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बढ़ती थोक महंगाई दर और बदहाल होती भारत की अर्थव्यवस्था 

कुछ लोग अमीर हो रहे हैं। लेकिन उसके मुक़ाबले अनगिनत लोग गरीब हो रहे हैं। जो लोग अमीर हो रहे हैं उनका एकाधिकार बढ़ता जा रहा है। यह एकाधिकार की प्रवृत्ति भी भारत में बढ़ती महंगाई का एक कारण है।
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थोक महंगाई दर के आंकड़े आए हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक भारत की अक्टूबर महीने की थोक महंगाई दर 12.54 प्रतिशत है। पिछले साल अक्टूबर महीने में थोक महंगाई दर महज 1.31 प्रतिशत थी। साल 2011-12 के आधार वर्ष के आधार पर आंकी जाने वाली थोक महंगाई दर की यह महंगाई पिछले 7 महीने से लगातार 10 फ़ीसदी के ऊपर बनी हुई है। पिछले 20 सालों में थोक महंगाई दर की यह सबसे ऊंची मौजूदगी है। पिछले 20 सालों में थोक महंगाई दर का आंकड़ा इतने ऊंचे स्तर पर नहीं पहुंचा था। थोक महंगाई दर का इतना बड़ा स्तर उस देश से बना हुआ है जहां पर 90 फ़ीसदी से अधिक आबादी असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। जिसकी आमदनी कभी भी महंगाई दर के हिसाब से नहीं बढ़ती है। तब सोचिए कि इसका असर कितना बड़ा पड़ता होगा 

थोक महंगाई दर का मतलब उन कीमतों के आधार पर महंगाई दर का आकलन करना होता है, जिन कीमतों के आधार पर दुकानदार थोक विक्रेताओं से माल खरीदता है। खुदरा महंगाई दर और थोक महंगाई दर के बीच कई अंतर हैं। जैसे कि खुदरा महंगाई दर में सेवाओं को शामिल किया जाता है लेकिन थोक महंगाई दर में सेवाओं को शामिल नहीं किया जाता है। खुदरा महंगाई दर के आकलन के लिए जिस हिसाब से माल और सेवाओं का भारांस तय किया जाता है ठीक उसी हिसाब से थोक महंगाई दर में भारांस नहीं तय किया जाता। लेकिन सबसे बड़ा अंतर यह है कि थोक महंगाई दर में खुदरा दुकानदार द्वारा तय की गई कीमतों के आधार पर महंगाई का आकलन नहीं किया जाता बल्कि थोक विक्रेताओं द्वारा तय की गई कीमतों के आधार पर महंगाई का आकलन किया जाता है। जैसे अगर अगर थोक विक्रेता ₹90 कीमत के आधार पर कोई माल बेचेगा तो खुदरा विक्रेता माल को ₹90 से अधिक की कीमत पर ही बेचेगा, ₹90 से कम की कीमत पर नहीं बेच सकता। तो थोक महंगाई दर में खुदरा महंगाई दर से कम कीमतों के आधार पर महंगाई दर का आकलन होता है। इसलिए थोक महंगाई दर अक्सर खुदरा महंगाई दर से कम होती है। 

लेकिन पिछले कुछ समय से थोक महंगाई दर, खुदरा महंगाई दर से ज्यादा दर्ज की जा रही है। इसका कारण यह है कि थोक महंगाई दर के पूरे बास्केट में इंधन और शक्ति ( फ्यूल एंड पावर) का भारांस 13.5 प्रतिशत का होता है। फ्यूल और पावर के क्षेत्र में 37.18% की खतरनाक दर से महंगाई दर बनी हुई है। भारत में 80 फ़ीसदी दोपहिया वाहनों का इस्तेमाल होता है। इसका सीधा असर उन पर पड़ रहा है 

बहुमूल्य खनिज पदार्थ में निवेश करने वाले बहुत अधिक निवेश कर रहे हैं। कॉपर, जिंक, आयरन, स्टील में पिछले कुछ समय से बड़ा निवेश किया गया है। भविष्य की चिंताएं और भविष्य की योजनाओं को देखते हुए कई देश बड़ी मात्रा में इन बहुमूल्य पदार्थों को खरीद रहे हैं। ऐसे में इनकी कीमतों में भी बहुत बड़ा इजाफा हुआ है। यह इजाफा थोक महंगाई दर में दिख रहा है। 

