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बनारस : गंगा में डूबती ज़िंदगियों का गुनहगार कौन, सिस्टम की नाकामी या डबल इंजन की सरकार?

पिछले दो महीनों में गंगा में डूबने वाले 55 से अधिक लोगों के शव निकाले गए। सिर्फ़ एनडीआरएफ़ की टीम ने 60 दिनों में 35 शवों को गंगा से निकाला है।
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36 वर्षीय संजय उर्फ चिंगारू की पत्नी नीतू की आंखें रोते-रोते पथरा गई हैं। 23 मई को दोस्तों के साथ वह बनारस की गंगा में नौकायन कर रहा था। मझधार में नाव पहुंची, तभी सेल्फी लेने के चक्कर में डगमगाने के साथ जलधारा में समा गई। दोस्त अनस (20) और इमामुद्दीन (30) की लाशें तो मिल गईं, लेकिन संजय का शव अगले दिन बरामद हो सका। अचानक आई विपदा से बेहाल नीतू 30 घंटे तक बनारस के प्रभु घाट पर बेसुध सी पड़ी रहीं। अब कोई ढाढस बंधाने पहुंचता है तो उनकी आंखें बरसने लगती हैं और गला रुंध जाता है।

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फ़िरोज़ाबाद के कच्चा टूंडला निवासी संजय उर्फ चिंगारू की आठ बरस पहले शादी हुई थी। उनके दो बच्चे भी हैं। बड़ा बेटा मनीष सात साल और बेटी मानवी छह साल की है। फ़र्रुख़ाबाद से पत्नी और बच्चों को टूंडला छोड़कर संजय मरुधर एक्सप्रेस से दोस्तों के साथ बनारस पहुंचा था। इमामुद्दीन, अनस और केशव के साथ वह सांभा एंटरप्राइजेज के लिए मरुधर एक्सप्रेस ट्रेन की पैंट्रीकार में काम करता था। यह ट्रेन बनारस में करीब नौ घंटे तक खड़ी रहती है। घटना के दिन संजय के साथ पवन, इमामुद्दीन, अनस, पप्पू, अन्नू, मोनू मरुधर एक्सप्रेस से बनारस पहुंचे और मौका मिलते ही नौकायन करने निकल गए।

23 मई की दोपहर सेल्फी के चक्कर में नाव गंगा में डूबी थी। इस नौका पर नाविक सन्नी समेत छह लोग सवार थे। केशव और पवन बच गए। नाविक सन्नी के साथ अनस और इमामुद्दीन की सिर्फ लाशें मिलीं। संजय का कहीं अता-पता नहीं चला। अगले दिन उसकी लाश गंगा में उतराई हुई पाई  गई। अनस और इमामुद्दीन दोनों अविवाहित थे। इमामुद्दीन के परिवार में सिर्फ बूढ़ी मां है। लाइफ जैकेट की अनिवार्यता के बावजूद सिस्टम की नाकामी से चार जिंदगियों को गंगा निगल गई। करीब डेढ़ साल पहले लाइफ जैकेट न पहने होने की वजह से भदैनी के पास नौका हादसे में चार युवकों की मौत हो गई थी। मृतकों में प्रयागराज के संयुक्त निदेशक (कृषि) रमेश मौर्य का बेटा अभिषेक भी था। अप्रैल 2022 में नई दिल्ली से सात युवक बनारस आए और नौकायन के दौरान केदार घाट के सामने उनकी नाव एक बड़े बजड़े से टकराकर पलट गई। शोर मचाने पर इलाकाई मल्लाहों ने सभी को बचाया।

