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एक्टीविस्ट, न्यायविद एवं पत्रकारों ने कहा- ‘अलोकतांत्रिक एवं जन-विरोधी’ मोदी सरकार संस्थाओं को बर्बाद करने पर तुली है 

कार्यकर्ता बिजू मैथ्यू के अनुसार दक्षिणपंथी सरकारों ने “उदार लोकतंत्र को सिर के बल ला खड़ा कर दिया है और इसमें मौजूद सभी प्रकार की जाँच एवं संतुलन बनाए रखने वाली व्यवस्था से खुद को परे कर लिया है। हमें एक बार फिर से उसे खोजने की जरूरत है।”
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चित्र सौजन्य: बिज़नेस स्टैण्डर्ड 

केंद्र में मौजूद भारतीय जनता पार्टी की अगुआई वाली सरकार “अलोकतांत्रिक एवं जन-विरोधी” हो चुकी है, जो संस्थाओं को एक के बाद एक नष्ट करती जा रही है, जबकि अपने विरोधियों के पीछे शिकारी कुत्ते की तरह पड़ी हुई है। ऐसा मानना है ‘रिक्लैमिंग इण्डिया’ नाम से चल रहे दो-दिवसीय वर्चुअल कांफ्रेंस में भारत से मौजूद नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं, न्यायविदों, पत्रकारों और छात्रों का।

इस सम्मेलन का आयोजन ग्लोबल इण्डिया प्रोग्रेसिव अलायन्स, हिन्दुज फॉर ह्यूमन राइट्स, इंडिया सिविल वाच इंटरनेशनल, इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल एवं स्टूडेंट्स अगेंस्ट हिंदुत्व आइडियोलॉजी द्वारा किया गया था। सम्मेलन में भाग ले रहे पैनलिस्टों की राय थी कि नरेंद्र मोदी सरकार के अधिनायकवाद के प्रतिरोध का एकमात्र तरीका संस्थाओं को मजबूती प्रदान करने एवं दक्षिण एशियाई एकजुटता को बढ़ावा देकर ही किया जा सकता है। 

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न्यायपालिका पर एक सत्र के दौरान बोलते हुए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण का कहना था कि केंद्र सरकार ने “पूरे मनोयोग से न्यायपालिका की स्वतन्त्रता का गला घोंटने की कोशिश की है। सबसे पहले उसने इस काम को आजाद ख्याल न्यायधीशों की नियुक्तियों को न करने के जरिये किया, और जो स्वतंत्र न्यायाधीश थे भी, उनका स्थानान्तरण करवा दिया गया।” भूषण जिन्हें हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के गुस्से को झेलना पड़ा है, का कहना था कि जैसे ही अदालत के बारे में कुछ भी “विपरीत” सुनने को मिलता है, उसे लगता है जैसे यह उसकी स्वतंत्रता के लिए खतरा साबित हो सकता है। “सरकार से स्वतंत्र अस्तित्व का अर्थ अपनी जवाबदेही से आजादी नहीं कही जा सकती”, भूषण कहते हैं।

भारत की पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एवं सुप्रीमकोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह के अनुसार आपराधिक प्रक्रिया (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार) के हाथों में एक खेल की चीज बनकर रह गई है।उनका कहना था कि क़ानूनी बिरादरी को शक्ति अब कार्यकारिणी से हासिल होती है। वे आगे कहती हैं कि आज के दिन कोर्ट-रूम का इस्तेमाल उनमें से कुछ को “देश-द्रोही” के रूप में चित्रित करने के लिए लिया जाता है जबकि बार काउंसिल का पूरी तरह से “पतन” हो चुका है।

दिल्ली दंगों के बाद के दौर में जिस प्रकार से कार्यकर्ताओं और जो लोग सरकार के खिलाफ आवाज उठा रहे थे, को दोषी साबित करने और गिरफ्तार करने के लिए अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट (यूएपीए) और राष्ट्रद्रोह का धडल्ले से उपयोग किया जा रहा है, को लेकर वे और भूषण दोनों ही समान रूप से आलोचनात्मक रुख रखते आये हैं। 

पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा कि शाहीन बाग़ में मुस्लिम महिलाओं के विरोध प्रदर्शन ने एक “बेहद सशक्त संदेश” देने का काम किया है। अंसारी के अनुसार जिन महिलाओं को कुछ समय पहले तक ‘बचा लिए’ जाने की बात कही जा रही थी (तीन तलाक के सन्दर्भ में) वही महिलाएं “अचानक से भारत के लोकतंत्र को बचाने वाली साबित हुईं हैं।” पूर्व उप-राष्ट्रपति ने आगे कहा कि जिस प्रकार से सरकार ने सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कदम उठाये, उससे यह स्पष्ट हो चुका है कि पहले की तुलना में पुलिस का कितना अधिक “राजनीतिकरण” हो चुका है, मीडिया “पूरी तरह से साम्प्रदायिक” हो चुकी है और नौकरशाही ने सरकार के वैचारिक झुकाव के मद्देनजर अपनी प्रतिक्रिया देने का काम किया।  

उन्होंने अपनी बात को आगे बढाते हुए कहा “हमारे समूचे इतिहास में हमने पाया है कि कोई भी नया विचार असल में असहमति का विचार रहा है, वो चाहे धार्मिक हो (या) सामाजिक असहमति....लेकिन आप उसे कुचल नहीं सकते।”

