बिहार : सरकारी एजेंसियों द्वारा धान की धीमी ख़रीद प्रक्रिया से किसान परेशान
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पटना : पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी सरकारी एजेंसी द्वारा धान की धीमी ख़रीद प्रक्रिया से गजेंद्र सिंह जैसे किसान परेशान हैं। इससे गजेंद्र और उनके जैसे अन्य किसान खुले बाज़ार में अपनी धान की फ़सल बेचने को बाध्य हुए हैं।
बिहार के अरवल ज़िले के कारपी ब्लॉक के कीयल गांव के निवासी गजेंद्र सिंह ने न्यूज़़क्लिक को बताया- “सरकारी एजेंसियों के संबधित अधिकारियों द्वारा अपनाई जाने वाली धीमी ख़रीद प्रक्रिया का दो हफ़्ते तक इंतज़ार करने के बाद मैंने दो दिन पहले ही 20 क्विंटल धान स्थानीय व्यापारियों को बेच दिया।” गजेंद्र कहते हैं कि हाल के वर्षों में धान की बिक्री का संकट सामान्य बात हो गई है। यह नई बात नहीं है बल्कि यह राज्य सरकार और केंद्र सरकार के न्यूनतम समर्थन ख़रीद मूल्य के विपरीत है। सरकार अपने दावे में असफल रही है। कठिन परिश्रम और हर वर्ष उत्पाद लागत बढ़ने की बावजूद किसानों को धान का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है।“
औरंगाबाद ज़िले के हसपुरा ब्लॉक के इटवन गांव के रहने वाले ललन प्रसाद न्यूज़क्लिक को बताते हैं, “सरकारी एजेंसियां कुछ न कुछ बहाने बनाकर धान की ख़रीद में अधिक समय लगाती हैं जबकि किसानों ने कई महीने मेहनत की होती है तो वे धान का तुरंत भुगतान चाहते हैं। सरकारी एजेंसियां भुगतान में देरी करती हैं कभी-कभी तो हफ़्तों और महीने लगा देती हैं। मेरे जैसे लोग, जिनके पास कम ज़मीन है, अपनी धान की उपज सरकार के बजाय व्यापारियों को बेचना आसान समझते हैं। क्योंकि वे तुरंत भुगतान करते हैं, सरकारी एजेंसियों की तरह देर नहीं करते। छोटे और हाशिए के किसान धान बेचने के लिए सरकारी एजेंसियों का महीनों तक इंतज़ार नहीं कर सकते।
बड़े किसान जैसे कि पटना ज़िले के पाली ब्लॉक के जमहरू गांव के निवासी फ़रीद ख़ान उर्फ़ राजू न्यूज़क्लिक को बताते हैं, “मैंने रोहतास ज़िले के व्यापारियों को 200 क्विंटल धान 1,650 से 1,700 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बेच दिया। वहां सरकारी एजेंसियों की तरह न तो परेशानी हुई, और न रेट या दर कम करने की झिकझिक और न घूस या रिश्वत का कोई चक्कर। और सबसे ख़़ास बात बाज़ार के प्रचलित रेट पर बिना देरी के तुरंत भुगतान हो गया।“
इसी गांव के एक अन्य किसान मानो ख़ान न्यूज़क्लिक को बताते हैं कि उन्होंने भी धान व्यापारियों को बेचे। धान की फ़सल कटने पर सरकारी एजेंसिया देर से और कम मूल्य पर ख़रीद करती हैं। इस बार भी किसानों को अपना धान अपने आप बेचने के लिए छोड़ना कोई पहली बार नहीं हुआ है। सरकार किसानों से धान ख़रीदने में असफल रही। इसका परिणाम यह हुआ कि किसानों ने व्यापारियों को कम दर पर धान बेचना शुरू कर दिया और यह कोई नई बात नहीं है। कई सालों से ऐसा ही हो रहा है। हमें पता है कि पड़ोस के गांव के कई किसानों ने सरकारी एजेंसियों को पिछले महीने धान बेचा पर अभी तक उनका भुगतान नहीं हुआ है।
गजेंद्र, प्रसाद और ख़ान जैसे हज़ारों ग़रीब और अमीर किसान हैं जो सरकारी एजेंसियों की ख़़राब धान ख़रीद प्रक्रिया से परेशान हैं। उन्होंने एक आवाज़ में कहा कि सरकार सीधे किसानों से धान ख़रीद में पूरी तरह से असफल रही है। धान ख़रीद प्रक्रिया न केवल धीमी है बल्कि उन्हें संकट में डालने वाली है।
धान उगाने वाले किसानों की ज़मीनी हक़ीक़त सरकार के उस दावे पोल खोलती है कि सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद करती है और केंद्र सरकार की यह घोषणा भी बेमानी होती है।
हसपुरा में परचारा पंचायत के मुखिया फ़ुरक़ान ख़ान ने न्यूज़क्लिक को बताया कि सरकारी एजेंसियों के अधिकारियों की धान ख़रीद की लंबी काग़ज़ी प्रक्रिया से किसान परेशान हैं। इसके अलावा उनकी रिपोर्ट में अनियमितताएं होना आम बात है। इस वजह से किसान व्यापारियों को धान बेचने के लिए बाध्य होते हैं क्योंकि वहां कोई काग़ज़ी कार्रवाई नहीं होती।
फ़ुरक़ान सही कहते हुए दिखते हैं क्योंकि यहां जो रिपोर्ट पहुंच रही हैं उनमें किसानों की शिकायतें हैं और वे भुगतान की अनियमितताओं का आरोप लगा रहे हैं। इसलिए वे धान की सरकारी ख़रीद के प्रति अनिच्छुक हैं।
बिहार में प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां (PACS) और व्यापार मंडल राज्य की हर पंचायत से किसानों से धान की सीधे ख़रीद से जुड़े हैं। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि किसानों को उनकी फ़सल का उचित और लाभकारी मूल्य मिल सके।
अभी तक (04 जनवरी, 2023) के सहकारिता विभाग के आधिकारिक डेटा के अनुसार सरकार ने 185800 किसानों से 1420453.255(14.20) लाख मीट्रिक टन धान की ख़रीद की है जो कि निर्धारित लक्ष्य का 31% है।
राज्य में धान ख़रीद प्रक्रिया 1 नवंबर 2022 को शुरू हुई थी और सरकार ने 31 मार्च 2023 तक 45 लाख मीट्रिक टन ख़रीद का लक्ष्य रखा है।
राज्य के सहकारिता विभाग के धान ख़रीद करने वाले वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया कि नवंबर और दिसंबर में धान ख़रीद प्रक्रिया धीमी थी लेकिन निर्धारित लक्ष्य प्राप्ति के लिए जनवरी और फ़रवरी में इसे तेज़ किया जाएगा।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार बिहार की कुल 12 करोड़ की आबादी में लगभग दो-तिहाई आबादी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। इनमें से अधिकांश छोटे और हाशिए के किसान हैं। इसके अलावा लगभग दो-तिहाई कृषि गतिविधियां बारिश पर निर्भर होती हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है, इसमें 81% कर्मचारियों को रोज़गार मिलता है जो कि राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 42% है।
मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः
Bihar: Farmers Resort to Distress Sale Due to Slow Paddy Procurement by Government
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