ओमान-सीरिया गठबंधन क्षेत्रीय राजनीति पर असरदार साबित हो रहा है

ओमान के नव-नियुक्त राजनयिक द्वारा 5 अक्टूबर को दमिश्क में लैटर ऑफ़ क्रेड़ेंस की प्रस्तुति निश्चित तौर पर सीरियाई संघर्ष में एक निर्णायक क्षण के तौर पर है। क्षेत्रीय देशों को राष्ट्रपति बशर अल-असद के नेतृत्व वाली सीरियाई सरकार की वैधता को लेकर कोई संदेह नहीं है। यूएई ने पहले से ही दमिश्क में अपने दूतावास को इन मामलों के प्रभारी की अगुवाई में दोबारा से खोल दिया है।
ओमान ने इस बेहद अहम कदम को लेने का काम सीरिया में रूसी हस्तक्षेप की पांचवीं वर्षगांठ के ठीक 5 दिन बाद किया है, जिसने इस युद्ध के रुख को असद के पक्ष में मोड़ दिया है - जो बहरहाल ठीक ही इस बात पर जोर दे रहे हैं कि उनके देश में मौजूद प्रमुख रुसी नौसैनिक एवं हवाई आधार आगे भी इस क्षेत्र में पश्चिमी शक्तियों के प्रभाव से मुकाबला करने में मददगार साबित होंगे।
ओमान का उदाहरण एक ट्रेंड सेटर साबित हो सकता है। जल्द ही मिस्र भी इसका अनुकरण कर सकता है – और शायद जॉर्डन सहित कुवैत भी। सउदी हो सकता है कि सीरिया में अपनी दखलंदाजी से मिली निराशाजनक विफलता को देखते हुए अपने पाँव पीछे खींच सकता है। और कतर? तुर्की के साथ के इसके गठबंधन के बावजूद, उससे इसकी संभावना नहीं है।
हालांकि इस मामले का लुब्बोलुबाब यह है कि ओमान जोकि एक खाड़ी देश है, और जिसके ब्रिटेन और अमेरिका के साथ कूटनीतिक संबंध बेहद बारीकी के साथ तारतम्यता में बंधे हुए हैं। अमेरिकी-ईरानी गतिरोध में भी ओमान ने 'सूत्रधार' के तौर पर बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। क्या इसी प्रकार की भूमिका वह वाशिंगटन और दमिश्क के बीच में संपर्कों को मुहैय्या कराने में निभाएगा? यकीनन, ओमानी पहल का यही असली मकसद हो सकता है। जरुर इस बारे में मस्कट ने वाशिंगटन और लंदन से परामर्श किया होगा।
इसलिए हर मायने में देखें तो कूटनीति सीरियाई संघर्ष के अनुरूप अपनी चाल में परिवर्तन ला रही है। इराक में तो हाल ही में अमेरिका ने मजबूर करने वाली कूटनीति – ‘स्मार्ट पावर’ को बेहद कारगर तरीके से इस्तेमाल में लाने का काम किया है। यह इतना असरदार रहा कि यह बगदाद में अपने प्रभाव का फायदा उठाकर ईरान के अपने पड़ोसी पर पकड़ ढीली करा पाने में सक्षम है।
इज़राइल जो कि सैन्य स्तर से अमेरिका को मदद पहुँचाता है जैसा कि ईरान समर्थक मिलिशिया समूहों पर हाल ही में किये गए हवाई हमले इस बात का इशारा करते हैं, निश्चित तौर पर सीरिया के संबंध में भी उसे इसी तरह के दृष्टिकोण की उम्मीद होगी। वस्तुतः इजरायल के लिए अमेरिका की सीरिया में मौजूदगी एक अनिवार्यता है। और यह एक हकीकत है कि बिना इराक में अमेरिकी सेना की मौजूदगी के सीरिया में उसकी उपस्थिति का कोई खास औचित्य नहीं है।
इस बीच सीरिया को लेकर भी इजरायल का एजेंडा बदल रहा है। एक बार फिर से असद के साथ सौदेबाजी में वापस जाने की अब जरूरत उत्पन्न होने लगी है, जो पूर्व में एक सहयोगी वार्ताकार हुआ करते थे। यदि वाशिंगटन और दमिश्क के बीच वार्ता शुरू हो जाती है तो यकीन मानिये इज़राइल भी उसमें शामिल हो जायेगा।
दूसरा, खाड़ी देशों के साथ इजरायल के संबंधों में आई नरमी पहले से ही इसे अरब दुनिया में कुछ रणनीतिक गहराई मुहैया करा रहा है। सीरिया में, इजरायल और अमीराती हित ईरान के हितों की तुलना में अभिशरण करते हैं।
तीसरी सबसे महत्वपूर्ण वजह यह है कि इज़राइल, तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप एर्दोगन के साथ टकराव की तैयारी में लगा हुआ है। यह किस स्वरुप में सामने आयेगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है। ज्यादा संभावना इस बात की है कि जुबानी जंग की शुरुआत हो चुकी है। इज़राइली गेम प्लान में एर्दोगन को तुर्की में 2023 में होने वाले अगले संसदीय चुनाव तक शक्तिहीन बना देने का या अपने खुद के अगले तीन वर्षों में होने वाले चुनाव तक की होगी।
