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बिना किसी नियंत्रण के बढ़ रहे हैं खाने-पीने की चीज़ों के दाम

...इस दौरान सरकार इन सब से अनभिज्ञ बनी हुई है।
food items
'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: Wikimedia Commons

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के पास उपलब्ध नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, जून के अंत तक, गेहूं और आटे की कीमतों में अविश्वसनीय 10 प्रतिशत की मुद्रास्फीति/द्धि ने महंगाई को बढ़ा दिया है। इसका मतलब है कि कीमतें पिछले साल जून की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक थीं। ठीक छह महीने पहले, जनवरी में, गेहूं की मुद्रास्फीति दर 5.1 प्रतिशत  थी – यह असुविधाजनक थी लेकिन अभी तक घातक नहीं थी। स्टेपल अनाज की कीमतों में हुई इस विनाशकारी वृद्धि को निर्यात को बढ़ावा देने की पहले की नीतिगत असफलता को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जिससे खरीद में गिरावट आई और बाद में यू-टर्न लिया गया।

लेकिन आवश्यक खाद्य पदार्थों की कीमतों में लगातार वृद्धि केवल गेहूं तक ही सीमित नहीं है। जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में दिखाया गया है, सब्जियों की कीमतें साल की शुरुआत में लगभग 5 प्रतिशत की दर से बढ़कर जून में 17.4 प्रतिशत हो गई हैं। इनमें से कुछ गर्मियों की वजह से मौसमी कीमतों में वृद्धि है, लेकिन यह अभी भी इस साल की वार्षिक विशेषता से बहुत आगे है।

सब्जियों की कीमतों में इस वृद्धि का कारण मुख्य रूप से ईंधन की ऊंची कीमतों के कारण उत्पन्न होने वाली परिवहन की उच्च लागत है - फिर भी सरकार द्वारा पेट्रोलियम उत्पादों से अधिकतम करों को निचोड़ने की सरकार की नीति का प्रत्यक्ष परिणाम है। गर्मी की लहर ने भी सब्जियों की कीमतों में इस असामान्य वृद्धि में योगदान दिया है।

लेकिन मूल्य वृद्धि इन सामान्य संदिग्धों उत्पादों तक ही सीमित नहीं है। जैसा कि उसी मंत्रालय के मूल्य सूचकांक डेटा से हासिल बाद के चार्ट में दिखाया गया है, कई अन्य वस्तुओं या खाद्य समूहों की कीमतें कुछ महीनों से ऊंची चल रही हैं।

मुख्य रूप से वैश्विक बाजार में पाम तेल की ऊंची कीमतों के कारण पिछले साल जनता के एक बड़े हिस्से के लिए खाना पकाना काफी महंगा हो गया था। जबकि इस प्रमुख खाद्य पदार्थ की महंगाई में कुछ कमी आई है, जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में दिखाया गया है, ध्यान दें कि मुद्रास्फीति/महंगी कीमतों में पिछले छह महीनों में करीब-19 प्रतिशत से लगभग 9.4 प्रतिशत तक कम हो गई है! महीनों के भीतर दोहरे अंकों की मुद्रास्फीति के बाद लगभग 10 प्रतिशत की वार्षिक मुद्रास्फीति दर को शायद ही राहत कहा जा सकता है। इस वजह से परिवारों को बजट का भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है क्योंकि खाना पकाने का तेल भारतीय व्यंजनों का एक अनिवार्य हिस्सा है। और, यह और भी हानिकारक हो जाता है जब इसके साथ अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं।

ऊपर दिया गया चार्ट मसालों की वार्षिक मुद्रास्फीति दर को भी दर्शाता है - खाद्य पदार्थों की एक अन्य श्रेणी जो कीमतों में भारी वृद्धि दिखा रही है। मूल्य मुद्रास्फीति जनवरी में 4.7 प्रतिशत से बढ़कर जून तक 11 प्रतिशत हो गई थी। हालांकि मसालों को कम मात्रा में इस्तेमाल किया जाता है, यह मूल्य वृद्धि अभी भी परिवारों को बहुत अधिक खर्च करने पर मजबूर कर रही है।

प्रोटीन के दो प्रमुख स्रोत- दूध उत्पाद, और मांस और मछली हैं- और दोनों ही महंगे हो गए हैं, जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में दिखाया गया है। मांस और मछली की कीमतों की मुद्रास्फीति जनवरी में 5.5 प्रतिशत से बढ़कर जून के अंत तक 8.6 प्रतिशत हो गई है, जबकि दूध और उत्पादों ने इस वर्ष की पहली छमाही में 4.1 प्रतिशत से 6.1 प्रतिशत तक मुद्रास्फीति की वृद्धि प्रदर्शित की है।

वस्तुओं का एकमात्र अन्य समूह जो बहुत अधिक मुद्रास्फीति दिखा रहा है, वह है 'ईंधन और रोशनी', जिसमें मुख्य रूप से पेट्रोलियम उत्पाद शामिल हैं। इस समूह की मुद्रास्फीति दर जनवरी में लगभग 9.3 प्रतिशत से बढ़कर जून तक 10.4 प्रतिशत हो गई थी। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, यह अन्य वस्तुओं, विशेष रूप से खराब होने वाली वस्तुओं की कीमतों को भी बढ़ा रहा है।

सरकार क्या कर सकती है?

नरेंद्र मोदी सरकार ने महंगाई पर नियंत्रण पाना काफी हद तक छोड़ दिया है। कोई महत्वपूर्ण नीतिगत घोषणा नहीं की गई है जो मूल्य-नियंत्रण उपायों की शुरुआत करती हो। घोषित उपायों में केवल गेहूं और बाद में गेहूं के आटे के निर्यात पर प्रतिबंध था, हालांकि रिपोर्टों से पता चलता है कि विभिन्न अपवादों के तहत आटा निर्यात जारी है।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस पक्षाघात को संक्षेप में तब रखा जब उन्होंने कथित तौर पर कहा कि मूल्य वृद्धि किसी भी राष्ट्र के नियंत्रण से बाहर की बात है। उन्होंने आगे कहा कि मुद्रास्फीति की दर कई अन्य देशों में अधिक है - शायद इसका मतलब यह है कि भारतीयों को इसके बारे में खुश होना चाहिए।

यह नियतिवाद कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए ठोस उपाय करने से सरकार के इनकार को छुपाता है, जिसमें निम्न उपाय हो सकते हैं- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में उपलब्ध वस्तुओं की टोकरी का विस्तार करना, पीडीएस के कवरेज का विस्तार करना और अधिक परिवारों को शामिल करना जो इसमें छूट गए हैं। पेट्रोलियम ईंधन की लागत, जमाखोरी और कालाबाजारी के खिलाफ सख्त कदम उठाना और अभी भी महामारी के परिणामों से पीड़ित परिवारों को आय सहायता प्रदान करना। इन तात्कालिक उपायों के अलावा, यह तिलहन और अन्य कृषि वस्तुओं के उत्पादन को बढ़ाने के लिए व्यवहार्य कार्यक्रम शुरू कर सकती है।

दही, लस्सी, पनीर, और प्री-पैकेज्ड प्री-लेबल गेहूं, चावल जैसी दैनिक उपयोग की कई वस्तुओं पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) छूट को वापस लेने के हालिया फैसले में सरकार का रवैया इस दिशा में सोचना तो दूर, उल्टे आटा, आदि की वस्तुओं की कीमतों में 5 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-

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