दो महीने में 55 से ज़्यादा लाशें

लचर सिस्टम के चलते स्मार्ट सिटी बनारस में आए दिन लोग गंगा में डूब रहे हैं। गंगा घाटों पर जल पुलिस तैनात रहती है और एनडीआरएफ़ के जवान भी। फिर भी मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। सिस्टम की नाकामी का नतीजा है कि पिछले दो महीनों में गंगा में डूबने वाले 55 से अधिक लोगों के शव निकाले गए। सिर्फ एनडीआरएफ की टीम ने 60 दिनों में 35 शवों को गंगा से निकाला है। गंगा निर्मलीकरण के नाम पर अरबों रुपये खर्चने के बावजूद आज तक बनारस में न तो सुरक्षा के कोई इंतजाम किए गए, न सफाई व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम। बिना लाइफ जैकेट के नौकायन प्रतिबंधित है, लेकिन चौथ वसूली की रवायत के चलते कायदा-कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। आकड़े बताते हैं कि साल 2021 में 110 से अधिक लोगों की गंगा में डूबने से मौत हुई। इस साल अब तक साठ से अधिक लोग गंगा में डूबकर मर चुके हैं।

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हैरानी की बात यह है कि जल पुलिस के रोजनामचे में डूबकर मरने वालों की तादाद दर्जन भर से ज्यादा नहीं है। बाकी लाशें कहां गईं, किसी को नहीं मालूम। घाट किनारे गंगा में डूबकर होने वाली मौतों के आंकड़े तेजी से बढ़ रहे हैं। इस साल के अंत तक इन मौतों का ग्राफ कहां तक पहुंचेगा, इसका अंदाज लगा पाना बेहद कठिन है। नगर निगम के जोनल अधिकारी राजेश अग्रवाल सफाई देते हैं, "समय के अभाव के चलते गंगा घाटों पर जागरुकता अभियान नहीं चलाया जा सका है। नगर निगम की ओर से जल्द ही इस तरह का अभियान शुरू किया जाएगा। हालांकि सभी गंगा घाटों पर सुरक्षा के बाबत निर्देश चस्पा कराए गए हैं, लेकिन स्नानार्थी सावधानी नहीं बरत रहे हैं।"

बनारस में गंगा गहन जानकारी रखने वाले जर्नलिस्ट पवन मौर्य कहते हैं, "गंगा में ज्यादतर मौतें सिर्फ सिस्टम की लापरवाही से ही नहीं, डबल इंजन की सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये के चलते हो रही हैं। नौका चालकों पर लगाम कसने के लिए बनारस के घाटों पर भारी-भरकम फोर्स तैनात है, जिनमें जल पुलिस कर्मी तो हैं ही, एनडीआरएफ के जवान भी गश्त करते हैं। फिर भी ज्यादातर नौकाओं पर न लाइफ जैकेट मिलता है और न ही बचाव के ट्यूब वगैरह का कोई पुख्ता इंतजाम। सिस्टम के नाकारापन के चलते गंगा में डूबकर मरने वालों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। थोड़े से मुनाफे के लिए नाविक छोटी नौकाओं पर क्षमता से अधिक सवारियां बैठा लेते हैं और नौकाएं डूबती हैं तो उनके साथ कई और भी जिंदगियां डूब जाती हैं।"

थम नहीं रहा मौतों का सिलसिला

बनारस की गंगा में मौत के लिए सिर्फ नाविक ही नहीं, डबल इंजन की सरकार भी कम जिम्मेदार नहीं है। घाटों पर रंग-रोगन तो किया जा रहा है, पोपले हो चुके घाटों की मरम्मत के लिए कोई प्रयास नहीं दिख रहा है। गंगा स्नान करने वाले खतरे स्थानों से वाकिफ नहीं होते और अपनी जिंदगी गंवा देते हैं। गंगा में डूबकर मरने वालों में 12 वर्षीय कृष्णानंद भी शामिल है। यह बच्चा अपनी दादी की मौत के बाद अंतिम संस्कार करने गंगा घाट पर पहुंचा था और नहाते समय डूब गया। घटना 10 अप्रैल 2022 की है। पत्नी की मौत के बाद इकलौते पोते की मौत ने बुजुर्ग भोलानाथ को अंदर से हिला दिया है। उन्हें अपनी पत्नी से ज्यादा दुख उस पोते के दुनिया से रुखसत होने का है। भोलानाथ बनारस शहर से करीब 12 किमी दूर दुलहीपुर के बहावलपुर की दलित बस्ती में रहते हैं। मां जीरा देवी, पिता रविंद्र, चाचा जोगेंदर की आंखें अभी तक मासूम कृष्णा को ढूंढ रही हैं।