महामारी की वजह से सारा काम ठप पड़ गया था। उत्पादन बैठ गया था। उस उत्पादन में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। लेकिन वह इतना बड़ा सुधार नहीं है कि सप्लाई बोटेलनेक यानी आपूर्ति में कमी की समस्या से छुटकारा मिल जाए। यानी माल कम है और मांगने वाला ज्यादा हैं। परिणाम कीमतों की बढ़ोतरी में दिखता है।

इन सब का निचोड़ यही है कि माल बनाने वाली कंपनी की लागत बढ़ेगी। लागत बढ़ेगी तो थोक मूल्य भी बढ़ेगा और थोक मूल्य बढ़ेगा तो खुदरा महंगाई भी बढ़ेगी। इसका असर तो आम जनता पर पड़ता ही पड़ता है। भले आंकड़े इसे दिखा पाए या नहीं।

अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार इन सब कारणों के अलावा एक और महत्वपूर्ण कारण बताते हैं। प्रोफ़ेसर अरुण कुमार की राय है कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था में एकाधिकार की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। कुछ लोग कीमतें बढ़ा रहे हैं उनके साथ प्रतियोगिता करने वाला कोई नहीं है। और मुनाफा बढ़ता जा रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था की इस प्रवृत्ति का सत्यापन ढेर सारे आंकड़े कर सकते हैं। अब इसी आंकड़े को देखिए कि वित्तवर्ष 2021-22 की दूसरी तिमाही के नतीजों में लिस्टेड कंपनियों ने रिकॉर्ड 2.39 लाख करोड़ की कमाई की है। कंपनियों के मुनाफे में सालाना करीब 46 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई है। इनमें भी बड़ा मुनाफा सभी लिस्टेड कंपनियों ने दर्ज नहीं की है। बल्कि कुछ ही कंपनियों ने दर्ज की है। वह कंपनियां जो एनर्जी सेक्टर से जुड़ी हुई है उन्होंने तकरीबन 87 फ़ीसदी का मुनाफा दर्ज किया है।

क्रिस्टल रिसर्च के आंकड़े कहते हैं कि महंगाई की वजह से सबसे अधिक मार शहरी गरीबों पर पड़ी है। भारत के 20% निम्न आय वाले शहरी गरीबों की कमर महंगाई के बोझ न तोड़ दी है।

यहां पर यह भी समझने वाली बात है कि मौजूदा समय की महंगाई बढ़ती महंगाई नहीं है जो लोगों की जेब में पैसा होने की वजह से होती है। बल्कि यह अजीब स्थिति है। तकनीकी भाषा में इसे स्टैगफ्लेशन कहा जाता है। लोगों की जेब में पैसा नहीं है और सामानों के दाम बढ़ते जा रहे हैं। 

अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी का अध्ययन बताता है कि भारत में महज 1.6 फ़ीसदी कामगारों की कमाई ₹50 हजार रुपए महीने से अधिक है। भारत की बहुत बड़ी आबादी जो गांव देहात में बसती है, इसकी कमाई से जुड़ा साल 2017 का आंकड़ा कहता है कि भारत की 70 फ़ीसदी ग्रामीण परिवार महीने में 8333 रुपए कमाते हैं। इसमें से 40 फ़ीसदी परिवार महीने में ₹4500 से भी कम कम कमाते हैं और 20 फ़ीसदी परिवार महीने में ₹2500 भी कम कम कमाते है। अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा के मुताबिक पिछले 8 साल में तकरीबन आठ करोड़ लोग गरीब हुए हैं। 

भारत की इस गरीबी के साथ महंगाई के आंकड़े और कारणों को देखने पर ऐसा लगता है जैसे मानो आम जनता का कोई रहनुमा नहीं है। सरकार को आम जनता की परेशानियों से कोई लेना देना नहीं। इसीलिए अर्थशास्त्री कौशिक बसु अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखते हैं कि दुनिया के कई मुल्कों में थोक महंगाई दर ऊंची है। लेकिन यह कारण बताकर के भारत की सरकार अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती। दुनिया के दूसरे मुल्कों में सरकारें गरीब मध्यम वर्ग और मजदूर का सहारा बन रही हैं। लेकिन भारत में ऐसा नहीं हो रहा है। 

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