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यूपी: दाग़ी उम्मीदवारों को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी, लेकिन सच्चाई क्या है?

सत्ताधारी बीजेपी खुद को जहां सबसे ज्यादा स्वच्छ और ईमानदार छवि वाली पार्टी तो वहीं विरोधियों को गुंडाराज वाली पार्टी बता रही है। हालांकि अगर आंकड़ों पर नज़र डालें तो इनके दावों से उलट 'हम्माम में सब नंगे' ही नज़र आते हैं।
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उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे चुनाव की तारीखें नजदीक आ रही हैं, वैसे-वैसे चुनावी रण और भीषण होता जा रहा है। चुनावी मैदान में अपने-अपने उम्मीदवारों की घोषणा के साथ ही पार्टियां एक दूसरे पर दागी उम्मीदवारों को टिकट देने का आरोप लगा रही हैं। सत्ताधारी बीजेपी खुद को जहां सबसे ज्यादा स्वच्छ और ईमानदार छवि वाली पार्टी तो वहीं विरोधियों को गुंडाराज वाली पार्टी बता रही है। हालांकि अगर आंकड़ों पर नज़र डालें तो इनके दावों से उलट 'हम्माम में सब नंगे नज़र आते हैं।

'फर्क साफ है, बेहतर कानून व्यवस्था, न्यूनतम अपराध, मंदिर-मस्जिद, और हिंदुओं के पलायन’ सहित तमाम मुद्दों के बाद अब इस घमासान में दंगाई और दागी नेताओं पर सियासत तेज़ हो गई है। सीएम योगी आदित्यनाथ और दिल्ली दंगे में खुद भड़काऊ भाषण देने का आरोप झेल रहे केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने समाजवादी पार्टी पर दंगा आरोपियों को टिकट देने का आरोप लगाया तो वहीं इसके जवाब में पूर्व सीएम और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी आईपीएस असीम अरुण के बीजेपी में शामिल होने पर सवाल उठा दिया। हालांकि यूपी चुनाव के मैदान में अब तक उतरने वाले उम्मीदवारों की कुंडली देखें तो लगभग सभी पार्टियों ने ही दागी उम्मीदवारों पर दांव चला है।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग ने सभी दलों के लिए प्रत्याशी घोषित करने के 48 घंटे के भीतर उनका पूरा आपराधिक इतिहास (अगर है तो) सार्वजनिक करना जरूरी कर दिया है। दलों को यह भी बताना होगा कि आपराधिक छवि का उम्मीदवार क्यों चुना? अब तमाम राजनीतिक दल कोर्ट के आदेश के तहत अपने उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारने के संबंध में सफाई दे रहे हैं।

सभी पार्टियों में हैं दाग़ी उम्मीदवार

बहरहाल, चुनाव आयोग के निर्देश के बाद बीजेपी, सपा-रालोद गठबंधन और कांग्रेस ने मंगलवार, 18 जनवरी को अपने-अपने प्रत्याशियों (अब तक घोषित) का आपराधिक ब्योरा जारी कर दिया है। आंकड़ों के मुताबिक बीजेपी ने अब तक 29, सपा ने 21, रालोद ने छह और कांग्रेस ने 10 प्रत्याशियों का आपराधिक इतिहास सार्वजनिक किया है।

बीजेपी की बात करें, तो आपराधिक छवि वाले प्रत्याशियों में सबसे बड़ा नाम डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का है। इसके अलावा मुजफ्फरनगर दंगे के आरोपी संगीत सोम और सुरेश राणा का नाम भी शामिल है। पार्टी ने आपराधिक इतिहास होने के बावजूद प्रत्याशियों को टिकट देने के पीछे जिला इकाई की संस्तुति के साथ उनके लोकप्रिय होने को बड़ी वजह बताई है। वहीं, सपा ने कहा है कि दागी नेताओं को टिकट इसलिए दिया गया, क्योंकि ये समाजसेवी हैं, गरीबों की मदद करते हैं और दूसरों के मुकाबले ज्यादा बेहतर हैं।

