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तमिलनाडु राज्य और कृषि का बजट ‘संतोषजनक नहीं’ है

राज्य एवं कृषि दोनों ही बजट में कई चुनावी वादे अछूते ही बने रहे। इसके अलावा, मुद्रास्फीति और महंगाई को देखते हुए वित्तीय आवंटन कम था।
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प्रतिनिधि चित्र. चित्र साभार: द न्यू इंडियन एक्सप्रेस

तमिलनाडु राज्य बजट और कृषि के बजट को क्रमशः 18 और 19 मार्च को पेश किया गया। अगले साल के लिए रोडमैप को तैयार किया गया है और सत्तारूढ़ दल को अपने इस ‘द्रविड़ मॉडल’ पर गर्व है। 

लेकिन साथ ही दोनों बजट में कुछ अप्रत्याशित एवं स्वागत योग्य घोषणाएं की गई हैं। 

सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाली और उच्च शिक्षा को जारी रखने वाली लड़कियों के लिए प्रति माह 1,000 रूपये की घोषणा उनमें से एक है। इसके साथ ही कृषि बजट में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के किसानों के लिए 20% की अतिरिक्त सब्सिडी के वादे पर भी सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त हुई है।

इसके साथ ही तमाम योजनाओं, क्षेत्रों और विभागों के वित्तीय आवंटन में नाममात्र की वृद्धि हुई है। 

हालाँकि, विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने इंगित किया है कि यह मामूली बढ़त नाकाफी है। उनका कहना था कि मुद्रास्फीति और महंगाई को देखते हुए, इस मामूली बढोत्तरी से शायद ही कोई फर्क पड़े। 

कई लोगों की उम्मीदों पर तुषारापात करते हुए, बजट में कुछ बहु प्रतीक्षित योजनाओं और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के चुनावी वायदों को इस बार नहीं पारित किया गया।

जरूरतों और वादों को पूरा नहीं किया गया 

सभी महिला गृहणियों के लिए प्रति माह 1,000 रूपये की धनराशि के आवंटन के वादे के लिए धन आवंटित नहीं किया गया। वित्त मंत्री ने सिर्फ यह घोषणा की कि योग्य लाभार्थियों, परिवारों की महिला मुखिया की पहचान की जायेगी, और जब तमिलनाडु की आर्थिक स्थिति सुधर जायेगी तो इस योजना को अमल में लाया जायेगा।

इसी प्रकार द्रमुक का ग्रामीण रोजगार गारंटी को 100 दिनों से बढ़ाकर 150 दिन प्रति वर्ष करने का चुनावी वादा इस बार पारित नहीं किया गया। अगस्त 2021 में सत्ता में आने के बाद से यह उनका दूसरा बजट है। 

इसके अलावा, बजट शहरी रोजगार गारंटी योजना के सार्वभौमिकरण किये जाने की तर्ज पर कोई भी उल्लेख नहीं किया गया है।

विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही लोगों की वास्तविक जरूरतों को ध्यान में न रखा गया हो, किंतु बजट में सभी जरुरी क्षेत्रों को सावधानीपूर्वक छुआ गया है। इस अर्थ में देखें तो यह बजट अपने सार रूप में सांकेतिक है।

अर्थशास्त्री प्रोफेसर वेंकटेश आत्रेय ने कहा, “बजट राजकोषीय कट्टरवाद में उलझा हुआ है, इसने तमिलनाडु राजकोषीय घाटा अधिनियम पर सवाल नहीं खड़ा किया है।”

द्रविड़ मॉडल की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा, “राज्य में कल्याण और विकास के बीच में संघर्ष बना हुआ है। लेकिन यह अनावश्यक विवाद है; यदि आप लोगों को सशक्त बनाते हैं, तो उनके पास अधिक क्रय शक्ति होगी, और इससे अर्थव्यवस्था में ही सुधार होगा।” उन्होंने आगे कहा, “लेकिन अच्छी बात यह है कि बजट ने किसी भी मौजूदा योजनाओं को खत्म नहीं किया है।”

