जेएनयूएसयू का आरोप: प्रवेश परीक्षा के पेपर हुए लीक
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) प्रवेश परीक्षा में पेपर लीक की आशंका जताते हुए जेएनयू छात्रसंघ ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की और इस परीक्षा में धाधंली का आरोप लगाया, और साथ ही इसकी जाँच की मांग की। मीडिया रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए जेएनयूएसयू ने कहा कि स्कूल ऑफ़ लैंग्वेज के बीए प्रथम वर्ष का ऐंट्रेंस पेपर 28 मई 2019 को व्हाट्सएप पर शेयर किया जा रहा था।
इसको लेकर छात्र नेताओं ने वीसी को रविवार को मेल भी किया था मगर जवाब नहीं मिला। इसके बाद सोमवार को उनसे मिले भी और अपनी लिखित शिकायत दी, जिसे उनके ऑफ़िस ने रिसीव भी किया। छात्र नेताओं ने दावा किया कि वीसी ने आश्वासन भी दिया है कि इस मामले को नैशनल टेस्टिंग एजेंसी को भेजा जाएगा क्योंकि इस बार वही यह एग्ज़ाम करवा रहा है।
परन्तु मिडिया रिपोर्ट के अनुसार नेशनल टेस्टिंग एजेंसी के महानिदेशक विनीत जोशी ने कहा कि उन्हें जेएनयू की तरफ़ से कोई शिकायत नहीं मिली है। उन्होंने प्रश्न पत्र लीक होने की सभी संभावनाओं को ख़ारिज किया।
जेएनयू इतहास में पहली बार इस तरह के आरोप
जब कुलपति और जेएनयू प्रशासन ने ऐंट्रेंस पेपर को ऑनलाइन करने का निर्णय किया था तब भी सभी छात्र संगठनों ने इसका विरोध किया था। जेएनयूएसयू ने कहा कि जेएनयूईई ऑनलाइन प्रवेश परीक्षा कराने का फ़ैसला जेएनयूवीसी द्वारा लिया गया एकतरफ़ा फ़ैसला था और यह बहुस्तरीय घोटाला है। जेएनयू एडमिन ने परीक्षा से पहले ही शिक्षकों से उत्तर कुंजी देने को कहा था जो कि परीक्षा की सुरक्षा और निष्पक्षता के लिए उचित नहीं है।
छात्रसंघ ने यह भी कहा कि जेएनयू के 50 साल के इतिहास में पहली बार किसी बाहरी निजी विक्रेता, जैसे राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी को जेएनयू ऐंट्रेंस एग्ज़ाम करने का आदेश दिया। आश्चर्य की बात है कि परिणाम का मूल्यांकन जेएनयू संकाय (फ़ैकल्टी) द्वारा सरल ऑफ़लाइन मोड परीक्षा में होता था और मूल्यांकन के विपरीत अधिक जटिलता पैदा करके वहाँ एक अन्य निजी एजेंसी को दिया गया था।
छात्रों का इस नई प्रणाली को लेकर भी विरोध
जेएनयू के अधिकतर छात्रों का मानना है कि ऐंट्रेंस एग्ज़ाम के लिए बहुवैकल्पिक प्रश्नपत्र यानी एमसीक्यू को लेकर आपत्ति रही है, विशेष रूप से एक विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा के लिए यह तर्कसंगत नहीं है। जेएनयू इससे पहले ऑफ़लाइन प्रवेश प्रणाली का परीक्षण करता रहा है, जो व्यक्तिपरक और उद्देश्य प्रश्नों का उपयुक्त मिश्रण है, एक अकादमिक श्रेष्ठ मॉडल था, जो छात्रों को समझ, लेखन और विश्लेषणात्मक कौशल के विभिन्न मापदंडों पर आंकलन करने के लिए डिज़ाइन किया गया था।
लेकिन कुलपति ऑनलाइन मोड के माध्यम से एमसीक्यू प्रारूप के पक्षधर रहे हैं। इसको लेकर विरोध कर रहे छात्रों का कहना है कि वो अकादमिक रूप से फेरबदल किया जा सके। साथ ही एमसीक्यू प्रारूप के लिए यह आसान है कि साफ़ सुथरी और निष्पक्ष परीक्षा प्रक्रिया के साथ टेम्पर किया जा सके। इसका फ़ायदा वो अपने लोगों के लिए कर रहे हैं कि कौन चयनित होगा और कौन नहीं। इस पर उनका नियंत्रण है।
कुलपति पर इससे पहले भी पक्षपातपूर्ण तरीक़े से शिक्षकों की भर्ती और एक विशेष प्रकार के विचारधारा के लोगों को नियुक्त करने और संकाय चयन समितियों के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया जा चुका है।
यह गंभीर मामला है क्योंकि जेएनयू देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक है। यहाँ पूरे देश से छात्र एडमिशन लेना चाहते हैं और इसके लिए वो ऐंट्रेंस एग्ज़ाम देते हैं और अगर ऐसे में इस पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं, तो ईमानदारी और मेहनत से पढ़ाई करने वाले छात्रों को बड़ा धक्का लगता है। अगर ऐसा होता है तो यह छात्रों के जीवन को बर्बाद करने और ऑनलाइन प्रवेश परीक्षा के अपने संदिग्ध मॉडल के माध्यम से छात्रों के जीवन को बर्बाद करने वाला हो सकता है।
जेएनयू छात्र संघ ने जो पेपर लीक के आरोप लगाए हैं वो कितने सही हैं, इसका पता तो उसकी जाँच के बाद ही चलेगा लेकिन इस घटनाक्रम ने एक बात को उजागर किया है कि जेएनयू प्रशासन ने विश्वसनीय तंत्र से समझौता किया और जिस नए तंत्र को लागू किया उसे पुरानी प्रक्रिया से बेहतर बताने के कोई तर्क मौजूद नहीं हैं।
इस पूरे मामले पर अभी तक जेएनयू प्रशासन या कुलपति की तरफ़ से कोई आधिकारिक जवाब नहीं आया है, इससे छात्रों का संदेह और गहरा हो रहा है।
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