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वाराणसी के 84 घाटों में से तुलसी घाट के अलावा विश्वनाथ मंदिर के सामने ललिता घाट पर बना नया प्लेटफार्म इन दिनों डेंजर प्वाइंट बन गए हैं। हाल यह है कि सिर्फ तुलसी घाट पर छह महीने के भीतर 12 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। यह अस्सी घाट के समीप है। यह घाट अंदर से काफी पोपला हो चुका है। गंगा की गहराई इतनी ज्यादा है कि यहां कोई भी नहाने जाता है और अचछा तैराक नहीं है तो बच पाना मुश्किल हो जाता है।

वाराणसी प्रशासन ने तुलसी घाट के अलावा सभी डेंजर घाटों पर चेतावनी का बोर्ड लगाया, लेकिन सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं किया। इस वजह से लोगों के गंगा में डूबने और मरने का सिलसिला नहीं थमा। इसी महीने 02 मई को तुलसीघाट पर नहाते समय दो छात्र अभिमन्यु सिन्हा (20) और समीर विश्वकर्मा (20) डूब गए। दोनों इंटर के स्टूडेंट थे और वह बनारस के दुर्गाकुंड इलाके में रहकर प्रायोगिक परीक्षाओं की तैयारी करते थे। कुछ ही दिन पहले इसी घाट पर डूबने से प्रयागराज के टिंकू कुशवाहा (18) की मौत हो गई थी। बीएससी का यह स्टूडेंट अपने दोस्तों के साथ गंगा स्नान करने पहुंचा था। 13 अप्रैल 2022 को मुगलसराय (चंदौली) के केंद्रीय विद्यालय दो छात्र अंकित यादव और दिवाकर की तुलसी घाट पर ही डूबने से मौत हो गई थी। इससे पहले पिछले साल तीन दिसंबर को बिहार के कारपेंटर रंजीत शर्मा को भी यहीं अपनी जान गंवानी पड़ी। 12 अक्टूबर 2021 को मऊ का स्टूडेंट आयुष त्रिपाठी भी तुलसी घाट पर गंगा में समा गया था।

जय मां गंगा सेवा समिति अध्यक्ष बलराम मिश्र कहते हैं, "बनारस के अस्सी और तुलसी घाट पर डूबने से हो रही मौतों के बाबत कई हमने कई मर्तबा पीएम के संसदीय दफ्तर को चिट्ठी लिखी। पुलिस प्रशासन का ध्यान भी आकृष्ट कराया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। यह स्थिति तब है जब बनारस में हर महीने गंगा स्नान और पूजन के लिए करीब 30 से 50 लाख से ज्यादा देसी-विदेशी पहुंचते हैं, जिनमें बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग और तमाम सैलानी नौकायन होते हैं। यहां सुरक्षा का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। किसी भी घाट पर जंजीर तक की व्यवस्था नहीं है। पुलिस और एनडीआरएफ जवान हादसे के बाद सिर्फ पंचनामा कराने पहुंचते हैं। बाकी समय वो क्या करते हैं, किसी को नहीं मालूम।"

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गंगा में डूबकर होने वाली मौतों पर इलाके के एसीपी अवधेश कुमार पांडेय कहते हैं, "हमारे थाने की फाइल में साल 2021 में सिर्फ दर्जन भर केस दर्ज हैं। घाटों के किनारे जल पुलिस और सिपाहियों की ड्यूटी रहती है, जो सैलानियों को गहरे पानी में जाने से रोकते भी हैं। डूबते वही हैं जो पुलिस के निर्देशों की अनदेखी करते हैं। हम इतना जरूर कहेंगे कि हरिद्वार की तर्ज पर बनारस में जंजीर की व्यवस्था होनी चाहिए।''

