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कोरोनावायरस से लड़ने के लिए कौन सा देश कितना ख़र्च कर रहा है?

भारत इस तुलनात्मक अध्ययन के लिए तैयार नज़र नहीं आता। खस्ता-हाल स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं के चलते यह स्थिति निर्मित हुई है।
कोरोनावायरस
छायाचित्र सौजन्य: खलीज टाइम्स

COVID-19 महामारी ने तक़रीबन सारे विश्व को अपनी आगोश में ले लिया है। मौजूदा समय में 155 देशों में क़रीब 1.82 लाख मामलों में रोगों की पुष्टि हो चुकी है, और सरकारें इस चुनौती का सामना करने के लिए हाथ-पाँव मारना शुरू कर चुकी हैं। इनमें से जो देश इससे बुरी तरह से प्रभावित हैं - मुख्य तौर पर पूर्वी एशिया और यूरोप के - उन्होंने फुर्ती से अपने खजाने के मुँह खोल डाले हैं। इस संक्रमण के आगे के विस्तार को रोकने के साथ-साथ लोगों की ज़िंदगी पर पड़ने वाले इसके दुष्प्रभावों से मुक़ाबले के रूप में इन दोनों ही चुनौतियों से निपटने की अपनी कोशिशों को यहाँ पर तेज कर दी गईं हैं।

मीडिया से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर तैयार नवीनतम आँकड़ों के लिहाज से दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं वाली सरकारों ने तकरीबन 200 बिलियन डॉलर झोंकने का संकल्प लिया है। इसमें बैंकों की ओर से प्रदान की जा रही आसान किश्तों पर ऋण सुविधा का आकलन शामिल नहीं है। पहले से ही लड़खड़ाती वैश्विक अर्थव्यस्था को लेकर चिंता करना वाजिब है कि इसके चलते और भी गहरा झटका झेलना पड़ सकता है और यह दुनिया को मंदी की चपेट में ले जायेगी। एक कारण यह भी है जो सरकारों को आसान ऋण सुविधाओं के साथ अन्य राजकोषीय उपायों को अपनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं।

नीचे दिए गए चार्ट में इनमें से कुछ प्रमुख देशों की ओर से COVID-19 के सम्बन्ध में  धनराशि जुटाने के लिए की गई घोषणाओं की नवीनतम उपलब्ध जानकारी को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है।

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जैसा कि ऊपर देखा जा सकता है भारतीय सरकार ने इस सम्बन्ध में अभी तक राज्य आपदा राहत कोष (एसडीआरएफ) की घोषणा ही की है। जिसका उपयोग राज्य सरकारों द्वारा आपात स्थिति से निपटने के लिए किया जाना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारों के योगदान से एसडीआरएफ निर्मित किया गया है। गृह मंत्रालय की आपदा प्रबन्धन ईकाई की ओर से जारी सूचना के अनुसार 27 फ़रवरी 2020 तक एसडीआरएफ के पास कुल 24,800 करोड़ रुपयों की धनराशि थी। मौजूदा विनिमय दर के हिसाब से यह धनराशि करीब 3.5 बिलियन डॉलर की होती है।

भारत की विशाल जनसंख्या को देखते हुए स्वास्थ्य सेवाओं की हालत बेहद खस्ताहाल है। खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में करीब-करीब किसी भी प्रकार की मुफ्त मेडिकल सुविधा अनुपलब्ध है। इसके साथ ही किसी भी प्रकार के बीमा कवरेज तक के उपलब्ध न होने के कारण इतनी कम फंडिंग बेहद चिंताजनक स्थिति दर्शाती है। भारत में अभी तक सिर्फ 119 मामलों और तीन मौतों की पुष्टि हुई है। शायद इसके चलते इस पर ध्यान न जा रहा हो। लेकिन आधिकारिक बयानों में इस बात के संकेत मिलते हैं कि सरकार न तो सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर और ना ही अन्य खर्चों जैसे कि प्रभावित परिवारों को सस्ते भोजन की उपलब्धता प्रदान करने को लेकर गंभीर है। सरकार ने अभी तक मजदूरी के नुकसान की भरपाई, छोटे और अति सूक्ष्म काम धंधों को मदद, और माँग में नरमी के चलते जनता के बड़े हिस्से के अलग थलग पड़ जाने वाली स्थिति जैसे मुद्दों पर विचार तक नहीं किया है।

ऊपर सूचीबद्ध अधिकतर देशों द्वारा की गई इन घोषणाओं को अलग से संदर्भित किये जाने की जरूरत है। वो चाहे उनके द्वारा इसके लिए धनराशि मात्रा की घोषणा के बारे में हो या इन देशों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की मौजूदा स्थिति को लेकर सवाल हो। इनमें से अधिकांश  देशों में पहले से ही सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा की सुविधाएं उपलब्ध हैं। वो चाहे राज्य द्वारा वित्त पोषित हो (जैसे कि ब्रिटेन में एनएचएस की सुविधा) या बीमा आधारित (अमेरिका में) या मिली जुली (जैसा कि यूरोप के कई देशों में प्रचलित) है। परिणामस्वरूप हम पाते हैं कि सामान्य परिस्थितियों के लिए जन स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में उनके यहाँ ये ढाँचे पहले से ही अपने स्तर पर काम कर रहे थे।

