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चुनावी बांड के बदले लेन देन: मोदी किस तरह के राम राज्य के बारे में बात करते हैं?

भारत के लोगों को देश के गणतंत्र और चुनावी लोकतंत्र को कॉर्पोरेट धन शक्ति की खतरनाक पकड़ से बचाने के लिए सबसे आगे रहने की ज़रूरत है।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट (एससी) के फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक के बाद कहा की यह 'राम राज्य' की शुरुआत है, जहां बाबरी मस्जिद वाली जगह पर मंदिर के निर्माण की अनुमति दी गई थी। इसे 1992 में (हिंदुत्व संगठनों द्वारा) ध्वस्त कर दिया गया था। मस्जिद के विध्वंस के उस कृत्य को सर्वोच्च न्यायालय ने "कानून के शासन का गंभीर उल्लंघन" माना था।

अब, मोदी द्वारा गढ़े गए 'राम राज्य' में, सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना, राजनीतिक दलों को कॉर्पोरेट चंदे की एक अपारदर्शी प्रक्रिया, को असंवैधानिक और राजनीतिक दलों को मिलने वाले धन की राशि जानने के मतदाताओं के मौलिक अधिकार का उल्लंघन पाया है जिसे वे कॉरपोरेट्स और अन्य स्रोतों से हासिल कर रहे थे।

चुनावी बांड का विवरण परेशान करने वाला है

राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए चुनावी बांड खरीदने वाली कंपनियों के विवरण पर चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी राजनीति और चुनावी प्रक्रिया के एक संदिग्ध आयाम को उजागर करती है, जो हमारे गणतंत्र के इतिहास में पहले कभी नहीं देखा गया था।

एक कंपनी, फ्यूचर ऑफ गेमिंग एंड होटल सर्विसेज, ने कुछ सौ करोड़ के मुनाफे के साथ और मोदी शासन के तहत विभिन्न केंद्रीय एजेंसियों की जबरदस्त कार्रवाई का सामना करते हुए, 1,368 करोड़ रुपये के चुनावी बांड खरीदे, जो किसी एक इकाई द्वारा सबसे बड़ी राशि है। कंपनी के पास जो संपत्ति थी और उसने उन बांडों को खरीदने के लिए चौंका देने वाली राशि खर्च की, जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा चिन्हित बिंदु को स्पष्ट रूप से साबित करती है कि चुनावी बांड के माध्यम से कॉर्पोरेट और राजनीतिक शासन के बीच सांठगांठ स्थापित करने में 'लेन-देन' शामिल था।

एक अन्य कंपनी, मेघा इंजीनियरिंग ने 1,200 करोड़ रुपये के चुनावी बांड खरीदे और इसकी भूमिका के लिए केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने इसकी प्रशंसा की है। इस कंपनी ने जो चुनावी बांड खरीदे, उसके बाद ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) की छापेमारी से पता चलता है कि इस तरह के छापे कंपनी पर पड़ सकते थे।

आयकर विभाग ने अक्टूबर 2019 में मेघा इंजीनियरिंग पर छापा मारा था, और बाद में चुनावी बांड खरीदने पर जो बड़ी रकम खर्च की, और केंद्र में राजनीतिक शासन और तेलंगाना में बीआरएस (भारत राष्ट्र समिति) शासन से उसे कितनी परियोजनाएं मिलीं वह चौंकाने वाली हैं और इसलिए उन सरकारों की "तटस्थता" पर उंगलियां उठाई जा रही हैं।

यह बताया गया है कि कई कंपनियों ने अपने मुनाफ़े से 10 गुना या यहां तक कि 100 गुना अधिक तक के चुनावी बांड खरीदे हैं। और वे कंपनियां निश्चित रूप से अपनी क्षमता से भुगतान कर रही थीं या शायद कुछ अन्य कंपनियां राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए प्रॉक्सी के रूप में उनका इस्तेमाल कर रही थीं। इस तरह के घिनौने विवरण धन-बल की घृणित मिलीभगत को सामने लाते हैं जो 2018 में चुनावी बांड पेश होने के बाद भारत में राजनीति को आकार दे रही है।

आलोचना के बावजूद चुनावी बांड लाए गए

जब धन विधेयक का रास्ता अपनाकर चुनावी बांड को कानून के दायरे में रखा जा रहा था, तब चुनाव आयोग, भारतीय रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के कुछ अधिकारियों ने इसका विरोध किया था। इसलिए, एक कानून जो प्रमुख संस्थानों के विचारों को नजरअंदाज किए बिना तैयार किया गया था, मोदी शासन द्वारा भारी बहुमत का इस्तेमाल करके लोकसभा में पारित किया गया था। यह कानून बनाने की प्रक्रिया का पालन किए बिना किया गया था, जिसके लिए सभी हितधारकों के साथ परामर्श और विचार-विमर्श की उचित प्रक्रिया की जरूरत होती है।

न्यूज़ मिनट द्वारा पर्दाफ़ाश  

न्यूज़मिनट.कॉम ने खुलासा किया है कि कैसे केंद्रीय एजेंसियों द्वारा छापे के बाद कथित तौर पर 30 कंपनियों को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को बड़ी रकम का योगदान देने पर मजबूर किया गया था। इसे जबरन वसूली से कम नहीं बताया गया है, स्वतंत्रता के बाद के हमारे चुनावी लोकतंत्र के किसी भी दौर से इसकी कोई मिसाल नहीं मिलती है।

अल्फ़ा न्यूमेरिकल नंबर

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने चुनाव आयोग को चुनावी बांड पर सारा डेटा नहीं दिया है। इसलिए, शीर्ष अदालत ने अब एसबीआई से प्रत्येक चुनावी बांड के अल्फा न्यूमेरिक नंबर साझा करने को कहा है। इससे पता चलता है कि मोदी शासन के अधिकार क्षेत्र के तहत एसबीआई, चुनावी बांड के सभी विवरण बड़ी जनता के साथ साझा करने को तैयार नहीं है। यह मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। एसबीआई की ओर से इस तरह की गोपनीयता स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के संचालन को ख़राब करती है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की मूल संरचना के रूप में माना है।

चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता को बहाल करन होगा 

यह काफी दुखद है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी करते हुए अपारदर्शी चुनावी बांड जारी रखने की एसबीआई की ऐसी हरकतें, और वह भी 2024 के आम चुनाव शुरू होने से कुछ हफ्ते पहले, हमारे लोकतंत्र के लिए विनाश का कारण बनने जा रही हैं।

यह देखकर खुशी होती है कि सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी प्रक्रिया की शुद्धता और अखंडता को बहाल करने के लिए तेजी से काम किया है। चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक घोषित करते हुए उसने कहा है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया का बचाव सिर्फ चुनाव आयोग या सुप्रीम कोर्ट को नहीं, बल्कि सभी संबंधित पक्षों को करना होगा।

भारत के लोगों को हमारे गणतंत्र और हमारे चुनावी लोकतंत्र को कॉर्पोरेट धन शक्ति के दुष्परिणाम से बचाने के लिए सबसे आगे रहने की जरूरत है, जिसे सुनिश्चित करने के लिए चुनावी बांड का लक्ष्य रखा गया था।

एस एन साहू ने भारत के राष्ट्रपति के आर नारायणन के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटि के रूप काम किया है। व्यक्त विचार निजी हैं।

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