यूपी विधानसभा चुनाव 2017 के नतीजे देखें तो 403 सीटों वाली विधानसभा में से बीजेपी को 312, सपा को 47, बसपा को 19, कांग्रेस को 7 और अपना दल को 9 सीटें मिली थीं। तीन निर्दलीय भी चुनाव में जीते थे। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म यानी एडीआर के मुताबिक इनमें से 143 ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किए थे। इन सभी दागी नेताओं ने अपने चुनावी हलफनामे में मुकदमों की जो जानकारी दी थी, उससे राजनीति में बढ़ती अपराध की गर्मी को मापा जा सकता है।

आधी कैबिनेट में दाग़ी छवि वाले मंत्री मौजूद

प्रचंड बहुमत की सरकार बनाने वाली बीजेपी के 37 फीसदी विधायकों पर अपराधिक मामले दर्ज हैं। 2017 की विधानसभा में पहुंचे बीजेपी के 312 विधायकों में से 114 पर आपराधिक मामले दर्ज पाए गए थे। इनमें से 83 विधायकों ने अपने ऊपर संगीन आपराधिक मामले दर्ज होने का खुलासा अपने हलफनामे में किया था। 20 ऐसे विधायकों को मंत्री बनाया गया, जिनपर क्रिमिनल केस थे। ये संख्या 45 प्रतिशत थी। यानी करीब आधी कैबिनेट में दागी छवि वाले मंत्री मौजूद थे।

इसी तरह इस चुनाव में पार्टियों ने खूब दागी उम्मीदवारों को टिकट दिया था। साल 2017 में कुल 4853 उम्मीदवार मैदान में थे। इनमें से 4823 उम्मीदवारों के शपथ पत्रों के विश्लेषण से पता चला कि 859 के ऊपर क्रिमिनल केस दर्ज थे। ये कुल उम्मीदवारों के करीब 18 प्रतिशत था। 15 प्रतिशत के ऊपर तो ऐसे थे जिनपर सीरियस क्रिमिनल केस दर्ज थे।

इतना ही नहीं एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2017 में संवेदनशील निर्वाचित क्षेत्रों में 3 या 3 से अधिक ऐसे उम्मीदवार थे, जिनके ऊपर क्रिमिनल केस दर्ज थे। रिपोर्ट में ऐसी 152 (38%) सीटें सामने आई। यानी चुनाव में लगभग आधी या कहें हर दूसरी सीट पर तीन या उससे ज्यादा क्रिमिनल केस वाले उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे।

उस चुनाव में सबसे ज्यादा बीएसपी ने दागी उम्मीदवार उतारे थे। उनके 400 में से 150 पर क्रिमिनल केस दर्ज था। दूसरे नंबर पर बीजेपी थी। उन्होंने 383 उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से 137 पर केस दर्ज था। सपा के 307 में से 113 उम्मीदवारों पर क्रिमिनल केस था। रालोद के 276 में से 56, कांग्रेस के 114 में से 36 और 1453 निर्दलीय में से 150 उम्मीदवारों पर क्रिमिनल केस थे।

गौरतलब है कि देश के सबसे बड़े सूबे में सियासत एक बार फिर गरम होने लगी है। दागी नेताओें को लेकर आरोप- प्रत्यारोप के बीच राज्य में कोई भी राजनीतिक दल दूध का धुला नहीं है। ऐसी कोई राजनीतिक पार्टी नहीं है जो यह दावा कर सके कि आपराधिक छवि वाले लोग उनकी पार्टी में विधायक, सांसद या पार्टी कार्यकर्ता नहीं हैं। ज़ाहिर है, दाग़ी हैं तो क्या हुआ, सबके लिए अपनों-अपनों के ‘दाग़ अच्छे हैं’।

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