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पर्यावरणीय पहलुओं को अनदेखा कर, विकास के विनाश के बोझ तले दबती पहाड़ों की रानी मसूरी
उत्तराखंड राज्य, प्रकृति के अत्यधिक दोहन के कारण पहले से प्राकृतिक आपदाओं की मार झेल रहा है। ऐसे में विकास के नाम पर हिमालय के अधिक संवेदनशील इलाकों में जरूरत से अधिक निर्माण होना राज्य में आपदाओं को खुला न्योता देता है।
सत्यम कुमार
16 Jun 2021
MUSSOORIE

केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने 8 जून को अपने ट्विटर अकाउंट से जानकारी दी कि मसूरी में 2.74 किलोमीटर लंबी सुरंग बनायी जायेगी इस परियोजना के लिए उन्होंने 700 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं जिससे मॉल रोड, मसूरी शहर और लाल बहादुर शास्त्री (आईएएस अकादमी) की ओर "आसान और बिना रुके" ट्रैफिक चलेगा। गडकरी ने अपने ट्वीट के साथ "प्रगति का हाईवे" हैशटैग लगाया और राज्य के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने इसके लिए नितिन गडकरी का आभार जताया और कहा कि इससे मसूरी में "कनेक्टिविटी आसान” होगी और आपदा के वक्त राहत कार्य सुचारु होंगे।

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के पास बसे मसूरी को पहाड़ों की रानी कहा जाता है और यह भारत के सबसे व्यस्त पर्यटन क्षेत्रों में एक है और यह हिमालयी क्षेत्र अति भूकंपीय संवेदनशील (जोन-4) में है, इसके लिए बड़ी संख्या में पेड़ कटेंगे और वन्य जीव क्षेत्र नष्ट होगा, इसके अलावा पहाड़ों पर खुदाई और ड्रिलिंग की जाएगी जिससे कई स्थानों पर भूस्खलन का खतरा बढ़ सकता है, हमने इस प्रोजेक्ट के बारे में राज्य के संबंधित वन अधिकारियों से बात की, लेकिन उन्हें अभी इस प्रोजेक्ट की कोई जानकारी नहीं है ।

For easier and congestion free connectivity to Mussoorie town, Mall Road, and LBSSNA (IAS ACADEMY), Project Management Consultancy has been awarded for 2.74km long Mussoorie Tunnel which is being with a budget of 700 Cr on NH 707A. #PragatiKaHighway

— Nitin Gadkari (@nitin_gadkari) June 8, 2021

विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन इकोलॉजी के सीनियर साइंटिस्ट विक्रम गुप्ता द्वारा किये गये एक शोध के अनुसार हिमालय के निचले हिस्से में स्थित हिमालयी टाउनशिप मसूरी का 40% क्षेत्र बहुत अधिक और उच्च संवेदनशील है, जिसमें एक चौथाई भवनों, जिनमें 8000 लोगों की बस्ती है। यहां उच्च और बहुत अधिक भूस्खलन जोखिम की संभावना है। अब यदि मसूरी में सुरंग बनाई जाती है तो शहर में आपदाओं का खतरा और भी बढ़ जाता है। मसूरी जैसे उच्च संवेदनशील इलाके में छोटे से छोटे निर्माण को करने से पहले मृदा परिक्षण करना बहुत आवश्यक है। एक मीडिया संस्थान को दिए इंटरव्यू में विक्रम गुप्ता कहते हैं कि उन्हें प्रस्तावित सुरंग बनाने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी वरना उसके प्रभावों को अपने शोध में शामिल करते।  गुप्ता के मुताबिक "प्रस्तावित सुरंग तो काफी बड़ा प्रोजेक्ट है। अगर (मसूरी जैसे संवेदनशील क्षेत्र में) आप कोई भवन या होटल निर्माण जैसा कोई छोटा प्रोजेक्ट भी करते हैं तो उससे पहले नगरपालिका के पास लार्ज स्केल हेजार्ड का पूरा अध्ययन होना चाहिए कि कहां पर यह किया जा सकता है कहां नहीं । 

