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बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं हरियाणा चुनाव में मुद्दा क्यों नहीं हैं?

हरियाणा के कैथल जिले के आदर्श गांव बालू के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में मूलभूत सुविधाओं की कमी को लेकर ग्रामीणों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद उन्हें बेहतर सुविधाएं नहीं मिल पाई है। दिलचस्प बात ये हैं कि विधानसभा चुनाव में यह कोई मुद्दा नहीं है।
haryana heath system

कैथल: हरियाणा का स्वास्थ्य विभाग भले ही लोगों को सरकारी अस्पतालों में संपूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएं देने के बड़े-बड़े दावे करे, लेकिन अस्पतालों की वास्तविक स्थिति पर नजर डालें तो ये दावे पूरी तरफ फेल दिखाई देते हैं। राज्य के सरकारी अस्पताल डॉक्टरों की भारी कमी से जूझ रहे हैं।

इस समस्या को लेकर पिछले साल 2018 में हरियाणा के कैथल जिले के आदर्श गांव बालू के बुजुर्गों, महिलाओं व विकलांग व्यक्तियों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की कि उनके गांव के अस्पताल में डॉक्टर, नर्स, सहायक स्टाफ के अलावा चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तक नहीं हैं। इस कारण स्वास्थ्य सेवाओं के लिए उन्हें निजी अस्पतालों में जाना पड़ता है। जहां उन्हें काफी महंगा इलाज मिलता है। गांव के सभी लोग महंगा इलाज करवाने में सक्षम नहीं हैं।
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एडवोकेट प्रदीप रापड़िया के माध्यम से दायर याचिका में लोगों ने बताया था कि अस्पताल निर्माण के लिए 2000 में उन्होंने अपनी जमीन सरकार को दी थी। ग्रामीणों द्वारा दी गई जमीन पर अस्पताल तो बना लेकिन मूलभूत सुविधा भी नहीं मिल रही। स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर तहसील व जिला स्तर पर अस्पताल उपलब्ध करवाए गए हैं लेकिन उनकी भी हालात ऐसी ही है।

गांव के अस्पताल में एक भी सफाई कर्मचारी व चौकीदार तक नहीं है। डॉक्टर व नर्स उपलब्ध न होने से गांव की गर्भवती महिलाओं व बुजुर्गों को सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

याचिका में बताया गया था कि गांव बालू के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कुल 25 स्वीकृत पद हैं जिनमें से 22 खाली हैं। तहसील स्तर पर अस्पताल में डाक्टरों के 8 में से 6 पद खाली हैं और नर्स एक भी नहीं है। वहीं, जिला स्तर पर मौजूद मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में भी डाक्टरों के 36 पद खाली हैं।

याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है कि वह राज्य के नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाए। राज्य सरकार द्वारा मौजूद बजट के साथ ही केंद्र सरकार ने पिछले तीन साल में उन्हें 1562 करोड़ की ग्रांट जारी की है फिर भी राज्य के अस्पतालों में पद रिक्त पड़े हैं।

गांव वालों ने इस समस्या को लेकर पहले स्थानीय नेताओं के सामने गुहार लगाई फिर मुख्यमंत्री मनोहर लाल, स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज व स्वास्थ्य विभाग के सचिव को लिखकर डॉक्टरों के खाली पड़े पदों को भरने की गुहार लगाई लेकिन हालात में बदलाव नहीं हुआ।

एडवोकेट प्रदीप रापड़िया ने बताया कि मामले की सुनवाई करते हुए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा सरकार को बालू पीएचसी में लंबे समय से खाली पड़े डाॅक्टर व अन्य पदों को लेकर यहां एक डाॅक्टर और 5 मल्टी हेल्थ वर्कर तैनात करने के आदेश जारी किए।

क्या है अब के हालात?

हालांकि हाई कोर्ट के आदेश के बाद इस गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की रंगाई पुताई हुई और एक डॉक्टर व कुछ स्टॉफ की नियुक्ति की गई लेकिन याचिका दायर करने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट गुरुदेव सिंह इसे अपर्याप्त बताते हैं।