कृषि बजट संतोषजनक नहीं है 

तमिलनाडु के कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्री एमआरके पनीरसेल्वम ने कुल 33,007.68 करोड़ रूपये का आवंटन करते हुए राज्य कृषि बजट पेश किया। यह राशि 2021-22 के लिए 32,775.78 करोड़ रूपये के संशोधित अनुमान से कुछ अधिक है।  

आल इंडिया किसान सभा, तमिलनाडु के महासचिव, पी शानमुगम ने न्यूज़क्लिक को बताया, “हालाँकि बजट में कुछ चीजें सकारात्मक हैं, लेकिन हम इससे संतुष्ट नहीं हैं। पिछले साल की तुलना में इस बार के कृषि बजट में मात्र 221.90 करोड़ रूपये की मामूली वृद्धि की गई है। यदि आप मुद्रास्फीति और महंगाई की गणना करें तो यह रकम उसकी तुलना में कुछ भी नहीं है। एक प्राथमिक क्षेत्र (कृषि के लिए) होने के नाते, इसके लिए धन का आवंटन और अधिक होना चाहिए था।”

बजट में सकारात्मक बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के किसानों के लिए 20% की अतिरिक्त सब्सिडी और कृषि के तहत पहले से अधिक भूमि के रकबे को बढ़ाने के वादे का उल्लेख किया।

कथित तौर पर प्रति वर्ष तकरीबन एक लाख एकड़ कृषि योग्य भूमि नष्ट हो जाती है क्योंकि इसे अन्य उद्देश्यों के लिए रूपांतरित कर दिया जाता है। 

शानमुगम ने कहा, “तमिलनाडु में छोटे और मामूली किसान बहुसंख्यक हैं; उन पर अधिक और विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। उनके पास खुद के ट्रैक्टर, जुताई के लिए मशीनरी इत्यादि साधन नहीं हैं, वे निजी मालिकों से उधार पर इसे लेते हैं। एक निश्चित रकम और उनकी कीमतें अधिक न हों इसे सुनिश्चित करने के लिए एक प्रणाली को सुनिश्चित करना होगा।” 

तमिलनाडु के डेल्टा जिलों में कावेरी नहरों के 964 किमी लंबे खंड से गाद निकालने के लिए 80 करोड़ रूपये का आवंटन किया गया है। शानमुगम का इस बारे में कहना था, “गाद निकालना एक जरूरत है, इसे अवश्य किया जाना चाहिए। लेकिन, मात्र 80 करोड़ रूपये में इसे कैसे किया जा सकता है, यह नामुमकिन है।”

गन्ना किसानों को इस बजट से काफी उम्मीदें थीं, लेकिन अब जो घोषणाएं की गई हैं उससे वे निराश हैं। 

शानमुगम ने कहा, “गन्ने के लिए विशेष प्रोत्साहन के नाम पर केवल 2.50 रूपये की मामूली बढोत्तरी ही की गई है, जिसे 192.50 रूपये से 195 रूपये प्रति टन कर दिया गया है।” डीएमके के चुनावी वादे में गन्ने की खरीद मूल्य को 4,000 रूपये प्रति टन करने का वादा किया गया था, लेकिन बजट ने इसे मात्र 2,950 रूपये प्रति टन के लिए निर्धारित किया है।

उनका यह भी कहना था, “कृषि बजट ने सभी विषयों को छुआ है, लेकिन इसने किसानों की वास्तविक जरूरतों को संबोधित नहीं किया है।”

एमएसएमई के हितों को सुरक्षित नहीं रखा गया है 

सूक्ष्म, लघु एवं मझौले उद्यमों के लिए राज्य बजट 2022-23 बेहद निराशा करने वाला साबित हुआ है। कोविड-19 महामारी के चलते लगाये गए लॉकडाउन की वजह से पिछले दो वर्षों में एमएसएमई उद्यम बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं, और इस साल के बजट से वे बड़ी उम्मीदें लगाये बैठे थे। 