इस सबके बावजूद जिस प्रकार से COVID-19 के मामलों में असामान्य वृद्धि ने इन सुविधाओं को बेबस कर डाला है, उसे देखते हुए वहाँ के अस्पतालों की हालत का वर्णन किसी विकाशसील देशों की याद दिला रही हैं। और इसीलिए महामारी की चुनौती से निपटने के लिए घोषित सहायता धनराशि का बड़ा हिस्सा इन सुविधाओं को पहले से कहीं अधिक बेहतर करने में इस्तेमाल किया जा रहा है।   

लेकिन इसके साथ ही साथ उतना ही ध्यान लोगों को उनके परिवारों को मदद करने पर दिया जा रहा है। जो इस बीमारी की वजह से पीड़ित हैं, उनके लिए व्यापक उपाय अपनाए जा रहे हैं। जैसे कि चीन अपने यहाँ यदि कोई व्यक्ति कामकाजी है और बीमारी के चलते काम पर जाने कि स्थिति नहीं है तो प्रतिदिन के खर्च के हिसाब से हर परिवार को कम से कम 400 युआन की व्यवस्था की गई है। उसी तरह इटली में उन श्रमिकों को सहायता राशि उपलब्ध कराई जा रही है जिन्हें अस्थाई तौर पर बंदी के कारण छंटनी का सामना करना पड़ रहा है। भारतीय परिदृश्य में अगर हम देखते हैं तो पाते हैं कि अभी तक इस रणनीति पर कोई सोच विचार तक नहीं हुआ है।

इन घोषणाओं में कई पैकेज तो व्यवसायों से संबंधित हैं, ताकि माँग और पूर्ति में लगे झटके से उन्हें मदद मिल सके। इन नीतियों में धनराशि का वितरण सस्ते दर पर ऋण उपलब्ध कराना, करों के भुगतान को विलम्बित करना, निम्न आय वर्ग के परिवारों को एकमुश्त सहायता राशि के लिए नकद मुद्रा का भुगतान करना, छोटे और मझौले आकार के व्यवसायों के लिए मजदूरी में सब्सिडी प्रदान कराना जैसे उपाय शामिल हैं। जर्मनी की ओर से इसी तरह के एक उपाय के रूप में राज्य संचालित KwF बैंक को 613 बिलियन डॉलर तक की धनराशि इस प्रकार के व्यवसायों को मदद पहुँचाने के लिए निर्देश दिए गए हैं।

ये सभी घोषणाएं संघीय या केन्द्रीय सरकारों की ओर से की गई हैं। राज्य या प्रांतीय सरकारों की ओर से इसके पूरक के रूप में अलग से पैकेज और राहत उपलब्ध कराये जा रहे हैं। लेकिन वहीं अगर भारत की स्थिति पर नजर दौडाएं तो आप पाएंगे कि केंद्र सरकार ने बस एसडीआरएफ फण्ड से खर्च की हरी झंडी दी है। जिसे वैसे भी किसी भी सूरत में राज्यों की ओर से ही इस्तेमाल किया जाना था।

केंद्र की ओर से जो एकमात्र घोषणा अभी तक की गई लगती है जिसके बारे में संभावित सूचना है वह ये कि आरबीआई अपनी ओर से शायद अप्रैल के शुरू में 1 लाख करोड़ रुपयों (13.6 बिलियन डॉलर) तक की धनराशि का निवेश करे। यह पैकेज बाजार में विश्वास बनाए रखने और वित्तीय स्थिरिता कायम रखने को ध्यान में रखकर की जा रही है। इसके अलावा केंद्र सरकार की ओर से राज्य संचालित बैंकों को मार्च के अंत तक 50 से 60,000 करोड़ के ऋणों की मंज़ूरी के निर्देश दिए जाने की खबर है।

ऐसा लगता है कि मोदी सरकार को पीड़ित लोगों की उदारतापूर्वक मदद करने में खर्च करने से  अधिक पैसे बचाने की कहीं अधिक चिंता है। यह दृष्टिकोण अपने आप में बेहद तंग दिल सोच को दर्शाती है। आने वाले समय में इसके कारण लोगों को व्यापक पैमाने पर तकलीफ से गुजरना पड़ सकता है। लोगों की तकलीफों में इजाफ़ा और उनके हताहत होने के साथ अर्थव्यस्था के और भी अधिक गर्त में जाने का खतरा उत्पन्न होता है। हाल के दिनों में जब अन्तराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल और डीजल की कीमतें लगातार गिर रही हैं वहीँ एक्साइज ड्यूटी में बढ़ोत्तरी से पता चलता है कि किस प्रकार की सोच काम कर रही है।

विशेषज्ञों का मत है कि सरकार को चाहिए कि वो इस सम्बन्ध में तत्काल बुनियादी क़दम उठाये। इसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के मद में बढ़ोत्तरी, खाद्य सामग्री के सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार, संक्रमण की स्क्रीनिंग के लिए त्वरित उपाय सुनिश्चित करना एवम  सुरक्षात्मक गियर प्रदान करना शामिल है। इसके साथ ही साथ समूचे निजी स्वास्थ्य सेवाओं को सरकारी नियन्त्रण में लिया जाना (जैसा कि स्पेन में किया गया) चाहिए। सभी के लिए बीमारी की हालत में छुट्टियों के दौरान वेतन की गारंटी और बरोजगारी भत्ते को सुनिश्चित करना होगा।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Which Country Is Spending How Much to Fight Coronavirus (COVID-19)?

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