बैंकों के विलय के ख़िलाफ़ बैंककर्मियों की देशव्यापी हड़ताल और प्रदर्शन
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय के ख़िलाफ़ बैंक कर्मचारियों की हड़ताल का आज, मंगलवार को देश के कई हिस्सों में ख़ासा असर देखा गया। इस दौरान बैंकिंग सेवाएं प्रभावित रही। हड़ताल की वजह से बैंक काउंटर पर नकदी के जमा और निकासी के साथ-साथ चेक भुगतान की सेवाएं भी प्रभावित हुई हैं।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में बैंक कर्मचारियों ने बड़ी संख्या में इकट्ठा होकर धरना-प्रदर्शन किया। इस हड़ताल का आह्वान ऑल इंडिया बैंक एंप्लॉयीज एसोसिएशन (AIBEA) और बैंक एंप्लॉयीज फेडरेशन ऑफ इंडिया (BEFI) ने किया था। 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने भी इस हड़ताल का समर्थन किया।
सरकार की विलय की नीति के खिलाफ दिल्ली में बैंक कर्मियों ने जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में शामिल होने आए 59 वर्षीय धर्म प्रकाश जो पिछले 35 वर्षों से सिंडिकेट बैंक में कार्यरत हैं, ने कहा कि इससे गाँव का किसान, कस्बे का छोटा व्यापारी और लाखों अन्य भारतीय नागरिक प्रभावित होंगे। आपको बता दें कि ग्रामीण क्षेत्रों में मजबूत पकड़ रखने वाले, सिंडिकेट बैंक का अब केनरा बैंक के साथ विलय होने जा रहा है, जो देश में चौथा सबसे बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक है। प्रकाश का मानना है कि यह विलय बैंक शाखाओं को बंद करने का काम ही करेगा, खासकर ग्रामीण क्षेत्र में।
उन्होंने कहा कि "आज, कर्मचारियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही बैंकिंग प्रणाली को बचाने के लिए हड़ताल की है।"
धर्म प्रकाश की ही तरह 2013 से कॉर्पोरेशन बैंक में क्लर्क 28 वर्षीय शेखर विरोध प्रदर्शन में शामिल होने आए थे। उनके अनुसार, बैंक विलय बढ़ती गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (Non-Performing Assets:NPA) का समाधान नहीं है। शेखर ने बताया, "पहले बैंक कर्ज़ देते हैं और फिर अपनी बैलेंस शीट के खर्च को कम करने के लिए उन्हें माफ़ करते हैं, और सरकार बैंकों को शाखाओं और एटीएम को बंद करने के लिए विलय कर देती है।"
25 वर्षीय, सविता, जो पिछले साल ही आंध्र बैंक में नियुक्त हुई थी, ने इसी तरह की चिंताओं को दोहराया। वह कहती हैं कि यह व्यवस्था बैंकिंग कर्मचारियों के साथ अन्याय है।" उन्होंने कहा कि "एक कर्मचारी या एक आम नागरिक नहीं बल्कि ऊपरी प्रबंधन करोड़ों रुपये के डूबत ऋण के लिए जिम्मेदार है।" "हालांकि, हमें उनके बुरे सौदों का भुगतान करते हैं।"
30 अगस्त को, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आंध्रा बैंक और कॉरपोरेशन बैंक दोनों को यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के साथ मर्ज करने की घोषणा की है।
इस हड़ताल के बारे में भारतीय स्टेट बैंक समेत अधिकतर बैंकों ने अपने ग्राहकों को पहले ही जानकारी दे दी थी। बैंकों की ओर से दावा किया जा रहा है कि इस हड़ताल का शहरों के सरकारी बैंकों में ज़्यादा असर नहीं पड़ा और वहां कामकाज हुआ। हालांकि देश के ग्रामीण इलाकों में इसका व्यापक असर देखने को मिला।
आपको बता दें कि शहरी क्षेत्रों में सरकारी बैंकों की कई शाखाओं में कामकाज की वजह इन शाखाओं के अधिकारियों का हड़ताल का हिस्सा नहीं होना रहा। अधिकारियों ने इससे पहले अलग से हड़ताल का आह्वान किया था, लेकिन सरकार के हस्तक्षेप के बाद फिर वापस ले लिया था।
