नेपाल में वामपंथी पार्टियों के सदस्यों द्वारा काठमांडू में एमसीसी समझौते का विरोध किया जा रहा है। फोटो: स्कंद गौतम/हिमालयन टाइम्स
नेपाल ने हाल में अमेरिका की संस्था मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (एमसीसी) के साथ 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुदान का करार किया है। लेकिन 27 फरवरी को नेपाली संसद की मुहर लगने के बावजूद भी काठमांडू में इस समझौते के खिलाफ़ प्रदर्शन तेज हो रहे हैं। नेपाल में प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने 21 फरवरी को संसद में चर्चा के लिए इस समझौते को पेश किया था। बाद में इस चर्चा की तारीख़ को आगे बढ़ाते हुए 25 फरवरी कर दिया गया था।
समझौते पर संसद की सहमति पिछले एक हफ़्ते से इसके खिलाफ़ हो रहे जोरदार प्रदर्शन के बीच आई है। 20 फरवरी को काठमांडू में संसद के बाहर बड़ा प्रदर्शन किया गया, जिसे हिंसात्मक ढंग से दबाया गया। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैसे के गोले और पानी की बौछारें छोड़ीं, इस दौरान कई लोग घायल हो गए। एमसीसी के विरोध में 16 फरवरी को हुए एक और प्रदर्शन को भी पुलिस ने हिंसक ढंग से दबाने की कोशिश की थी। इस दौरान करीब़ 100 लोग घायल हो गए थे।
स्थानीय सूत्रों के मुताबिक़, एमसीसी की विकास सहायता अनुदान के खिलाफ़ तबसे 10,000 से ज़्यादा लोग प्रदर्शनों और रैलियों में हिस्सा ले चुके हैं। ऑल नेपाल इंडिपेंडेंट स्टूडेंट्स यूनियन (रेवोल्यूशनरी) और ऑल नेपाल पीसेंट फेडरेशन (एएनएफपीए) जैसे कई संगठनों ने राजनीतिक दलों के साथ समझौते का विरोध करने के लिए हाथ मिलाया है। इन राजनीतिक दलों में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल (यूनिफाईड सोशलिस्ट), सीपीएन- रेवोल्यूशनरी माओवादी, सीपीएन-माओवादी केंद्र और राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) शामिल हैं।
एमसीसी का विरोध इस आधार पर किया जा रहा है कि इस अनुदान को स्वीकार करने से दक्षिण एशिया में एक स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर नेपाल की संप्रभुता और अखंडता इससे प्रभावित होगी। सीपीएन-यूएस और एएनएफपीए के डेप्यूटी सेक्रेटरी जनरल बलराम बांसकोटा ने पीपल्स डिस्पैच को बताया, "एमसीसी समझौते के अस्पष्ट नियम और शर्तों से नेपाल की सुरक्षा और संप्रभुता को प्रत्यक्ष चुनौती मिलती है। यह भी निश्चित नहीं है कि एमसीसी द्वारा जिस ज़मीन को अधिकृत किया जाएगा, उसके ऊपर लगाया जाने वाला कर नेपाल को जाएगा या नहीं।"
दक्षिण एशिया में नेपाल पहला देश था, जिसने विकास अनुदान के लिए 2017 में एमसीसी के साथ पहली बार समझौता किया था। 2019 में श्रीलंका ने भी अमेरिका के कॉरपोरेशन के साथ ऐसा ही समझौता किया था, लेकिन बाद में एमसीसी के बोर्ड ने 2020 में "साझेदार देश द्वारा सक्रियता ना दिखाने" के चलते इसे रद्द कर दिया था।
एमसीसी और नेपाल का समझौता
मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (एमसीसी) एक स्वतंत्र विदेशी सहायता संस्था है, जिसका गठन अमेरिकी कांग्रेस ने 2004 में किया था। अपने बनने के बाद से एमसीसी 29 देशों के साथ 37 समझौते कर चुकी है। अनुमानित तौर पर इससे साढ़े सत्रह करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं।
एमसीसी अपनी चयन प्रक्रिया को "प्रतिस्पर्धी" बताता है। संस्था कहती है कि एक स्पष्ट चयन प्रक्रिया द्वारा उन देशों का चुनाव किया जाता है, जिन्हें "गरीबी हटाने" और "विकास तेज करने" के लिए सहायता देने को चुना जाता है। नेपाल के साथ हुए समझौते में अनुदान का निवेश दो अहम सेवाओं के लिए आएगा- सड़कों की गुणवत्ता के प्रबंधन और 187 किलोमीटर लंबी विद्युत ट्रांसमिशन लाइन के ज़रिए विद्युत विस्तार के लिए यह अनुदान आएगा।
एमसीसी: एक भूराजनीतिक मुद्दा या घरेलू अस्थिरता का प्रतीक?
