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अगर पेड़ों पर जीवन टिका है तो एक पेड़ की कीमत ₹75 हज़ार से ज़्यादा तय होने पर खलबली क्यों नहीं?

सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की इस रिपोर्ट के अनुसार अगर पेड़ की उम्र 100 साल से अधिक है तो एक पेड़ की कीमत ₹1 करोड़ से अधिक की हो सकती है। 
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दुनिया के सभी देशों की तरह भारत भी हर दिन किसी न किसी गंभीर परेशानी से जूझता रहता है। इन सभी परेशानियों को दरकिनार कर दुनिया के किसी कोने में बैठ कर एक सेलिब्रिटी के जरिए किए गए 6 शब्दों के ट्वीट से अगर भारत के अभिजात्य वर्ग सहित पूरी भारत सरकार उस सेलिब्रिटी के पीछे पड़ जाती है, तब तो यह कहना ही पड़ेगा कि हम अपने परेशानियों को लेकर गंभीर नहीं हैं। एक समाज और सरकार दोनों के लिहाज से हम बहुत अधिक सतही बनते जा रहे हैं। हमारी संवेदनशीलता बहुत अधिक उथली हो चुकी है। हमारी सारी समझदारी चमक दमक के नशे में डूबी हुई है। ऐसे में वह तमाम खबरें हर रोज अपना दम तोड़ देती हैं, जिन्हें चमक दमक का सहारा नहीं मिलता है।

जब सोशल मीडिया की पूरी दुनिया सहित भारत सरकार एक सेलिब्रिटी के ट्विट पर जुत्तम चप्पल कर रही थी तभी सुप्रीम कोर्ट की कमेटी का पेड़ों को लेकर एक अहम फैसला आया। जिस पर कोई चर्चा नहीं हुई।

चर्चा हो भी क्यों? हमारा समाज एक मसाला समाज में बदलता जा रहा है। और मसाला समाज बनाने का काम खुद हमारी सरकार कर रही है।

पश्चिम बंगाल में तकरीबन साढे 350 से ज्यादा पेड़ काटकर पांच रेलवे ब्रिज बनाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही थी। इसी सुनवाई के दौरान पेड़ों की कीमत तय करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय के जरिए पेश की गई पिछले साल की रिपोर्ट का पहली बार सार्वजनिक तौर पर खुलासा हुआ।

इस रिपोर्ट के मुताबिक साल भर में एक पेड़ की कीमत तकरीबन ₹74500 आंकी गई है। यानी अगर पेड़ की उम्र 100 साल से अधिक है तो एक पेड़ की कीमत ₹1 करोड़ से अधिक की हो सकती है। इस रिपोर्ट का कहना है कि कभी कभार ऐसा होता है कि एक प्रोजेक्ट के लिए जब 100 से अधिक पेड़ गिराए जाते हैं तो इस प्रोजेक्ट की मौद्रिक कीमत गिराए गए पेड़ों की आर्थिक और पर्यावरणीय कीमत से कम होती है।

आप चौक गए होंगे? सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है? आखिरकर लकड़ी की कीमत इतनी कैसे हो सकती है? अगर आपके दिमाग में रिहाना, कंगना, अक्षय कुमार, सचिन तेंदुलकर, अजय देवगन जैसे लोगों का भूत सवार होगा तो यह बात सुनकर चौंकना लाजमी है। और अगर आप देश दुनिया को थोड़ा गहरे तरीके से देख रहे होंगे तो पेड़ों की इतनी कीमत क्यों है, इसे समझ गए होंगे। इसे थोड़ा पर्यावरण के लिहाज से समझिए। सुप्रीम कोर्ट के पास प्रोजेक्ट लगाते समय पर्यावरण पर होने वाले नुकसान को लेकर कई सारे मामले आए। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने एक कमेटी बनाई। जिसका मकसद महज पेड़ों की लकड़ी का कीमत तय करना नहीं था। बल्कि यह तय करना था कि पेड़ों की पर्यावरणीय कीमत कितनी है। यानी पेड़ जितना ऑक्सीजन छोड़ते हैं, मिट्टी के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व की तरह काम करते हैं, मिट्टी के लिए खाद की तरह काम करते हैं, जलवायु और मौसम नियंत्रण की तरह काम करते हैं जैसे पेड़ों से जुड़ी पर्यावरण की सभी उपयोगिता को जोड़ लिया जाए तो पेड़ों की कीमत क्या होगी? इन सभी पहलुओं को जोड़कर पेड़ों की कीमत तय करने के लिए पांच सदस्यों की सुप्रीम कोर्ट की कमेटी बनी थी।

