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कई प्रणाली से किए गए अध्ययनों का निष्कर्ष :  कोविड-19 मौतों की गणना अधूरी; सरकार का इनकार 

हालिया अनुमानों के मुताबिक, भारत में कोविड-19 की वजह से मरने वाले लोगों की तादाद 22 लाख से लेकर 49 लाख के बीच हो सकती है। इनके आधार पर वास्तविक मौतों की संख्या आधिकारिक स्तर पर दर्ज की गई और बताई जा रही तादाद के मुकाबले 5 से 11 गुनी अधिक हो सकती है!
कई प्रणाली से किए गए अध्ययनों का निष्कर्ष :  कोविड-19 मौतों की गणना अधूरी; सरकार का इनकार 
छवि सौजन्य : अल जजीरा 

गंगा में बहायी गईं लाशें, अपने परिजनों के अंतिम संस्कारों के लिए शमशानों के अंदर से लेकर बाहर तक लगीं लंबी-लंबी कतारें, एक दूसरे से महज हाथ भर की दूरी पर दिन-रात जलती अनेक चिताएं, नदी के पेटे में खोदी गईं पर शिनाख्त में न आने वाली अनेक कब्रें–कोविड-19 वैश्विक महामारी की दूसरी घातक लहर के दौरान बनी ये खौफनाक तस्वीरें लोगों को दिलो-दिमाग में अब भी ताजा हैं। इन तस्वीरों से गुजरते हुए और ये जिन असलियतों की बखान करती हैं, उनके मुताबिक देश के पत्रकार, विशेषज्ञ, और अकादमिक अपने-अपने तरीके मौतों की असल तादाद की थाह लगाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि सरकार इससे इनकार करती दिख रही है।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 24 जुलाई 2021 तक कोविड-19 महामारी की शुरुआत से अब तक देश में कुल 4,19,452 लाख (0.42 मिलियन) लोगों की मौत हुई हैं।

हालांकि महामारी की पहली लहर के समय से ही, सरकार पर ये आरोप लगाए जाते रहे हैं कि वह इससे होने वाली मौतों की तदाद कम करके बता रही है। उनकी वास्तविक संख्या छिपा रही है। देश के अनेक राज्यों से इस आशय की मिल रही खबरें बताती हैं कि मौतों की आधिकारिक संख्या, अनौपचारिक तरीके-जैसे शमशानों एवं कब्रिस्तानों में अंतिम संस्कार के लिए लाए गए शवों की गिनती के जरिए-जुटाए गए मौत के वास्तविक आंकड़ों से मेल नहीं खाती है। पिछले एक साल या इससे भी अधिक समय से, विद्वानों ने मानक आधारित अनुमानों के साथ मौतों के आधिकारिक दावों एवं असल संख्या के बीच की इस विसंगति को समझने के प्रयास किए हैं।

अब तक के विभिन्न अध्ययनों में देखा गया है कि कम गिनती के अनुमानों में भी काफी अंतर है लेकिन जो बात सिरे से पूरी तरह साफ है, वह यह कि सरकार कोविड-19 से मरने वालों के जिन आंकड़ों पर हमसे आंख मूंद कर भरोसा कर लेने को कह रही है, उनकी तुलना में मरने वालों की तादाद बहुत-बहुत ज्यादा है।

आधिकारिक रूप दर्ज की गईं एवं वास्तविक मौतों के बीच की विसंगति को मापने की एक सामान्य विधि है-अतिरिक्त मृत्यु दर की गिनती। अतिरिक्त मृत्यु दर से तात्पर्य किसी संकट के दौरान सभी कारणों से होने वाली मौतों की संख्या से ऊपर और उससे अधिक होने वाली मौत है, जिसे हम 'सामान्य' परिस्थितियों में इतनी संख्या में होने की उम्मीद करते हैं।

