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तिरछी नज़र : कराची हलवा और जिह्वा का राष्ट्रवाद

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। मेरी पसंदीदा मिठाई मुझे ही नहीं भा रही है। मैं गंभीर सोच में पड़ गया। मैंने और मिठाईयाँ खायीं, बर्फी, कलाकंद, जलेबी, रसगुल्ला सभी का स्वाद बरकरार था। मेरी चिंता का अंत नहीं था...
सांकेतिक तस्वीर

बचपन से ही मुझे कराची हलवा बहुत ही पसंद है। उसका खिंचाव भरा लिजलिजापन मुझे तब भी पसंद था और आज भी पसंद है। बचपन में मिठाइयां आम तौर पर दीवाली पर ही आती थीं। मिक्स मिठाई में एक दो पीस कराची हलुए के जरूर होते थे।  और उन पर मेरा ही अधिकार होता था। हम तीन भाई-बहनों में यह अलिखित समझौता सा था। पर इस दीवाली पर कुछ ऐसा हुआ जो पिछले पचपन साल में कभी नहीं हुआ था। पहली बार कराची हलुए का पूरा डिब्बा ही आ गया। वह भी पूरा एक किलो का। सारे डिब्बे पर मेरा ही पूरा अधिकार था। अब तक पत्नी ही नहीं, बच्चों को भी पता था कि कराची हलवा मुझे कितना पसंद है। मैंने उत्साह से कराची हलुए का एक टुकड़ा मुँह मे डाला। मुझे कड़वा सा लगा। मैंने दूसरा टुकड़ा भी चखा। वह भी कड़वा लगा। मैंने पत्नी से कहा इस बार कराची हलवा कुछ खराब है। पत्नी ने चखा और कहा, नहीं खराब तो नहीं है, लगता है आपका स्वाद ही कुछ खराब है। तबीयत तो ठीक है। वैसे तो मेरी तबीयत ठीक ही थी फिर भी सोचा हो सकता है थोड़ी बहुत खराब हो, इसलिए कल ही खायेंगे कराची हलवा।

अगले दिन फिर कराची हलवा अलमारी में से निकाला और उसका एक टुकड़ा मुँह में डाला। फिर वही कड़वापन। पास में ही बेटी पढ़ रही थी, मैंने कराची हलवे का डिब्बा उसकी तरफ बढ़ाकर कहा, बेटे, जरा, एक पीस खाकर तो बताओ। उसे आश्चर्य हुआ, कहाँ तो पहले पापा से चुरा कर खाना पड़ता था पर आज पापा खुद ही खिला रहे हैं। उसने खुशी से दो पीस उठा लिये। जैसे ही उसने पहला टुकड़ा मुँह मे रखा, मैंने उत्सुकता से पूछा, कैसा है? वह बोली, बहुत ही स्वादिष्ट, पापा। और उसने अपने हाथ में रखा दूसरा टुकड़ा भी खा लिया।

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। मेरी पसंदीदा मिठाई मुझे ही नहीं भा रही है। मैं गंभीर सोच में पड़ गया। मैंने और मिठाईयाँ खायीं, बर्फी, कलाकंद, जलेबी, रसगुल्ला सभी का स्वाद बरकरार था। मेरी चिंता का अंत नहीं था। मैंने इस बात को लेकर अपने पारिवारिक चिकित्सक से भी परामर्श किया। उन्होंने सारी जांच कीं, खून की जांच और एक्स-रे भी करवा दिया। कहीं कुछ नहीं निकला। इससे पहले कि वे MRI करवाते, मैंने उनसे किनारा कर लिया।

अब मैंने अपने मित्रों व जानकारों से इस बारे में जिक्र किया। शायद कभी किसी को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा हो। ऐसी अजीब बीमारी तो कभी किसी ने सुनी तक नहीं थी, भुगतने की बात तो छोड़ो। बात जब निकली तो दूर तलक पहुँची। परिचितों से अपरिचितों तक पहुँची। एक दिन एक परिचित मिलने आये। वैसे तो मैं उनको देखते ही कन्नी काट जाता था पर आज बात कुछ और ही थी। वे मेरी बीमारी के बारे में बात करने आये थे। इसलिए उन्हें झेलना मेरी मजबूरी थी। मेरी बीमारी के बारे में विस्तार से सुन समझ वे मुस्कुरा उठे। बोले "तुम्हारी जिह्वा पर राष्ट्रवाद आ गया है। तुम्हारी जीभ अब राष्ट्र भक्त हो गई है।" मैंने प्रतिवाद किया "क्या मतलब, मेरे तो सभी अंग, दिलो-दिमाग से लेकर हाथ पैर तक, सभी राष्ट्र भक्त हैं।"

"आपकी वाली छद्म राष्ट्र भक्ति नहीं, हमारी वाली खालिस राष्ट्र भक्ति" वे व्यंग से बोले। "किसी की राष्ट्र भक्ति दिमाग से शुरू होती है, किसी की हाथ पैर से। आपकी जीभ से शुरू हुई है। आपकी जीभ को इसीलिए शत्रु राष्ट्र के एक शहर के नाम पर मिठाई पसंद नहीं आ रही है।"

मैं चिंता में डूब गया। पाकिस्तान तो अबसे अधिक शत्रु राष्ट्र 1965 में था। उन दिनों हम सब बच्चे कागज के हवाई जहाज बना हिंदुस्तानी नैट और पाकिस्तानी अमेरिकी सैबरजैट की लड़ाई लड़ते थे। पर कराची हलुए की मिठास कम न थी। 1971 में तो और भी भीषण युद्ध था और दुश्मनी भी अधिक ही थी। मैंने भी जवानी की दहलीज पर कदम रखा था। खून गर्म था, दुश्मनी भी अधिक थी पर कराची हलवा मीठा ही था। लगता है अब माहौल ही ज्यादा खराब है।

अब मोदी जी और योगी जी माहौल को तो ठीक करना चाहेंगे नहीं। और पाकिस्तान के शहर कराची का नाम बदलना चाहें तो भी बदल सकते नहीं। इसलिए उनसे प्रार्थना है कि वे कराची हलुए का नाम ही बदल दें जिससे उसकी मिठास बरकरार रह सके।

लिखते-लिखते: प्रार्थना है कि इससे पहले कि शाही पनीर बेस्वाद हो जाये, शाही पनीर का नाम भी बदल दिया जाये। मुझे यह भी बहुत पसंद है। सलाह है, शाही पनीर का नाम शाह पनीर या योगी पनीर रख दिया जाये।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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