सुरक्षा का कोई इंतज़ाम नहीं

स्मार्ट हो रहे बनारस में तरक्की हुई हो या नहीं, लेकिन जिस गंगा में हर महीने करोड़ों लोग डुबकी लगाते हैं उनकी हिफाजत के लिए यहां कोई मुकम्मल इंतजाम नहीं है। दुलहीपुर के भोलानाथ को अपने पोते की मौत का गम अभी तक साल रहा है। वह कहते हैं, "अगर गंगा घाट पर सुरक्षा का इंतजाम हुआ होता तो कृष्ण की किलकारी हमारे घर में गूंज रही होती। अब हमें अपनी जिंदगी सिर्फ उसकी यादों के सहारे काटनी होगी। हम चाहते हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी अपना वादा निभाएं और गंगा घाटों पर नहाने वाले लोगों की सुविधा के लिए बैरिकाटिंग का प्रबंध कराएं।"

राजघाट पर सैलानियों को नौकायन कराने वाले दुर्गा माझी डबल इंजन की सरकार से नाखुश हैं। वह कहते हैं, "गंगा स्नान करने वाले श्रद्धालुओं को लेकर डबल इंजन की सरकार गंभीर नहीं है। सिर्फ सरकार ही नहीं, ताबड़तोड़ हो रही मौतों के बावजूद प्रशासन तनिक भी चिंतित नहीं है। बनारस में गंगा घाट पर स्नान, दाह-संस्कार, बोटिंग के लिए आने वाले यात्री सुरक्षित नहीं हैं। लोगों को डूबने से बचाने की जिम्मेदारी जल पुलिस की है, लेकिन वो कहीं भी पेट्रोलिंग करती नजर नहीं आती। हम गोताखोरी करते हैं। कोई डूबता है तो बचाने के लिए जल पुलिस खुद पानी में नहीं उतरती। वह हमारे पास ही आती है। घाटों पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम और पेट्रोलिंग न होने की वजह से गंगा में डूबकर होने वाली मौतों के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं। यह स्थिति काफी गंभीर और चिंताजनक है। मोदी-योगी की सरकार को चाहिए कि वो गंगा के किनारों पर सुरक्षा जंजीर लगाए ताकि लोग उसके सहारे स्नान-ध्यान कर सकें।"

राजघाट पर गोताखोरी करने वाले दुर्गा माझी यह भी कहते हैं, "बनारस के ज्यादातर घाट पोपले हो गए हैं। घाटों की अंदरूनी हालत खराब है। यह गंगा में धड़ल्ले से हो रहे अवैध खनन के दुष्परिणाम का नतीजा है। पिछले साल गंगा में रेत की नहर खोदी गई थी, जिसका असर यह हुआ कि गंगा की जलधारा ने घाटों को अंदर तक पोपला दिया। गंगा में हो रही मौतों की चिंता सरकारी मशीनरी को नहीं है। हम दशकों से गोताखोरी कर रहे हैं। ऐसे भयावह मंजर पहले नहीं दिखते थे। विश्वनाथ कारिडोर बनने के बाद बनारस में भीड़ बढ़ गई है और सुरक्षा व्यवस्था न होन के कारण हादसों में इजाफा हुआ है। रामनगर से राजघाट के बीच अब आए दिन लोगों के डूबने और मरने की खबरें आ रही हैं।"

"हाल के दिनों में जो मौतें हो रही हैं वह डूबने से नहीं, बल्कि नहाते समय पोपले घाटों के अंदर घुस जाने की वजह से हो रही हैं। ऐसी लाशें न पुलिस निकाल पाती है और न ही एनडीआरएफ। जब ये मृतकों को गंगा से नहीं निकाल पाते हैं तब पुलिस हमारे दरवाजों पर मानवता की दुहाई देती है। लाचारी में हमें गंगा की भंवर में उतरना पड़ता है। सरकार हमसे काम तो लेती है, लेकिन पीढ़ियों से गोताखोरी करने वाले लोगों के अनुभवों को कभी तस्दीक नहीं करती। हमें न कोई सुविधा मिलती है और न ही पहचान-पत्र अथवा लाइसेंस। गोताखोरों को कभी सम्मानित करके प्रशासन ने हौसला तक नहीं बढ़ाया। हम राजघाट पर गोताखोरी करते हैं और ऐसा घाट है जहां आए दिन लोग सुसाइड करने के लिए मालवीय पुल से नीचे गंगा में कूद जाते हैं। ऐसे लोगों को हमीं लोग बचा पाते हैं। पुलिस के पास ऐसी कोई एक भी कहानी नहीं है जो इस बात को तस्दीक करे कि जवानों ने किसी डूबते इंसान को बचाया हो।"

गंगा घाटों को कौन देगा संजीवनी?