द हिंदू ने कुछ चुने गए राज्यों में इन अतिरिक्त मृत्यु दरों के बारे में किस्तों में रिपोर्टें छापी थीं। इनमें बताया था कि ये अतिरिक्त मौतें सरकारी स्तर पर दर्ज की गई मौत के आंकड़ों से लगभग 1.5 गुनी से लेकर सात गुनी अधिक हुई थी। इन अधिक मौतों की गिनती सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (सीआरएस) में 2018 से लेकर मई 2021 तक हर महीने दर्ज होने वाले विवरणों के आधार पर की गई थी।

तालिका 1: आधिकारिक रूप से दर्ज मौतों के बनिस्बत अतिरिक्त मौतें। 

कई अन्य पत्रकारों ने भी अपने तरीके से सरकारी दावों एवं जमीनी हकीकत के बीच की विसंगति को मापने का प्रयास किया है। ऐसी ही एक रिपोर्ट में, इंडिया स्पेंड ने पांच राज्यों, आंध्र प्रदेश, बिहार, केरल, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु के मार्च 2020 से लेकर मई 2021 की अवधि के सीआरएस डेटा को 2019 में इस अवधि की तुलना के जरिए विश्लेषित किया है। इसमें पाया गया कि केरल को छोड़ कर अधिकतर राज्यों में महामारी के दौरान दर्ज अतिरिक्त मौतों की तादाद 1 से 2 लाख तक थी।

कुछ अनुमान और केंद्र सरकार का इनकार

कुछ हालिया अनुमानों के अनुसार, भारत में कोविड-19 से होने वाली वास्तविक मौतों की संख्या 22 लाख से लेकर 49 लाख तक हो सकती है। इसके आधार पर देखें तो महामारी से मरने वालों की असल तादाद आधिकारिक स्तर पर दर्ज की गई तदाद से पांच से 11 गुनी अधिक हो सकती है!

तुषार गोरे एवं विरल वी आचार्य द्वारा आठ जिलों में किए गए अपने ताजा अध्ययन में मृत्यु के कारणों को समझने तथा मृत्यु दर को विश्लेषित करने के लिए संक्रमित मरीजों की आवक पर आधारित मॉडल को अपनाया है। इस अध्ययन को अन्य अनुमानों की पुष्टि करते हुए दिखाया है कि इन जिलों में कोविड-19 के चलते हुई मौतों की वास्तविक दर दर्ज की दर से 3 से 9 गुनी अधिक थी। इस मॉडल ने बताया कि केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में (उदाहरण के लिए, जब स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी हो।), मृत्य की कम गणना किया जाना संभव है। एक बार जब स्वास्थ्य देखभाल की क्षमता अपने अधिकतम स्तर पर पहुंच जाती है तो वहां कुछ नए मरीजों को भर्ती नहीं किया जा सकता है और इस तरह समुचित देखभाल न हो सकने की वजह से उनकी मौत हो जाती है। बड़ी संख्या में आने वाले इस तरह के मरीज ही अतिरिक्त मृत्यु दर और उच्च मृत्यु संख्या को बढ़ाते हैं।

सीजीडी अध्ययन द्वारा लगाए गए अनुमान

सेंटर फॉर डेवलपमेंट के आनंद, सैंडफर और सुब्रह्मणियन द्वारा किया गया एक अन्य महत्वपूर्ण अध्ययन ने भी इस मामले में सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा है। यह अध्ययन तीन विधियों को अपनाते हुए कोविड-19 से हुई अतिरिक्त मौतों के तीन भिन्न अनुमान करता है-इसके मुताबिक मृतकों की यह संख्या 34 लाख, 40 लाख और 49 लाख हो सकती है। इनमें से पहला अनुमान, सात राज्यों के नागरिक पंजीकरण के आधार पर लगाया गया है, जिसके मुताबिक अतिरिक्त मृत्यु दर 34 लाख तक हो सकती है। दूसरा अनुमान, भारतीय सीरो-प्रीविलेंस डेटा के लिए अवस्थाजनित विशिष्ट संक्रमण मृत्यु दर (आइएफआर) के अंतरराष्ट्रीय अनुमानों को लागू करता है और कोविड-19 से उच्च मृत्यु दर के चलते उसके लगभग 40 लाख तक होने के नतीजे पर पहुंचता है। तीसरा अनुमान उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वेक्षण (सीपएचएस) के विश्लेषण के जरिए लगाया गया है। इसमें, सभी राज्यों के 8,00,000 लोगों के अनुदैर्घ्य पैनल 49 लाख अतिरिक्त मौतों का अनुमान लगाता है।

