जेएनयू में छात्रों का अनशन जारी, राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की अपील
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की नई एडमिशन पॉलिसी के खिलाफ स्टूडेंट्स यूनियन का अनशन मंगलवार को आठवें दिन भी जारी रहा।
स्टूडेंट्स ने सातवें दिन वीसी के घर तक मार्च निकाला। उनका कहना था कि वीसी तो हम से मिलने आ नहीं रहे हैं तो हम ही उनसे मिलने उनके घर तक गए। इस दौरान वहां मौजूद गार्डों ने छात्रों को रोक दिया। इस दौरान कुछ छात्रों ने वीसी के घर में घुसने की भी कोशिश की जिन्हें सुरक्षाकर्मियों ने रोककर लौटा दिया। हालांकि, वीसी का आरोप है कि स्टूडेंट्स जबरन घर में घुस आए और उनकी पत्नी को बंधक बना लिया।
इसको लेकर वीसी जगदीश कुमार ने ट्वीट भी किया और लिखा , 'आज शाम सैकड़ों स्टूडेंट्स जेएनयू स्थित मेरे आवास में जबरन घुस आए और मेरी पत्नी को कई घंटे तक घर में बंद रखा, जबकि मैं उस वक्त मीटिंग में था। क्या यह प्रदर्शन का तरीका है? घर के अंदर अकेली महिला को आतंकित करना प्रदर्शन है?'
लेकिन इसके कुछ समय बाद ही दिल्ली पुलिस ने एक बयान जारी कर वीसी साहब के आरोपों को गलत साबित कर दिया और कहा,“छात्रों ने जेएनयू वीसी के घर तक मार्च का आह्वान किया था। स्टूडेंट्स उनके घर के पास पहुंचे और घर में घुसने की कोशिश की। सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें रोका। इसके बाद अधिकांश स्टूडेंट्स अपने हॉस्टल वापस चले गए थे। कुछ लोग वहीं जमे रहे। स्थिति अभी नियंत्रण में है।'
इसके साथ ही JNUSU ने भी वीसी के आरोप को पूरी तरह से गलत बताया और कहा कि गार्डों ने प्रशासन के इशारे पर उनसे धक्का मुक्की की जिसमें JNUSU के अध्यक्ष एन साईं बालाजी को चोट लगी और वे बेहोश हो गए। जिसके बाद उन्हें एंबुलेंस से अस्पताल ले जाया गया।
आपको बता दें कि जेएनयू में 11 छात्र 8 दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे हैं। इनमें से दो को तबीयत खराब होने पर अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
19 मार्च से, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के 11 छात्रों ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की, साथ ही कई अन्य छात्र रिले भूख हड़ताल यानी क्रमबद्ध तरीके से भूख हड़ताल कर रहे थे, उनकी मांग है कि 15 मार्च को जारी हुए प्रॉस्पेक्टस को तुरंत रद्द कर दिया जाए, और जेएनयू के वीसी एम जगदीश कुमार को हटाया जाए। हाल के दिनों में, जेएनयू छात्र संघ (जेएनयूएसयू) और जेएनयू शिक्षक संघ (जेएनयूटीए) कुलपति की तानाशाही रैवये का आरोप लगते हुए उनके खिलाफ समय समय पर विरोध करता रहा है |
दूसरी तरफ प्रशासन का कहना है कि जेएनयू के एडमिशन प्रोसेस में ऑनलाइन एंट्रेंस टेस्ट लोकतांत्रिक ढंग से लाया गया है। साथ ही,एमफिल-पीएचडी एडमिशन के लिए अलग अलग एंट्रेंस रखने का फैसला पिछले दो साल में एकेडमिक काउंसिल की मीटिंग में लिए गए हैं।
JNUSU ने मांग की है कि विश्वविद्यालय के विजिटर, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद तुरंत मामले में हस्तक्षेप करें और छात्रों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर विचार करें, जो इस प्रकार हैं:
1. एमफिल और पीएचडी सहित सभी पाठ्यक्रमों में सीबीटी ऑनलाइन परीक्षा को लागू करने का निर्णय को रद्द किया जाए।
शिक्षक और छात्रों का कहना है कि इस तरह की प्रवेश प्रक्रिया होने से एक बड़े तबके की पहुंच जेएनयू जैसे संस्थान में कम हो जाएगी। उन्होंने शैक्षणिक सीमा की समस्याओं की ओर इशारा किया था। लेकिन शिक्षकों और छात्रों की राय की अवहेलना करते हुए इसे लागू किया गया। इसलिए इसे तुरंत वापस लिया जाए।
2. शैक्षणिक परिषद की बैठक में बिना किसी विचार-विमर्श या चर्चा के लिए गए एकीकृत एमफिल-पीएचडी कार्यक्रम को रद्द करने के निर्णय को वापस लिया जाए और ये कार्यक्रम बहाल किया जाए।
3. बीए द्वितीय वर्ष में प्रवेश से दूर करने का निर्णय, अवैध रूप से बोर्ड ऑफ स्टडीज, स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज, लिटरेचर एंड कल्चरल स्टडीज के निर्णय का उल्लंघन करता है।
4. पिछले दो वर्षों में आरक्षण के उल्लंघन के भी गंभीर मामले सामने आए हैं।
5. एमबीए प्रोग्राम में आने वाले छात्रों से 12 लाख रुपये और इंजीनियरिंग कोर्स के लिए 70 हज़ार रुपये प्रति सेमेस्टर का शुल्क लिया जाता है। यहां तक कि इन स्कूलों में से किसी के लिए भी भवन या पर्याप्त संख्या में संकाय नहीं है।
6. अभाव अंक (यानी गरीब और पिछड़े तबके से आने वाले छात्रों को एक तरह से प्रथमिकता देना) को लागू करने की मांग, जो जेएनयू प्रवेश नीति का सबसे प्रगतिशील तत्व रहा है, जिससे विश्वविद्यालय में प्रवेश करने के लिए हाशिये के समुदायों के छात्रों की पहुंच का अधिकार संभव हो पाया था, एमफिल-पीएचडी में लागू नहीं किया गया है और नई शुरुआत की गई है। इसे लागू किया जाए।
7. निर्वाचित जेएनयूएसयू को अवैध तरीके से जानबूझकर अकादमिक परिषद की बैठकों से बाहर रखा गया था, जहां इस तरह के छात्र विरोधी फैसले लिए गए। जेएनयूएसयू ने पहले ही इसके खिलाफ एक रिट याचिका दायर की है और निर्णय का इंतजार है।
हाई कोर्ट ने जेएनयूएसयू को कार्य न करने देने और विभिन्न बैठकों में भाग लेने से रोकने को लेकर जेएनयू प्रशासन को फटकार लगाई है।
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