वानिकी कॉलेज रानीचौरी में एनवायर्नमेंटल साइंस के एसोसिएट प्रोफ़ेसर डा.एसपी सती का कहना है कि यदि सुरंग बनाने में पर्यावरण के अनुकूल तकनीक का इस्तेमाल हो तब भी मसूरी की पहाड़ियों का ड्रेनेज सिस्टम प्रभावित होगा। ऐसे बहुत से पानी के स्रोत हैं जो मसूरी की पहाड़ियों से निकलते हैं। सुरंग के बनने से उन को बहुत क्षति पहुंचेगी, लेकिन जब तक परियोजना की सही जानकारी नहीं मिल पाती है तब तक प्रकृति को होने वाले नुकसान का सही आंकलन मुश्किल है।  

स्थानीय लोगों का क्या कहना है 

हालांकि सुरंग कहाँ से शुरू होकर कहाँ पर समाप्त होगी, इस बात की जानकारी अभी सम्बंधित विभागों को भी पता नहीं है, इसलिए इस योजना से होने वाले नुकसान का सही अंदाजा लगाना अभी मुश्किल होगा। लेकिन न्यूज़ से मिली जानकारी के अनुसार इस योजना में लगभग 3000 देवदार और बांज के पेड़ काटे जायेंगे और वन्य जीव क्षेत्र नष्ट होगा। 

जैसा की परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने अपने ट्वीट में कहा कि इस सुरंग के बनने से मसूरी में लगने वाले जाम से मुक्ति मिल जायेगी। यहाँ पर सवाल यह है कि क्या यह निर्माण इतना आवश्यक है? या फिर इस जाम से निजात पाने के लिए कोई दूसरा तरीका भी है? इन सवालों के जवाब जानने के लिए हमने मसूरी के कुछ होटल मालिकों और स्थानीय लोगों से, वाहन चालकों से बातचीत की, उनका कहना है कि जाम का मुख्य कारण अधिक ट्रैफिक नहीं, बल्कि पर्याप्त पार्किंग सुविधा का न होना है। आज मसूरी में रहने वाले अधिकांश लोगों के पास अपने निजी वाहन जैसे मोटरसाइकिल और चार पहिया वाहन हैं, लेकिन घर में पार्किंग एरिया न हो पाने के कारण वाहनों को सड़क के किनारे ही पार्क करते हैं। और पर्यटकों के लिए भी पर्याप्त पार्किंग नहीं हैं, जिस कारण सड़क पर जगह नहीं मिल पाती है और जैसे ही सैलानियों की संख्या बढ़ती है तो जाम की समस्या पैदा हो जाती है।

फोटो साभार : अमर उजाला

मसूरी से वरिष्ठ पत्रकार बिजेन्द्र पुंडीर का कहना है कि सन 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने मसूरी में होने वाले सभी नये भवनों के निर्माण पर पूर्ण रूप से पाबंदी लगा दी थी। किसी भी निर्माण की अनुमति मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण के द्वारा नहीं दी जा सकती थी, ताकि पहाड़ के ऊपर और अधिक भार न बढ़े। लेकिन नियमों को अनदेखा कर अभी भी नये निर्माण हो रहे हैं। सरकारें वोट बैंक के चक्कर में इन सभी निर्माणों को अनदेखा कर देती है। मसूरी में ऐसे बहुत से होटल और लॉज है जो आवासीय परिसर में पास हुए बाद में उन को होटल और लॉज के रूप में इस्तामेल किया जा रहा है। सीधे शब्दों में कहे तो मसूरी में यदि नये निर्माण इसी प्रकार होते रहे तो यहाँ की जैव विविधता का जो तालमेल है बिगड़ जायेगा जिस कारण स्थानीय लोगो को विभिन्न प्रकार की समस्याओ का सामना करना पड़ेगा। 

दून साइंस फोरम के संयोजक विजय भट्ट का कहना है कि जाम से निजात पाने के लिए यदि सरकार कोई विकल्प देती है तो वह ऐसा होना चाहिए जिससे शहर की अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी तंत्र दोनों पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े। लेकिन यहाँ पर अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी तंत्र दोनों पर ही नकारात्मक प्रभाव पड़ने की पूर्ण सम्भावना है क्योंकि मसूरी जिन पहाड़ियों पर बसा है वह जोन-4 में आती है। जिस कारण यहाँ भूकंप की अधिक सम्भावना बनी रहती है। इस के अतिरिक्त जब इन पहाड़ियो में सुरंग बनाई जायेगी तो जो पानी के स्त्रोत इन पहाड़ो में हैं  वह भी प्रवाभित होंगे। और इन के द्वारा जो जलधाराएं निकलती हैं और आगे चलकर दून वैली में पानी की पूर्ति करती हैं, वे भी प्रभावित होंगी। दूसरी समस्या जब चार धाम यात्रा के लिए आये पर्यटक सुरंग के द्वारा बिना मसूरी पहुंचे आगे निकल जायेगे तो इस का नकारात्मक असर शहर की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा।