फीगर 1: सीजीडी के अध्ययन अनुमानों के साथ दर्ज मृत्यु की तुलना

फिगर 1 तीनों अनुमानों में और आधिकारिक रूप से दर्ज मृत्यु के आंकड़ों में अंतर को दिखाता है।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने तुरंत ही इन तीनों अनुमानों का खंडन किया और इनके लिए किए गए अध्ययनों की आलोचना की। उन आलोचनाओं में से एक में कहा गया है कि अतिरिक्त मृत्यु दर की गिनती के लिए अमेरिका एवं यूरोपीयन देशों के आइएफआर को भारत में लागू करना दोषपूर्ण है। मंत्रालय का कहना है कि इस तरह की विधि विभिन्न प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कारकों ; मसलन नस्ल, जातीयता, जनसंख्या के गुणसूत्रीय बनावट, पहले के अन्य रोगों के उभार के स्तरों और उस आबादी में विकसित संबद्ध प्रतिरक्षा (इम्युनिटी) के बीच परस्पर क्रिया को खारिज करती है।

हालांकि, यह अवश्य ही नोट किया जाना चाहिए कि सीजीडी अध्ययन भारतीय जनसांख्यिकी और सीरो-प्रिविलेंस पैटर्न के इस्तेमाल के जरिए विभिन्न देशों में आइएफआर में बने अंतरों को सही करने का प्रयास करता है। चूंकि कुल आइएफआर गुमराह कर सकता है, लिहाजा यह अध्ययन पूरे देश में आयु और लिंग के वैशिष्ट्य पर आधारित आइएफआर मॉडल को लागू करता है, इसकी अंतर्निहित धारणा यह है कि जनसांख्यिकी ही समग्र आइएफआऱ में अंतर्देशीय अंतर का मुख्य चालक है।

इसके अतिरिक्त, भारत जैसे देश के लिए पहले के अन्य रोगों के उभार के स्तरों और उस आबादी में विकसित संबद्ध प्रतिरक्षा (इम्युनिटी) और स्वास्थ्य देखभाल की हालत का दरअसल मतलब अध्ययनों में किए गए सवालों की तुलना में उच्च आइएफआर हो सकता है। 

गिलमोटो अध्ययन के अनुमान

क्रिस्टोफ गिलमोटो का हालिया अध्ययन कोविड-19 से हुई मृत्यु की दरों के अनुमान के लिए केरल के विशेष आयु वर्ग एवं लिंग के आंकड़ों के इस्तेमाल के जरिए मई 2021 में पूरे देश में लगभग 22 लाख लोगों की कोविड-19 से मौत हो जाने का अनुमान लगाता है। अलग-अलग आबादी के चार नमूनों-केरल में उम्र एवं लिंग के आधार पर हुई मौतें, जनप्रतिनिधियों (विधायक) की मौतें, भारतीय रेलवेकर्मियों की मौतें, कनार्टक में स्कूल शिक्षकों की मौतों का मृत्यु दर पर पड़ने वाले प्रभाव के पुनर्निर्माण के लिए किया जाता है।

