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इतवार की कविता : 'लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में...'

इतवार की कविता में आज पढ़िये बशीर बद्र की यह ग़ज़ल।
इतवार की कविता : 'लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में...'

इतवार की कविता में आज पढ़िये बशीर बद्र की यह ग़ज़ल।

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में

तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में

 

और जाम टूटेंगे इस शराब-ख़ाने में

मौसमों के आने में मौसमों के जाने में

 

हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं

उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में

 

फ़ाख़्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकती

कौन साँप रखता है उस के आशियाने में

 

दूसरी कोई लड़की ज़िंदगी में आएगी

कितनी देर लगती है उस को भूल जाने में

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