बैंक संगठनों की इस हड़ताल का कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय के अलावा जमा दर में कमी के खिलाफ भी था।
एआईबीईए के महासचिव सी. एच. वेंकटचालम ने कहा कि देश को बैंकों के विलय की बिल्कुल जरूरत नहीं है क्योंकि हमें और बैंकिंग सेवाओं की जरूरत है तथा लोगों को सेवाएं देने के लिए और शाखाएं खोलनी हैं।
उन्होंने कहा कि विलय के परिणामस्वरूप कई शाखाएं बंद हो जाएंगी, इसलिए यह एक गलत नीति है। भारी मात्रा में फंसे कर्ज की वसूली बैंकों की प्राथमिकता होनी चाहिए और विलय उनकी इस प्राथमिकता को बदल देगा। इसलिए यह एक बुरा विचार है।
इस हड़ताल का मध्यप्रदेश में व्यापक असर देखने को मिला। मध्यप्रदेश बैंक एम्प्लॉयीज एसोसिएशन (एमपीबीईए) के सचिव एमके शुक्ला ने "पीटीआई-भाषा" को बताया, "हड़ताल के दौरान सूबे में सरकारी और निजी क्षेत्र के वाणिज्यिक बैंकों की कुल 7,416 शाखाओं में से लगभग 4,800 शाखाओं में अलग-अलग सेवाएं प्रभावित रहीं।"
उन्होंने बताया कि राज्य में बैंक हड़ताल में करीब 20,000 कर्मचारियों ने हिस्सा लिया। इससे बैंक शाखाओं में धन जमा करने और निकालने के साथ चेक निपटान, सावधि जमा (एफडी) योजनाओं का नवीनीकरण, सरकारी खजाने से जुड़े काम और अन्य नियमित कार्य प्रभावित हुए।
इस बीच, हड़ताली कर्मचारियों ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रस्तावित विलय के खिलाफ यहां रैली निकालकर आक्रोश जताया। प्रदर्शन के दौरान उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार की बैंकिंग नीतियां "जनविरोधी" हैं।
10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने दिया समर्थन
10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने भी बैंक कर्मचारियों की हड़ताल को अपना समर्थन दिया। उन्होंने इस कदम को "बैंकों के निजीकरण की प्रस्तावना" कहा।
दिल्ली में हड़ताली बैंक कर्मचारियों को संबोधित करते हुए, अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC : एआईटीयूसी) के महासचिव अमरजीत कौर ने कहा, "बैंक विलय राष्ट्र के विकास के लिए लागू मोदी सरकार के 'बैक गियर्स' में से एक है।"
उन्होंने कहा कि "यह सामाजिक बैंकिंग प्रणाली पर हमला है जो 1969 में बैंक राष्ट्रीयकरण के माध्यम से हासिल किया गया था ...इसे यूनियनों और श्रमिकों के 23 साल के संघर्ष के बाद हासिल किया गया था।"
उन्होंने सरकार की 'मजदूर विरोधी' नीति और सुधारों के खिलाफ देश के सभी संगठनों और सभी उद्योगों से जुड़े मज़दूरों की एकजुटता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
इस मौके पर दस राष्ट्रीय ट्रेड यूनियनों और कई अन्य स्वतंत्र श्रमिक संघों ने संयुक्त रूप से 8 जनवरी, 2020 को देशव्यापी हड़ताल की कार्रवाई में शामिल होने का आह्वान किया।
देश के लगभग सभी राज्यों में हड़ताल का अच्छा असर देखने को मिला। कर्मचारियों ने एकजुट होकर सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला। देखिए एक झलक :
United Bank of India, Head Office (Kolkata)
Kolkata
Chennai
Punjab National Bank (Kolkata)
Punjab National Bank (Jamshedpur)
Cuttack (Odisha)
United Bank of India (Kolkata)
Trivandrum
Ernakulam (Kerala)
New Delhi
New Delhi
Palakkad (Kerala)
Kottayam
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)
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