लेखक पहले तो नमूने के रूप में केरल के उम्र औऱ लिंग विशेष कोविड-19 की मृत्यु दर को लागू करता है और फिर आकलित मौतों की संख्या को दुरुस्त करने के लिए मृत्यु दर की तीव्रता को समायोजित (एडजस्ट) करता है। यह समायोजित मृत्यु गणना पद्धति का उपयोग अंतिम रूप से भारत की विशिष्ट आयु और लिंग पर आधारित संरचना की वजह से कोविड-19 की राष्ट्रीय मृत्यु-दर का अनुमान लगाने में करता है। यह अध्ययन इस अनुमान पर टिका है कि भारतीय रेलवे अपने सामाजिक एवं क्षेत्रीय संघटनों के कारण, और एमएलए एवं कर्नाटक के नमूने अपनी खास चारित्रिक विशेषताओं के चलते उच्च मृत्यु दर से पीड़ित हैं और ये भारतीय मृत्यु-दर के अनुभवों के अधिक नजदीक हैं। यह इस बात पर जोर देता है कि भारत की विशिष्ट आयु और लिंग पैटर्न के आधार पर कोविड-19 की मृत्यु दर को दर्शाने के लिए केरल को एक नमूने के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

फिगर 2: गिलमोटो अध्ययन अनुमानों के साथ दर्ज मृत्यु की तुलना।

 गिलमोटो के अध्ययन से लिए गए अनुमान, जो कि अतिरिक्त मृत्यु दर विधि का उपयोग नहीं करता है, उसने भी स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किए गए अन्य प्रतिदावे में सहयोग किया है,  खासकर, यह कि सभी अतिरिक्त मृत्यु दर को कोविड-19 का कारण बताना गुमराह करने वाला है। 

गिलमोटो ने नोट किया है कि महामारी के दौरान,  गैर कोविड रोगों से लोगों की होने वाली मौत में सर्वाधिक कमी आई है। इसलिए कि लॉकडाउन के लागू होने और सुरक्षा के अन्य एहतियात बरतने के चलते लोगों के अन्य बीमारियों (उदाहरण के लिए यातायात संबंधी दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों) की चपेट में आने  और उससे अपनी जान गंवा देने का खतरा काफी कम हो गया है। इसने भी कोविड-19 से होने वाली वास्तविक मृत्यु दर को कम करके आंकने के लिए प्रशासन को प्रेरित करने का काम किया है।  इस प्रकार, अनुमानित अतिरिक्त मृत्यु दर,  वास्तव में यह कम गणना हो सकती है और कोविड-19 से होने वाली मृत्यु दर इन अनुमानों के बनिस्बत कहीं ऊंची हो सकती है।  

संपर्क में आए हुए लोगों की विस्तृत पड़ताल?

इन अध्ययनों के बारे में स्वास्थ्य मंत्रालय की आलोचना के आधारों में से एक आधार यह है कि भारत के पास एक संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए हुए लोगों का पता लगाने की एक विस्तृत कार्यनीति है और सभी प्राथमिक संपर्क चाहे, चाहे वह रोगसूचक

हो या और स्पर्शोन्मुख,  उनकी जांच पूरी तरह से कोविड-19 के परीक्षण के लिए की जाती है। भारत में कोविड-19 के अभूतपूर्व प्रकोप के बीच हालांकि संपर्क में आए हुए का पता लगाने की कार्यनीति काफी हद तक रोक दी गई थी।

दरअसल,  कोविड-19 की पहली लहर के दौरान ही संपर्क में आए हुए लोगों की पड़ताल को अनियमित करना पड़ा था। इस बारे में जो सीधी रिपोर्ट मीडिया की खबरों के जरिए दी गई थी, वह साफ बताती है कि जुलाई 2020 के पहले ही समूचे देश में संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने वालों को पता लगाने का श्रमसाध्य काम लगभग छोड़ दिया गया था। केवल घर के बिल्कुल पास रहने वाले, जो सीधे संपर्क में आने की वजह से सबसे अधिक जोखिम की जद में थे, उन्हीं को क्वॉरन्टीन किया जा रहा था जबकि इस बारे में दी गई निर्देशिका कहती है कि संपर्क में आए परंतु “कम जोखिम वाले लोगों को क्वॉरन्टीन किए जाने पर समान रूप से जोर दिया जाना चाहिए”। इसी तरह, अप्रैल 2021 में, एम्स दिल्ली ने यह खुलासा किया था कि महामारी के दौरान पर्याप्त संसाधनों का अभाव और स्टाफ की कमी के चलते अस्पताल जोखिम के आकलन और कोविड-19 के संक्रमण की जद में आए या इसकी आशंका वाले अपने कर्मियों के पता लगाने का काम लगातार नहीं कर रहे हैं।  

भारत में ‘मजबूत ’ और ‘समय’ पर मृत्यु पंजीकरण?