मानवाधिकार कार्यकर्त्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा कि जो भी लोग व्यवस्था से असंतुष्ट हैं उन्हें पहले “राष्ट्र-द्रोही के तौर पर चिन्हित किया जाता है, और बाद में उनके बंदी बनाये जाने की बारी आती है। दण्ड संहिता का पालन नहीं किया जा रहा है। जिस संख्या में पत्रकारों की गिरफ्तारियाँ हुई हैं, वे अभूतपूर्व हैं।” इसके साथ ही अपने वक्तव्य में उन्होंने सर्वसत्तावाद का मुकाबला करने के लिए दक्षिण एशियाई गठबंधन की जरूरत का उल्लेख किया।

कांग्रेस पार्टी के सांसद शशि थरूर ने कहा कि घेराबंदी में जकड़े नागरिक राष्ट्रवाद जैसे संस्थानों की स्वायत्तता को बहाल करने और उनकी प्रभावशीलता को बरकरार रखने के लिए उनके बचाव के सचेतन प्रयासों को करने की महती आवश्यकता है।” 

नागरिक-अधिकार अधिवक्ता एवं पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के संयोजक मिहिर देसाई के अनुसार, वर्तमान सरकार ने पीड़ितों को अपराधियों के तौर पर तब्दील करने के लिए कठोर कानूनों का इस्तेमाल करने में “महारत” हासिल कर ली है। पहले की तुलना में वर्तमान दौर में लोकतान्त्रिक संस्थाएं बेहद खोखली बना दी गई हैं” उनका कहना था।

"वर्तमान सरकार अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि को लेकर चिंतित है, और इस अंतर्राष्ट्रीय दबाव को भारत में लोकतंत्र की बहाली एवं कानून के शासन को अमल में लाने के लिए इस्तेमाल में लाना चाहिए" देसाई ने कहा।

वरिष्ठ पत्रकार परन्जॉय गुहा ठाकुरता के अनुसार केंद्र ने “बेहद व्यवस्थित तौर पर संस्थाओं की महत्ता की अवहेलना करने एवं उन्हें ध्वस्त करने” के काम के साथ-साथ वर्तमान बीजेपी शासन ने मीडिया को “आर्थिक तौर पर निचोड़” कर रख दिया है।”

पत्रकार और पीपुल्स एसोसिएशन इन ग्रासरूट्स मूवमेंट एंड एसोसिएशन (पैगाम) की संस्थापक आकृति भाटिया ने कहा कि “स्वतंत्र मीडिया जिसे कहा जाता था और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव क्या हुआ करते थे, हमें इसके बीच के स्पष्ट सम्बन्धों को समझने की आवश्यकता है।”

वहीँ अमेरिका स्थित भारतीय लेखक आतिश तासीर, जिन्हें मोदी सरकार द्वारा भारत में प्रवेश पर प्रतिबंधित कर रखा है, के अनुसार “यदि उस कमरे में बैठे 200 लोग कहते हैं कि आप उनसे भिन्न हैं, तो आप वास्तव में कुछ और हैं। यह कुछ इस तरह का वर्णन है जिसे फिलवक्त देश के भीतर व्यापक पैमाने पर खेला जा रहा है, जहाँ लोग खुद को अन्य लोगों के खिलाफ परिभाषित करने में व्यस्त हैं। वे अपने खुद के वजूद के चलते स्वीकार नहीं किये जा रहे हैं बल्कि वे अचानक अन्य विचारों से टकरा रहे हैं, जिसमें उनकी पहचान बताई जा रही है। यह कुछ ऐसा है जो वास्तव में आपको आपके पथ पर जाम कर देने के लिए पर्याप्त है।” 

इंडिया सिविल वाच इंटरनेशनल के सह-संस्थापक बिजु मैथ्यूज का कहना था कि दक्षिणपंथ द्वारा उदारवाद में मौजूद “दोषपूर्ण रेखाओं के एक समूह” को इस्तेमाल में लाया जा रहा है, ताकि “उदार लोकतंत्र में मौजूद सभी निगरानी एवं सामंजस्य बिठाने वाली संरचनाओं को धता बताया जा सके, जिसकी वजह से उदार लोकतंत्र अपने अस्तित्व में था। इसे संभव बनाने के लिए वह आंतरिक तौर पर उत्पादन प्रक्रियाओं और काम करने के तौर तरीके विकसित करती है, जिसके चलते उदार लोकतंत्र के भीतर मौजूद सभी जाँच और संतुलन बनाये रखने के उपायों को बुनियादी तौर पर उलट पाना संभव हो जाता है।” उनके अनुसार दक्षिणपंथ इस बात से भलीभांति परिचित है कि “उदार लोकतंत्र को किस प्रकार से सर के बल खड़ा किया जा सकता है और हर प्रकार के जाँच एवं संतुलन बनाये रखने की प्रकिया को धता बताई जा सकती है। हमें दोबारा से उसे खोजने की जरूरत है।”  

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल रिपोर्ट पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

‘Undemocratic and Anti-People’ Modi Government Destroying Institutions, Say Rights Activists, Jurists and Journalists

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