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ख़बरों के आगे-पीछे: कोरोना प्रबंधन की पढ़ाई और शीतकालीन सत्र

वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन अपने साप्ताहिक कॉलम में बच्चों को कोरोना प्रबंधन की पढ़ाई के फ़ैसले से लेकर भारत-पाक मैच के तमाशे, जाति जनगणना और संसद के आने वाले शीतकालीन सत्र की चर्चा कर रहे हैं।
covid
प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

कोरोना प्रबंधन के बारे में क्या पढ़ाया जाएगा?

एक बहुत दिलचस्प खबर आई है कि अब स्कूलों में बच्चों को चंद्रयान-तीन की सफल लैंडिंग, जी-20 शिखर सम्मेलन के आयोजन और कोरोना प्रबंधन के बारे में पढ़ाया जाएगा। इन तीनों को पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला इसलिए किया गया है ताकि बच्चों को आधुनिक समय के घटनाक्रम के बारे में जानकारी रहे। निश्चित रूप से चंद्रयान-तीन की सफल लैंडिंग भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की बड़ी उपलब्धि है, जिसके बारे में बच्चों को बताया जाना चाहिए। लेकिन सवाल है कि जी-20 और कोरोना प्रबंधन के मामले में क्या पढ़ाया जाएगा?

जी-20 शिखर सम्मेलन हर साल बारी-बारी से सदस्य देशों में आयोजित होता है, इसलिए मेगा इवेंट के रूप में प्रचारित करने के अलावा उसके आयोजन में उपलब्धि जैसा क्या है? सवाल यह भी है कि कोरोना के प्रबंधन के मामले में क्या पढ़ाया जाएगा? लगता है कि सरकार कोरोना प्रबंधन के नाम पर वैक्सीन कार्यक्रम को अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश करेगी। पिछले दिनों एक फिल्म आई थी 'द वैक्सीन वॉर’। प्रधानमंत्री मोदी ने भी फिल्म की तारीफ की थी लेकिन चूंकि फिल्म एक पीआर एक्सरसाइज के तौर पर बनाई गई थी, जिसमें लॉकडाउन, चिलचिलाती गर्मी में लाखों लोगों का महानगरों और बड़े शहरों से पलायन, ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों, बेड नहीं मिलने की वजह से अस्पतालों के बाहर तड़प तड़प कर मरते लोगों, गंगा में बहती या गंगा किनारे दफन कर दी गई लाशों के बारे में कुछ नहीं दिखाया गया था इसलिए फिल्म बुरी तरह से पिट गई।

दो साल पहले लोगों ने सब कुछ अपनी आंखों से देखा है इसलिए उस पर परदा डालना मुश्किल है। इसीलिए सवाल है कि क्या स्कूलों में बच्चों को कोरोना की त्रासदी के हर पहलू के बारे में पढ़ाया जाएगा या राजनीतिक भाषणों की तरह यह बताया जाएगा कि भारत ने सबसे शानदार तरीके से कोरोना का प्रबंधन किया?

भारत-पाक मैच में बेमतलब की तमाशेबाज़ी क्यों?

भारत में क्रिकेट की नई राजधानी के तौर पर उभर रहे अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में पिछले शनिवार को क्रिकेट के विश्वकप मुकाबले में भारत और पाकिस्तान का मैच खेला गया। सबको पता है कि ज्यादातर भारतीयों के लिए पाकिस्तान को हराने का मतलब ही विश्व कप जीतना होता है। पाकिस्तान को हराने पर भारत में वैसा ही जश्न होता है, जैसा विश्वकप जीतने पर होता है। इसीलिए भारत और पाकिस्तान के मैच की बड़ी हाइप रहती है। लेकिन सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि आतंकवाद के नाम पर भारतीय टीम को पाकिस्तान नहीं भेजने और पाकिस्तानी खिलाड़ियों को आईपीएल में नहीं शामिल करने वाले भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने अहमदाबाद के मैच में बड़ा भारी तमाशा किया। गौरतलब है कि गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह बीसीसीआई के सचिव है।

