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महाराष्ट्र : किसानों के बढ़े बिजली बिलों से आती 'घोटाले' की बू

एमएसईडीसीएल ने बिजली चोरी और हस्तांतरण हानि को कवर करने और उच्च सब्सिडी की मांग करने के लिए किसानों की बिजली खपत को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया है।
महाराष्ट्र :

न्यूज़क्लिक द्वारा महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड(एमएसईडीसीएल) की आर्थिक गड़बड़ी पर की गई एक विस्तृत ख़बर में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, ख़ास तौर कृषि पम्प द्वारा की गई बिजली खपत के बारे में, और इनमें से घोटालों की बू आती है। जांच में एक थर्ड-पार्टी ऑडिट प्रति वर्ष हज़ारों करोड़ के घोटाले का खुलासा कर सकता है। महाराष्ट्र विज ग्राहक संगठन (महाराष्ट्र विद्युत उपभोक्ता संगठन) पहले ही जांच की मांग कर चुका है।

हाल ही में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को दी गई एमएसईडीसीएल प्रस्तुति के अनुसार, बिजली की कृषि खपत 31% है। बैठक के दौरान मौजूद किसान नेताओं, विशेषज्ञों और यहां तक ​​कि कुछ मंत्रियों के मुताबिक यह जानकारी गलत है।

हॉर्सपावर (एचपी) के आधार पर कई प्रकार के कृषि पंप हैं। बिना मीटर के पंप 5 एचपी, 7.5 एचपी, 10 एचपी आदि के हैं। 2019 में, महाराष्ट्र विद्युत नियामक आयोग (एमईआरसी) ने कृषि पंपों द्वारा खपत का पता लगाने के लिए 'कृषि उपभोग के लिए कार्य समूह' का गठन किया। कार्य समूह ने 502 फीडरों का नमूना लिया। अध्ययन में पाया गया कि किसानों से उनके द्वारा खपत की गई इकाइयों से लगभग दोगुना शुल्क लिया जा रहा था। उदाहरण के लिए, 5 एचपी पंप का उपयोग करने वाले एक किसान को लगभग 200-300 यूनिट की वास्तविक खपत के मुकाबले प्रति माह लगभग 625 यूनिट की खपत होती है।

जून 2015 में, महाराष्ट्र में तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी सरकार ने किसानों की अधिक बिलिंग की शिकायतों के बाद एक तथ्य-खोज समिति का गठन किया था। समिति ने आईआईटी-बॉम्बे को राज्य भर के किसानों द्वारा बिजली की खपत का अध्ययन करने के लिए कहा था। सितंबर 2016 में आईआईटी-बॉम्बे द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट से पता चला है कि एक किसान ने 2014-15 में औसतन 1,064 घंटे और 2015-16 में 1,063 घंटे बिजली की खपत की, जबकि एमएसईडीसीएल के आंकड़ों में 2014-15 में 1,785 घंटे और 2015-16 में 1,900 घंटे बिजली की खपत की बात कही गई है।

इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद संगठन के सदस्य तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मिले थे और बिल में सुधार की मांग की थी। फडणवीस के आश्वासन के बावजूद, अभी तक बिलों में सुधार नहीं किया गया है।

महाराष्ट्र विज ग्राहक संगठन के अध्यक्ष प्रताप होगड़े ने इल्ज़ाम लगाया है कि "दोनों अध्ययनों से पता चला कि कैसे वितरण कंपनी (एमएसईडीसीएल) ने जानबूझकर दिखाया कि किसानों ने अतिरिक्त इकाइयों का उपभोग किया था। इसके दो कारण हैं: पहला, बिजली की भारी चोरी और ट्रांसमिशन में होने वाले नुकसान को कवर करना और दूसरा, राज्य सरकार से अधिक सब्सिडी प्राप्त करना। यह एक डबल घोटाला है।

एमएसईडीसीएल के 31% कृषि बिजली खपत के दावे के विपरीत, 2015 और 2019 के अध्ययन से पता चलता है कि यह लगभग 15% हो सकता है। जाहिर है, शेष 15% बिजली चोरी और ट्रांसमिशन में नुकसान है। बिजली विभाग पहले ही ट्रांसमिशन में 10 फीसदी तक नुकसान दिखाता है। यदि किसानों द्वारा अतिरिक्त खपत के रूप में दिखाएगए आंकड़ों में जोड़ा जाए तो पारेषण हानि बहुत अधिक होगी।

होगड़े ने आगे कहा, "दो रिपोर्ट सामने हैं, ऐसे में राज्य सरकार अनियमितताओं के अध्ययन के लिए कमेटी बना सकती है. हमें यकीन है कि नुकसान 25% -30% है और कृषि खपत 15% से अधिक नहीं है।"

किसानों द्वारा वास्तविक बिजली खपत और रिकॉर्ड में बढ़े हुए आंकड़ों के बीच का अंतर एक और कोण भी है। राज्य सरकार कृषि पंपों के लिए हर साल एमएसईडीसीएल को सब्सिडी बकाया का भुगतान करती है।

प्रति यूनिट 5 एचपी पंप के लिए वर्तमान सब्सिडी दर ₹1.56 है जबकि आयोग ने प्रति यूनिट दर ₹3.29 तय की है। इसलिए राज्य सरकार को बिजली वितरण कंपनी को ₹1.73 प्रति यूनिट के हिसाब से बकाया भुगतान करना होगा। चूंकि रिकॉर्ड पर मौजूद किसानों ने 31% बिजली की खपत की है, इसलिए बकाया का भुगतान ₹3.46 प्रति यूनिट (₹1.73 x 2) की दर से किया जाना है। राज्य सरकार ने पिछले वित्तीय वर्ष में ₹6,000 करोड़ की सब्सिडी का भुगतान किया, जो कि ₹3,000 होना चाहिए था। एमएसईडीसीएल, जिसका घाटा ₹74,000 करोड़ है, ने किसानों द्वारा वास्तव में खपत की गई बिजली के दोगुने दर के आधार पर ₹49,000 करोड़ की लंबित राशि का दावा किया है।

अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव अजित नावले ने आरोप लगाया है कि "हम किसानों के बढ़े हुए बिजली बिल और वितरण कंपनी को दी जाने वाली सब्सिडी की जांच की मांग कर रहे हैं। सब्सिडी मिलने के बाद भी बिजली बिल का भुगतान नहीं करने पर किसानों की आलोचना हो रही है। वास्तव में, उनका इस्तेमाल बिजली विभाग में बड़े पैमने पर भ्रष्टाचार को छुपाने करने के लिए किया जा रहा है।"

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Inflated Power Bills of Maharashtra Farmers Smell of ‘Scam’

 

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