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इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'

बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'

बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।

 

ज़िद- परवीन शाकिर


मैं क्यूँ उस को फ़ोन करूँ! 

उस के भी तो इल्म में होगा 

कल शब 

मौसम की पहली बारिश थी! 

ग़ज़ल- इदरीस बाबर

वर्ना क्या आब-ओ-हवा चीज़ है कैसा मौसम 

तेरे आने से हुआ शहर में अच्छा मौसम 

 

ये मह-ओ-मेहर इज़ाफ़ी हैं तिरे सर की क़सम 

वक़्त बतलाती हैं आँखें तिरी चेहरा मौसम 

 

धूप में छाँव कहीं मौज में तूफ़ान कहीं 

जैसा ऐ दोस्त तिरा मूड है वैसा मौसम 

 

रंग-ओ-बू रखते हैं सब फूल फल अपनी अपनी 

चश्म-ओ-अबरू से अलग आरिज़-ओ-लब का मौसम 

 

इस क़दर हुस्न अचानक मिरा दिल तोड़ न दे 

एक तो प्यारा है तू इस पे ये प्यारा मौसम 

 

न वबा के कोई दिन रात न तन्हाई के साल 

तेरे आते ही बदल जाता है सारा मौसम 

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