जिसके मुताबिक साल भर में एक पेड़ के जरिए निकलने वाले ऑक्सीजन की कीमत ₹65000 आंकी गई। पेड़ से बनने वाले जैविक खाद की कीमत ₹20000 आंकी गई। बाकी पेड़ों से जुड़ी दूसरी तरह की उपयोगिताओं को जोड़कर पेड़ों की साल भर की कीमत ₹75500 आंकी गई।

इसलिए कमेटी का कहना है कि अगर पेड़ की सारी उपयोगिता एक साथ मिलाकर देखें तो कई मामलों में प्रोजेक्ट लगाने के लिए काटे गए पेड़ की कीमत प्रोजेक्ट की मौद्रिक कीमत से ज्यादा हो सकती है। यह रिपोर्ट इतनी गंभीर है कि सुप्रीम कोर्ट ने अभी इसे स्वीकार नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अगर इस रिपोर्ट को हूबहू स्वीकार किया गया तो किसी भी सरकार का दिवालिया निकल सकता है। इसलिए इस रिपोर्ट को संतुलित करने की भी जरूरत है। केंद्र और राज्य सरकार को इस रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की जिस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि अगर 300 पेड़ों को सौ वर्ष या अधिक समय तक जीने दिया जाता है तो ये 2.2 अरब रुपये के उत्पाद देंगे। 300 पेड़ों की भविष्य की यही कीमत है। अगर 59.2 किलोमीटर सड़क पर विचार किया जाए तो ये एक दशक या इससे कुछ अधिक समय में भीड़भाड़ वाले होंगे और अधिकारियों को इसका चौड़ीकरण करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा और इस तरह से 4056 पेड़ों को काटने की जरूरत होगी।’उस सूरत में 100 वर्षों में उत्पादों की कीमत 30.21 अरब रुपये होगी। इसलिए इस पर्यावरणीय आपदा से बचने के लिए नियमित ढांचे से बाहर के समाधान की जरूरत है।’

कमेटी ने यह भी सुझाव दिया है कि हाईवे प्रोजेक्ट के लिए पेड़ काटने से पहले दूसरे विकल्पों की तरफ भी देखा जाना चाहिए। जैसा देखा जाना चाहिए क्या रेलवे और जल मार्ग के जरिए आवाजाही हो सकती है या नहीं? जब कोई विकल्प कारगर न दिखे तभी जाकर अंत में पेड़ काटने का फैसला करना चाहिए।

मौजूदा समय में बहुत सारी आधुनिक तकनीक आ चुकी हैं जो पेड़ को जड़ से उठाकर दूसरी जगह पर रख सकती हैं। इनका भी इस्तेमाल होना चाहिए। एक पेड़ काटकर पांच पौधे लगाने का चलन है। लेकिन एक पेड़ के काटने से जितना बड़ा पर्यावरणीय प्रभाव पड़ता है उसका मुकाबला महज 5 पौधे नहीं कर सकते। इसलिए पेड़ की शाखाओं और उम्र के मुताबिक पेड़ काटने पर पौधे लगाने की संख्या भी बदलती रहनी चाहिए। अगर छोटी शाखा वाला पेड़ काटा जा रहा है तो उसकी जगह पर 10 पौधे लगनी चाहिए। और अगर बहुत बड़ी शाखा वाला पेड़ काटा जा रहा है तो उसकी जगह पर कम से कम 50 नए पौधे लगने चाहिए।

सेंटर फॉर एन्वायरमेट एंड साइंस की निदेशक और इस कमेटी की एक सदस्य सुनीता नारायण का कहना है कि 100 साल से अधिक उम्र से मौजूद पेड़ों को पहचानना और उनका संरक्षण करना बेहद जरूरी है। इन्हें काटकर नए पौधे लगाकर इनकी उपयोगिता को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है। इन पेड़ों की पर्यावरण की उपयोगिता तो होती ही है। इसके साथ ऐसे पेड़ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होते हैं। हर हाल में इनका संरक्षण किया जाना चाहिए।

अंत में जरा सोचकर देखिए कि पर्यावरण से जुड़ी अहम खबर पर अगर उतनी चर्चा की जाए जितना 6 शब्दों के ट्वीट पर चर्चा की गयी है, तो पर्यावरण को लेकर कितनी जागरूकता फैलती। लेकिन अफसोस ऐसा नहीं होता है। चमक दमक के नशे में डूबी दुनिया से सबसे महत्वपूर्ण विमर्श चुपचाप गायब हो जाते हैं।

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