वे कहते हैं, 'गांव के लोगों ने 2002 में आठ बीघा जमीन अस्पताल के लिए दान की थी। इमारत तो बनकर तैयार हो गई थी लेकिन सालों तक गांव वालों को डॉक्टर और दवाओं का इंतजार रहा। धीरे धीरे अस्पताल के परिसर में जंगल उग आया। हालात यह थी कि यहां पर सांप घूमते थे। एक अजगर इस परिसर से पकड़ा गया जिसका वीडियो भी यूट्यूब पर है। हम लोगों ने इसे लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की। हाई कोर्ट के आदेश के बाद सरकार थोड़ी हरकत में आई। इस कैंपस को साफ किया गया। दीवारों का रंग रोगन हुआ। एक डॉक्टर भी कुछ दिनों तक रहें लेकिन बहुत कुछ सिर्फ कागजों में हाई कोर्ट को दिखाने के लिए किया गया।'
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गुरुदेव सिंह कहते हैं, 'अभी यहां कोई परमानेंट डॉक्टर नहीं है। एक डॉक्टर कलायत से हफ्ते में तीन दिन आती हैं। यहां डिलिवरी नहीं हो रही है। दवाएं भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है। अड़ोस-पड़ोस की लगभग 25-30 आबादी के लिए एकमात्र यही अस्पताल है। हाई कोर्ट की निगाह इस पर है इसके बावजूद यहां का हाल बुरा है। बाकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं। सबसे बड़ी बात हमने पक्ष विपक्ष सभी नेताओं को पत्र लिखकर इस मुद्दे पर ध्यान दिलाया लेकिन किसी ने भी मदद नहीं की। अफसोस की बात यह है कि अभी चुनाव का वक्त है लेकिन गांव वालों से लेकर किसी भी नेता के लिए यह मुद्दा नहीं है। सब जाति और धर्म के हिसाब से वोट की बात कर रहे हैं।'

डॉक्टरों की भारी कमी

वहीं, एडवोकेट प्रदीप रापड़िया कहते हैं,'हरियाणा में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत खराब है। बालू जैसे बहुत सारे अस्पताल इस राज्य में हैं। प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट में एफिडेविड दायर कर इस बात को स्वीकार किया है कि हरियाणा में 600 डॉक्टरों की कमी है।'

आपको बता दें कि प्रदेश सरकार द्वारा हाई कोर्ट में दायर एफिडेविड के मुताबिक राज्य में कुल छोटे बड़े 3294 सरकारी अस्पताल हैं। इसमें से बड़े अस्पताल 59, सीएचसी (सेकेंडरी हेल्थ सेंटर) 119, पीएचसी (प्राइमरी हेल्थ सेंटर) 486 और सब सेंटर 2630 हैं। इन सब में कुल मिलाकर केवल डॉक्टरों की जरूरत 3682 है लेकिन सिर्फ 3191 डॉक्टर उपलब्ध हैं। बाकी 603 पद खाली हैं। नर्स, दवा और बाकी स्टॉफ की संख्या इसमें शामिल नहीं है।

इस पूरे मामले को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता सुनील रवीश कहते हैं,'डॉक्टर, नर्स और स्टाफ नहीं होने के चलते हरियाणा में अस्पताल सिर्फ सफेद हाथी बनकर रह गए हैं। देखने के लिए इमारत तो बनी है लेकिन सुविधाएं कुछ खास नहीं है। दिलचस्प यह है कि राजनीतिक दल स्वास्थ्य सुविधाओं का जिक्र घोषणा पत्र में तो करते हैं लेकिन उनकी दिलचस्पी इसे पूरा करने में नहीं होती है। जनता भी वोट डालने के समय स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर कोई चर्चा नहीं कर रही है।

कितना सेहतमंद है हरियाणा?

हरियाणा सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं पर किए जाने वाले खर्च में पिछले पांच साल में कोई खास इजाफा नहीं हुआ है। आंकड़ों के मुताबिक 2014-15 में बीजेपी सरकार के आने पर कुल बजट का 4 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च होता था। खट्टर सरकार ने 2015-16 के बजट में इसे घटाकर 3.1 प्रतिशत कर दिया। तब से लेकर अपना कार्यकाल खत्म होने तक बीजेपी सरकार ने इसे 4 प्रतिशत के आसपास ही रखा है जबकि हरियाणा में स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान दिए जाने की सख्त जरूरत है।

नीति आयोग द्वारा इसी साल जारी रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में हरियाणा का स्थान 12वां है। इससे पहले 2015-16 में हरियाणा का स्थान 13वां था। यानी बीजेपी सरकार आने के बाद भी हरियाणा के स्वास्थ्य सेवाओं में कोई खास सुधार नहीं हुआ है।
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अगर हम दूसरे आकंड़ों की बात करें तो 2015-16 के एनएफएचएस-4 के अनुसार शिशु मृत्यु दर 33 प्रति हजार है। इससे पहले 2005—06 में हुए सर्वे में यह 42 प्रति हजार थी। पिछले दस सालों में हरियाणा में शिशु मृत्यु दर में गिरावट 21.42 प्रतिशत की दर से आई है जबकि राष्ट्रीय गिरावट का औसत 28 प्रतिशत का रहा है।

