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जारी रक्षा "सुधार" भारतीय सेना के गोलाबारूद की कमी की समस्या का हल नहीं कर सकते हैं

रक्षा क्षेत्र को निजी क्षेत्र में सौंपने से सशस्त्र बलों की समस्याओं का समाधान नहीं होगा।

Defence

कुछ समय पहले ऐसी खबरें आईं थी कि भारतीय सेना के पास गोला-बारूद के पर्याप्त स्टॉक नहीं हैं। इसको लेकर चिंता जताई गई थी।

गोला-बारूद के भंडारों के स्तर के संबंध में दो मानक हैं जिसे माना जाता है कि देश को इसे क़ायम रखना चाहिए। एक मानक वार वेस्टेज रिजर्व (डब्ल्यूडब्ल्यूआर)स्केल हैजिसके अनुसार भारत को सघन युद्ध की स्थिति में गोला बारूद का भंडार 40 दिनों का होना चाहिए। दूसरे मानक गोला-बारूद का मिनिमम एक्सेप्टेबल रिस्क लेवल (एमएआरएलहै जिसके अनुसार सघन युद्ध की स्थिति में गोला बारूद का पर्याप्त भंडार 20 दिनों का होना चाहिए।

पूर्व नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजीशशिकांत शर्मा की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ सेना के 152 प्रकार के गोला-बारूद का 80 प्रतिशत डब्ल्यूडब्ल्यूआर के स्तरों को पूरा नहीं करता थावहीं गोला बारूद के 55 प्रतिशत एमएआरएल के स्तरों को पूरा नहीं करते थें। सीएजी की यह रिपोर्ट जुलाई 2017 में संसद में पेश किया गया था।

उत्पादन लक्ष्य को पूरा करने में सक्षम न होने के कारण देश में आयुध कारखानों के ख़िलाफ़ लगातार आलोचनाएं हुईं। लेकिन दुर्भाग्यवश आयुध कारखानों (ऑर्डिनेंस फैक्ट्रीकी आवाज़ को मीडिया रिपोर्टों और विश्लेषण में कोई जगह नहीं मिली। न्यूज़क्लिक ने इस मुद्दे पर ऑल इंडिया डिफेंस एम्प्लाईज़ फेडरेशन (एआईडीईएफ)के महासचिव सी श्रीकुमार से बात की।

श्रीकुमार ने कहा कि "दुर्भाग्य से ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड एक सरकारी विभाग होने के चलते इसके ख़िलाफ़ किए गए आलोचनाओं को लेकर इसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। और जब हमने (यूनियन)प्रतिक्रिया दिया तो उसे कोई भी प्रकाशित नहीं करता है।"

उन्होंने कहा कि "विभिन्न प्रकार के हथियारों में इस्तेमाल किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के गोला बारूद होते हैं। हम स्वयं इनका निर्माण नहीं करते हैं। सेना हमें हर सालजानकारी देती है कि उसे इस-इस तरह के गोलाबारूद की आवश्यकता है। जब वे हमें जानकारी दे देते हैं तो हम उसके बाद कच्चे मालसामग्रियों और अन्य चीजों की खरीद करते हैं। ऐतिहासिक रूप से गोला बारूद के विनिर्माण में विभिन्न प्रकार के कारखाने शामिल हैं। यह सब रणनीतिक कारणों के चलते है। आप सभी चीजों को एक ही टोकरी में नहीं रख सकते हैं।

इसलिए रणनीतिक रूप से मेटालर्जिकल फैक्ट्री गोले बनाते हैं। तब इन गोलों को इंजीनियरिंग फैक्ट्री में स्थानांतरित कर दिया जाएगा जहां मशीनी कार्यवाही होगी। फोर्जिंग (ये एक निर्माण प्रक्रिया है जिसमें धातु को आकार दिया जाता हैप्रक्रिया पूरा होने के बाद बम को इंजीनियरिंग फैक्ट्री में लाया जाएगा जहां इसे उचित आकार दिया जाएगा। तब यह फिलिंग फैक्ट्री में भेजा जाएगा।

इन फिलिंग फैक्ट्री के लिए तीन रासायनिक कारखाने हैं जो विस्फोटक और रसायनों का निर्माण कर रहे हैं। एक अरुवंकाडु में हैदूसरा इटारसी में हैतीसरा भंडारा में हैऔर दूसरा जो हाई एक्सप्लोसिव फैक्ट्र है वह पुणे में है।

इसलिए यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस प्रकार के गोला भरने जा रहे हैं। और तब फिलिंग फैक्ट्री गोला बारूद को अंतिम रूप देंगे।