भट्ट आगे बताते हैं, “मसूरी की पहाड़ियों में एक समय पर चूने के लिए भारी मात्रा में खनन होता था जिस के दुष्प्रभाव को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यहाँ खनन पर रोक लगा दी थी। उसके बाद पहाड़ों को फिर से पहले जैसा बनाने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन भी किया गया था। इस के द्वारा हजारों की संख्या में पेड़ लगाये गये थे। अतः सरकार किसी भी प्रकार का निर्माण मसूरी क्षेत्र में करना चाहती है तो उस से पहले निर्माण से पड़ने वाले प्रभाव का सही आंकलन करना अति आवश्यक है। ताकि यह पता लगया जा सके कि इस विकास की क़ीमत क्या होगी?”

ह्यूमन राइट्स लॉयर और कंज़र्वेशन ऐक्टिविस्ट रीनू पॉल का कहना है कि मसूरी और कैम्पटी फॉल में भूस्खलन ज्यादा बारिश के कारण होता थी, लेकिन जानकारों की मानें तो मसूरी में तेजी से बढ़ती जंसख्या और मानव द्वारा किये जा रहे निर्माणों के कारण पिछले दो वर्षो में भूस्खलन की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है और आगे इन घटनाओं में और वृद्धि होने की आशंका है। शहर के आसपास के इलाक़े जैसे हाथी पाव,जॉर्ज एवरेस्ट और केम्पटी फॉल आदि क्षेत्रों की भौगोलिक संरचना में एक प्रमुख घटक के रूप में 'क्रोल' लाइमस्टोन है, जिसे नाजुक माना जाता है। ऐसे में यदि इस क्षेत्र में इस प्रकार का कोई भी निर्माण होता है तो भूस्खलन और इस से सम्बंधित विभिन्न प्रकार की आपदाओं की आशंका बढ़ जाती है। रीनू पॉल आगे कहती हैं, “वर्तमान समय में देश कोविड की महामारी से जूझ रहा है। जहां देश की जनता को सरकार के द्वारा स्वास्थ्य सुविधाओं के बेहतर होने की उम्मीद है, वहीं दूसरी और सरकार 700 करोड़ रुपये एक ऐसी परियोजना पर खर्च करने को आतुर है जिस के परिणाम भविष्य में हानिकारक होंगे।”

इस समस्या के समाधान के और क्या विकल्प हो सकते हैं

चार धाम परियोजना में हाई पॉवर कमेटी के सदस्य हेमंत ध्यानी बताते हैं कि मसूरी जैसे अत्यधिक संवेदनशील इलाके में इस प्रकार का कोई भी निर्माण करने से पहले उसका पूर्व मूल्यांकन करना बहुत आवश्यक है। मसूरी पुराने समय से ही पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है और पिछले कुछ सालों में प्रतिवर्ष पर्यटकों की संख्या में बहुत अधिक बढ़ोतरी देखने को मिली है जो उत्तराखंड पर्यटन के लिए काफी अच्छा है। लेकिन यहाँ हमें याद रखने की आवश्यकता है कि मसूरी शहर और उसके आस-पास पहाड़ियों की भी एक क्षमता है। अब यदि इंसानों के बढ़ते लालच के चलते क्षमता से अधिक भार मसूरी की पहाड़ियों पर लादा जाता है तो इस के दुष्परिणाम अवश्य ही देखने को मिलेंगे। सीधे शब्दों में कहें तो मसूरी पहले से ही पर्यटन के नाम पर क्षमता से अधिक मानव द्वारा किये गए निर्माण का भार झेल रहा है। ऐसे में यदि कोई भी अवैज्ञानिक निर्माण जो प्रकृति के अनुकूल न हो, यदि किया जायेगा तो उस के दुष्परिणाम जरूर होंगे, जैसा कि हमें चार धाम परियोजना में भी देखने को मिला हैं।