बेहतर सांख्यिकी स्रोतों वाले केवल राज्यों और शहरों को छोड़ कर, पूरे देश में मृत्यु के पंजीकरण की अनिवार्यता कम ही अनुपालन होता है। आइसीएमआर के प्रकाशन इंडियन जनरल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित जी. अनिल कुमार,  ललित डंडोना और राखी डंडोना के मुताबिक भारतीय नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरडी) में मृत्यु के पंजीकरण का काम 2015 में  अनुमानत 77 फीसदी तक ही पूरा हुआ था। इसके अंतर्गत बिहार में 32 फीसदी और उत्तर प्रदेश में 44 फीसदी हुआ था, जबकि केरल एवं मणिपुर में 100 फीसद विवरण दर्ज किया गया था। 

इसके अलावा, मृत्यु की सांख्यिकी किसी घटना (2019 या 2020 में हुई बहुत सारी मौतों का राष्ट्रीय आंकड़ा नहीं है।) के कई-कई साल बाद प्रकाशित किए जाते हैं और वह भी किसी मौत के बारे में बहुत कम सूचनाओं (यदि कोई हो) के साथ प्रकाशित की जाती है। कहने का आशय यह कि   मृत्यु के पंजीकरण में उसकी बुनियादी विशेषताएं, जैसे मृतक की उम्र, उसका लिंग, मरने की तिथि और मृत्यु की वजह के बारे में बहुत कम सूचनाएं दी जाती हैं। (गिलमोटो, 2021)।

भारत में कोविड-19 की वजह से होने वाली मृत्यु का अनुमान लगाने का प्रयास करने वाले प्राय:सभी अध्ययनों एवं रिपोर्टों में अनेक विधियों के इस्तेमाल के जरिए एक समान निष्कर्ष पहुंचा गया है कि कोविड-19 से होने वाली मौतों की रिपोर्ट कम दर्ज हुई है। हालांकि, सरकार इस बात से लगातार इनकार कर रही है। केंद्र सरकार ने मृत्यु की वास्तविक संख्या की थाह लगाने के लिए विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा अपनाई गई विधियों को बकवास करार दिया है और अपने अधिकारिक आंकड़ों को सही ठहराया है। दूसरे, उसने मृत्यु को दर्ज करने की जवाबदेही यह कहते हुए जिला प्रशासन एवं राज्य सरकार की तरफ सरका दिया है कि भारत किसी भी नए मामले एवं किसी की मृत्यु के पंजीकरण के मामले में नीचे से ऊपर की जवाबदेही के नजरिये का पालन करता है और इस मामले में “केंद्र सरकार केवल राज्य सरकारों द्वारा भेजे गए आंकड़ों को संग्रह करती है और उसका प्रकाशन करती है।”

समय का तकाजा है कि केंद्र को इन तुच्छ तर्कों के पीछे अपने को छिपाने से बाज आए और कोविड-19 की वजह से हुई मृत्यु की वास्तविक संख्या का पता लगाने की वांछित प्रक्रिया अपनाए जाने की पहल शुरू करे। जैसा कि मुराद बनजी, जो कोविड से होने वाली मृत्यु पर लगातार नजर रखे रहे हैं, ने कहा है: “जब तक कि राजनीतिक इच्छा नहीं होगी और सतर्कता से सर्वेक्षण नहीं किया जाएगा, तब तक इस सवाल का भरोसेमंद जवाब नहीं मिलेगा कि भारत में कोविड-19 की वजह से आखिर कितने लोगों की मौत हई है।”

(पीयूष शर्मा ने आंकड़ों के मिलान में सहयोग किया।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Several Studies Using Diverse Methods Point to Undercounting of COVID-19 Deaths, Govt in Denial

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