फिर इसे पैक किया जाएगा और विभिन्न गोला बारूद डिपो में भेज दिया जाएगा। इस तरह यह एक सिस्टम है।

गोला बारूद निर्माण करने के लिएआदर्श रूप से उन्हें हमें पांच साल का भार देना चाहिए जिसे वे "रॉल-ऑन इंडेंटकहते हैं। तभी हम सामग्री खरीद सकते हैं,रसायनों की खरीद कर सकते हैं और इन सभी चीजों का निर्माण कर सकते हैं। ये चीजें बाजार में आसानी से उपलब्ध नहीं होती हैं। और कोई भी उत्पादन नहीं करता है और न इसे कोई शो-रूम में रखता है। इसलिएहमें उन निजी कंपनियों को भी बताना होगा जो पहले से इसमें शामिल हैं क्योंकि आयुध कारखानों के अलावा इन उत्पादों का कोई ग्राहक ही नहीं होता है।

जब तक आप उसके लिए कोई ऑर्डर नहीं देते हैंवे इन रसायनों का उत्पादन नहीं करेंगे क्योंकि ये सभी प्रतिबंधित वस्तु हैं। कई लोग जो मेरी आलोचना करते हैं वे इन व्यावहारिक समस्याओं को नहीं समझते हैं।"

"अब मैं आपको एक सरल उदाहरण दूंगा। गोला बारूद बॉक्स का मामला लेंजिसके उत्पादन को अब आउटसोर्स किया गया है इस दावे के साथ कि यह एक "नॉन-कोरआइटम है। अब देखिए कि क्या होता है। आयुध कारखाने इन निजी कंपनियों को गोला बारूद बॉक्स के लिए ऑर्डर देता है। लेकिन वे इस बॉक्स की आपूर्ति नहीं करते हैं। वे जो कारण बताते हैं वो कुछ इस तरह है 'जब हमने ऑर्डर लिया तो स्टील की क़ीमत कुछ इस तरह थीलेकिन जब हमने काम करना शुरू किया तो स्टील की कीमतें बढ़ गई हैं। इसलिए हम मूल दर पर आपूर्ति नहीं कर सकते हैं।

इसलिए अंततः आयुध कारखानों ने गोला बारूद बॉक्स का उत्पादन बंद कर दिया हैऔर निजी कंपनी भी आपूर्ति नहीं कर रहे हैं। उत्पादित गोला बारूद कारखाने में ही हैआप इसे भेज नहीं सकते हैं।

इस तरह की समस्याएं हैं जिसके बारे में न ही कोई बोलता है और न ही कोई लिखता है।

गोला बारूद स्टॉक को लंबे समय तक रखा भी नहीं जा सकता है। ट्रायल में और प्रशिक्षण के दौरान सेना द्वारा नियमित रूप से गोला-बारूद का इस्तेमाल किया जाना है क्योंकि ये सभी रसायन होते हैं। उनके रखने की सीमा होती है। इन्हें अलग-अलग तापमान पर अलग-अलग गोला बारूद डिपो में संग्रहीत किया जा रहा है। आप इन्हें अधिकतम 45 दिनों तक ही रख सकते हैं। यदि आप इन्हें डिपो में इस सीमा से ज्यादा दिनों तक रखते हैं और यदि रिसाव होता है तो पूरा डिपो उड़ जाएगा। आपके डिपो में एक साल का गोला बारूद स्टॉक नहीं हो सकता है।

अन्य चीजें भी हैं। यहां तक कि विदेशों से आयातित गोला बारूद जो ख़राब है उसे भी आयुध कारखानों के दोष के रूप में चित्रित किया जा रहा है। धातुओं और सामग्रियों की जांच के लिए एक विशेषज्ञ टीम भेजना है...। इन परिणामों को (जो अक्सर आयुध कारखानों के पक्ष में होता हैसमाचार पत्रों द्वारा प्रकाशित नहीं किया जाता हैं।"

श्रीकुमार ने आगे कहा कि "आयुध कारखानों के ख़िलाफ़ इस तरह के प्रचार के पीछे का एक संपूर्ण उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र को नष्ट करना है। इस तरह के विचार से जनता के दिमाग़ में सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति गलत छवि बनाई जाती है। यह छिपा हुआ एजेंडा है।"

रक्षा सुधारों का मौजूदा समय उन्हें "नॉन-कोरके रूप में वर्गीकृत करके 250 वस्तुओं के उत्पादन के आउटसोर्सिंग करना है। ये उपाय भारत के सशस्त्र बलों की समस्याओं को हल नहीं कर पाएंगे जिसका सामना सेना कर रही है। इसमें गोला-बारूद की कमी भी शामिल है।

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