इतवार की कविता : कवि असद ज़ैदी की मीडिया पर टिप्पणी
इतवार की कविता में आज पढ़िये असद ज़ैदी की कविता "जो देखा नहीं जाता..."
हैबत के ऐसे दौर से गुज़र है कि
रोज़ अख़बार मैं उलटी तरफ़ से शुरू करता हूँ
जैसे यह हिंदी का नहीं उर्दू का अख़बार हो
खेल समाचारों और वर्ग पहेलियों के पर्दों से
झाँकते और जज़्ब हो जाते हैं
बुरे अंदेशे
व्यापार और फ़ैशन के पृष्ठों पर डोलती दिखती है
ख़तरे की झाँई
इसी तरह बढ़ता हुआ खोलता हूँ
बीच के सफ़े, संपादकीय पृष्ठ
देखूँ वो लोग क्या चाहते हैं
पलटता हूँ एक और सफ़ा
प्रादेशिक समाचारों से भाँप लेता हूँ
राष्ट्रीय समाचार
ग़र्ज़ ये कि शाम हो जाती है बाज़ औक़ात
अख़बार का पहला पन्ना देखे बिना।
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