वहीं, पांच साल तक के बच्चों में शिशु मृत्यु दर 41 प्रति हजार है जोकि 2005-06 में 52 प्रति हजार थी। यह गिरावट भी राष्ट्रीय स्तर से काफी कम है। राष्ट्रीय स्तर पर 32 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है जबकि हरियाणा में यह दर 21 प्रतिशत की रही है।

इसी तरह एनएफएचएस-4 के अनुसार 15 से 49 साल की 62 प्रतिशत महिलाएं एनीमिक थी। यानी उनमें खून की कमी थी। यह संख्या 2005-06 से 6.6 प्रतिशत बढ़ी है। यानी इसमें कमी आने के बजाय इजाफा हो गया है।

नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2018 के मुताबिक हरियाणा में डायरिया के मामले बढ़ गए हैं। 2016 में डायरिया के 2 लाख 24 हजार मामले सामने आए जो 2017 में बढ़कर 2 लाख 36 हजार हो गए। इस दौरान 20 लोगों की मौत हो गई थी।

क्या वादे किए हैं राजनीतिक दलों ने?

स्वास्थ्य सेवाओं की हालत चुनाव में मुद्दा भले ही न हो लेकिन राजनीतिक दलों ने अपने घोषणा पत्र में इसे लेकर वादे जरूर किए हैं। कांग्रेस ने कहा है कि वह हर प्रदेशवासी को स्वास्थ्य कार्ड देंगे और गरीब का मुफ्त इलाज करवाएंगे। इसके अलावा हरियाणा के हर गांव और ढाणी तक एक एंबुलेंस की सुविधा दी जाएगी। सरकार बनते ही नशा छुड़ाओ केंद्र खोले जाएंगे। सरकारी अस्पतालों की चिकित्सा व्यवस्था सुविधाजनक व आधुनिक की जाएगी।

वहीं सत्ताधारी बीजेपी ने वादा किया है कि उनकी सरकार आयुष्मान योजना के सभी परिवारों कों वर्ष में एक बार मुफ्त हेल्थ चेकअप कराएगी। दो हजार वेलनेस सेंटर बनाए जाएंगे। जन औषधि केंद्रों की संख्या में इजाफा किया जाएगा। राज्य में बच्चों और महिलाओं में कुपोषण दूर करके कुपोषण मुक्त हरियाणा की घोषणा करेंगे।

21 अक्टूबर को है मतदान

हरियाणा में विधानसभा चुनाव के लिए आगामी 21 अक्टूबर को होने वाले मतदान में राज्य के लगभग 1.82 करोड़ मतदाताओं को 1169 उम्मीदवारों के भाग्य का फ़ैसला करने का अधिकार होगा।

हरियाणा की मतदाता सूची एवं अन्य अहम आंकड़ों के बारे में निर्वाचन आयोग द्वारा गुरुवार को जारी ब्योरे के मुताबिक़ राज्य मे कुल 1,82,82,570 मतदाता हैं। इनमें 97.7 लाख पुरुष और 85 लाख महिला मतदाताओं के अलावा 724 अनिवासी भारतीय और 1.07 लाख सर्विस वोटर शामिल हैं।

राज्य की 90 विधानसभा सीटों के लिए कुल 1169 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। इनमें 1064 पुरुष, 104 महिलाएं और एक अन्य उम्मीदवार शामिल हैं। सर्वाधिक 25 उम्मीदवार हांसी सीट पर और सबसे कम छह उम्मीदवार अंबाला केंट और शाहबाद (सुरक्षित) सीट पर हैं।

हरियाणा की चुनावी दौड़ में राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त एकमात्र दल इनेलो है। राष्ट्रीय दल भाजपा और कांग्रेस ने सभी 90 सीटों पर, बसपा ने 87 और क्षेत्रीय दल इनेलो ने 81 सीट पर अपने उम्मीदवार खड़े किये हैं।

जजपा सहित अन्य दलों ने 434 उम्मीदवार चुनाव मे उतारे हैं। जबकि 375 निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनाव मैदान मे हैं। आयोग ने निष्पक्ष और शांतिपूर्ण मतदान के लिये राज्य मे कुल 19,578 मतदान केंद्र पर 27,611 ईवीएम की मदद से मतदान कराने की तैयारी पूरी कर ली है।

(सभी आंकड़े पीयूष शर्मा के सहयोग से) 

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