बहरहाल, तमाशे की शुरुआत पाकिस्तानी टीम के अहमदाबाद पहुंचने से हुई। हवाई अड्डे से लेकर होटल तक टीम का अभूतपूर्व स्वागत हुआ। सभी पाकिस्तानी खिलाडियों को केसरिया पटका पहनाया गया, उन पर फूलों की बारिश हुई और उनके स्वागत में युवतियों का पारंपरिक नृत्य हुआ। मैच से पहले स्टेडियम में गाने-बजाने का बड़ा कार्यक्रम हुआ। अमित शाह सहित राजनीति, फिल्म और खेल जगत की अनेक हस्तियां मैच देखने पहुंचीं। हैरानी की बात यह है कि उद्घाटन मैच भी नरेंद्र मोदी स्टेडियम में ही हुआ था लेकिन उस दिन कोई कार्यक्रम नहीं हुआ। सवाल है कि उद्घाटन मैच की बजाय भारत-पाकिस्तान मैच में इस किस्म के कार्यक्रम का क्या मतलब था? दूसरे मैंचों से पहले ऐसे कार्यक्रम क्यों नहीं हो रहे हैं? कारण जो हो, लेकिन बीसीसीआई ने एक गलत परंपरा शुरू की है।

आंध्र प्रदेश में भी जाति जनगणना होगी

ऐसा लग रहा है कि भाजपा शासित राज्यों को छोड़ कर देश के बाकी सभी राज्यों की सरकारें अंतत: जाति गणना शुरू कराएंगी या कराने का ऐलान करेंगी। एकाध प्रादेशिक पार्टी को छोड़ कर कांग्रेस सहित सभी सत्तारूढ़ प्रादेशिक पार्टियां जाति गणना करवा रही हैं। बिहार के बाद ओडिशा ने अपने यहां हुई जाति गणना के आंकड़े जारी किए और अब आंध्र प्रदेश सरकार ने जाति गणना कराने का ऐलान कर दिया है। गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश में अगले साल लोकसभा के साथ ही विधानसभा का चुनाव होने वाला है। उससे पहले जगन मोहन रेड्डी की सरकार ने नवंबर में जाति गणना कराने की घोषणा की है। संभव है कि अगले साल लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले जाति गणना के आंकड़े जारी कर दिए जाएं। अगर ऐसा नहीं भी होता है तब भी सरकार वादा कर सकती है कि वह चुनाव के बाद आंकड़े जारी करेगी और उस हिसाब से आरक्षण का प्रावधान करेगी। कांग्रेस ने भी आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में सत्ता में आने पर जाति जनगणना कराने का वादा किया है। छत्तीसगढ़ में भी उसने दोबारा सरकार बनने पर जाति जनगणना कराने का ऐलान किया है। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार ने राज्य में विधानसभा चुनाव की घोषणा से दो दिन पहले जाति जनगणना कराने की अधिसूचना जारी की। मध्य प्रदेश में कांग्रेस विपक्ष में है तो उसने अपने चुनाव घोषणापत्र में वादा किया है कि उसकी सरकार बनी तो जाति गणना कराएगी।

आम आदमी पार्टी की संसदीय समस्या

आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा की एक फिल्म अभिनेत्री से शादी की खबरों पर विराम लगा तो उनके अदालती मुकदमों की खबरें आने लगी हैं। उन्होंने पंडारा रोड का टाइप सात का अपना बंगला बचाने के लिए जहां हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, वहीं राज्यसभा से अपने निलंबन के सभापति के फैसले को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। असल में राघव चड्ढा को मानसून सत्र के आखिरी दिन 11 अगस्त को कार्यवाही समाप्त होने से एक घंटे पहले सदन से निलंबित कर दिया गया था। उनका निलंबन अभी तक जारी है। वे विशेष सत्र में हिस्सा नहीं ले पाए और न समितियों की बैठक मे शामिल हो पा रहे है। अब पार्टी की मुश्किल यह है कि राज्यसभा में उसके नेता संजय सिंह को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया है और राघव चड्ढा अनिश्चितकाल के लिए निलंबित हैं। ‘कट्टर ईमानदारी पार्टी’ के नेता अरविंद केजरीवाल ने इन दो के अलावा किसी नेता को राज्यसभा में भेजा ही नहीं है। उन्होंने सिर्फ कारोबारियों, खिलाड़ियों, चुनाव प्रबंधकों आदि को राज्यसभा भेजा है, जो सदन में बोलना तो दूर दिखते भी कम ही हैं। उधर लोकसभा में उनकी पार्टी के सिर्फ एक सांसद हैं, जो कुछ दिन पहले ही उपचुनाव जीत कर आए हैं और बोलते बिल्कुल नहीं हैं। सो, अगर यही स्थिति रही तो शीतकालीन सत्र में दोनों सदनों में पार्टी के पास कोई बोलने वाला नेता नहीं होगा।