कंसोर्टियम ऑफ़ इंडियन एसोसिएशन्स के द्वारा जारी बयान के एक अंश को पढ़ें, “जब माननीय मुख्यमंत्री ने केंद्रीय बजट 2022 पर टिप्पणी की कि यह पीड़ित एमएसएमई के उत्थान में विफल रहा है और यह कि केंद्रीय बजट ने उनमें भरोसे को पैदा नहीं किया है, तो हमने सोचा कि तमिलनाडु बजट 2022 तमिलनाडु में पीड़ित एमएसएमई के उत्थान करने वाला बजट साबित होगा। दुर्भाग्यवश, यह ऐसा नहीं है।”

कंसोर्टियम के संयोजक रघुनाथन के अनुसार, “यह बजट उन उद्यमों का समर्थन करता है जो पहले से ही अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं।”

कंसोर्टियम (संघ) के मूल्यांकन के अनुसार, “एमएसएमई के लिए कच्चे माल की कीमतों में बढोत्तरी सबसे बड़ी चिंता का सबब रही है, लेकिन एमएसएमई को भारी नुकसान से बचाने के लिए इस बारे में कोई घोषणा नहीं की गई है।”

कृषि के बाद, राज्य में एमएसएमई ही सबसे अधिक संख्या में रोजगार प्रदान करते हैं।

इसके साथ ही, एमएसएमई वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से भी प्रभावित हैं क्योंकि संघर्ष के जल्द ही समाप्त होने के आसार नजर न आने की वजह से यूरोपीय देशों से आने वाले आर्डर लगातार घट रहे हैं।

विकलांग लोग भी निराश 

द तमिलनाडु एसोसिएशन फॉर द राइट्स ऑफ़ आल टाइप्स ऑफ़ डिफरेंटली एबल्ड एंड केयरगिवर्स (टीएआरएटीडीएसी) की प्रेस विज्ञप्ति के शीर्षक ‘भारी निराशाओं और कुछ सकारात्मक बजट के साथ’ में कहा गया है: “यह स्पष्ट है कि हमारे क़ानूनी अधिकारों को बनाये रखने के लिए प्रयास नहीं किये गये।”

इसमें आगे कहा गया है कि “2016 के अधिकार अधिनियम के मुताबिक, पांच वर्षों के भीतर विकलांग लोगों के अनुरूप सार्वजनिक बुनियादी ढांचे, परिवहन व्यवस्था एवं इस प्रकार के अन्य प्रावधानों को सुनिश्चित बनाया जाना चाहिए, लेकिन बजट ने इसकी अनदेखी की है और यह कानून की अवमानना है।”

विकलांग व्यक्तियों के कल्याण के लिए विभाग को 838 करोड़ रूपये आवंटित किये गए हैं। पिछले वर्ष की तुलना में इसमें मात्र 25 करोड़ रूपये की बढोत्तरी की गई है। 

राज्य के वित्त मंत्री ने बजट में विभिन्न सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाओं जैसे कि वृद्धावस्था पेंशन, निराश्रित विधवा पेंशन, और विकलांगों के लिए पेंशन हेतु बजट में 4,816 करोड़ रूपये की घोषणा की है।

बयान में कहा गया है, “पिछले साल के आवंटन से यह महज 8 करोड़ रूपये अधिक है। जबकि पड़ोसी राज्यों में 3,000 रूपये से अधिक मासिक भत्ता प्रदान किया जा रहा है, विकलांग लोग निराश हैं कि तमिलनाडु बजट ने उस पर खरा उतरने के लिए प्रयास नहीं किये।”

टीएआरएटीडीएसी ने परियोजना के पहले चरण में 40 करोड़ रूपये के आवंटन के साथ चेन्नई के किलपौक में मानसिक स्वास्थ्य संस्थान (आईएमएच) को अपग्रेड किये जाने की पहल का स्वागत किया है।

अंग्रेजी में इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें

https://www.newsclick.in/tamil-nadu-state-agri-budgets-not-satisfying

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