जब क्लासरूम निशाना बन जाए
बच्चों को स्कूल जाते हुए देखना हमेशा अद्भुत लगता है। एक उम्मीद होती है कि वे जो कुछ पढ़ रहे हैं उसमें कुछ तलाशेंगे या जिस बारे में बात कर रहे हैं उसमें उनकी दिलचस्पी, यह सब उन्हें उस दुनिया में आकर्षित करता है जो उनकी अपनी दुनिया से अलग है, उन्हें एक नया आत्मविश्वास देता और एक नई महत्वाकांक्षा देता है। यहाँ तक कि सबसे कठिन पाठ्यक्रम भी आँख खोलने वाला हो सकता है: एक कहानी जो अज्ञात है, किसी किताब का एक वाक्य जो बच्चे को ऊंची उड़ान भरना सिखाता है।
चाहे यह बालबेक (लेबनान) का क्लासरूम हो या काबुल के चमन-ए-बाबरक (अफगानिस्तान) का, ये बच्चे (पहले में सीरिया के शरणार्थी और दूसरे में अफगानिस्तान के ग्रामीण इलाकों के शरणार्थी) उनमें एक छोटा सा शरणस्थल पाते हैं। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी यूएनएचसीआर के त्रिपाल वाले अक्सर अस्थायी क्लासरूम होते हैं और, यदि बच्चे भाग्यशाली हैं, तो संयुक्त राष्ट्र की बच्चों की एजेंसी यूनिसेफ से उनके लिए बैग्स मिलते हैं। पिछले सप्ताह स्कूल बस पर हुए हमले के बाद भीड़ भाड़ वाले दहयान शहर के बाज़ार की सड़क पर ये बैग चारों तरफ बिखरे हुए थे।
15 अगस्त को लगभग पांच सौ युवा जिनकी उम्र 16 से 18 वर्ष के बीच थी काबुल के दश्त-ए बरचा के नज़दीक मौऊड एजुकेशन सेंटर में मौजूद थें। वे कॉलेज में दाख़िले के लिए होने वाली परीक्षा की तैयारी के लिए प्राइवेट क्लास ले रहे थें जिससे कि उन्हें मदद मिल सके। इस बुधवार को छात्र अपना काम करने के लिए तैयार ही हो रहे थें कि एक अजनबी आदमी हॉल के अंदर आया और खुद को बम से उड़ा लिया जिसमें लगभग 48 छात्रों की मौत हो गई वहीं 100 के क़रीब घायल हो गए। केवल उन छात्रों की महत्वाकांक्षा समाप्त नहीं हुई जिनकी मौत इस घटना में हुई बल्कि उन छात्रों की भी दब गई जो इस अत्याचार के ज़ख्मों को लंबे समय तक झेलेंगे।
नष्ट हुए हॉल के चारों तरफ भौतिकी की परीक्षा के लिए तैयारी की जाने वाली किताबें, जूते, बैग्स आदि बिखरे हुए हैं।
शिया-विरोधी हिंसा
पश्चिमी काबुल में दश्त-ई-बरचा की ये हिंसा ऐसी कोई नई नहीं है। अफगानिस्तान के विभिनन हिस्सों में युद्ध होने के चलते ग्रामीण इलाकों से भागने वाले लोग काबुल की बढ़ती स्लम आबादी में शामिल होते चले गए। पश्चिमी अफगानिस्तान की हज़ारा आबादी इस इलाक़े में बस गई है। पड़ोस में शिया की बड़ी आबादी दश्त-ई-बरचा अफगानिस्तान के तालिबान की निराशा का लगातार निशाना बनता रहा है और अब इस्लामी स्टेट (आईएसआईएस) का बन रहा है।
जुलाई 2016 में हजारों प्रदर्शनकारियों दश्त-ई-बरचा से शहर के केंद्र (और काबुल चिड़ियाघर) के नज़दीक के देह मज़ंग स्क्वायर की तरफ़ रैली निकाली थी। वे सलांग दर्रा के पास अपनी भूमि के पास बिजली ग्रिड के निर्माण का विरोध करने आए थे। इसमें मुख्य रूप से हज़ारा समुदाय के लोग शामिल थे, ये एनलाइटेंमेंट मूवमेंट विरोध त्योहार के समय में हुआ था। प्रदर्शनकारियों की विशाल भीड़ में दो आत्मघाती हमलावरों ने ख़ुद को उड़ा लिया। इस हमले में कम से कम 100 लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 300 लोग घायल हो गए थें। आईएसआईएस ने पहले इस हमले की ज़िम्मेदारी ली थी, और फिर जब जनता की राय हज़़ारा के पक्ष में गई तो उसने इनकार कर दिया था। लेकिन यह स्पष्ट था कि एंटी-ग्रिड प्रदर्शनकारियों पर हमले की तुलना में कहीं ज़्यादा यह हज़ारा समुदाय पर ही हमला था।