पांच राज्यों में योगी सबसे बड़े प्रचारक

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा की कमान वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हाथों में ही रहेगी, लेकिन पार्टी के सबसे बडे प्रचारक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ होंगे। पांच राज्यों में सिर्फ एक राज्य मध्य प्रदेश है, जहां भाजपा के स्थानीय नेता खास कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चुनाव की कमान संभालते दिख रहे हैं। बाकी सभी राज्यों में केंद्रीय नेतृत्व ही चुनाव लड़ रहा है। यानी जीत-हार दोनों ही स्थितियों के लिए मोदी और शाह ने अपने को दांव पर लगाया है। लेकिन प्रचार में उनके अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का बड़ा रोल होना है। बताया जा रहा है कि भाजपा की ओर से प्रचार की जो रणनीति बन रही है उसमे योगी आदित्यनाथ की बड़ी भूमिका तय की जा रही है। उत्तर प्रदेश से सटे मध्य प्रदेश के इलाकों में तो वैसे भी उनकी भूमिका होनी ही थी। लेकिन उससे बाहर भी पूरे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और यहां तक कि तेलंगाना में भी उनकी सबसे ज्यादा सभाओं की तैयारी हो रही है, क्योंकि इन सभी चुनावी राज्यों से उनकी रैली की मांग पार्टी के पास लगातार आ रही है।

आंध्र प्रदेश में भाजपा दो नावों पर सवार

आंध्र प्रदेश में भाजपा दो नावों की सवारी कर रही है। वह मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी को भी नाराज नहीं करना चाहती है और टीडीपी के नेता चंद्रबाबू नायडू को भी खुश रखना चाहती है। इसीलिए वह आंध्र प्रदेश को लेकर अपने पत्ते नहीं खोल रही है। पिछले दिनो चंद्रबाबू नायडू के बेटे नारा लोकेश ने दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की। अमित शाह बड़ी आत्मीयता से उनसे मिले और जेल मे बंद चंद्रबाबू के हाल-चाल पूछे। लेकिन भाजपा ने साफ नहीं किया कि वह लोकसभा चुनाव के लिए टीडीपी से तालमेल करना चाहती है या नहीं। इसीलिए आंध्र प्रदेश के राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि भाजपा नहीं चाहती कि चंद्रबाबू जेल से छूटे।

यह भी कहा जा रहा है कि जगन मोहन रेड्डी ने भाजपा की सहमति से ही नायडू के खिलाफ कार्रवाई की है। हालांकि नायडू का परिवार इस बात को खारिज कर रहा है, लेकिन जब तक भाजपा स्पष्ट नहीं करेगी तब तक अटकलें चलती रहेंगी। भाजपा पर दबाव बनाने के लिए जन सेना पार्टी के नेता पवन कल्याण ने टीडीपी से तालमेल का ऐलान कर दिया। फिर भी भाजपा चुप है। असल में भाजपा यह आकलन कर रही है कि अगले चुनाव में किसका पलड़ा भारी रहना है। इसीलिए वह अभी कोई फैसला नहीं कर रही है। उसे जगन मोहन रेड्डी से कोई दिक्कत नहीं है। वे केंद्र में की भाजपा सरकार को समर्थन देते रहते हैं, इसलिए भाजपा उन्हें नाराज नहीं करना चाहती है।