इसे सुनिश्चित करने के लिए इजरायल की काकेशस और ब्लैक सी (यूक्रेन, जॉर्जिया और अज़रबैजान) में उपस्थिति ही अपनेआप में एर्दोगन को यहाँ से निकाल बाहर करने के ठोस प्रयास के तौर पर दिखती जान पड़ती है। अपने इस उद्यम में इज़राइल चाहे तो अमेरिका, फ्रांस, मिस्र, सऊदी अरब और यूएई पर भरोसा कर सकता है। (लेकिन इस गलत धारणा के विपरीत कि इज़राइल रूस के साथ अपने संबंधों के बारे में प्रचार करना चाहेगा, फिलहाल कुछ हद तक धुंधलके में चले गए हैं।)
वहीं दूसरी ओर तुर्की-कतर गठबंधन भी ईरान के साथ कुछ हद तक अभिसरण का आनंद ले रहा है। (नागोर्नो-काराबाख संघर्ष के चलते कुछ समय के लिए अंकारा और तेहरान के बीच कुछ दूरी उत्पन्न हो सकती है, लेकिन दोनों ही पक्ष किसी भी प्रकार की गंभीर गलतफहमी से बचने के प्रति जागरूक हैं।) तुर्की और ईरान इन दोनों ही देशों के सीरियाई और इराकी स्थिति को लेकर विशिष्ट हित जुड़े हुए हैं, लेकिन "सिराक" टर्फ (सीरिया+इराक) को लेकर अमेरिकी-इजरायली-खाड़ी अरब धुरी की ओर से अंकारा और तेहरान के लिए साझा चुनौती यहाँ पर बनी हुई है।
इस सबमें बड़ी तस्वीर यह है कि सीरिया में सामान्य हालात की बहाली की ओर बढ़ते कदम और स्थिरीकरण दरअसल इसके पुनर्निर्माण के लिए आने वाली अंतरराष्ट्रीय सहायता पर गंभीर तौर पर निर्भर रहने वाली है। इस मामले में यूएई एक संभावित दानदाता हो सकता है। उसी तरह चीन भी है। ईरान और रूस की अपनी कुछ सीमाएं हो सकती हैं। जबकि तुर्की की भूमिका तबतक समस्याग्रस्त बनी रहने वाली है जब तक कि सीरियाई क्षेत्र पर उसका कब्जा बना हुआ है।
लेकिन अगर जिनेवा में समझौते को लेकर कुछ हल निकाल लिया जाता है तो पश्चिमी सहायता पर लगी रोक और प्रतिबंधों को हटा लिया जाएगा। ऐसे में अमेरिका का उद्देश्य होगा कि किसी प्रकार असद शासन को कुहनी मारकर समझौते की मेज तक पहुंचने के लिए उसे तैयार करे। इस रुख पर रूस कोई दिक्कत नहीं होने जा रही है। सैद्धांतिक तौर पर देखें तो सीरिया में स्थिरता रूसी हितों के अनुरूप है।
हालांकि मास्को निश्चित तौर पर यूएस-इजरायली धुरी के चुपके से सेंध लगाने को लेकर सचेत रहने वाला है। भूमध्य सागर में रूसी सैन्य उपस्थिति को वापस करने के प्रति पश्चिमी कोशिशें निश्चित तौर पर मास्को का ध्यान आकर्षित करने के लिए काफी हैं। इसके साथ ही ब्लैक सी में रूसी प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए नाटो अपनी मौजूदगी को सुदृढ़ करने में लगा हुआ है।
सीरिया में मौजूद रुसी ठिकाने स्पष्ट तौर पर मास्को के लिए महत्वपूर्ण रणनीतिक संपत्ति के तौर पर हैं और किसी बिंदु पर जाकर वे पश्चिमी जाले से टकरायेंगे। कुल मिलाकर कहें तो रूस इस बात को सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश में रहेगा कि दमिश्क में एक मैत्रीपूर्ण सरकार सत्ता पर काबिज रहे।
दूसरी बात रूसी रणनीतिक गणना में तुर्की के साथ संधि से जुड़े महत्व को देखते हुए, मास्को के लिए सबसे अच्छा दाँव अभी भी एर्दोगन को सीरिया के सम्बंध में अदाना समझौते (1998) की तह में वापस लाने का होना चाहिए, और तुर्की-सीरियाई संबंधों में एक नए पृष्ठ की शुरुआत को बल देना होगा।
रूस के पास काकेशस एवं मध्य पूर्व के बीच मौजूद तालमेल की ऐतिहासिक यादें जिन्दा हैं। इन परिस्थितियों में काकेशस के मुद्दे पर रूसी-तुर्की टकराव को पूर्णतः खारिज किया जा सकता है।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।