नेपाल में एमसीसी समझौते पर हो रहा विमर्श चीन और अमेरिका के बीच चल रही भूराजनीतिक दुश्मनी के चश्मे से देखी जा रही है। एक राष्ट्रीय मुद्दे पर चारों तरफ ज़मीन से घिरा नेपाल अपने संप्रभु देश होने के अधिकार का प्रयोग कर रहा है।
18 फरवरी को काठमांडू में विरोध प्रदर्शन के बाद नेपाल में अमेरिकी दूतावास ने ट्विटर पर एमसीसी विवाद में "प्रोपेगेंडा" होने का संकेत दिया। अमेरीकी राजदूत रैंडी बेरी ने ट्वीट कर कहा, "हिंसा और हिंसा का उकसावा कभी बर्दाश्त नहीं हो सकता"। साफ़ तौर पर वे एमसीसी समझौते पर चल रहे विमर्श की चर्चा कर रहे थे।
बता दें संसद में एमसीसी समझौते को मान्यता मिलने के बाद नेपाल में अमेरिकी दूतावास ने खुशी का भाव व्यक्त करता हुआ वक्तव्य जारी किया था।
हालांकि एमसीसी अपने अनुदान आधारित विकास का संबंधित देश द्वारा नेतृत्व किए जाने की बात कहती है, लेकिन नेपाल में इस समझौत पर अपनी ही सीमा के भीतर संप्रभुता पर चिंताएं व्यक्त की जा रही हैं। इस समझौते को दक्षिण एशिया में अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। कई लोगों का मानना है कि हाल में हो रहे प्रदर्शनों की वज़ह नेपाल का चीन के प्रति हालिया झुकाव है। 2017 में देउबा की सरकार ने चीन के "बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव" में एक रेलवे प्रोजेक्ट के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस रेलवे प्रोजेक्ट के ज़रिए काठमांडू को मध्य एशिया से जोड़ा जाएगा।
लेकिन एमसीसी के आसपास भूरणनीतिक चिंताओं पर जारी विमर्श में पूरे विवाद की मुख्य बात को नज़रंदाज किया जा रहा है, दरअसल यह अमेरिका-चीन की दुश्मनी में पड़ने के बजाए एक दक्षिण एशियाई संप्रभु राष्ट्र के तौर पर अपनी पहचान को दृढ़ करने की कोशिश है।
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली में दक्षिण एशियाई अध्ययन केंद्र में प्रोफ़ेसर सौरभ कहते हैं कि एमसीसी, भूरणनीति के बजाए नेपाल में बदतर होती राजनीतिक अस्थिरता के बारे में ज़्यादा है। वे कहते हैं "एक विकास परियोजना के तौर पर एमसीसी नेपाल द्वारा चीन या अमेरिका के बरक्स,अपने स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता के बारे में है। जैसा एमसीसी विवाद से भी पता चलता है, 2017 में नेपाली राजनेता एमसीसी समझौते पर हस्ताक्षर करने के अपने फ़ैसले का बचाव नहीं कर पाए। आज नेपाल अपनी बेहद गंभीर स्तर की राजनीतिक अस्थिरता से प्रताड़ित है, जो देश में किसी भी तरह के विकास कार्य में अंडगा लगा रही है।"
2017 में देउबा सरकार के सत्ता में आने के बाद से, सरकार अब तक दो बार भंग हो चुकी है, लेकिन 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने भंग प्रक्रिया को गलत ठहराया और संसद प्रतिनिधियों को दोबारा उनके पदों पर नियुक्ति दे दी, साथ ही देउबा को प्रधानमंत्री के तौर पर सरकार का प्रमुख माना। स्थानीय मीडिया के मुताबिक़ संसद में वोटिंग के बाद, प्रधानमंत्री के घर पर पांच पार्टियों वाले गठबंधन की बैठक हुई थी। सीपीएन-माओवादी जैसी सहायक पार्टियों द्वारा कई महीनों से गठबंधन को भंग करने की धमकियों के बीच आखिर में समझौते का समर्थन करने का फ़ैसला किया गया।
नवंबर 2022 में नेपाल में आम चुनाव होने हैं। वहां की घरेलू राजनीति और क्षेत्र में नेपाल के संबंधों में एमसीसी विवाद द्वारा एक अहम भूमिका निभाने के आसार हैं।
साभार : पीपल्स डिस्पैच