कांग्रेस में नेताओं के परिवारजनों को टिकट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही परिवारवादी राजनीति को लेकर विपक्षी पार्टियों पर कितने ही हमले कर लें, लेकिन हकीकत यह है कि परिवारवाद का मुद्दा भारतीय राजनीति में कोई खास जगह नहीं रखता। क्योंकि दूसरी पार्टियों की तरह खुद प्रधानमंत्री की पार्टी भाजपा भी परिवारवाद से मुक्त नहीं है। इसीलिए कांग्रेस ने हमेशा की तरह इस बार भी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ राजस्थान और तेलंगाना में अपने पुराने नेताओं के बेटे-बेटियों को उम्मीदवार बनाने में कोई संकोच नहीं किया है। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के हमले में मारे गए दिग्गज कांग्रेसी नेता महेंद्र कर्मा के बेटे छविंद्र कर्मा को चुनाव में उतारा गया है। इसी तरह मध्य प्रदेश में दिग्गज नेता महेश जोशी के बेटे पिंटू (दीपक) जोशी और कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रांत भूरिया को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा से कांग्रेस में आए पूर्व मुख्यमंत्री कैलास जोशी के बेटे दीपक जोशी को भी पार्टी ने टिकट दिया है। कांग्रेस ने पिछले साल अपने रायपुर अधिवेशन में तय किया था कि एक परिवार से किसी एक ही व्यक्ति को टिकट दिया जाएगा लेकिन पार्टी के कुछ खास बड़े नेताओं को इस नियम से छूट दी है। कमलनाथ के बेटे नकुल नाथ सांसद हैं ही, जबकि दिग्विजय सिंह कई सालों से राज्यसभा में हैं और उनकी पारंपरिक राघौगढ़ विधानसभा सीट पर उनके बेटे को दूसरी बार टिकट दिया गया है। दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह और भतीजे प्रियव्रत सिंह को भी पार्टी ने दोबारा उम्मीदवार बनाया है। उधर तेलंगाना में पार्टी के सांसद एन. उत्तम कुमार रेड्डी के साथ ही उनकी पी. पद्मावती रेड्डी भी विधानसभा का चुनाव लड़ रही हैं।

शीतकालीन सत्र इस बार भी छोटा होगा

संसद का शीतकालीन सत्र आमतौर पर एक महीने का होता है लेकिन पिछले साल की तरह इस बार भी यह सत्र छोटा होगा। पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की वजह से यह सत्र संभवत: दो हफ्ते का ही होगा। संसद का शीतकालीन सत्र हर साल नवंबर के तीसरे हफ्ते में शुरू होकर दिसंबर के तीसरे हफ्ते में खत्म होता है। लेकिन इस साल नवंबर में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होना है। सात नवंबर से मतदान का सिलसिला शुरू होगा जो 30 नवंबर तक चलेगा। तीन दिसंबर को पांचों राज्यों में वोटों की गिनती होगी। इस तरह नवंबर के अंत तक संसद का सत्र शुरू होने की संभावना नहीं है। तीन दिसंबर को वोटों की गिनती के दिन रविवार है। इसलिए चार दिसंबर से सत्र शुरू हो सकता है। बताया जा रहा है कि यह सत्र 20 दिसंबर तक समाप्त हो जाएगा। वैसे भी उसके बाद क्रिसमस वगैरह की छुट्टी हो जाती है।

पिछले साल भी गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव थे, जिसकी वजह से शीतकालीन सत्र समय से शुरू नहीं होकर सात दिसंबर से शुरू हुआ था। इसके अगले दिन आठ दिसंबर को दोनों राज्यों के नतीजे आए थे। सात दिसंबर को शुरू होकर 23 दिसंबर को सत्र समाप्त हो गया था। यानी पिछले साल भी शीतकालीन सत्र दो हफ्ते ही चला था। इस बार शीतकालीन सत्र मौजूदा लोकसभा का आखिरी पूर्ण सत्र होगा। इसके बाद चुनाव से पहले बजट सत्र होगा लेकिन वह सिर्फ लेखानुदान के लिए होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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