हेमंत ध्यानी आगे बताते हैं कि यदि यह सुरंग बनती है तो पर्यटकों की संख्या और अधिक बढ़ जायेगी, जो कि मसूरी की भौगोलिक परिस्थिति को देखते हुए उचित नहीं है। जाम की समस्या से, प्रकृति को कोई नुकसान किये बिना निज़ात पाना है तो प्रशासन को चाहिए कि वह प्रति दिन मसूरी में आने वाले पर्यटकों की एक उचित संख्या निश्चित करनी होगी। ताकि मसूरी में प्रति दिन केवल उतने ही पर्यटक आये जितनी पर्यटकों को वहन करने की क्षमता मसूरी शहर रखता है। इस प्रकार हम प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल बहुत लम्बे समय तक बिना किसी समस्या के कर सकते हैं और यह उन लोगों के लिए भी फायदेमंद है जो यहाँ किसी न किसी प्रकार से अपना रोजग़ार करते हैं अन्यथा यह सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी से लालच के चलते उस को मार कर एक ही दिन में सारे अंडे निकालने वाली बात है। 

सिटीजन फॉर ग्रीन दून से हिमांशु अरोड़ा बताते हैं कि मसूरी में आये दिन हजारों की संख्या में पर्यटक आते हैं और उसके लिए कोई संख्या निश्चित नहीं है। इस कारण भीड़ और ट्रैफिक जाम की समस्या आये दिन मसूरी में देखने को मिलती है। कभी-कभी तो इतनी अधिक संख्या में पर्यटक मसूरी पहुँच जाते हैं कि होटलों में भी जगह कम पड़ जाती है और यदि इस सुरंग का निर्माण होता है तो पर्यटकों की संख्या और बढ़ जायेगी। अधिक गाड़ियां मसूरी में आएंगी। जहां मसूरी में पहले से ही पार्किंग की समस्या है, तो ऐसे में समस्या और बढ़ेगी। मतलब कि शहर में सभी प्रकार का प्रदूषण बढ़ेगा, प्राकृतिक संसधानों का उपयोग बढ़ेगा जिस के चलते शहर में रहने बाले लोगो की समस्याएं बढ़ जायेंगी। इस लिए सरकार को सुरंग बनाने के स्थान पर टोकन सिस्टम शुरू करना चाहिए ताकि मसूरी में केवल उतने ही लोग आ पाये जितने लोगों को वहन करने की क्षमता मसूरी शहर में है। यदि सरकार ऐसे कदम उठती है, तो इसका फ़ायदा उन हिल स्स्टेशनोंको भी मिलेगा जो देहरादून के आसपास हैं, क्योंकि यदि दूसरे राज्यों से लोग आते हैं और उनको मसूरी में प्रवेश नहीं मिलता तो वह नजदीकी हिल स्टेशन जैसे चकराता, चम्बा आदि भी अक्सर जाते हैं। ऐसे और भी हिल स्टेशन है जिन को बहुत कम लोग जानते हैं, इस प्रकार इन हिल स्टेशनों की पहुँच भी बढ़ जायेंगी। 

फोटो साभार: राज्य समीक्षा; देहरादून के मालदेवता में लगातार बारिश की वजह से सड़क कटिंग का पूरा मलबा नीचे मुख्य सड़क पर आ गया। इससे वहां रह रहे लोगों के घरों में मलबा घुस गया।

उत्तराखंड राज्य, प्रकृति के अत्यधिक दोहन के कारण पहले से प्राकृतिक आपदाओं की मार झेल रहा है। ऐसे में विकास के नाम पर हिमालय के अधिक संवेदनशील इलाकों में जरूरत से अधिक निर्माण होना राज्य में आपदाओं को खुला न्योता देता है। उसका ताजा उदाहरण देहरादून के निकट रायपुर क्षेत्र के मालदेवता में होने वाला भूस्खलन है। इसके अतिरिक्त नियमों को अनदेखा कर किया जा रहा चार धाम प्रोजेक्ट है, जिस के कारण बरसात का मौसम शुरू होने से पहले ही भूस्खलन की घटनाएं सामने आ रही हैं। प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए प्रशासन को इस प्रकार के निर्माण के स्थान पर कुछ ऐसे उपाय अपनाने चाहिए जो प्रकृति के अनुकूल हो।

लेखक देहरादून स्थित एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

Development of Uttarakhand
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Nitin Gadkari
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