिए। अगर व्यापार से जुड़े बौद्धिक संपदा अधिकार(TRIPS) से छूट मिल पाती है, तो बहुत ही अच्छा है। लेकिन, सैमुअल बेकेट के नाटक, 'वेटिंग फ़ॉर गोडोट’ में वर्णित दर-दर भटकते हुए कभी न ख़त्म होने वाले इंतज़ार की तरह  ट्रिप्स की उस छूट का इंतज़ार नहीं कर सकते और इसके लिए हम कई तरह की वार्ताओं और भिड़ंतों में शामिल नहीं हो सकते जिससे कुछ भी हासिल नहीं होने वाला।

रिपोर्टों के मुताबिक़, सरकार की भारत बायोटेक की उस कोवाक्सिन के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि करने की योजना है, जिसमें कथित तौर पर तीसरे चरण के अंतरिम विश्लेषण परिणामों के मुताबिक़ 81% की प्रभावकारिता दिखायी गयी है। भारत बायोटेक इस साल के आख़िर तक अपने चार स्रोतों से 700 मिलियन खुराक बनाने का लक्ष्य लेकर चल रही है। एक अन्य विकल्प उस रूसी वैक्सीन-स्पुतनिक वी के बड़े पैमाने पर उत्पादन को लेकर आगे बढ़ना का है, जिसमें 91% से ज़्यादा की प्रभावकारिता है (द लैंसेट में प्रकाशित उसके नतीजों के अनुसार)

अलग-अलग रिपोर्टों के मुताबिक़, इस वैक्सीन की मार्केटिंग करने वाले रूसी डायरेक्ट इनवेस्टमेंट फ़ंड ने भारत में छ:वैक्सीन निर्माताओं के साथ स्पुतनिक वी की 750 मिलियन से ज़्यादा ख़ुराक बनाने के सौदों पर हस्ताक्षर कर दिये हैं। स्पुतनिक वी वैक्सीन की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को भी इसमें शामिल किया जा सकता है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Biden’s Decision on TRIPS Waiver is Political Theatre

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