शिया-विरोधी हिंसा आईएसआईएस के विश्व दृष्टिकोण को परिभाषित करता है जो अफगानिस्तान में नाटो के दख़ल के मुक़ाबले शिया समाज के साथ सैद्धांतिक कठिनाइयों पर अधिक ग्रसित लगती है। अफगानिस्तान में आईएसआईएस द्वारा हिंसा के क्रूर कृत्यों को इराक और सीरिया में ऐसी हिंसा से प्रतिबिंबित किया जाता है। इस हफ्ते आत्मघाती हमलावर ने किसी भी स्कूल को निशाना बनाने के लिए नहीं चुना था। उसने हज़ारा के पड़ोस के एक स्कूल को चुना जो निजी शिक्षण संस्थान था जिसमें मुख्य रूप से हज़ारा समाज के युवा आते थें। पांच महीने पहले एक व्यक्ति ने पास के निजी स्कूल में एक ग्रेनेड फेंक दिया था। इस इलाक़े में स्कूल के बच्चों के ख़िलाफ़ हिंसा के इस तरह के कार्य अब असामान्य नहीं हैं। इस इलाक़े में स्कूल पर यह तीसरा बड़ा हमला है।
शिया-विरोधी हिंसा ने विशेष रूप से विधर्मी समुदाय हज़ारा को ईरानी रूढ़िवादी के बेहद क़रीब लाया है। लेबनान के नाबातिह की तरह दश्त-ई-बरचा पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए ईरानी व्यवहार की नक़ल करते रहे हैं। ईरान के साथ जुड़ाव हमेशा वहां था लेकिन अब यह महसूस कर रहा है कि ईरान शिया-विरोधी हिंसा के ख़िलाफ़ हज़ारा की रक्षा करेगा जो बढ़ गया है। इसका सांस्कृतिक विध्वंस हैं जो राजनीतिक गठजोड़ से ज़्यादा गहरा है। ऐसा ही लगभग है जैसे मानो कि अफगान राष्ट्रवाद के जो भी अवशेष है उसे आईएसआईएस तोड़ना चाहता है और सांप्रदायिक युद्ध की स्थिति बनाने की कोशिश करता है। यह अब स्थिति नहीं है लेकिन उस दिशा में जाने के लिए लोभ मौजूद है। पहले से ही कोई हज़ारा नेताओं के बीच आत्म-रक्षा की बात सुनता है, ख़ासकर जैसे ही अफगान सुरक्षा सेवाओं में विश्वास कमज़ोर होता है।
मेरी तरह दृष्टिहीन न बने
एक विश्वविद्यालय की छात्रा रहा अफगान वूमन्स राइटिंग प्रोजेस्ट के लिए लिखती हैं। वह दश्त-ई-बरचा में कुछ दोस्तों से मिलती हैं। घर जाने के रास्ते में वह एक व्यक्ति के पास से संकरी गलियों में गुज़रती हैं। वह उससे पूछती हैं कि क्या वह अपनी बेटियों को स्कूल भेजते है। व्यक्ति ने उससे कहा 'प्यारी बेटी' 'मैं उन्हें भेजता हूं क्योंकि मैं नहीं चाहता कि वे मेरे जैसी दृष्टिहीन हो जाए। बिना शिक्षा वाले लोग दृष्टिहीन होते हैं। मैं चाहता हूं कि वे अपने ज़िंदगी को बेहतर बनाएं। अब हमारे समय बीत चुके हैं। मैं चाहता हूं कि वे नई दुनिया का आनंद लें।'रहा ने जुलाई 2016 में बम विस्फोट से पहले और इस हफ्ते के बम विस्फोट से पहले निश्चित रूप से मार्च 2016 में इन शब्दों का ज़िक्र किया था। उस व्यक्ति की प्रतिक्रिया ने छात्रा को काफी ख़ुश किया। वह उनकी उम्मीदों से भर गई थी।
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