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इतवार की कविता : मीर तक़ी मीर की नज़्म 'मोहनी बिल्ली'

शायद बहुत कम लोग जानते हों कि ख़ुदा ए सुखन के नाम मशहूर मीर तक़ी मीर ने एक नज़्म बिल्ली पर लिखी थी। आज इतवार की कविता में पेश है वही नज़्म 'मोहनी बिल्ली'
mir taqi mir

शायद बहुत कम लोग जानते हों कि ख़ुदा ए सुखन के नाम मशहूर मीर तक़ी मीर ने एक नज़्म बिल्ली पर लिखी थी। आज इतवार की कविता में पेश है वही नज़्म 'मोहनी बिल्ली'

मोहनी बिल्ली - मीर तक़ी मीर

एक बिल्ली मोहनी था उस का नाम 

उस ने मेरे घर किया आ कर क़याम 

एक से दो हो गई उल्फ़त-गुज़ीं 

कम बहुत जाने लगी उठ कर कहीं 

बोरिए पर मेरे उस की ख़्वाब-गाह 

दिल से मेरे ख़ास उस को एक राह 

मैं न हूँ तो राह देखे कुछ न खाए 

जान पावे सुन मिरी आवाज़ पाए 

बिल्लियाँ होती हैं अच्छी हर कहीं 

ये तमाशा सा है बिल्ली तो नहीं 

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