बनारस के घाट बाहर से देखने पर भले ही रंग-रोगन किए सुंदर से दिखते हैं, लेकिन हकीकत में वो बूढ़े और बीमार हो चुके हैं। घाटों के किनारे जितने मंदिर और पुरानी इमारतें हैं सभी के गुंबद टूट गए हैं। घाटों की मरम्मत करने के लिए न तो प्रशासन तैयार है और न ही नेता-मंत्री। वाराणसी नगर निगम के एडिशनल कमिश्नर दुश्यंत कुमार दावा करते हैं, 'स्मार्ट होते बनारस के हिसाब से इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम किया जा रहा। इसमें गंगा घाट का सुंदरीकरण, चेतावनी बोर्ड, लाइटिंग और साफ-सफाई चीजें हमारी प्राथमिकता हैं। हम भी गंगा घाटों पर होने वाली मौतों को लेकर चिंतित है। चिंता की बात यह है कि पुलिस और एनडीआरएफ की लगातार पेट्रोलिंग के बावजूद गंगा में डूबने से लोगों की मौतें हो रही हैं। बनारस में गंगा के दो दर्जन से अधिक डेंजर घाट दशाश्वमेध कमिश्नरेट थाना क्षेत्र में पड़ते हैं। नगर निगम योजना बना रहा है कि जल्द ही इन घाटों के किनारे जंजीर लग जाए।''

बनारस में मौत के चैंबर बन गए गंगा घाटों के बारे में बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में महामना मालवीय गंगा शोध केंद्र के चेयरमैन और प्रख्यात नदी विशेषज्ञ प्रो. बीडी त्रिपाठी कहते हैं, "गंगा की फिजियोग्राफी और बहाव में काफी बदलाव आया है। घाटों किनारे गंगा में भंवर के चेम्बर्स बन गए हैं, जो सैलानियों की जान और मल्लाहों की पतवार के लिए खतरनाक हैं। घाट के किनारे गंगा में कहीं सिल्ट है तो कहीं 15 फीट से अधिक गहरा पानी। जिन्हें तैरना नहीं आता वह गफलत में डूब जाते हैं। तैराकों की भी पता नहीं होता कि किस घाट के किनारे गंगा में रेत के गड्ढे हैं और कहां भंवर, जो धोखे से जान ले लेते हैं।"

वाराणसी में गंगा बचाओ अभियान से जुड़े और आरटीआई एक्टिविस्ट डॉ. अवधेश दीक्षित बताते हैं, "बनारस में गंगा दक्षिण से उत्तर दिशा में बहती है। कुछ पानी जल तरंग की वजह से खतरनाक भंवरों को पैदा करता है। इनका दायरा करीब 22 फीट में होता है। कम पानी के धोखे में यदि कोई भंवर में फंस गया तो बच पाना मुश्किल होता है। गंगा में डूबने से होने वाली मौतों के लिए सिर्फ घाट ही जिम्मेदार नहीं हैं। तमाम बालू माफिया और अफसर भी जिम्मेदार हैं जो मनमाने तरीके से अवैध खनन में लिप्त हैं। मौजूदा साल के शुरुआत में बालू माफियाओं ने बड़े पैमाने पर रेत की निकासी की है, जिसका विपरीत असर आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा।"

डा.दीक्षित कहते हैं, "चिंता की बात यह है कि गंगा में अवैध खनन के खेल में जुटे माफिया गिरोहों के सिर पर आला अफसरों के हाथ हैं। और वो हाथ इतने लंबे हैं कि किसी के गंगा में डूबने और मरने पर उनकी गर्दन नहीं फंसती। डबल इंजन की सरकार का हाल भी अजीब है। वह गंगा में डूबने वाले लोगों के परिजनों को न कोई मुआवजा देती है और न ही सुरक्षा की गारंटी।"

विजय विनीत बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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